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नमक के साथ चावल खाते मज़दूर... राशन हो रहा है ख़त्म

लॉकडाउन के बाद सूरत के अलग-अलग हिस्सों में 6 से 8 लाख मज़दूर फंस गए हैं। वह लोग पिछले हफ़्ते सड़कों पर आ गए। उनकी मुख्य मांग पिछला बकाया चुकाने और घर लौटने की अनुमति देने की थी।
नमक के साथ चावल खाते मज़दूर

10 अप्रैल को कपड़ा उद्योग में काम करने वाले हजारों प्रवासी मज़दूर सूरत के बाहरी इलाके में सड़कों पर आ गए। यह लोग संकरी शहरी झुग्गियों में रहते हैं। उन्होंने अपनी बकाया मज़दूरी चुकाने और घर जाने की अनुमति मांगते हुए विरोध प्रदर्शन किया। इस बीच हजार से ज्यादा मज़दूरों ने सूरत के सार्थाना पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले लस्काना सब्जी बाज़ार में आगजनी और तोड़फोड़ की।

प्रवासी मज़दूरों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है। उनपर दंगों और आगजनी के साथ-साथ दूसरे आरोप हैं। 70 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रवासी मज़दूर ज़्यादातर उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और मध्यप्रदेश से हैं। यह गुजरात में इस तरह की दूसरी घटना है। इससे पहले 30 मार्च को करीब़ 95 मज़दूरों को गिरफ़्तार किया गया था। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज और आंसू गैस के गोलों का सहारा लेना पड़ा था।

घटना के बाद सूरत के पुलिस कमिश्नर आर बी ब्रह्मभट्ट ने मीडिया को बताया, ''लेबर कॉलोनियों में क़रीब 31 मेस चल रहे हैं। कुछ NGO भी खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। उनकी मांग केवल घर वापस जाने की है। हमने स्थिति पर नियंत्रण कर लिया है और इलाके में पुलिस की तैनाती कर दी गई है।''

लेकिन कामग़ारों का कहना है कि उनके पैसे खत्म हो चुके हैं। उन्हें डर है कि कोरोना से मरने से पहले वे भूख से मर जाएंगे।

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कपड़ा उद्योग में काम करने वाले उमाशंकर मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया, ''चार घंटे में लॉकडाउन की घोषणा और ट्रेन बंद होने के चलते बड़ी संख्या में कामग़ार यहां बिना खाने के 10 फीट लंबे और 10 फीट चौड़े कमरे में फंस गए हैं। कलेक्टर द्वारा नियोक्ताओं और मालिकों को  बकाया पैसा देने का नोटिस जारी किए जाने के बावजूद हमारा पैसा नहीं दिया गया। कुछ दिन पैसे की मांग करने के बाद, कामग़ारों की मज़दूरी का कुछ हिस्सा उन्हें दे दिया गया। उन्हें एक हजार से चार हजार रुपये तक दिए गए। हमने कलेक्टर से भी इस बारे में बात करने की कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से कोई राहत नहीं दी गई।''

मिश्रा उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। यहां वे एक कपड़ा बाज़ार में सुपरवाइज़र का काम करते हैं। उनका वेतन 12,000 रुपये महीना है, लेकिन लॉकडाउन के बाद उन्हें सिर्फ पांच हजार रुपये ही दिए गए हैं।

मिश्रा कहते हैं, ''हांलाकि मैंने बहुत दिन से सब्जी लेना बंद कर दिया है और सिर्फ दाल-चावल से काम चला रहा हूं। फिर भी मेरा गुजारा चल सकता है। लेकिन एक मज़दूर जो हर दिन 250 से 400 रुपये कमाता है, उसके पास बिलकुल पैसा नहीं बचा। अपने बचे पैसों से कामग़ार जो ले सकते थे, उन्होंने वो ले लिया। वो तभी सड़कों पर आए, जब उनके पास कुछ नहीं बचा। बहुत हो-हल्ले के बाद चार दिन पहले हर मज़दूर को तीन किलो गेहूं, एक किलो चीनी, एक किलो दाल, डेढ़ किलो चावल और पांच सौ ग्राम नमक दिया गया। 25,000 कामग़ारों, जिनके पास आधार कार्ड है, उन्हें मदद मिलने की उम्मीद थी। लेकिन सिर्फ 1,783 कामग़ार ही राशन ले पाए। अगले दिन जब कामग़ारों ने सामान के लिए लाइन लगाई, तो पुलिस ने उन्हें खदेड़ दिया।  कहा गया कि राशन खत्म हो गया, उसे एक ही दिन बंटना था।''

भूख और अनिश्चित्ता के शिकार कामग़ारों के पास पैसा भी नहीं है, न ही उन्हें अपना पुराना बकाया मिला। मज़दूरों को लगता है कि प्रशासन उन्हें नजरंदाज कर रहा है, जबकि उनकी कोई गलती भी नहीं है।

