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सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई: एप्स बने नफ़रत के नए हथियार

यह हमला, ऑनलाइन दुव्र्यवहार को हथियार बनाने वाला हमला है, जो अपने निशाने पर आने वाले अल्पसंख्यकों–धार्मिक अल्पसंख्यकों, उत्पीडि़त जातियों तथा महिलाओं–के खिलाफ अपने झूठ के प्रचार को बहुगणित करने के लिए, साफ्टवेयर टूल्स का उपयोग करता है।
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हाल में सामने आये सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई प्रकरण, गहराई तक महिलाविरोधी तथा सांप्रदायिक मानसिकता और तकनीक द्वारा मुहैया कराए गए टूल्स एवं सोशल मीडिया मंचों के उपयोग के योग की कहानी बयान करते हैं। शायद यह ज्यादा हैरान भी नहीं करता है कि पिछले साल के मध्य में जब सुल्ली डील्स का मामला सामने आया था, जिसमें करीब 100 मुखर मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया गया था, पुलिस की तफ्तीश बहुत ही लचर रही थी। वास्तव में पुलिस की तंद्रा तभी टूटी जब इस साल के शुरू में बुल्ली बाई के रूप मेें सुल्ली डील्स की वापसी हुई। व्यापक आलोचनाओं तथा प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय कवरेज के बाद ही, आखिरकार पुलिस को अपनी जिम्मेदारियों की याद आयी। आखिरकार, पुलिस ने बुल्ली बाई एप के सिलसिले में चार लोगों को पकड़ा है और एक व्यक्ति को और पकड़ा गया है, जिसने मूल सुल्ली डील्स एप विकसित करने की बात कबूल की है। ये सब के सब ट्रैडमहासभा नाम के नफरती ग्रुप के सदस्य हैं, जो हिंदू श्रेष्ठता का तथा सवर्णों के उच्चतर दर्जे का दावा करता है और इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हिंसा के उपयोग की वकालत करता है।

इन ट्रैडों (ट्रेडशनिलिस्ट्स या परंपरावादियों) की कार्य-पद्घति यही थी कि एक कथित रूप से नीलामी एप विकसित किया जाए, जोकि वास्तव में बस निशाना बनाए जाने वाली महिलाओं की कुछ तस्वीरों को रीसाइकिल करता था और उनके साथ तथाकथित नीलामी दाम लगाकर, प्रदर्शित करता था। इस सब का मकसद यही था कि मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाए। ग्रुप के सदस्य, सोशल मीडिया से या तस्वीरों के अन्य स्रोतों से तस्वीरें इकट्ठी करते थे और उन्हें इस एप्लीकेशन या एप पर डालते थे। यह एप गिटहब के सर्वरों पर डाला गया था, जिस पर लोग कोई भी साफ्टवेयर या डॉटा जमा कर के रख सकते हैं या शेयर कर सकते हैं। उसके बाद उसे, उस दिन की सुल्ली (मुस्लिम महिलाओं के लिए एक गाली) या बुल्ली बाई के रूप में, किसी मुस्लिम महिला को निशाना बनाने वाली, तरह-तरह की अपमानजनक टिप्पणियों के साथ टैग किया जाता था और ट्रैडमहासभा के सदस्यों के बीच ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप तथा अन्य सोशल मीडिया मंचों के जरिए, साझा किया जाता था। आज के विषाक्त वातावरण में आसानी से इन तस्वीरों तथा टीका-टिप्पणियों को ऐसे दक्षिणपंथी हैंडलों द्वारा व्यापक पैमाने पर उछाला जाता है तथा शेयर किया जाता है, जो गोडसे का महिमा मंडन करते हैं, हिंदू श्रेष्ठता को स्थापित करना चाहते हैं, भले ही इसके लिए हथियारों का इस्तेमाल करना पड़े और दोबारा सवर्णों का प्रभुत्व कायम करना चाहते हैं। जैसाकि हमेशा ही होता है, जब इस तरह के श्रेष्ठतावादी गुट अपना जोर दिखाते हैं, सार्वजनिक जीवन में सक्रिय महिलाएं और खासतौर पर मुखर, युवा मुस्लिम महिलाएं उनके निशाने पर होती हैं।

पिछले साल जुलाई में जब सुल्ली डील्स प्रकरण सामने आया था, गिटहब ने फौरन इस एप को हटा दिया था और इस एप को अपलोड करने वाले खाते को भी निलंबित कर दिया था। लेकिन, दिल्ली पुलिस के अनुसार, जिसके दायरे में इस मामले में दर्ज करायी गयी शुरूआती शिकायतें आई थीं, इस मामले में आगे कोई तफ्तीश नहीं की गयी। पुलिस के अनुसार, गिटहब ने उक्त एप बनाने वालों के संबंध में जानकारी देने के उसके नोटिसों का कोई प्रत्युत्तर नहीं किया। संबंधित नोटिस, सीआरपीसी की धारा-354 (यौन प्रतारणा) की शिकायत पर, पिछली जुलाई में दिए गए थे। इसके बाद, इस जनवरी में पुलिस ने तय किया कि आवश्यक जानकारियां हासिल करने के लिए  एमएलएटी (म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी) का सहारा लिया जाए। अधिकारियों की ओर से इस पर कोई सफाई नहीं दी गयी है कि पुलिस को यह काम करने में, पिछले साल जुलाई से इस साल जनवरी तक, पूरे छ: महीने क्यों लग गए? और यह भी कि उक्त मामले में यौन प्रतारणा से संबंधित, धारा-354 ही क्यों लगायी गयी है, जबकि यह साफ तौर पर एक धर्म या धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने का मामला है? इसके अलावा यह भी नहीं बताया गया कि ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप के उन हैंडलों का पता लगाने के लिए क्या किया गया, जिनके जरिए ट्रैडमहासभा के सदस्य सोशल मीडिया पर संबंधित तस्वीरें साझा करते थे।

