कोविड-19 : बिहार में जारी है 'फ़र्ज़ी कोविड टेस्टिंग' का सिलसिला
कोविड-19 महामारी के दौरान, बिहार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को लेकर हुए खुलासों की वजह से ख़बरों में बना हुआ है। हाल ही में पटना हाई कोर्ट द्वारा लगातार हुए हस्तक्षेप के बाद कोविड से हुई मौतों के सही आंकड़ों का खुलासा हुआ था और अब इस सूची में फ़र्ज़ी कोविड टेस्टिंग के मामले भी आ गए हैं। कोरोना की टेस्टिंग(आरटी-पीसीआर) में सामने आई विसंगतियों की वजह से सरकारी स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों की सच्चाई पर सवाल उठने लगे हैं।
हाल ही में, किशनगंज गाँव के निवासी कोरोना की फ़र्ज़ी रिपोर्ट मिलने से हैरत में आ गए। किशनगंज के पोथिया ब्लॉक के पूर्व पंचायत समिति सदस्य ज़ाकिर हुसैन ने ग्रामीणों को एसएमएस के माध्यम से फ़र्ज़ी कोरोना रिपोर्ट मिलने पर चिंता ज़ाहिर की है। उनके मुताबिक कई बड़ी संख्या में लोगों को कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट भेजी गई है।
फ़र्ज़ी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट
दमलबाड़ी गाँव में रहने वाले 23 साल के शाह फ़ैसल ने रैपिड एंटीजन टेस्ट(आरएटी) कारवाया था और उन्हें कुछ दिनों बाद 'नेगेटिव' आरटी-पीसीआर रिपोर्ट का मैसेज आया जो उन्होंने करवाया ही नहीं था।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए फ़ैसल ने कहा, "आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाए बिना ही ऐसा मैसेज मिलने पर मैं हैरान हो गया। मैंने इसके बाद बाक़ी गाँव वालों से बात की और पता चला कि 3 अन्य लोगों के पास भी बिना टेस्ट करवाए ही आरटी-पीसीआर टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट आई है।
इसी ब्लॉक के पतीला बासा गाँव के 3 लोगों को आरटी-पीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट का मैसेज आया। मुहम्मद ज़ुल्फिक़ार और मुहम्मद शमशेर ने बताया कि बिना टेस्ट करवाए ही उनके पास एसएमएस के माध्यम से नेगेटिव रिपोर्ट आई, जबकि सोनी देवी ने बताया कि उनके पास 18 मई पॉज़िटिव रिपोर्ट आई थी।
मई में राज्य में आरटी-पीसीआर में आई कमी और आरएटी टेस्टिंग का ज़्यादा इस्तेमाल होने के बाद से कई सवाल खड़े हुए थे। मुज़फ़्फ़रनगर, शेओहर, बेगुसराय, बक्सर, लखीसराय, जमुई, नवादा, गया, सहरसा, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया समेत कुल 13 ज़िलों में 90% टेस्टिंग आरएटी के माध्यम से हो रही थी। खुलासे में यह भी सामने आया था कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान कई स्वास्थ्य केन्द्रों में आंकड़ों के साथ भी खिलवाड़ किए जा रहे थे।
स्वास्थ्य मानकों के अनुसार, आरटी-पीसीआर ही सार्स-कोव-2 वाइरस जांच के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। जबकि आरएटी को कोविड टेस्टिंग के लिए कम भरोसेमंद माना जाता है, मगर महामारी केआर प्रभाव को कमतर दिखाने के लिए बिहार सरकार ने इसे अपनाया था।
