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पत्रकारों पर बढ़ते हमले क्या आलोचना की आवाज़ दबाने की कोशिश है?

सीपीजे की रिपोर्ट के मुताबिक़ एक दिसंबर 2021 तक दुनिया भर में 293 पत्रकार अपने काम के लिए विभिन्न देशों की जेलों में बंद थे। रिपोर्ट के अनुसार चीन में पत्रकारों की सबसे बुरी स्थिति है, तो वहीं भारत में साल 2018 के बाद इस साल पत्रकारों की मौतें सबसे ज़्यादा हुई हैं।
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Image courtesy : Hindustan Times

देश-विदेश में राजनीतिक, समाजिक उथल-पुथल के बीच भारत सहित दुनियाभर में पत्रकारों को उनके काम के लिए निशाना बनाया जा रहा है। आए दिन उनकी हत्याएं हो रही हैं, उन पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं और तो और उन्हें गंभीर धाराओं के तहत सलाखों के पीछे कैद किया जा रहा है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक एक दिसंबर 2021 तक दुनिया भर में 293 पत्रकार अपने काम के लिए विभिन्न देशों की जेलों में बंद थे। यह लगातार छठा साल है जब 250 से अधिक पत्रकारों के जेल में बंद रहे हैं।रिपोर्ट के अनुसार चीन में पत्रकारों की सबसे बुरी स्थिति है, तो वहीं भारत में साल 2018 के बाद इस साल पत्रकारों की मौतें सबसे ज़्यादा हुई हैं।

इस रिपोर्ट में जेल में बंद पत्रकारों को लेकर भी जानकारी दी गई है। रिपोर्ट की मानें तो पत्रकारों को जेल में डालने के मामले में चीन में स्थिति सबसे भयावह है। भारत की बात करें तो यहां इस समय कुल सात पत्रकार जेल में बंद हैं। सीपीजे ने बताया की जेलों में बंद पत्रकारों की 1992 से शुरू की गई गिनती के बाद से देश में यह सर्वाधिक संख्या है। सात में से पांच पत्रकारों को तो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल भेजा गया है।

बता दें कि कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट हर साल पत्रकारों की स्थिति को लेकर रिपोर्ट जारी करता है। साथ ही समय-समय पर पत्रकारों के लिए सलाह और सुझाव भी जारी करता है। सीपीजे ऐसे लोगों को पत्रकारों के रूप में परिभाषित करता है जो प्रिंट, फोटोग्राफी, रेडियो, टेलीविजन और ऑनलाइन सहित किसी भी मीडिया में काम करते हैं।

क्या कहती है इस साल की सीपीजे रिपोर्ट?

सीपीजे की रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2021 प्रेस की स्वतंत्रता के लिए अच्छा नहीं रहा। इस साल पूरे विश्व में करीब 300 पत्रकारों को उनकी पत्रकारिता को लेकर जेल में डाला गया, जबकि साल 2020 में यह आंकड़ा 280 था। इस साल अभी तक 24 पत्रकारों की मौत हुई है। इन मृतकों में भारत के पुलित्जर विजेता रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी भी शामिल हैं, जिनकी तालिबान ने हत्या कर दी थी।

इस रिपोर्ट में भारत को लेकर कहा गया है कि साल 2018 के बाद इस साल सबसे ज्यादा मौतें पत्रकारों की हुई हैं। जिन पांच पत्रकारों की मौत हुई है उसमें अविनाश झा, बीएनएन न्यूज़ बिहार, चेन्नाकेशवालू, ईवी-5 आंध्र प्रदेश, मनीष कुमार सिंह, सुदर्शन टीवी बिहार, रमन कश्यप, साधना प्लस टीवी उत्तर प्रदेश, सुलभ श्रीवास्तव, एबीपी गंगा, उत्तर प्रदेश के हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया इन पांचों पत्रकारों में से चार पत्रकार स्थानीय टीवी समाचार चैनलों में काम करते थे। इन सभी को उनकी आलोचनात्मक पत्रकारिता के कारण मार दिया गया।

जेलों में डाले गए पत्रकार

सीपीजे ने अपनी रिपोर्ट में जेल में बंद पत्रकारों को लेकर भी जानकारी दी है। पत्रकारों को जेल में डालने के मामले 

में चीन में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। वहां 50 पत्रकारों को जेल में डाला गया है। इसके बाद म्यांमार, तीसरे नबंर पर मिस्र, चौथे पर वियतनाम और पांचवें पर बेलारूस है।

रिपोर्ट में कहा गया कि 1 दिसंबर 2020 तक म्यांमार में कोई पत्रकार जेल में बंद नहीं था, लेकिन तख्तापलट के बाद 26 पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया। ध्यान देने वाली बात यह है कि सीपीजे की रिपोर्ट में सिर्फ इस साल एक दिसंबर तक जेल में बंद पत्रकारों का ही आंकड़ा है, इसमें ये नहीं बताया गया है कि इस पूरे साल में कुल कितनों को जेल में डाला गया और कितने रिहा हुए थे।

