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ग्रामीण भारत में करोना-30: केरल के थेट्टामाला चाय बागान पर लॉकडाउन का असर

थेट्टामाला क्षेत्र में सामुदायिक रसोई के माध्यम से बागान मज़दूरों के साथ-साथ अन्य मज़दूरों और बुज़ुर्गों के लिए भोजन का इंतज़ाम किया गया है जिससे वे भुखमरी से किसी तरह बचे हुए हैं।
ग्रामीण भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर।

इस श्रृंखला की यह 30वीं रिपोर्ट है जो ग्रामीण भारत के जीवन पर कोविड-19 से संबंधित नीतियों से पड़ रहे प्रभावों की तस्वीर पेश करती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा जारी इस श्रृंखला में कई विद्वानों की रिपोर्टों को शामिल किया गया है, जो भारत के विभिन्न गांवों का अध्ययन कर रहे हैं। यह रिपोर्ट उनके अध्ययन में शमिल गांवों में मौजूद लोगों के साथ हुई टेलीफोनिक साक्षात्कार के आधार पर तैयार की गई है। यह रिपोर्ट वायनाड ज़िले के थेट्टामाला के बागानों में काम कर रहे श्रमिकों के समक्ष लॉकडाउन के बीच पेश आ रही कठिनाइयों और राज्य सरकार द्वारा उनकी मदद के मकसद से उठाए गए क़दमों की पड़ताल करती है।

कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के मद्देनज़र भारत में 24 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया गया। विशेष तौर पर ग्रामीण भारत पर इसका गंभीर असर पड़ा है। केरल के वायनाड ज़िले में थेट्टामाला के बागान मज़दूरों के लिए लॉकडाउन की ख़बर भय और अनिश्चितता लेकर आई है। चाय बागान ही उनकी आय का मुख्य स्रोत है, जो लॉकडाउन के कारण बंद पड़े हैं। सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है, जिसके कारण मज़दूरों के पास अब कोई काम नहीं है और जेब भी ख़ाली हैं।

चाय बागानों के श्रमिकों पर असर

थेट्टामाला गांव वायनाड के उत्तरी हिस्से में स्थित है। यह गांव कांजीरंगाडु ग्राम कार्यालय और थोंदरनाद ग्राम पंचायत में पड़ता है। थेट्टामाला चाय बागान इस पंचायत के वार्ड संख्या 7 और 8 में स्थित है। गांव में अधिकांश लोग आजीविका के लिए चाय बागान पर ही निर्भर हैं, लेकिन गांव में कुछ ऐसे मज़दूर भी हैं जो खेतिहर मज़दूरी या निर्माण क्षेत्र में बतौर श्रमिक काम करते हैं।

बागान क्षेत्र के लगातार वित्तीय संकट से घिरे होने के कारण थेट्टामाला के चाय बागानों में काम करने वाले मज़दूरों को पिछले दो महीनों (जनवरी और फरवरी) की तनख़्वाह भी नहीं मिल सकी है। कामगारों को उनकी वार्षिक छुट्टी के बदले में मिलने वाला भुगतान तक नहीं मिल सका है, जो उनके लिए एक और वित्तीय झटका साबित हुआ है। बागान प्रबंधन की ओर से इस संबंध में एक सर्कुलर जारी किया गया है जिसमें उन्होंने बताया है की चाय की पत्तियों की क़ीमत में गिरावट के कारण कंपनी को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा था, जिसकी वजह से श्रमिकों को समय से भुगतान कर पाने में दिक्कत पेश हुई है। यहां तक की नोटबंदी के दौरान और बाद में भी प्रबंधन ने श्रमिकों का बकाया सीधे उनके बैंक खातों में जमा करवा दिया था। हालांकि कुछ श्रमिकों को जो अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं कर पाते थे, उन्हें उस दौरान दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। ये ऐसी परिस्थितियां थीं जिनमें बागान को लॉकडाउन के कारण बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इस दौरान श्रमिकों को फौरी राहत पहुंचाने के लिए बागान प्रबंधन ने मज़दूरों को 300 रुपये और सुपरवाइजरों को 1000 रुपये की आपातकालीन सहायता प्रदान की है। लेकिन ये पैसा वे लोग नहीं निकाल पा रहे हैं, क्योंकि यह धनराशि सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित कर दी गई है। इसके साथ यह घोषणा भी कर दी गई है कि यह राशि बाद में उनके वेतन से काट ली जाएगी।