चूंकि ऐसा लगता है कि करीब 30 ही हैंडल हैं जिनसे इन अपमानजनक तस्वीरों के वितरण की शुरूआत हो रही थी, जांच के लिए इनके रास्ते से आसानी से आगे बढ़ा जा सकता था। बहरहाल, इस मामले में पुलिस द्वारा अपनाए गए तौर-तरीकों की तुलना, जरा उस मुस्तैदी से करें जो मोदी या योगी की सरकार की आलोचना करने वाली पोस्टों के मामले में पुलिस व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर आदि पर कार्रवाई करने में दिखाती है। पुलिस की इस तरह की लापरवाही से यही समझा जा सकता है कि कानून का पालन कराने वाली एजेंसियां, अपनी निष्क्रियता के जरिए, परोक्ष तरीके से इस तरह की आपराधिक गतिविधियों में साझीदार हो गयी हैं। सुल्ली डील्स प्रकरण के आने के छ: महीने बाद, इस साल जनवरी में उसके बुल्ली बाई का रूप धारण कर के दोबारा प्रकट होने और इस पर जबर्दस्त जन-आक्रोष के सामने आने के बाद ही, पुलिस सक्रिय हुई। और चंद रोज में ही ट्रैडमहासभा से जुड़े ग्रुप के कुछ सदस्यों तक, उनके सोशल मीडिया हैंडलों के जरिए ही पहुंचना संभव हो गया और इसके लिए किसी एमएलएटी की जरूरत नहीं पड़ी। इन लोगों से पूछताछ में और भी नाम निकलकर सामने आये। फिलहाल, बुल्ली बाई एप केस में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है और मूल सुल्ली डील्स प्रकरण में एक व्यक्ति को। इनमें सबसे कम उम्र व्यक्ति 18 वर्ष का है, जबकि सबसे ज्यादा उम्र का व्यक्ति, 25 वर्ष का। हरेक लिहाज से इस जुर्म में संलिप्त लोग कोई सुपर हैकर नहीं हैं बल्कि सॉफ्टवेयर विकसित करने वाले लोग हैं, जिनकी जानकारियां काफी आरंभिक स्तर की ही हैं। अगर पुलिस ने, जब मूल सुल्ली डील्स का मामला सामने आया था, तभी इतनी मुस्तैदी दिखाई होती, तो संबंधित महिलाओं को इस तरह के हौलनाक सार्वजनिक हमले की पुनरावृत्ति को नहीं झेलना पड़ता।

सुल्ली डील्स/ बुल्ली बाई प्रकरण के दो पहलू और हैं। पहला है, दक्षिणपंथी विचारधाराओं का अंतर्राष्ट्रीयकरण, जो पहले फेसबुक का उपयोग कर के हो रहा था और अब अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का भी उपयोग कर के हो रहा है। फेसबुक नफरती ग्रुपों को बढ़ावा देता है क्योंकि उसके एल्गोरिद्म मुख्यत: एंगेजमेंट के पैमाने से संचालित होते हैं और नफरती पोस्टों से आने वाला एंगेजमेंट, विवेकपूर्ण तर्कों से पैदा होने वाले एंगेजमेंट से ज्यादा ही होता है। श्वेत श्रेष्ठता जैसे मोटिफ, ‘‘ट्रैड्स’’ जैसे लेबलों के जरिए, आसानी से हिंदू या मुस्लिम श्रेष्ठता में तब्दील हो जाते हैं। हालांकि, ऐसा हरेक श्रेष्ठतावादी, दूसरों को बाहर कर के चलता है, फिर भी वे सभी ‘‘ट्रैड’’ होते हैं! जाहिर है कि हिंदू श्रेष्ठतावादी यह मानते हैं कि वे आर्य हैं, जिन्होंने यूरोपियों की तरह दूसरी जगहों पर जाकर औपनिवेशिक बस्तियां बसायी हैं, जैसे यूरोपियनों ने अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि में किया। स्त्री-द्वेष यानी सभी मनुष्यों पर मर्दों की श्रेष्ठता पर यकीन करना और महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र से बाहर करना, एक और तत्व है, जो सभी ट्रैडों को एकजुट करता है। यह साइबर दुनिया में एक और एकीकरण करने वाला कारक है, जहां सारे स्त्री-द्वेषी महिलाओं के प्रति अपनी घृणा को, खासतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं के प्रति अपने द्वेष को खुलकर व्यक्त कर सकते हैं। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में जिन पांच लोगों को पुलिस ने पकड़ा है, उनमें एक 18 वर्षीया युवती भी शामिल है। ऐसा लगता है कि मुसलमानों से नफरत ने उसे, इस ग्रुप की महिलाविरोधी प्रकृति की ओर से अंधा ही बना दिया।

