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मज़दूरों की गाढ़ी कमाई पर मोदी सरकार का कुठाराघात – सीटू

“सरकार ने निजी कॉरपोरेट मालिकों/नियोक्ताओं को मज़दूरों के योगदान और उनके भविष्य निधि और पेंशन फंड के हिस्से के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत दे दी है।” 
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : The Economic Times

सीआईटीयू ने दिल्ली में बयान जारी कर मोदी सरकार के उस फैसले को कड़ी निंदा की है जिसमें सरकार ने ईपीएफ, ईपीएस और ईडीएलआई अंशदान को ईपीएफओ में जमा करने में मालिकों/नियोक्ताओं की चूक पर जुर्माना शुल्क लगाने में भारी कमी की है। यूनियन ने इसे मालिकों/नियोक्ताओं को वैधानिक दायित्व में चूक करने के लिए प्रोत्साहित देना बताया है। 

बयान में कहा गया है कि, “हाल ही में शपथ लेने वाली एनडीए सरकार ने अपना असली चेहरा उजागर करने में ज़रा भी समय नहीं गंवाया हैं। सरकार ने निजी कॉरपोरेट मालिकों/नियोक्ताओं को मजदूरों के योगदान और उनके भविष्य निधि और पेंशन फंड के हिस्से के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत दे दी है। इसके जरिए मालिकों/नियोक्ताओं को अपने वैधानिक दायित्व में चूक करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसमें श्रमिकों के योगदान सहित ईपीएफ, पेंशन और ईडीएलआई फंड को समय पर ईपीएफओ में जमा करना शामिल है।” 

बयान आगे कहता है कि, मोदी मंत्रिमंडल में शामिल श्रम मंत्री ने “14 जून 2024 को एक बहुत ही क्रूर गेजेट/राजपत्र अधिसूचना जारी की है, जिसमें कर्मचारी पेंशन कोष (ईपीएफ) और कर्मचारी जमा-लिंक्ड बीमा योजना (ईडीएलआई) में श्रमिकों के योगदान सहित योगदान को समय पर जमा न करने वाले सभी मालिकों/नियोक्ता पर सभी दंडात्मक शुल्कों को काफी कम कर दिया गया है। दंडात्मक शुल्क में कमी की सीमा को निर्धारित शुल्क से लगभग पांचवें हिस्से से भी कम कर दिया गया है।”

बयान दर्ज़ करता है कि, यदि कोई मालिक/नियोक्ता ईपीएफ या ईडीएलआई में अंशदान के भुगतान में कोई चूक करता है या ईपीएफ अधिनियम, 1952 या इस अधिनियम के तहत बनाई गई योजनाओं के प्रावधानों के तहत देय किसी भी शुल्क के भुगतान में देर या चूक करता है, तो ईपीएफओ उसी राशि को मालिक/नियोक्ता से चूक की अवधि की विभिन्न अवधि के लिए अलग-अलग दरों पर जुर्माना, हर्जाना लगाकर वसूल सकता है।”

बयान बताता है कि अब तक प्रावधान यह था कि, “दो महीने से कम की चूक अवधि के लिए दंडात्मक प्रभार की गणना 5 फीसद प्रति वर्ष थी, दो महीने और उससे अधिक लेकिन चार महीने से कम की चूक के लिए 10 फीसद, चार महीने और उससे अधिक लेकिन छह महीने से कम के लिए 15 फीसद और छह महीने और उससे अधिक के लिए 25 फीसद की दर से जुर्माना वसूल किया जाता था।” 

अब मोदी सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी की ओर से जारी की गई नई अधिसूचना के मुताबिक, “सभी हरजाने की दरों को घटाकर 1 फीसदी प्रति माह कर दिया है - इसका मतलब यह है कि सभी योजनाओं में प्रति वर्ष 12 फीसदी की कटौती की गई है। यह स्पष्ट रूप से, हमारे कामकाजी लोगों के जीवन को आसान बनाने की कीमत पर व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने के नाम पर किया गया है, जो पहले से ही अपनी मेहनत की कमाई खो रहे हैं।”

बयान आगे यह जानकारी देता है कि, “”यहां यह याद रखना चाहिए कि ईपीएफ/पेंशन के हकदार लगभग 48 करोड़ 70 लाख 9 हज़ार काम करने वाले मजदूरों में से केवल लगभग 11 करोड़ 80 लाख मजदूर ही ईपीएफ के दायरे में आते हैं, जो सरकार के प्रवर्तन तंत्र द्वारा ईपीएफ अधिनियम के नियोक्ता-समर्थक उल्लंघन को उजागर करता है। इसके अलावा, ईपीएफ योजना के अंतर्गत आने वाले लोगों को नियोक्ताओं द्वारा डिफ़ॉल्ट को बढ़ावा देने के माध्यम से और भी अधिक निचोड़ा जा रहा है और इस तरह नियोक्ताओं को जानबूझकर डिफ़ॉल्ट के लिए दंड को काफी कम करके ईपीएफ में श्रमिकों की जीवन भर की बचत का अनधिकृत इस्तेमाल करने की अनुमति दी जा रही है। उन लोगों के प्रति भी डिफ़ॉल्ट बढ़ रहे हैं जिन्हें अधिनियम और कवरेज के तहत लाया गया था।”

बयान कहता है कि इसके अलावा, “कर्मचारी पेंशन योजना, 1995 का पैराग्राफ 5 और ईडीएलआई योजना, 1976 का पैराग्राफ 8ए, ऐसी चूकों के खिलाफ एकमात्र निवारक प्रावधान हैं और इसके अलावा, संप्रभु संसद द्वारा पारित अधिनियम के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए यही एकमात्र साधन थे। अब इन संशोधनों के माध्यम से इसे लगभग समाप्त कर दिया गया है।”

सीआईटीयू दिल्ली ने बयान जारी कर, “केंद्र सरकार से मांग की है कि वह इस मजदूर-विरोधी और नियोक्ता-समर्थक अधिसूचना को तुरंत वापस ले तथा साथ ही मजदूरों और कामकाजी लोगों का आह्वान किया गया है कि वे इन संशोधनों के खिलाफ देश भर में उग्र विरोध प्रदर्शन करने को तैयार रहें।”

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