बागान के एक श्रमिक कुंजिकृष्णन (58 साल) के अनुसार: “इस लॉकडाउन ने श्रमिकों को गंभीर वित्तीय संकट में डाल दिया है। यह स्थिति और विकट इसलिए हो गई है क्योंकि अभी हमारा वेतन और अन्य भुगतान नहीं मिल सका है, जिसका सीधा अर्थ है कि श्रमिक खाली हाथ हैं। हो सकता है कि कुछ मज़दूर ऐसे भी हों जिनके खातों में कुछ धनराशि पड़ी हो, लेकिन चूंकि इस इलाक़े में कोई बैंक या एटीएम नहीं है, इसलिए वे भी अपना पैसा निकाल पाने में अक्षम हैं।”

कोई सार्वजनिक परिवहन भी उपलब्ध नहीं है, इसलिए यदि श्रमिकों के उनके खातों में जो भी पैसा है उसे निकालना है तो उन्हें बैंक जाने के लिए कम से कम छह से आठ किमी पैदल चलना पड़ेगा। पचास वर्षीया ज़ीनत कहती हैं “मेरे पास एटीएम की सुविधा नहीं है। मैं आमतौर पर सीधे बैंक जाकर जितना पैसा निकालना होता है, निकाल लेती थी। जब अचानक से लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई थी तो उस समय मेरे पास कोई पैसा नहीं था। आज से दो दिन पहले जब मुझे पैसे की ज़रूरत पड़ी तो मुझे पैदल ही बैंक के लिए जाना पड़ा। कोविड-19 के दौरान मुझे जिन कष्टों को भोगना पड़ा, उनमें से एक यह भी है।”

इसके अलावा कई श्रमिक विपदा की घड़ी में अपने वित्तीय संकटों से निपटने के लिए सोने को गिरवी रख कर ऋण लेने कोशिश करते हैं। लेकिन लॉकडाउन के इस दौर में बैंक तक पैदल चलकर पहुंच पाना उनके लिए मुश्किल भरा है, जबकि निजी तौर पर सोने के बदले में कर्ज देने वाली कम्पनियां बंद पड़ी हैं।

अचानक से लॉकडाउन की घोषणा की सबसे बड़ी मार तो महिला श्रमिकों पर पड़ी है, क्योंकि बागानों के काम से ही उनके घर का खर्च चला करता था। ऐसे समय में नौकरी का न होना, खास तौर पर उन महिलाओं के लिए जो अकेली हैं, उनके लिए किसी भयानक वित्तीय संकट से कम नहीं है।

अन्य क्षेत्रों पर पड़ता असर

लॉकडाउन ने अन्य क्षेत्रों में भी काम के अवसरों को ख़त्म कर डाला है। कुछ समय से देखने को मिल रहा था की चाय बागान क्षेत्र में कम मज़दूरी मिलने की वजह से कई पुरुष श्रमिकों ने निर्माण क्षेत्र जैसे अन्य कार्यों में नौकरियां तलाश ली थीं। लेकिन निर्माण क्षेत्र में कच्चे माल की कमी के कारण लॉकडाउन की घोषणा से पहले ही नौकरियों की कमी आने लगी थी और उससे सिर्फ उनके परिवार का किसी तरह भरण-पोषण हो पा रहा था।

बागानों में काम करने वाले पुरुष श्रमिक, जो आमतौर पर बागान के काम से रोज़ाना लगभग 351 रुपया कमा लेते थे, वे हफ़्ते में दो बार निर्माण कार्यों में काम कर अपनी आय की भरपाई कर लेते थे। चालीस वर्षीय रथीश कहते हैं “बागान के बंद हो जाने से और निर्माण क्षेत्र में काम ठप पड़ जाने से उनके परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अक्सर सोना गिरवी रखकर उधार लेकर काम चल जाता था। वर्तमान हालात में इसकी भी अपनी कुछ सीमाएं हैं।”

इस क्षेत्र में वज़न ढोने वाले मज़दूरों की भी अच्छी ख़ासी संख्या है और कृषि क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे संकट के कारण पहले से ही जो नौकरियां उपलब्ध थीं, उनमें कटौती हो चुकी है। अब लॉकडाउन के चलते उनके पास काम नहीं बचे हैं।