भारत में कई पत्रकारों को यूएपीए के तहत जेल भेजा गया

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इस समय सात पत्रकार जेल में हैं, जिसमें कश्मीर नैरेटर के आसिफ सुल्तान, प्रभात संकेत के तनवीर वारसी और पांच फ्रीलांसर- क्रमश: आनंद तेलतुम्बड़े, गौतम नवलखा, मनन डार, राजीव शर्मा और सिद्दीक कप्पन शामिल हैं। सात में से पांच पत्रकारों को तो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल भेजा गया है।

इसी तरह कई चर्चित पत्रकार जैसे कि चीन की 37 वर्षीय पत्रकार झांग झान, जिन्होंने कोरोना वायरस के शुरुआत में चीनी सरकार के दावों के विपरीत वुहान के अस्पतालों में मरीजों की भीड़ दिखाई थी, बेलारूस के पत्रकार रमन प्रतसेविच और खेल पत्रकार ऑलेक्जेंडर इवुलिन इत्यादि जेलों में बंद हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 17 पत्रकारों को साइबर अपराध के आरोप में जेल में डाला गया है। पश्चिम अफ्रीकी देश बेनिन में दो पत्रकारों पर देश के डिजिटल कोड के तहत आरोप लगाए गए हैं, जो मीडिया की स्वतंत्रता पर एक बड़े खतरे के रूप में देखा जाता है। एक दिसंबर तक जेल में बंद 293 में से 40 महिलाएं हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान उत्तरी अमेरिका में किसी पत्रकार को जेल में नहीं डाला गया था।

पत्रकारों पर हमले आवाज़ दबाने की कोशिश है?

गौरतलब है कि इससे पहले न्यूयॉर्क स्थित एक संगठन ‘पोलीस प्रोजेक्ट’ ने भारत में पत्रकारों के खिलाफ हो रही हिंसा पर एक शोध जारी किया था। इसमें बताया गया था कि मई 2019 से अगस्त 2021 तक भारत में लगभग 228 पत्रकारों पर 256 हमले हुए हैं। इन हमलों में वह पत्रकार ज्यादा शिकार हुए हैं जो भारत के दूरदराज के इलाकों में ग्राउंड पर रिपोर्टिंग करते हैं। इन पत्रकारों को फर्जी मामलों में गिरफ्तारी से लेकर हत्या और न जाने कितनी तरह की हिंसा झेलनी पड़ती है।

न्यूयॉर्क की पोलीस प्रोजेक्ट ने अपने विस्तृत अध्ययन के बाद जो आंकड़े निकाले थे, उसके मुताबिक जम्मू कश्मीर में पत्रकारों पर 51 हमले हुए थे, जबकि सीएए कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान 26 बार हमले हुए। दिल्ली दंगों के दौरान 19 और कोरोना वायरस की कवरेज के दौरान 46 बार पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं दर्ज की गईं। किसान आंदोलन के कवरेज से लेकर अलग -अलग विषयों पर पत्रकारिता करने वाले 114 पत्रकारों को हिंसा का शिकार बनाया गया।

भारत में प्रेस की आज़ादी

पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' हर साल 180 देशों की प्रेस फ्रीडम रैंक जारी करती है। इस इंडेक्स में भारत की रैंक लगातार गिरती जा रही है। 2017 में 136वें स्थान के बाद 2020 में भारत 180 देशों में 142वें नंबर पर है। संस्था ने भारत को लेकर कहा था कि साल 2020 में लगातार प्रेस की आज़ादी का उल्लंघन हुआ, पत्रकारों पर पुलिस की हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं का हमला और आपराधिक गुटों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों ने बदले की कार्रवाई की।

इस पर सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट भी किया था कि 'भारत में मीडिया को पूरी स्वतंत्रता है. आज नहीं तो कल हम भारत की प्रेस स्वतंत्रता की ग़लत छवि बनाने वाले सभी सर्वे को एक्सपोज़ करेंगे।' हालांकि देशभर से पत्रकारों पर दर्ज हो रहे अनेक मामले जावड़ेकर के बयान से कतई मेल नहीं खाते। अकेल उत्तर प्रदेश से पिछले डेढ़ साल में कम से कम 15 पत्रकारों के ख़िलाफ़ ख़बर लिखने के मामलों में मुक़दमे दर्ज कराए गए हैं। कई मामलों में पुलिस पर भी ये आरोप लगे कि उन्होंने गिरफ़्तारी के लिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया। बावजूद इसके सरकार जवाब देने की बजाय एक अलग कहानी के साथ पूरे मामले को ही खारिज़ करती नज़र आती है, जो अपने आप में कई बड़े सवाल खड़े करता है।

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