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ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में योगी की घेराबंदी शुरू?

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में बता रहे हैं यूपी की राजनीति का समीकरण। साथ ही देश में चुनाव और उसके ईर्द-गिर्द चल रही उठा-पठक को भी डिकोड कर रहे हैं।
YOGI

 

अडानी-अंबानी का नाम लेकर फंस गए मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौथे चरण के मतदान से पहले अंबानी और अडानी का नाम लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया था लेकिन उनका दांव उलटा पड गया। यही वजह है कि उसके बाद उन्होंने दोनों उद्योगपतियों का नाम नहीं लिया। यह माना जा रहा है कि अंबानी-अडानी का जिक्र करना और यह कहना कि कांग्रेस को उनसे बोरे में या टेंपो में भर कर काला धन मिल रहा है, एक रणनीतिक गलती थी। दरअसल प्रधानमंत्री को भरोसा था कि जैसे वे जब चाहते हैं तब राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को बदल देते हैं और मीडिया की मदद से अपना नैरेटिव सेट कर देते हैं वैसे ही इस मामले में भी कर लेंगे लेकिन यह दांव उलटा पड़ गया। उल्टे देश के चुनिंदा कारोबारियों की सरकार द्वारा मदद और उनके पास काला धन जमा होने की राहुल गांधी की बात इससे सही साबित हो गई। 

प्रधानमंत्री के बयान से कांग्रेस को तो मौका मिला ही दूसरी ओर कारोबारी घरानों में भी प्रधानमंत्री को लेकर यह संदेश गया कि राजनीतिक फायदे के लिए वे किसी को भी दांव पर लगा सकते हैं। इस मामले में गलती का एहसास होने के बाद भाजपा बैकफुट पर है। प्रधानमंत्री तो कुछ नहीं ही बोल रहे हैं, उनकी पार्टी के नेताओं और प्रवक्ताओं ने भी इस पर चुप्पी साध रखी है। दूसरी ओर कांग्रेस अंबानी-अडानी के मामले का अधिकतम लाभ लेने के प्रयास में लगी है। राहुल गांधी तो अपनी बात कह ही रहे हैं, कांग्रेस के दूसरे नेता भी किसी न किसी बहाने प्रधानमंत्री की ओर से लगाए गए आरोप को चर्चा में ला रहे हैं। कांग्रेस ने इतना प्रचार किया है कि वह भाजपा के गले की हड्डी बन गया है।

चुनाव के बीच बम की धमकियों का मतलब

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि राष्ट्रीय चुनाव के बीच एक के बाद एक धमकियां मिले और स्कूल, अस्पताल से लेकर हवाईअड्डों तक को निशाना बनाने का दावा किया जाए। 12 मई को ईमेल के जरिए धमकियां मिली कि दिल्ली के 20 अस्पतालों और देश के 12 हवाईअड्डों को बम से उड़ा दिया जाएगा। इससे 10 दिन पहले दो मई को दिल्ली के एक सौ से ज्यादा स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली थी, जिसके बाद पूरी राजधानी मे अफरातफरी मच गई थी। हालांकि 12 मई की धमकी भी दो मई की तरह फर्जी निकली है। लेकिन सवाल है कि लोकसभा चुनाव के बीच इस तरह की अफवाहों या फर्जी धमकियों का क्या मतलब है

पुलिस एक पैटर्न की बात कर रही है और कह रही है कि दिल्ली और गुजरात के संस्थानों को निशाना बनाने की बात हो रही है तो इस पहलू से भी जांच होनी चाहिए। गौरतलब है कि पहली धमकी को जितनी गंभीरता से लिया गया था, दूसरी धमकी को उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोई आतंकवादी संगठन पहले इस तरह की फर्जी धमकियां देकर सुरक्षा बलों को थकाना या लापरवाह करना चाहता है? इसलिए जांच एजेंसियों को इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए। अगर कोई आतंकवादी संगठन इनके पीछे है तो उसका पता चलना चाहिए और अगर किसी दूसरे मकसद से, जैसे चुनाव प्रभावित करने के लिए इस तरह का काम किया जा रहा है तो उसकी भी जांच करके सचाई सामने लानी चाहिए।

भाजपा में योगी की घेराबंदी शुरू?