बागानों के काम से जो श्रमिक रिटायर हो जाते थे उन्हें अक्सर मनरेगा योजना के तहत काम मिल जाया करता था, क्योंकि और कोई दूसरा काम उन्हें नहीं मिल सकता। वैसे तो इन श्रमिकों को अपनी मज़दूरी समय से मिल गई थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान इनके पास भी कोई काम नहीं रह गया।

केरल सरकार द्वारा उठाए गए क़दम

केंद्र सरकार की अनुमति लेकर केरल की राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन के दूसरे चरण के दौरान बागान क्षेत्र के लिए कुछ मामूली रियायतों की घोषणा की गई है। बागानों में अब पचास प्रतिशत श्रमिक सप्ताह में तीन दिन काम कर सकेंगे और बाक़ी श्रमिक अगले तीन दिनों के लिए इसी तरीक़े को अपनाएंगे। हालांकि मज़दूरों का कहना है कि इस सेक्टर में मज़दूरी की दरों को देखते हुए हफ़्ते में तीन दिनों के काम से जो मज़दूरी बनेगी उसमें ख़ुद की ज़रुरत पूरी कर पाना काफ़ी मुश्किल काम है।

इसके अलावा भी राज्य सरकार की ओर से कुछ पहल की गई हैं, जिससे श्रमिकों को कुछ राहत मिली है। थेट्टामाला इलाक़े में जो सामुदायिक रसोई चलाई जा रही है, उससे बागान श्रमिकों के अलावा अन्य श्रमिकों और बुज़ुर्गों को भोजन मुहैया कराया जा सका है, जिससे उनके भूखे मरने की नौबत नहीं है। इसके साथ ही केरल सरकार ने अप्रैल और मई के महीनों के लिए प्रत्येक श्रमिकों को 1,000 रुपये देने की घोषणा की है। एक बार यह वित्तीय सहायता श्रमिकों को वितरित हो जाए तो वे इससे अपनी आवश्यक वस्तुओं की ख़रीद कर पाने में सक्षम हो सकेंगे। कल्याण कोष बोर्ड ने भी गांव में मौजूद ग़ैर बागान श्रमिकों के लिए भी अनुदान की घोषणा की है।

इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से राशन कार्ड धारकों को जो चावल वितरित किया जा रहा है उसने भी काफ़़ी राहत पहुंचाई है। इसके ज़रिए एपीएल (ग़रीबी रेखा से ऊपर) परिवारों को 15 किलो चावल दिया जा रहा है, जबकि बीपीएल (ग़रीबी रेखा से नीचे) परिवारों को 35 किलोग्राम राशन मिल रहा है। इसके अलावा सरकार एपीएल और बीपीएल से जुड़े दोनों परिवारों को एक किट भी दे रही है, जिसमें 15 आवश्यक सामग्री शामिल हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार और स्थानीय निकाय दोनों ही गांव में स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने और कोरोना वायरस के बारे में ग्रामीणों में जागरूकता पैदा करने के काम में सक्रिय तौर पर जुटे हैं।

इसी बीच केरल सरकार द्वारा एक और पहल कुटुम्बश्री-अयालकुट्टम (अड़ोस-पड़ोस के समूहों) स्कीम के माध्यम से सुविधाजनक, आसानी से पहुंच में आने वाली और ब्याज मुक्त ऋणों के वितरण की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत एक परिवार को 2,000 रुपये की धनराशि मिल सकेगी। इस प्रकार के क़र्ज़ पिछले संकटों यानी की बाढ़ के दौरान श्रमिकों के काम के लिए उपयोगी साबित हुए हैं। इस कोरोना वायरस काल में थोंदरनाडु पंचायत, थेट्टामाला क्षेत्र के बागान में काम करने वाले श्रमिकों के बीच दुग्ध वितरण का काम भी कर रहा है। एक वार्ड सदस्य ने बताया की इस स्कीम से डेयरी से जुड़े किसानों के हितों की भी रक्षा हो सकेगी और साथ ही श्रमिकों को भी राहत प्रदान किया जा सका है।

(लेखक नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम में शोधार्थी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

COVID-19 in Rural India-XXX: Impact of Lockdown on Tea Plantation of Thettamala, Kerala

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