फर्जी कोरोना परीक्षण संख्या का सिलसिला, पिछले साल बहुत पहले शुरू हुआ, इस साल फरवरी में फिर से शुरू हुआ जब जमुई जिले के कुछ अधिकारियों को मरीजों के फर्जी विवरण बनाए रखने के लिए पकड़ा गया, जिसमें नाम, पता, संपर्क नंबर आदि शामिल थे। जमुई के सिविल सर्जन डॉ विजेंद्र सत्यार्थी, बरहाट पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) प्रभारी डॉ. एनके मंडल, सिकंदरा स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी डॉ. साजिद हुसैन को कोविड परीक्षण डेटा को “खिलवाड़” करने के लिए निलंबित कर दिया गया था। सकरा में पीएचसी के कुछ अधिकारियों को आरएटी किट के गलत इस्तेमाल में शामिल पाए जाने के बाद निलंबित भी कर दिया गया था।
कटिहार ज़िला अस्पताल में आरटी-पीसीआर किट को जला कर अस्पताल परिसर के पीछे फेंकने की घटना भी सामने आई थी जिसके बाद ज़िला प्रशासन ने एक सिविल सर्जन को तलब किया था। सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र(पीएचसी) के जो अधिकारी कोविड टेस्टिंग में कार्यरत होंगे वह पीएचसी अकाउंटेंट, पीएचसी स्वास्थ्य अधिकारी, ब्लॉक स्वास्थ्य प्रबंधक, ब्लॉक अकाउंट मैनेजर और ज़िला प्रोग्राम अधिकारी होंगे। सिविल सर्जन ज़िले की सभी स्वास्थ्य स्कीमों का नेतृत्व करता है।
मुजफ्फरपुर में एक बड़े पैमाने पर परीक्षण घोटाले का भी पता चला जहां पीएचसी और जिला अस्पताल ने नकली कोविड परीक्षण डेटा और 14,000 से अधिक आरएटी परीक्षण किट गायब हो गए। जिला अस्पताल के कर्मचारियों ने फर्जी परीक्षण के परिणाम प्राप्त किए, मुसहरी, मोतीपुर, कटरा, बोचन और सकरा के ब्लॉक में पांच पीएचसी, व्यक्तियों के परीक्षण के बजाय, गलत विवरण के साथ काल्पनिक आंकड़े लगाए, जिला एडीएम राजेश कुमार ने कहा, जिन्होंने स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के बाद डेटा घोटाले का पता लगाया .
फरवरी में इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट ने राज्य में गंभीर परीक्षण के नाम पर चल रही गतिविधियों को उजागर किया, जिसमें नकली संपर्क नंबरों, नामों और विवरणों के उपयोग को चिह्नित किया गया था।
एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि सेंट्रल ड्रग स्टोर ने मुशहरी पीएचसी को 7,050 आरएटी किट भेजे थे, जबकि रिकॉर्ड में परीक्षण की संख्या 8,669 थी। मोतीपुर पीएचसी ने केवल 7,400 एंटीजन किट प्राप्त करने के बावजूद 8,020 परीक्षण किए। इसी तरह, औराई पीएचसी में डोडी डेटा पाए गए, जिसमें 6,000 परीक्षण किट मिले और 6,681 परीक्षण दिखाए गए।
मोतीपुर पीएचसी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि परीक्षण में हिचकिचाहट के कारण गांवों में लोगों का कम मतदान हुआ, जिसके कारण अक्सर लॉग बुक डेटा से रहित हो जाती थी। कम मतदान पर वरिष्ठ अधिकारियों की प्रश्नावली का उत्तर देना कभी आसान नहीं रहा। पिछले साल से, राज्य आरएटी परीक्षणों पर बहुत अधिक निर्भर रहा है, जिसका बचाव झूठे आंकड़े पेश करके किया जा रहा था, लेकिन आखिरकार भानुमती के झूठ का पर्दाफाश हो गया।
अप्रैल में पटना हाई कोर्ट में बिहार सरकार ने बताया था कि प्रतिदिन 40,000 टेस्ट हो रहे हैं, मगर विडम्बना यह थी कि राज्य के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल(एएसजी) डॉ कृष्ण नन्दन सिंह अपनी बेटी का आरटी-पीसीआर टेस्ट नहीं करवा पाये। इसकी वजह से सरकार को हाई कोर्ट ने फटकार भी लगाई थी।
लेखक बिहार में स्थित स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं।
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