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सीएम योगी अपने कार्यकाल में हुई हिंसा की घटनाओं को भूल गए!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज गोरखपुर में एक बार फिर कहा कि पिछली सरकारों ने राज्य में दंगा और पलायन कराया है। लेकिन वे अपने कार्यकाल में हुए हिंसा को भूल जाते हैं।
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उत्तर प्रदेश में चुनावी पारा चरम पर है। सभी पार्टियों के नेता प्रचार में जुटे हुए हैं और वे एक दूसरे पर हमला बोल रहे हैं। जनसभाएं और रैलियां की जारी है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। इन चुनावों में कैराना पलायन और मुजफ्फरनगर के दंगों समेत अन्य मुद्दों को बीजेपी लगातार हवा दे रही है ताकि वोटरों का ध्रुवीकरण हो सके।

सीएम योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के कई नेताओं ने इस तरह का बयान दिया है। योगी आदित्यनाथ ने आज गोरखपुर में एक बार फिर कहा कि पिछली सरकारों ने राज्य में दंगा और पलायन कराया है। उन्होंने कुछ दिनों पहले कहा था कि "ये गर्मी जो अभी कैराना और मुजफ्फरनगर में दिखाई दे रही है न, मैं मई और जून की गर्मी में भी शिमला बना देता हूं। हम 10 मार्च के बाद इनकी गर्मी शांत कर देंगे।"

पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए कहा था कि उनके कार्यकाल में प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ है। इस दौरान उन्होंने कहा था कि बसपा और सपा के कार्यकाल में दंगे हुए। ज्ञात हो कि उनके दावों के उलट उनके सत्ता संभालने के कुछ ही दिनों बाद 14अप्रैल 2017 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में आंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में निकली गई शोभायात्रा के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। दलित और मुसलमान में हुए टकराव में पत्थरबाज़ी, आगज़नी व फायरिंग हुई थी। इसमें स्थानीय सांसद राघव लखनपाल शर्मा, एसएसपी लव कुमार समेत कई अन्य लोग घायल हो गए थे। घटना सहारनपुर के सड़क दूधली गांव में हुई थी। इस दौरान दो पक्षों के बीच पथराव हो गया था।

इस घटना के बाद वर्ष 2017 में ही सहारनपुर में 5 मई को राजपूतों और दलितों के बीच टकराव शुरू हुआ था। 9 मई को फिर हिंसा भड़की थी। सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलितों के सैंकड़ों घरों को जला दिया गया था। हिंसा में एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी जबकि कई लोग घायल हो गए थे। 23 मई को एक बार फिर हिंसा भड़क उठी थी।

अप्रैल 2018 में एससी/एसटी आरक्षण में संशोधन को लेकर बड़ी संख्या में दलित सड़कों पर उतार आए थे। अलीगढ़, मेरठ, बुलंदशहर समेत कई जिलों में भारी संख्या में दलित उतर आए थें। इस आंदोलन में बसपा के पूर्व विधायक योगेश वर्मा सहित करीब 200 लोगों को मेरठ में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था।

30 जून 2019 को युवा एकता समिति के बैनर तले मेरठ में बड़ी संख्या में लोगों ने फैज-ए-आम कॉलेज में मॉब लिंचिग के विरोध में बैठक की थी। इसके बाद जुलूस निकाला गया था। भीड़ उग्र हो गई थी और बाद में पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था।

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में 20 दिसंबर 2019 को हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए थें। इस कानून के खिलाफ प्रदेश कई जिलों में हिंसा भड़क उठी थी। इसमें कई लोगों की मौत भी हो गई थी।

ज्ञात हो कि बीबीसी के शोध में ये बात सामने आई है कि साल 2021 में जनवरी से लेकर अगस्त के बीच मुसलमानों के खिलाफ संगीन हिंसक वारदातों की संख्या 24 थी।

कैराना के उलट बुंदेलखंड से पलायन का मुद्दा चुनाव में क्यों नहीं?

बीजेपी कैराना पलायन को तो बार बार उछाल रही है लेकिन बुंदेलखंड से हुए पलायन को वह भूल जाती है। न्यूजक्लिक के लिए अब्दुल अलीम जाफरी ने बांदा जिले के झंडूपुरवा गांव से हुए पालयन को लेकर अपने ग्राउंड रिपोर्ट में बताया कि कई युवा आर्थिक परेशानी को लेकर यहां से पलायन कर चुके हैं। इस गांव में सिर्फ बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे हैं। बुंदेलखंड में कई गांव वीरान दिखाई देते हैं। बांस, मिट्टी, फूस, पुआल और कच्ची ईंटों से बने मकानों पर ताले लटके हुए हैं।

जाफरी से बातचीत में एक व्यक्ति ने कहा कि यहां शायद ही कोई घर है जिस घर से लोग पलायन न कर गए हों। इस गांव के सभी युवा काम करने के लिए बाहर चले गए हैं। ज्यादातर घरों में ताला लगा हुआ है। एक बुजर्ग बातचीत के दौरान कहते हैं कि इस बस्ती में आने जाने के लिए न तो कोई रास्ता है और न ही आने जाने का साधन है। यहां कोई भी मदद करने वाला नहीं हैं। मनरेगा कार्ड होने के बावजूद लोगों को सही तरीके से काम नहीं मिलता है। एक युवा का कहना है कि मनरेगा में दो साल में पंद्रह-सोलह दिन मिला है। इसमें अब काम नहीं मिलता है। जो काम होता है उसका पेमेंट पांच-छह महीने के बाद मिलता है।

विद्या धाम समिति के शिवकुमार बातचीत के दौरान बताते हैं कि वे नरैनी ब्लॉक के तीस गांव में काम कर रहे हैं। वे कहते हैं, जब से यहां के प्रधान जीते हैं तब से लोगों को मनरेगा में काम नहीं मिला है। इधर उधर एक-दो दिन लोगों को काम मिल जाता है और दस दिन बैठकर खाते हैं। ऐसे में बीमारियों से यहां के लोगों पर काफी कर्ज हो जाता है। यहां से करीब सत्तर प्रतिशत लोग पलायन कर चुके हैं। यहां बुजर्ग, बच्चे और महिलाएं हैं। उन्हें कोटा में जो अनाज मिलता है उसे खाते हैं।

ज्ञात हो कि बुंदलेखंड का इलाका प्रदेश के पिछड़े इलाकों में गिना जाता है। यह इलाका ज्यादातर सूखे की मार झेलता है जिसके चलते यहां के किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। यहां के बहुत से इलाके में लोगों को पीने के पानी की उचित व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई है। लोग पीने के पानी के लिए दर दर भटकते हैं। पानी के लिए लोगों को कई कई किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है। इन सबके अलावा कई मामलों में यह इलाका अभी भी पिछड़ा हुआ है। इसके बावजूद यहां के क्षेत्रीय मामलों को चुनावों में जगह नहीं मिल पाती।

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