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ग्रामीण भारत में कोरोना : हरियाणा में किसान फसल कटाई और बिक्री को लेकर चिंतित

लॉकडाउन के दौरान किसानों को सरसों और गेंहूं की फसलों की कटाई में दिक़्क़त आ रही हैं। किसान जल्दी ख़राब होने वाली सब्ज़ियों और दूध को भी नहीं बेच पा रहे हैं। जबकि अनौपचारिक मज़दूर और पट्टेदार अनाज की अनिश्चितता को लेकर आशंकित हैं।
ग्रामीण भारत में कोविड-19

कोरोना वायरस पर अपनाई गई नीतियों का ग्रामीण जीवन में क्या फर्क पड़ा है, उसे दिखाती एक सीरीज़ का यह पहला हिस्सा है। इस सीरीज़ को 'सोसायटी फॉर सोशल एंड इकनॉमिक रिसर्च' ने चालू किया है। इसके तहत कई स्कॉलर अलग-अलग गांवों पर अपना अध्ययन कर रहे हैं। यह रिपोर्ट टेलीफ़ोन से इंटरव्यू के ज़रिये तैयार की गई हैं। इसके तहत गांव के लोगों से बात की गई है। इस रिपोर्ट में हरियाणा के फतेहाबाद में बीरधाना गांव का जिक्र है। इसमें गेहूं और सरसों की फसल काटने और सब्जियों, दूध जैसे ख़राब होने वाली चीज़ों को बेचने में आ रही उनकी समस्याओं के बारे में बात की गई है। अनौपचारिक कामगार और पट्टेदारों को रोज़गार न होने के बाद भंडारण के ख़ात्मे के चलते अनाज की असुरक्षा से गुज़रना पड़ रहा है।

बीरधाना गांव हरियाणा के फ़तेहाबाद में है। इस बड़े गांव में 2,500 परिवार रहते हैं। यहां कुछ बड़े किसान भी हैं, जिनके पास 50 एकड़ तक ज़मीन है। साथ में कई मध्यम और सीमांत किसान भी हैं। साथ ही लंवे वक़्त तक काम करने वाले मज़दूर और अनौपचारिक मज़दूरों की भी बड़ी आबादी है।

बीरधाना में किसान रबी फ़सल के लिए गेंहूं और सरसों उगाते हैं। वहीं ख़रीफ़ में कपास, चावल, जानवरों के चारे और आलू, ओकरा, टमाटर, लौकी, पालक जैसी सब्जियों की खेती करते हैं। निर्माण कार्य, भारा उठाना, गाड़ी चलाने, दुकानों में काम करने और कृषिगत मज़दूरी में लोग लगे हुए हैं।

गांव में कुछ दुकानों वालों एक बाज़रा है, जिसे यहां के स्थानीय निवासी चलाते हैं। यहां खाने-पीने, कृषि औज़ारों, कपड़ों और दैनिक चीजों की दुकानेंं हैं।

गांव में गेहूं और सरसों की फ़सल खड़ी है। सरसों की फ़सल कटने के लिए तैयार है। वहीं गेहूं की कटाई 10 अप्रैल से शुरू हो जाएगी। मटर, बंदगोभी और आलू की फ़सलें भी लॉकडाउन के दौरान तैयार ही हो रही थीं।

किसान अब संशय में हैं कि उन्हें अपनी फ़सलों को काटने दिया जाएगा या नहीं। गांव के एक आलू किसान ने अपनी फ़सल काटने के लिए 15 मज़दूर बुला लिए थे, लेकिन उसे पुलिस ने रोक दिया। किसान वक़्त पर अपनी फ़सल नहीं काट पाया, जिसके चलते फ़सल बर्बाद हो गई। किसानों को चिंता है कि अगर वे अपनी गेहूं की फ़सल नहीं काट पाए या सरकार ने गेहूं नहीं ख़रीदा, तो उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।

इस गांव के किसान इस मौसम में कुछ मौसमी सब्ज़ियां भी उगाते हैं। यह उनकी ख़ुद की खपत और स्थानीय बाज़ारों में बेचने के लिए होती हैं। 24 मार्च को हुए लॉकडाउन के चलते सभी तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध लग गया है। इसलिए अब किसान उन सब़्जियों को भी नहीं बेच पा रहे हैं, जिन्हें वो काट चुके थे। एक आदमी ने बताया कि जब वो 25 मार्च को गोभी बेचने गया, तो स्थानीय एजेंट ने उसे वापस लौटा दिया।

उसने बताया फूल गोभी 15 रुपये किलो के दाम पर बिकती थी। अब तो कोई उन्हें दो रुपये किलो के भाव पर भी खरीदने को तैयार नहीं है। मज़बूर होकर फूलगोभी जानवरों को डालनी पड़ी। एक दूसरे व्यक्ति ने बताया  कि हरे मटर के दाम 30 रुपये किलो से 10 रुपये किलो पर आ गए हैं।

