CAA-NRC: इलाहाबाद-कानपुर से लेकर कोलकाता तक बन गए हैं कई शाहीन बाग़
देश भर में जारी तमाम विरोध प्रदर्शनों के बीच भले ही केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए 10 जनवरी से लागू कर दिया हो, लेकिन इसे लेकर शुरू हुआ विवाद अभी थमा नहीं है। दिन-प्रतिदिन प्रदर्शनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। छात्रों से लेकर नागरिक समाज के लोग और बुजुर्गों से लेकर छोटे बच्चे तक इस आंदोलन में शिरकत कर रहे हैं तो वहीं इसकी खास बात ये है कि इसका नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं। वे आम महिलाएं जो घरों में अपने काम-काज निपटाने के बाद कड़कड़ाती सर्द रातों में संविधान बचाने की लड़ाई सड़कों पर लड़ रही हैं। दिल्ली के शाहीनबाग का संघर्ष अब देश के अन्य राज्यों तक भी पहुंच रहा है।
रविवार, 12 जनवरी को इलाहाबाद के रोशनबाग में भी सीएए के खिलाफ बगावत की आग नज़र आई। एक ओर संगम नगरी में माघ मेले की तैयारी चल रही है तो वहीं दूसरी ओर मंसूर अली पार्क में हजारों की संख्या में महिलाएं सीएए और एनारसी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। महिलाएं इस प्रदर्शन में अपने बच्चों के साथ रात भर ठंड़ में बैठी रहीं। महिलाओं ने इस दौरान देशभक्ति गीत गाए, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और सीएए के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की।
इस प्रदर्शन में शामिल महिलाओं का कहना है कि सीएए एक काला कानून है। केंद्र की बीजेपी सरकार एनआरसी के माध्यम से मुस्लिमों का उत्पीड़न करना चाहती है। देश के संविधान की जगह अपनी विचारधारा लोगों पर थोपना चाहती है। जब संविधान सबको बराबरी का अधिकार देता है, किसी में कोई भेदभाव नहीं करता तो सरकार धर्म के आधार पर कैसे लोगों को नागरिकता दे सकती है।
इस आंदोलन की शुरुआत करने वाली सारा अहमद ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘अब पानी सर से ऊपर जा चुका है, सरकार की जास्तियां आम लोगों के खिलाफ बढ़ती जा रही हैं, इसलिए हम आंदेलन करने पर मजबूर हैं। जब मर्द हक-हकूक की आवाज़ उठा रहे हैं तो पुलिस उन्हें जेलों में बंद कर दे रही है, उन पर जुल्म कर रही है, इसलिए अब हम औरतों को संविधान बचाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा है। दिल्ली के शाहीनबाग, कानपुर समेत कई जगहों पर हमारी बहने लगातार संघर्ष कर रही हैं, इस ठंड में सरकार से लड़ रही हैं, ऐसे में भला इलाहाबाद में हम कैसे चैन से बैठ सकते हैं।'
इस संबंध में सारा के साथ प्रदर्शन में शामिल तरन्नुम खान ने बताया, 'ये लड़ाई सिर्फ मुसलमानों की नहीं है, पूरे देश की है और इसलिए संविधान बचाने के लिए आज हमारे साथ 80 साल की बुजुर्ग महिलाओं से लेकर छोटे बच्चे भी प्रदर्शन में बैठे हैं। हमारा मकसद सबको ये बताना और समझाना है कि ये कानून कैसे एक समुदाय के साथ भेदभाव करता है, कैसे संविधान विरोधी है। हमने शुरुआत महज़ 40-45 महिलाओं से की थी, लेकिन रात होते-होेते संख्या हजार पार कर गई। हमारा प्रदर्शन अनिश्चितकालिन है और हम सरकार की मनमानी के आगे डटकर खड़े रहेंगे।'
इस प्रदर्शन में खास बात ये नज़र आई कि महिलाओं के साथ इसमें छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हुए। 10 से 12 साल के कई बच्चे हाथों में तिरंगा लेकर रात भर नारे लगाते रहे। इस दौरान 'बस यही एक नारा है, हिंदुस्तान हमारा है’ की आवाज़ गूंजी। धरना प्रदर्शन में कई ऐसी महिलाएं भी दिखाई दीं जिन्होंने अपनी गोद में दुधमुंहे बच्चों को लिया था। इस दौरान उन्होंने कहा कि 'हिंदुस्तान को बांटने का विरोध इस वक्त नहीं किया गया तो आगे सबकुछ हाथ से निकल जाएगा।'
