कोविड-19 : अनिश्चित और दुखी भारत को एक समझदार नेतृत्व का इंतज़ार
24 मार्च को, जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी ने पहली दफा तीन-सप्ताह के लॉकडाउन की घोषणा की थी, उस वक़्त भारत में कोविड-19 के 390 मामले थे, और नौ मौतें हुईं थी। यह भी सर्वविदित है कि पहला मामला 30 जनवरी को सामने आया था। तब कोविड-19 के मामलों को 390 की संख्या तक पहुंचने में कुछ 54 दिन लग गए थे।
आज यानी 27 मई को, करीब 64 दिन बीत चुके हैं – वह भी सख्त लॉकडाउन के तहत। इस दौरान मामलों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़कर लगभग 1.52 लाख हो गई है और 4,337 लोग कोरोना वायरस से अपनी जान गंवा चुके हैं।
यह वह संख्या हैं जो लोगों के लिए मायने रखती हैं। इस झूठी दिलासा के खेल में दर का दोहरा होना, दोबारा पैदा होने की दर का बढ़ना, सात दिन की चल रही औसत, और बढ़ती संख्या - सभी बहुत सही हैं, और उपयोगी भी हैं - आम लोगों ने किसी तरह से कोविड-19 की स्थिति से अपनी पकड़ खो दी है। वे वास्तव में क्या देख रहे हैं कि 64 दिनों के लॉकडाउन के भीतर मामलों की संख्या 390 से कूदकर 1.52 लाख तक पहुंच गई है।
इसे देखने के कई तरीके हैं, लेकिन नीचे दिए गए चार्ट में एक महत्वपूर्ण और सबसे चौकाने वाला पहलू नज़र आता है – हर दिन कितने मामलों की पहचान की जा रही है। जैसा कि आप देख सकते हैं, तालाबंदी के पहले दिन 25 मार्च को 114 नए मामले सामने आए थे। और आज, 27 मई को 6,387 नए मामले सामने आए हैं। इन सभी संख्याओं को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट से लिया गया है, और न्यूज़क्लिक की डेटा एनालिटिक्स टीम द्वारा कोलेट किया गया है
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस खूंखार महामारी ने भारत को अच्छी तरह से अपने दांतों तले जकड़ लिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि भारत में, लगभग 3 प्रतिशत की मृत्यु दर कुछ अन्य देशों से कम है। या फिर कम से कम नौ ऐसे देश हैं जिनके केस भारत से अधिक हैं। या मरीजों के रिकवरी रेट (जो ठीक हो रहे हैं) में सुधार हो रहा है। ये सभी आँकड़े घबराहट और डूबते मन की भावना को शांत तो कर सकते हैं - लेकिन कोई भी इस बात से संतुष्ट नहीं है और न ही खुश है कि दूसरों की स्थिति हमसे अधिक खराब है।
ऐसा क्यों हुआ
यह भविष्य में एक जांच का विषय होगा कि वास्तव में यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य कैसे पैदा हुआ था। सरकार द्वारा गाइड के रूप में उपयोग किए जाने वाला डाटा का अधिकांश हिस्सा जिसे एक साथ होना चाहिए वह मौजूद नहीं है। इस बात को कोई नहीं जानता कि दूरस्थ इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में दैनिक रूप फार्म भरे जा रहे हैं या नहीं और उन्हे ऊपर रिपोर्ट किया जा रहा है या नहीं, या क्या वे वास्तविकता को दर्शा रहे या नहीं। लेकिन, जो भी सीमाएं हैं, कुछ चीजें काफी स्पष्ट हैं - और लोगों को इसे जानने की जरूरत है।
सबसे बड़ी मूर्खता उस विचार से हुई जिसमें बिना किसी खास तैयारी के और बिना इसके परिणाम को सोचे लॉकडाउन नीति को लागू कर दिया। एक सरकार जो भारत जैसे विशाल देश को चलाती है, उसकी ऐसी घटिया सोच होगी यह अपने आप में चोकाने वाली बात है। लेकिन ऐसा ही हुआ। नतीजतन, अर्थव्यवस्था बंद पद गई, लाखों लोगों को कमाई या नौकरियों से दूर कर दिया गया, लाखों लोगों ने घर वापस जाने के लिए, और जीवित रहने के लिए, अपने कार्यस्थलों को छोड़ना शुरू कर दिया, अगर नहीं जा पाए तो अपने प्रियजनों के साथ मरने के लिए पीछे रह गए। सरकार ने खड़ी फसलों या ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम या शहरी असंगठित क्षेत्र या फ्रंटलाइन श्रमिकों की रक्षा के बारे में कुछ नहीं सोचा - कुछ भी नहीं। यह उन झटकों और खौफनाक चीजों में से एक था, जिसे प्रधानमंत्री बहुत पसंद करते हैं।
इसने लॉकडाउन में प्रभावी रूप से छेद किए हैं, क्योंकि सरकार जैसे जैसे एक के बाद एक संकट से निपटने के लिए जुगाड़ में हाथ मलती नज़र आई। इसने लॉकडाउन में एक दर्जन से अधिक छूट दे दी। सरकार ने परिवारों को भुखमरी के स्तर तक जाने से रोकने के लिए कोई पैसा खर्च नहीं किया। 24 मार्च के बाद से, सरकार ने अपनी गलती को न्यायोचित ठहराने और इसके भयावह नतीजों को थामने के अलावा कुछ भी नहीं किया था।