उत्तर प्रदेश में भाजपा के एक खेमे ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घेराबंदी शुरू कर दी है। उन पर परोक्ष रूप से आरोप लगाया जा रहा है कि उनका प्रशासन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की मदद कर रहा है। यह संकेत मिला है प्रदेश भाजपा के एक ट्विट से, जो उसने 13 मई को चौथे चरण के मतदान के दिन दोपहर करीब दो बजे किया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भाजपा के आधिकारिक हैंडल से किए गए इस ट्विट में कहा गया- ''सपाई गुंडों के सामने पुलिस प्रशासन नतमस्तक।’’ इस ट्विट में कन्नौज लोकसभा क्षेत्र को लेकर शिकायत करते हुए लिखा गया- ''विधूना विधानसभा के बूथों पर सपाई गुंडों के साथ मिल कर पीठासीन अधिकारी और पुलिस के लोग बूथ कब्जा कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग उचित कार्रवाई करे।’’ गौरतलब है कि कन्नौज सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद चुनाव लड़ रहे हैं। उनके लड़ने से यह बहुत हाई प्रोफाइल सीट हो गई है। अगर इस सीट को लेकर प्रदेश भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि पुलिस और प्रशासन सपा की मदद कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि भाजपा संगठन और सरकार के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि योगी आदित्यनाथ को अभी से निशाने पर लिया जा रहा है ताकि चुनाव नतीजे ठीक नहीं आने की स्थिति में उनके ऊपर हार का ठीकरा फोड़ा जा सके। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से यह चर्चा हवा में है कि चुनाव के बाद योगी को हटाया जा सकता है।

शराब नीति में गिरफ़्तारी का धारावाहिक 

दिल्ली की शराब नीति से जुड़े कथित घोटाले की जांच चलती जा रही है। यह नीति 2022 में समाप्त कर दी गई है और उससे पहले से इसमें गड़बड़ी की बातें चल रही हैं। सीबीआई और ईडी इसकी जांच दो साल से ज्यादा समय से कर रही हैं। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार हुए सवा साल से ज्यादा हो गया। उनकी गिरफ्तारी के एक साल से ज्यादा समय के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया। लेकिन उसके बाद भी यह धारावाहिक बंद नहीं हो रहा है। इस मामले की सुनवाई दो साल बाद भी शुरू नहीं हो रही है, बल्कि गिरफ्तारियां चल रही हैं। हर महीने-दो महीने में किसी को गिरफ्तार किया जाता है और कहा जाता है कि उससे पूछताछ में नए सबूत मिले हैं, जिसके आधार पर फिर किसी दूसरे आदमी को पकड़ा जाता है। कितने कारोबारी, कितने नेता और कितने अधिकारी एक-एक करके गिरफ्तार हुए है, इसका हिसाब नहीं है। केजरीवाल और सिसोदिया के अलावा इसी मामले में संजय सिंह और के. कविता भी गिरफ्तार हुए। ताजा गिरफ्तारी वकील विनोद चौहान की है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें के. कविता के सचिव ने नोटों से भरा बैग दिया था। उससे पहले पंजाब के चरणप्रीत सिंह गिरफ्तार हुए, जिनके बारे में कहा गया कि उन्हें 17 करोड़ रुपए मिले थे, जो उन्होंने गोवा के चुनाव में खर्च के लिए वहां के पार्टी नेताओं को दिए। इन दोनों की गिरफ्तारी के बाद इनसे पूछताछ और कथित जानकारी के आधार पर कुछ और लोगों की गिरफ्तारी हो तो हैरानी नहीं होगी।

ममता के दांव से भाजपा फिर परेशान

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एक बार फिर बंगाली अस्मिता का कार्ड वही चल रही हैं, जिस पर उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता था। गौरतलब है कि 2021 में ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को बाहरी बता कर बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उठाया था। उन्होंने जय श्रीराम के बरक्स काली पूजा का नैरेटिव भी बनाया था और बांग्ला भाषा का मुद्दा भी उठाया था। उनका वह दांव सफल रहा था। अब लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी इसी तरह का मुद्दा बना रही है। इस बार वे खान-पान के बहाने मोदी को चुनौती दे रही हैं। पिछले दिनों ममता बनर्जी ने कहा कि वे तो नरेंद्र मोदी के लिए खाना बनाने को तैयार हैं लेकिन क्या मोदी उनका बनाया खाना खाएंगे? दरअसल ममता यह मैसेज देना चाहती हैं कि भाजपा अगर जीतती है तो वह बंगालियों के खान-पान की परंपरा को बदलने की कोशिश करेगी। गौरतलब है कि भाजपा और आरएसएस की ओर से वैष्णव विचार को लगातार प्रोत्साहित किया जाता है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के साथ लगभग समूचे पूर्वी भारत में मांसाहार का चलन है। पूजा पाठ में भी बलि से लेकर मांस, मछली के इस्तेमाल की परंपरा है। इन इलाकों में शक्ति की पूजा होती है। मछली बंगाली लोगों के भोजन और जीवन शैली का हिस्सा है। हालांकि भाजपा इसे चुनौती नहीं दे रही है लेकिन ममता बनर्जी के बयान के बाद से प्रदेश भाजपा के नेता परेशान हैं और इसकी काट खोज रहे हैं। 