सीएए के खिलाफ जारी इस प्रदर्शन में कई सियासी दलों के लोग भी पहुचें। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ तमाम संगठनों ने भी इसमें हिस्सा लिया। सभी ने एक स्वर में सीएए और एनआरसी को संविधान विरोधी और जनविरोधी करार दिया साथ ही सरकार से वापस लेने की अपील की।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, 'इस बार सरकार का मुकाबला हिंदू-मुसलमान से नहीं बल्कि देश की महिलाओं से है। हमें ये समझने की जरूरत है कि सीएए और एनआरसी का मसला सिर्फ धर्म विशेष का नहीं है, ये संविधान विरोधी कानून है। हमारा संविधान बराबरी और धर्मनिर्पेक्षता की बात करता है, संविधान इस बात की कतई इजाजत नहीं देता कि किसी को भी धर्म के आधार पर बांटा जा सके या इस आधार पर उसकी नागरिकता तय हो। नागरिकता संशोधन एक्ट सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। एक ऐसा देश जहां वोटर आईडी से लेकर आधार कार्ड तक पर कई लोगों के नाम और पते गलत लिखे मिल जाते हैं वहां आप लोगों से किन सही दस्तावेजों की उम्मीद कर रहे हैं। जहां लोगों के पास खाने को खाना नहीं है, वहां आप लोगों से कागज़ मांग रहे हैं।'
ऋचा सिंह ने आगे कहा कि जब सरकार को बेरोजगारी, महंगाई, अर्थव्यवस्था और महिला सुरक्षा पर बात करनी चाहिए तब सरकार इससे ध्यान भटकाने के लिए सीएए और एनआरसी में आम जनमानस को उलझाने का प्रयास कर रही है। देश के विश्वविद्यालयों के अंदर घुसकर छात्रों को पीटा जा रहा है, यह शर्मनाक है लेकिन सरकार इस पर मौन है।
इस संबंध में सिटी के एसपी बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने मीडिया को बताया कि प्रदर्शनकारियों से लगातार अपील की जा रही है कि वह धरना खत्म करें। फिलहाल यहां शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी है, एहतियातन पार्क में पुलिस के साथ ही पीएसी भी तैनात कर दी गई है। हम लगातार प्रयास कर रहे हैं कि महिलाएं धरना खत्म कर घरों को लौट जाएं।
बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के विरोध का असर कानपुर में भी नज़र आया। यहां लगभग हफ्तेभर से महिलाएंं चमनगंज के मोहम्मद अली पार्क में धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। 'लोकतंत्र बचाओ' आंदोलन के बैनर तले शुरू हुए इस प्रदर्शन में मुस्लिमों के साथ-साथ तमाम हिंदू भी शामिल हो रहे हैं। इसका नेतृत्व भी पर्दानशीं महिलाएं और छात्राएं ही कर रही हैं। घर के कामकाज निपटाकर यहां पहुंची महिलाएं माइक पर इस कानून के विरोध में ना सिर्फ बोलती हैं बल्कि इंकलाब जिंदाबाद के नारे, क्रांतिकारी नज्में, देशभक्ति गीत के राष्ट्रगान भी गाती हैं।
गौरतलब है कि यूपी के इलाहाबाद, कानपुर के अलावा बिहार के गया और कोलकाता के पार्क सर्कस में भी शाहीन बाग की झलक देखने को मिल रही है। गया के शांति बाग़ में 29 दिसंबर से तो वहीं पार्क सर्कस में 7 जनवरी से विरोध प्रदर्शन जारी है जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और छात्र शामिल हैं। यहां इंक़लाब जिंदाबाद, लड़ेंगे जीतेंगे, हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगातार लगाए जाते हैं। प्रदर्शनकारी रंगीन तख्तियाँ, पोस्टर और बैनर लेकर रात भर प्रदर्शन कर रहे हैं।
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