मिश्रा ने आगे कहा, ''मज़दूरों ने जितना राशन इकट्ठा किया था, वो खत्म हो चुका है। जब उनके पास कुछ नहीं बचा तो मज़दूरों ने केवल चावल उबालकर उसे नमक के साथ खाया। उन्हें साबुत गेंहूं देने का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि उसे पीसने के लिए चक्की चालू नहीं है। ऊपर से उन्हें तेल भी नहीं दिया गया, इसलिए वो कोई सब्जी भी नहीं बना सकते।''

सूरत टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन के अनुमान के मुताबिक़, जब लॉकडाउन लागू किया गया, तो करीब़ एक से दो लाख मज़दूर, जिनका घर 400 से 500 किलोमीटर दूर था, वे किसी भी तरीके से अपने घर की ओर रवाना हो गए। उनमें से कई पैदल भी गए। लेकिन अब भी सूरत की झुग्गी-झोपड़ियों में 6 से 8 लाख प्रवासी मज़दूर फंसे हुए हैं। ट्रेन बंद होने के चलते वो नहीं निकल पाए।

कपड़ा ईकाईयों को लगा तगड़ा झटका

FOSTTA के चेयरमैन चंपालाल बोथ ने न्यूज़क्लिक को बताया, ''इन कामग़ारों में से किसी के पास वो दस्तावेज़ नहीं हैं, जिनके ज़रिए यह लोग सूरत में मदद मांग सकें। यह लोग BPL और राशन कार्ड के लाभार्थी हैं। लेकिन इसमें उनका पता अपने-अपने राज्यों में स्थायी घर का लिखा हुआ है। उन्हें केवल निजी लोगों और NGO के ज़रिए ही मदद मिल रही है। लेकिन यह मदद इतने सारे लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।''

बोथरा आगे बताते हैं, ''हमने मालिकों से पुराना बकाया देने को कहा। लेकिन छोटे व्यापारियों का ऐसे दौर में जब कोई आमदनी नहीं हो पा रही है, ऐसा कर पाना मुश्किल है। लॉकडाउन होने के बाद से ही कपड़ा उद्योग को हर दिन 100 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। हम नहीं जानते कितने व्यापारी इस घाटे से उबर पाएंगे। इनमें से उन व्यापारियों को सबसे ज़्यादा नुकसान होने वाला है, जिन्होंने शादी, रमजान और फसल कटाई के सीजन के लिए माल लाकर रख लिया था। अगर अब बाज़ार खुल भी जाता है, तो भी व्यापारी यह माल नहीं बेंच पाएंगे। ऊपर से हमारा अनुमान है कि जब लॉकडाउन खुलेगा, तो बड़ी संख्या में प्रवासी शहर छोड़ेंगे। इससे भी उद्योग पर असर पड़ेगा।''

बता दें सूरत के कपड़ा उद्योग में 10 लाख प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार मिलता है। इसमें प्रिंटिंग और डायिंग मिल, चरखा उद्योग, कढ़ाई का काम और कपड़ा बाज़ार शामिल हैं। यह लोग पंडेसेरा, साचिन, बेस्तन, डिंडोली, कडोदरा, कामरेज, कटरगाम इलाकों में रहते हैं।

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इन इलाकों में रहने वाले ज़्यादातर कामग़ार बिना परिवार के दूसरे साथियों के साथ कमरा शेयर कर रहते हैं। दो से तीन हजार रुपये में कामग़ारों के एक समूह को 12 घंटों के लिए बिस्तर, शौचालय और कमरे के एक कोने में खाना बनाने की सहूलियत मिल जाती है। जैसे ही वो काम पर निकलते हैं, अगला समूह अगले 12 घंटों के लिए वह कमरा किराये पर ले लेता है। पहले इस 10 फीट लंबे-10 फीट चौड़े कमरे में चार से पांच मज़दूर रहते थे, लॉकडाउन के बाद एक कमरे में 10 से 12 मज़दूर रह रहे हैं। ऊपर से ज़्यादातर मकान मालिक इन मज़दूरों से  किराया मांग रहे हैं। कुछ ने तो मज़दूरों से किराया न दे पाने की स्थिति में कमरा खाली करने के लिए तक कह चुके हैं।

मिश्रा कहते हैं, ''ऐसे में एक कमरे में बिना खाने और मूलभूत ज़रूरतों के मज़दूर कैसे रहें। अगर इन चीजों का समाधान नहीं हुआ, तो ऐसी घटनाएं आगे भी हो सकती हैं।''

लॉकडाउन के चलते सूरत के कपड़ा उद्योग के मज़दूर ज़्यादा बदतर स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं। इससे सोशल डिस्टेंसिंग का उद्देश्य भी पूरा नहीं होता। लगभग बिना खाने के सामान और बिना पैसे के रह रहे मज़दूरों की दिक़्क़तों का फिलहाल प्रशासन पर कोई असर नहीं हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Surat: ‘Workers Boiled Wheat and Ate with Salt... Have Now Run Out of Rations’

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