नतीजतन, न केवल महामारी पर कोई नियंत्रण हुआ, बल्कि अर्थव्यवस्था भी एक ऐसे अंधकार में चली गई, जो आज तक किसी की जीवित स्मृति का हिस्सा नहीं रहा है। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में राज्यों के बीच व्यापक बदलाव के चलते 6 प्रतिशत का सिकुड़न आने की अधिक संभावना है।
महामारी को रोकना
इस बीच, महामारी के बारे में क्या? पारंपरिक ज्ञान यह बताता है कि यदि लॉकडाउन और सख्त सामाजिक दूरी जैसे उपायों को अपनाया जाता है, तो महामारी से मौतों में तेजी से वृद्धि नहीं होगी। बल्कि, यह रुक जाएगा और देर से फैलेगा। जिसे कर्व को समतल करना कहा जाता है। तेजी से ऊपर की ओर बढ़ने के बजाय, आपके पास एक पठार होगा। इससे सरकार को रोगियों से निबटने के लिए चिकित्सा देखभाल सुविधाओं में तेजी लाने, स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों, पुलिस कर्मियों, जैसे अन्य आवश्यक सेवा प्रदाताओं को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) वितरित करने, और शिक्षित करने का समय मिलेगा और लोगों को सावधानी बरतने पर शिक्षित करने का वक़्त भी मिलेगा।
सरकार अपने पराक्रमी लॉकडाउन से इस कदर प्रभावित थी कि उसने अपने ही बौने प्रचार में विश्वास करना शुरू कर दिया। इसने सोचा कि केवल सब कुछ बंद कर देने भर से महामारी दूर हो जाएगी – साहेब ने भी लगभग अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सानरो की तरह ही सोचा था। लॉकडाउन घोषित होने के बाद सरकार ने जांच किट और पीपीई का ऑर्डर देना शुरू किया। आइसोलेशन वार्ड और क्वारंटाईन सुविधाओं के नाम तय कर दिए गए – लेकिन वास्तव उन्हे शुरू बाद में किया गया। मोदी सरकार ने अधिकतर निर्णय राज्य सरकारों के ऊपर छोड़ दिए, इसके लॉकडाउन निर्णय की महिमा ने तहलका मचा दिया। ये यह महसूस करने लगे कि आपदा प्रबंधन अधिनियम ने उसे आदेश जारी करने की सभी शक्तियां प्रदान कीं, हैं लेकिन सभी गंदे काम राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों पर छोड़ दिए।
इसकी सबसे बड़ी विफलता परीक्षण करने में इसके शुतुरमुर्गीय दृष्टिकोण का होना था। सभी विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि यदि आप वायरस को हराना चाहते हैं, तो आपको लोगों की अधिक से अधिक जांच करने की जरूरत है ताकि चीजों को नियंत्रण से बाहर होने से पहले संक्रमित मरीज को अलग-थलग किया जा सकें और वायरस को फैलने से रोक सकें। मोदी सरकार ने इस वैज्ञानिक राय को सुनने से इनकार कर दिया और केवल उन लोगों की जांच की जो विदेश से आए थे, या फिर उनकी जिनमें लक्षण दिखाई दे रहे थे। इसलिए, बड़ी संख्या में लोग अनजाने में वायरस को अपने साथ ढोने लगे। सुलभ और नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा या जांच सुविधाओं के अभाव में, और नामित जगहों पर अत्यधिक भीड़, हजारों लोग - शायद सैकड़ों हजारों - वायरस का प्रसार रहे हैं क्योंकि उनकी जांच नहीं हो पाई है।
इतिहास माफ़ नहीं करेगा
जब भविष्य की पीढ़ियों द्वारा इस अवधि का बड़े ही संतोषजनक ढंग से ज़ायजा लिया जाएगा, तो उन्हे यह सब अविश्वसनीय लगेगा। क्या कोई सरकार वास्तव में अपने लोगों और विज्ञान, दोनों के प्रति इतनी उदासीन हो सकती है, जिसने इस घोर और उदासीन तरीके से कोविड-19 संकट से निपटा हो? इसके लिए मोदी और उसकी सरकार को भी जज किया जाएगा जिसने महामारी का इस्तेमाल कर बड़ी ही बेशर्मी से आर्थिक प्रणाली में अलोकप्रिय परिवर्तनों को बढ़ाया और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण से लेकर, सुरक्षात्मक श्रम कानूनों को नष्ट करने और कृषि-वस्तु के व्यापार को निजी संस्थाओं को सौंपने तक का काम किया। कोविड-19 महामारी की त्रासदी को संभालने में विफलता के अलावा, और मौत को कम करने के बजाय, इस अवधि को लोगों के कलयांकारी नीतियों के निराकरण के लिए भी याद किया जाएगा, ताकि घरेलू और विदेशी दोनों पर निजी वर्चस्व वाले निगमों का अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा हो जाए।
महामारी से लड़ने के नाम पर, मोदी और उनकी सरकार लड़ाई हार गई है, और देश और इसके लोगों को गुलाम बनाने वाले लोगों को गिरवी रख दिया है। इसके लिए इसे माफ़ करना कठिन होगा।
(कोविड-19 डाटा को न्यूज़क्लिक डाटा एनालिटिक्स टीम के पीयूष शर्मा और पुलकित शर्मा ने इकट्ठा किया है।)
अंग्रेज़ी में लिखा लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
COVID-19: Uncertain and Distressed, India Awaits Wiser Leadership
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