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ग्रामीण भारत में करोना-25: इस बीच हरियाणा के मामेरन गाँव की दूध वितरण श्रृंखला बुरी तरह से प्रभावित हो चुकी है

लॉकडाउन ने जहाँ दिहाड़ी मजदूरों को आर्थिक तौर पर बेहद गंभीर स्थिति में ला दिया है, वहीं किसान अपनी फसलों की कटाई में हो रही देरी को लेकर चिंतित हैं, जबकि वे लोग जो व्यक्तिगत तौर पर दूध उत्पादन से जुड़े हैं और जो बिचौलिए दूध की सप्लाई से जुड़े हैं, वे माँग में आई गिरावट से मुश्किलों में घिर चुके हैं।
ग्रामीण भारत
प्रतीकात्मक छवि।| सौजन्य:PxHere

यह जारी श्रृंखला की 25वीं रिपोर्ट है जो ग्रामीण भारत के जीवन पर कोविड-19 से संबंधित नीतियों से पड़ रहे प्रभावों की झलकियाँ प्रदान करती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा जारी की गई इस श्रृंखला में कई विद्वानों की रिपोर्टों को शामिल किया गया है, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में गाँवों के अध्ययन के संचालन से सम्बद्ध हैं। यह रिपोर्ट उनके अध्ययन में शामिल गांवों में प्रमुख सूचना-प्रदाताओं के साथ हुई टेलीफोनिक साक्षात्कार के आधार पर तैयार की गई है। यह लेख इस बारे में भी बात करता है कि लॉकडाउन ने हरियाणा के मामेरन गाँव में दुग्ध आपूर्ति की श्रृंखला को किस प्रकार से बाधित कर दिया है। गाँव के ग्रामीण किस प्रकार से रूपये-पैसों की कमी का सामना कर रहे हैं, जहाँ न कोई एटीएम और ना ही कोई बैंक है, जबकि दिहाड़ी मजदूरों के लिए अनिश्चित भविष्य मुहँ बाए खड़ा है।

नोवेल कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से प्रभावित लोगों की बढती संख्या के मद्देनजर लॉकडाउन लागू करने से हरियाणा में सिरसा जिले के मामेरन गांव में खेती-किसानी का काम और ग्रामीण अर्थव्यवस्था अवरुद्ध हो चुकी है।गाँव की कुल जनसंख्या 4599 है, जिसमें 2455 पुरुष और 2144 महिलाएं (सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना 2011 के अनुसार) हैं। गाँव में जाट समुदाय का बोलबाला है और साथ गाँव में बनिया, कुम्हार, मेघवाल, नायक, मजहबी और बाजीगर जैसी अन्य जातियों के लोग भी निवास करते हैं।

मामेरन में रबी की फसल में गेहूं और सरसों की खेती होती है। एक किसान के अनुसार लॉकडाउन के कारण वे लोग मजदूर और कृषि उपकरणों की आवाजाही पर लगी रोक के चलते इन्हें भाड़े पर ले पाने में असमर्थ हैं, जिसके चलते फसलों की कटाई में मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। एक अन्य किसान ने बताया कि मामेरन में फसलों की कटाई के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले कंबाइन हार्वेस्टर आमतौर पर पंजाब से आते हैं। लॉकडाउन की वजह से अभी तक अन्य राज्यों से ये मशीनें (मध्य प्रदेश और गुजरात) इस गाँव तक नहीं पहुँच सकी हैं, क्योंकि वहाँ भी इन्हें किराए पर इस्तेमाल किया जाता है और इसके कारण मामेरन में कटाई में देरी हो रही है।

फसलों पर पड़ता प्रभाव

गाँव में उगाई जाने वाली सब्जियों में गोभी, काबुली चना, टमाटर, आलू, शिमला मिर्च, ककड़ी और हरी मिर्च प्रमुख हैं। किसान इस बात को लेकर काफी चिंतित थे कि क्या वे अपनी फसलों को बेच भी पाएंगे और क्या उन्हें इनकी अच्छी कीमत भी मिल सकेगी। जिस दौरान हमारे साथ यह वार्तालाप चल रहा था उस दौरान सब्जी उगाने वाले किसान अपने पास जल्दी खराब हो जानी वाली सब्जियों की भंडारण सुविधा न होने के करण उन्हें बेहद कम दरों पर बेच रहे थे।
उनमें से एक किसान ने बताया कि मंडी में गोभी तीन से चार रुपये किलो के हिसाब से बेची गई, जबकि आम दिनों में इसी गोभी के दाम आठ से दस रुपये प्रति किलोग्राम के बीच में मिला करते थे। जबकि एक अन्य किसान ने अपनी तीन एकड़ गोभी की फसल खेत में ही छोड़ दी है क्योंकि इसके बदले में जो दाम मिल रहे थे उससे फसल को खेतों से निकालने के दाम तक की भरपाई नहीं हो पा रही थी। वहीँ एक अन्य का कहना था कि काबुली चने की कीमत 25 रुपये प्रति किलोग्राम से गिरकर 15 से 17 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई है।