चुनाव में मुस्लिम आबादी को लेकर दुष्प्रचार

एक तरफ तो विपक्षी पार्टियां जाति गणना की बात कर रही हैं लेकिन दूसरी ओर पिछले डेढ़ सौ साल में पहली बार ऐसा हो रहा है कि देश में हर 10 साल पर होने वाली जनगणना ही नहीं हुई। कोरोना के नाम पर स्थगित हुई जनगणना अभी तक नहीं हुई है। लेकिन इस बीच आबादी के आंकड़ों के आधार पर सांप्रदायिक विभाजन शुरू हो गया है। अभी लोकसभा का चुनाव चल रहा है और इस बीच यह आंकड़ा आया है कि पिछले 75 साल में हिंदुओं की आबादी दर देश में घटी है और मुसलमानों की आबादी बढ़ी है। वैसे सरकारी आंकड़ा यह बता रहा है कि हिंदुओं की आबादी में 7.82 फीसदी की कमी आई है, जबकि मुस्लिम आबादी करीब पांच फीसदी बढ़ गई है। इस आंकड़े के मुताबिक मुस्लिम आबादी जो आजादी के समय 9.84 फीसदी थी वह बढ़ कर 14.09 फीसदी हो गई है। इसी तरह ईसाई आबादी में भी मामूली बढ़ोतरी हुई है और सिख आबादी भी बढ़ी है। लेकिन इस आंकड़े के साथ ही यह भी बताया गया है कि मुसलमानों की प्रजनन दर में भी उसी तरह कमी आ रही है, जैसे हिंदुओं में आ रही है। उनकी प्रजनन दर पहले चार फीसदी से ऊपर थी, जो अब ढाई फीसदी से कम हो गई है। लेकिन इस बात को हाईलाइट नहीं किया जा रहा है। सिर्फ इस बात की चर्चा हो रही है कि हिंदू आबादी घट रही है और मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। इसे चुनाव का मुद्दा बनाया जा रहा है। इस आधार पर फर्जी पोस्ट वायरल करके बताया जा रहा है कि मुस्लिम आबादी 43 फीसदी बढ़ गई। इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण के कानून की जरुरत बताने वाले पोस्ट भी सरकुलेट होने लगे हैं। 

उद्धव की साख पर हमला 

महाराष्ट्र में दो चरण के मतदान के बाद शिव सेना नेता उद्धव ठाकरे की साख और छवि बिगाड़ने का प्रयास शुरू हो गया है। इसके लिए दो चीजों का इस्तेमाल हो रहा है। एक वह वीडियो, जिसमें कथित तौर पर दिखाया जा रहा है कि शरद पवार उन्हें बाहर बैठने और इंतजार करने के लिए कह रहे है और दूसरा शरद पवार का वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि कई पार्टियों का कांग्रेस में विलय हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बयान को मुद्दा बनाते हुए कहा कि कांग्रेस में विलय करके खत्म होने की बजाय उद्धव ठाकरे और शरद पवार को एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ लौट जाना चाहिए। इस तरह मोदी ने यह बताने की कोशिश की है कि असली पार्टियां शिंदे और अजित पवार की हैं। पवार के बयान के आधार पर यह भी कहा जा रहा है कि उद्धव की पार्टी का कांग्रेस में विलय हो सकता है। इससे मराठा और शिव सैनिकों का वोट तोड़ने की कोशिश हो रही है। दूसरी ओर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें उद्धव पहले से चल रही एक बैठक में पहुंचते हैं, जहां शरद पवार और कुछ अन्य लोग मौजूद हैं। वीडियो में दिखाया जा रहा है कि पवार उन्हें बाहर बैठने के लिए कहते है। उद्धव भी कहते सुनाई दे रहे हैं कि वे बाहर इंतजार करते हैं। इसके जरिए यह बताया जा रहा है कि बाल ठाकरे के बेटे की महा विकास अघाड़ी में कोई हैसियत नहीं है। हालांकि हकीकत यह है कि उद्धव को 21 सीटें देकर कांग्रेस और शरद पवार ने उनका महत्व बढ़ाया है और यह मैसेज दिया है कि अघाड़ी के नेता वे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

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