डिजिटल दुनिया में उभरकर आया एक और परेशान करने वाला तत्व है, महिलाओं के विरुद्घ यौनीकृत दुष्प्रचार को हथियार बनाया जाना। विल्सन सेंटर की एक हालिया रिपोर्ट में, जिसका शीर्षक है, ‘मैलाइन क्रिएटिविटी: हाऊ जैंडर, सैक्स एंड लाई आर वैपनाइज्ड अगेंस्ट वीमेन ऑनलाइन’ (विकृत रचनात्मकता: ऑनलाइन कैसे लिंग, सैक्स और असत्यों को महिलाओं के खिलाफ हथियार बनाया जाता है) बताया गया है, ‘यह व्यापक स्तर पर लैंगिक दुव्र्यवहार से भिन्न एक परिघटना है और इसे इसी के तौर पर परिभाषित किया जाना चाहिए, ताकि सोशल मीडिया प्लेटफार्म प्रभावी प्रत्युत्तर विकसित कर सकें।’ इस शोध टीम ने इस परिघटना को इस प्रकार परिभाषित किया है, ‘यह ऑनलाइन लैंगिक दुव्र्यवहार की एक उप-श्रेणी है...इसमें महिलाओं के विरुद्घ यौन-आधारित आख्यान आते हैं, जिनमें अक्सर एक हद तक तालमेल रहता है, जिनका मकसद महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने से रोकना होता है। इसमें ऑनलाइन दुष्प्रचार की तीनों परिभाषित करने वाली चारित्रिक विशेषताओं का योग होता है: असत्यता, बुरी नीयत और तालमेल।’

जैसी कि इस रिपोर्ट में निशानदेही की गयी है, हमले की यह पद्घति उस तरह के आम मर्दवादी दुव्र्यवहार से गुणात्मक रूप से भिन्न है, जिसका सामना महिलाओं को डिजिटल दुनिया में आए दिन करना पड़ता है। यह कहने का अर्थ यह नहीं है कि हम आए दिन के मर्दवादी दुव्र्यवहार की विकृत प्रकृति को कम कर के आंक रहे हैं। लेकिन, इस तरह के हमले का पैमाना कुछ और ही है। यह हमला तालमेल से किया जाता है, इसमें असत्य का प्रयोग किया जाता है और यह साफ्टवेयर टूल्स का उपयोग कर के, महिलाओं पर केंद्रित हमलों को बहुगुणित करता है। विल्सन रिपोर्ट इसकी भी निशानदेही करती है कि अमरीका में इस तरह के हमलों का मुख्य निशाना हैं, अश्वेत महिलाएं, जो सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय हैं, जैसे कमला हैरिस और अलैक्सेंड्रिया ओकेसियो-कोर्टेज़। और इस मुहिम का मकसद साफ तौर पर राजनीतिक है—ऐसी महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र से खदेडक़र बाहर करना। भारतीय उदाहरण भी इससे भिन्न नहीं है। इसमें भी ऐसी मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया गया है जिन्होंने पत्रकार, पाइलट, सामाजिक कार्यकर्ता आदि के रूप में, अपनी कुछ सामाजिक पहचान बना ली है।

डिजिटल दुनिया में ऐसे विकृत तत्वों से हम कैसे लड़ें? इस लड़ाई के सफल होने के लिए, हमारा यह समझना जरूरी है कि हमले का यह रूप, हिंदुत्ववाली ट्रोल सेना द्वारा किए जाने वाले आए दिन किए जाने वाले उस हमले से भिन्न है, जिसका हमें हर रोज ही मुकाबला करना पड़ता है। यह हमला, ऑनलाइन दुव्र्यवहार को हथियार बनाने वाला हमला है, जो अपने निशाने पर आने वाले अल्पसंख्यकों–धार्मिक अल्पसंख्यकों, उत्पीडि़त जातियों तथा महिलाओं–के खिलाफ अपने झूठ के प्रचार को बहुगणित करने के लिए, साफ्टवेयर टूल्स का उपयोग करता है। इसे शुरूआत में ही कुचला जा सकता है, बशर्ते हम इसके प्रति सतर्क रहें और जब भी ऐसे हमले होते हैं, तभी इनके खिलाफ आवाज उठाएं। और कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को, फौरन कार्रवाई करने के लिए मजबूर करें। या फिर संसद में, मीडिया में या अदालतों के जरिए, इसके खिलाफ आवाज उठाएं। हमें यह याद रखना होगा कि हमारी जनता के विभिन्न तबकों के खिलाफ इस प्रकार के हमलों के विरुद्घ अपनी सतर्कता, एकता और संगठित प्रतिरोध के जरिए ही, हम अपने गणतंत्र को बचा सकते हैं। 

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