दुग्ध उत्पादन की स्थिति

मामेरन की दुग्ध आपूर्ति की श्रृंखला में आमतौर पर तीन खिलाड़ी शामिल हैं: व्यक्तिगत तौर दुग्ध उत्पादन से आमतौर पर जुड़े गांव के छोटे किसान; बिचौलिए जो आमतौर पर गाँव के भीतर या शहर में डेयरी के मालिक हैं और जिला स्तर पर मौजूद डेयरी प्लांट। एक दुग्ध उत्पादन से जुड़े व्यक्ति ने बताया कि करीब तीन महीने पहले दूध की ऊँची कीमतों ने (लगभग 72 रुपये प्रति लीटर दूध के दाम 10% वसा के साथ) कई दुग्ध उत्पादकों को और अधिक गाय और भैंस खरीदने के लिए प्रेरित कर दिया था।

इसके साथ ही सिरसा स्थित वीटा डेयरी संयंत्र में प्रतिदिन के हिसाब से दो लाख लीटर से अधिक दूध की खरीद की जाती थी। लेकिन लॉकडाउन के शुरू हो जाने के बाद से इस संयंत्र द्वारा दूध की खरीद घटकर अब रोजाना लगभग एक लाख लीटर तक की रह गई है, क्योंकि घी, दही, मक्खन, पनीर, लस्सी, खीर और मिठाई जैसे डेयरी उत्पादों की मांग शादी-ब्याह जैसे कई अन्य समारोहों और सार्वजनिक कार्यों में काफी हुआ करती थी, जो आजकल पूरी तरह से बंद हैं। इसने गाँव के छोटे दुग्ध उत्पादकों और बिचौलियों को काफी हद तक प्रभावित किया है। बिचौलियों में से एक से बात करने पर उसने बताया कि लॉकडाउन से पहले वह रोजना इस संयंत्र को  1000 लीटर दूध बेचा करता था जो अब घटकर 600 लीटर दूध रह गया है।

 चूँकि माँग ही नहीं रह गई है इसलिये जिस दूध में 10% वसा की मात्रा है उसकी कीमत घटकर 60 रुपये प्रति लीटर से भी कम हो चुकी है। एक दुग्ध उत्पादक के अनुसार जिस दूध में चार प्रतिशत वसा है, पहले जहाँ 35 रुपये प्रति लीटर बिकता था, वही अब 25 रुपये प्रति लीटर से कम पर बिक रहा है।

गाँव के अधिकांश लोगों के पास अपनी खेतीबाड़ी है और इसलिए ये लोग लॉकडाउन में उन लोगों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं जो गैर-खेतिहर अपने खुद के काम-धंधों से जुड़े हैं, जैसे कि दर्जी, नाई, मैकेनिक, इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, दुकानदार, राजमिस्त्री और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले अस्थाई कामगार और दिहाड़ी मजदूर। गाँव के सरपंच से पूछने पर उन्होंने बताया कि गाँव में 10% से 15% ऐसे लोग हैं, जो दिहाड़ी मजदूरी करते हैं,  और काम के सिलसिले में रोज गाँव के बाहर पास के शहर ऐलनाबाद या सिरसा जिला मुख्यालय आते-जाते हैं। गाँव के एक राजमिस्त्री का कहना था कि काम के सिलसिले में उसे आस-पास के गाँवों और शहरों की यात्रा करनी पड़ती थी, लेकिन लॉकडाउन ने उसके आने-जाने पर लगाम लगा दी है और इसके बाद से ही उसके पास कोई काम नहीं है।

गाँव के करीब एक हजार लोग मनरेगा स्कीम के तहत पंजीकृत हैं। श्रमिकों में से एक ने बताया कि चूंकि लॉकडाउन के दौरान मनरेगा का कोई काम नहीं चल रहा है इसलिये सरकार की ओर से राहत प्रयासों के तहत वित्त मंत्री द्वारा मजदूरी की दरों में बढ़ोत्तरी की घोषणा का उन्हें कोई फायदा नहीं मिल सका है। हरियाणा राज्य सरकार ने अस्थाई तौर पर काम करने वाले मजदूरों, रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं और रिक्शा चालकों के लिए प्रति सप्ताह 1000 रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा की थी, और यह राशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा की जानी है। इसके अतिरिक्त केंद्र की ओर से घोषणा की गई थी कि बीपीएल परिवारों को अप्रैल महीने के लिए मुफ्त में राशन (जिसमें चावल, गेहूं, सरसों का तेल, एक किलो चीनी शामिल है) प्रदान किया जाएगा। लेकिन जिनसे भी बातचीत हुई, उनमें से किसी को भी राहत सामग्री हासिल नहीं हो सकी थी, जिसकी घोषणा की गई थी। सिर्फ पीडीएस कार्डधारकों ने बताया है कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान प्रति व्यक्ति/प्रति माह के हिसाब से पांच किलोग्राम गेहूं ही मिला था।