जब किसान अपनी सब्ज़ियां बेचने में नाकामयाब रहे हैं, तब भी स्थानीय गांवों के बाज़ारों में सब्ज़ियों के दाम तेजी से बढ़े हैं। टमाटर का भाव 25 रुपये किलो से बढ़कर 50 रुपये किलो तक पहुंच गया है, वहीं आलू 20 रुपये के पुराने भाव से ऊपर चढ़कर 30 रुपये किलो तक बेचा जा रहा है।

बीरधाना में मध्यम स्तरीय किसानों, गरीब़ पट्टेदार किसानों और कृषि कार्य में लगे मज़दूरों के पास बहुत दिन के लिए गेहूं शेष नहीं बचा है। गेहूं की फ़सल की कटाई में देरी से ग़रीब परिवारों में बुनियादी अनाज की पहुंच से संबंधित कई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। जब यह इंटरव्यू करवाए जा रहे हैं, तब की स्थिति यह है कि गांव की राशन दुकानेंं भी नहीं खुल रही हैं।

एक व्यक्ति ने बताया कि जानवरों को खिलाए जाने वाले ऑयल केक की 50 किलो की बोरी की क़ीमत 1,180 रुपये से बढ़कर 1,400 रुपये हो गई है। जानवरों की खुराक देने वाली दुकानों में आपूर्ति नहीं हो रही है और वो लगातार अपने दाम बढ़ा रहे हैं। इसके चलते शख़्स को अपने जानवरों को सूखा चारा और हरी बर्सीम घास खिलाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इन दोनों को उसने अपने खेतों से हासिल किया है।

दैनिक वस्तुओं की दुकानेंं छोड़कर गांव की सभी दुकानेंं बंद हैं। कृषिगत औज़ारों की दुकानें बंद हैं और किसान अपने ओकरा, लौकी और करेला बोने के लिए बीज नहीं ले पा रहा है। इन सब्जियों की फ़सलों की बुआई इस मौसम में हो जाती थी। किसान अकसर ही कुछ जगह सब्ज़ियां बोने के लिए खाली छोड़ देते हैं। इन जगहों पर ऊगाई गई सब्ज़ियां न केवल नगद का हिस्सा होती हैं, बल्कि यह लोगों की खुराक में विविधता भी लाती हैं।

वह किसान जो पशुपालन करते हैं, दिन में दो वक़्त शहर के लिए दूध बेचते थे। लेकिन अब दूध लेने वाला दिन में एक ही बार आता है। उनमें भी पुलिस द्वारा रोके जाने का डर है। एक बड़ी संख्या में लोग 12 किलोमीटर दूर फतेहाबाद में दूसरे गैरकृषिगत कार्यों में मज़दूरी करने जाते थे, जैसे कोई स्ट्रीट वेंडर का काम करता था, कोई छोटी-मोटी दुकान या धंधे करता था। लेकिन अब इन लोगों के पास भी काम नहीं है।

कुल मिलाकर लॉकडाउन का प्रभाव अलग-अलग पड़ा है। ग़ैर कृषिगत कार्यों में लगे लोगों के पास काम नहीं है और गांव में जीवन पूरी तरह रुक गया है। कृषि कार्यों के रुक जाने के चलते सभी किसानों को फसलें न बेच पाने के चलते बड़े नुकसान का अंदेशा है।

सरसों की फसल की कटाई पर भी बहुत चिंता है। जबकि फसल तैयार हो चुकी है। वहीं दूसरे किसान गेहूं की कटाई और उसे बेचने को लेकर भी परेशान हैं।

ग़रीब पट्टेदार और कृषि कार्यों में लगे मज़दूरों के पास लंबे वक़्त के लिए अनाज का भंडारण नहीं है। उन्हें बाज़ार से सब्ज़ियां खरीदनी पड़ रही हैं। फ़सलों की कटाई में हो रही देरी की उनपर ज़्यादा बुरी मार पड़ने वाली है, क्योंकि इससे अनाज का दाम बढ़ जाएगा।

यह लेख टेलीफ़ोन से किए गए इंटरव्यू पर आधारित है। जिसके तहत 27 मार्च, 2020 को गांव के तीन लोगों से बात की गई। इसमें एक मध्यम वर्गीय किसान था, जिसके पास 15 एकड़ ज़मीन है। दूसरा बंटाईदार मज़दूर था, जो कुल फ़सल का पांचवा हिस्सा मज़दूरी के तौर पर लेता है। तीसरा आदमी एक मुस्लिम लोहार था, जिसके पास एक छोटी वर्कशॉप है, जिसमें वो धातु की चादर से अलग-अलग चीजें बनाता है।

लेखक जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के ''सेंटर फॉ़र इंफॉ़र्मल सेक्टर एंड लेबर स्टडीज़'' में रिसर्च स्कॉलर हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19 in Rural India -I: Harvesting and Selling Anxiety Grips Farmers in Haryana’s Birdhana Village

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