लॉकडाउन के पहले दो हफ्तों के दौरान आवश्यक वस्तुओं की बिक्री करने वाली दुकानों जैसे कि बेकरी, सब्जी और किराने की दुकानें सुबह 10 बजे से चार घंटे के लिए खोली गईं। लेकिन लॉकडाउन के तीसरे सप्ताह से इन दुकानों को एक दिन के अंतराल पर विशिष्ट समय के दौरान ही खुले रखने की इजाजत दी गई। जबकि केमिस्ट शॉप सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुलती हैं। वहीँ पेट्रोल पंप सुबह 7 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक खुलते हैं, वहीं दूध की दुकानें सुबह 8 से 11 बजे और फिर शाम को 6 से 9 बजे तक खुलते हैं। सब्जी और फल विक्रेताओं को सुबह 9 बजे से सात घंटे तक के लिए अपना माल बेचने की छूट मिली हुई है।

हाथ में रोकड़ा नहीं

हाथ में नकद नारायण न होने के चलते मामेरन में ग्रामीणों के लिए अपनी दैनिक जरूरतों को हासिल कर पाना मुश्किल हो चला था। वहीँ एक ग्रामीण ने बताया है कि जहाँ पहले उन्हें स्थानीय दुकानदारों से उधार में पैसे मिल जाते थे, लेकिन आजकल नकदी की कमी के कारण नकद उधार देने से इंकार किया जा रहा है। निकटतम बैंक शाखा एलेनाबाद यहाँ से छह किलोमीटर की दूरी पर है। ग्रामीणों का सुझाव था कि गाँव में मोबाइल एटीएम की सुविधा की जानी चाहिए।

गाँव के एक ग्राम सभा सदस्य (पंच) के अनुसार पंचायत की ओर से लॉकडाउन को लागू करने के लिए गाँव के नौजवानों की एक टीम गठित की गई थी, ताकि गाँव की सीमाओं की पहरेदारी हो सके और बाहरी लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जा सके। गाँव में नियमित तौर पर साफ़-सफाई भी की जा रही है। ग्राम प्रधान के अनुसार पूरे गाँव या ब्लॉक स्तर पर भी किसी को घरों में क्वारंटाइन में रखने की जरूरत नहीं पड़ी और ना ही कोरोना वायरस से कोई व्यक्ति संक्रमित पाया गया।

हालाँकि ग्रामीणों ने बताया कि गांव में न तो कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है और ना ही यहाँ पर सार्वजनिक औषधालय की व्यवस्था है। यहाँ सिर्फ एक नीम-हकीम ईलाज करने वाला है, जिससे गाँव वाले छोटी-मोटी बीमारियों के लिए उपचार लेते हैं। गंभीर स्वास्थ्य मामलों के लिए ग्रामीणों को ऐलनाबाद के सरकारी अस्पताल का रुख करना पड़ता है। जो लोग गरीब और बीमार हैं उनके लिए इस लॉकडाउन के समय परिवहन की सुविधा न होने के कारण यात्रा कर पाना बेहद मुश्किल भरा हो गया है।

कुल-मिलाकर कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए जिस लॉकडाउन को लागू किया गया है उसने गाँव के अस्थाई और दिहाड़ी मजदूरों को आर्थिक तौर पर खस्ताहाल स्थिति में रख छोड़ा है। किसानों को अपनी फसल की कटाई में हो रही देरी परेशानी में डाल रही है। दुग्ध आपूर्ति श्रृंखला में शामिल निजी दुग्ध उत्पादक और बिचौलिए मांग में आ चुकी गिरावट को लेकर हैरान-परेशान हैं। शाक-सब्जियों के उत्पादक अपनी उपज के अच्छे दामों के लिए तरस रहे हैं तो वहीँ पीडीएस, मनरेगा और अन्य सरकारी योजनाओं पर जो लोग आश्रित हैं वे आज भी दोनों सरकारों - राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से घोषित राहत सामग्री की राह देख रहे है।

(हरमनेंदर सिंह पंजाब के भटिंडा में अकाल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

COVID-19 in Rural India-XXV: Mameran’s Milk Supply Chain Shaken Amid Myriad Problems

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