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पर्यावरण की स्थिति पर सीएससी की रिपोर्ट : पर्यावरण विनाश के और क़रीब

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘वैश्विक महामारी कोरोना ने एक दूसरी क्रूर हक़ीक़त को सामने ला दिया है। इस संकट ने ग़रीब-गुरबों पर सबसे बुरा असर डाला है। अनुमान है कि इस महामारी के फ़ैलने से रोज़ाना 12, 000 लोग भूख से मर रहे हैं।
पर्यावरण की स्थिति पर सीएससी की रिपोर्ट : पर्यावरण विनाश के और क़रीब
प्रतीकात्मक चित्र

सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) ने चेतावनी दी है कि वैश्विक महामारी के जारी रहने और पूरे विश्व की बदतर जलवायु प्रणाली के चलते संपूर्ण विश्व ही पर्यावरण विनाश के और क़रीब आता जा रहा है।

सीएसई की यह रिपोर्ट 25 फ़रवरी को ऑनलाइन जारी की गयी थी, जिसमें कहा गया है कि पर्यावरण व्यवस्था में आई गिरावट की वजह से ही सारी दुनिया को कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी झेलनी पड़ी है। इसी तरह की एक और महामारी का सामना भी थोड़े ही दिन करना पड़ेगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2040 की नौजवान पीढ़ी निम्न मानवीय पूंजी के साथ बौनी होगी। वैश्विक महामारी के दुष्प्रभाव से उपजी यह स्थिति दुनिया के देशों के लिए सर्वाधिक विकासात्मक चुनौती होगी।

रिपोर्ट में बताया गया है कि “वैश्विक महामारी कोरोना ने एक अन्य बेरहम हक़ीक़त को उजागर कर दिया है। इस संकट ने ग़रीब-गुरबा पर सबसे बुरा असर डाला है। अनुमान है कि इस महामारी के फ़ैलने से रोज़ाना 12, 000 लोग भूखों मर रहे हैं।”

इस रिपोर्ट में कोविड-19 नाम के एक अध्याय में कहा गया है: इस तरह, बड़े पैमाने पर औद्योगिक पशुपालन के लिए वनों की कटाई हमारे भविष्य के ज़्यादातर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इन वायरस को दावत देने की तरह इसलिए है, क्योंकि ये उपकरण तांबा, निकल,  चांदी और कोबाल्ट जैसे धातुओं और खनिजों की खानों से निकाली गयी सामग्री से बने होते हैं। इनमें से ज्यादातर खदानें उन पुराने जंगलों में हैं, जिन्हें साफ़ किये जाने की ज़रूरत होगी और वहां खनन शुरू करने के लिए प्राकृतिक वास को तबाह करना होगा। इस तरीक़े से आख़िरकार हम स्वयं को वायरस के क़रीब ले जाते हैं।”

सीएसई की निदेशक, सुनीता नारायण ने कहा,  “हम इस समय जिन बहुस्तरीय संकट को झेल रहे हैं,  उनमें से एक वैश्विक महामारी भी है, जो अभी जारी है। इसी दरम्यान, पर्यावरण संकट पर ध्यान केंद्रित करना बेहद अहम है, जो लोग पिछड़े समुदायों से हैं, वे इस जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को झेलने वालों में अगली क़तार में हैं, यह स्थिति उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा बेसहारा कर दे रहा है।”

इस रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि किस तरह मौजूदा जलवायु संकट ने हाशिये पर पड़े समुदायों की क़ीमत पर एक नयी क़िस्म की निराश्रितता पैदा कर दी है। कई सारे कामगारों की रोज़ी-रोटी औद्योगिकरण से चलती है। यह रास्ता संसाधनों का सीमित इस्तेमाल करने और प्राकृतिक पारिस्थितिकी को फिर से जीवित करने का है। इसका मतलब संसाधनों का इस्तेमाल खास जबावदेही से किया जाना चाहिए औऱ इस्तेमाल करने के बाद उस क्षेत्र के मूल गौरव के अनुरूप ही उन संसाधनों को संरक्षित करना चाहिए। शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है और उसके बनिस्बत जैवविविधता में लगातार गिरावट आ रही है।”

इस रिपोर्ट को पेश किये जाने के मौक़े पर ओडिशा के वाइल्ड लाइफ़ ऑफ़ सोसाइटी के सचिव, विश्वजीत मोहंती ने कहा कि इसके पहले भारत की पारिस्थितिकी और पर्यावरण ने लोलुप कॉरपोरेट के स्वार्थों के चलते कभी ऐसा भारी दबाव और पतन कभी नहीं झेला है,  जितना कि आज झेल रहा है। पारिस्थितिकी के नुकसान में जो  बढ़ोत्तरी हो रही है, वह अक्षम्य है औऱ जिसकी कभी भी भरपाई नहीं हो सकती है। बैलेंस शीट मोटा करने के लिए क़ानून को ताक पर रख दिया गया है, जबकि हमारे नीति-निर्माता और नियामक चुप हैं।”

पिछले साल बेहद नाज़ुक पारिस्थितिकी वाले क्षेत्र में कॉरपोरेट घरानों की परियोजना के चलते पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को आसान बनाने के नरेन्द्र मोदी सरकार के फ़ैसले के विरुद्ध एक जबर्दस्त अभियान चलाया गया था।

सीएसई ने पर्यावरण मंज़ूरी (ईसी) की प्रक्रिया की आलोचना की है और इसे सुगठित करने (कारोबार को आसान बनाने के लिए) और मजबूती (पर्यावरण और सामाजिक एकजुटता के लिए) प्रदान करने के लिए कुछ उपाय भी सुझाए हैं। इनमें से कुछ समेकन मंजूरी-पर्यावरण, वानिकी, वन्यजीवन,  तटवर्ती क्षेत्र से सम्बन्धित हैं औऱ इसके दस्तावेज़ को सार्वजनिक किये जाने की बात है,  ताकि परियोजना के प्रभावों को पूरी तरफ समझा जा सके और उसके मुताबिक़ समय पर फैसला लिया जाये। संबद्ध क्षेत्र में परियोजना का आकलन वहां के लोगों के सरोकारों को खुले दिमाग़ में रखते हुए किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट में कहा गया है: “इस समय, ये कमेटियां यह सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं कि मंज़ूर परियोजना का उस क्षेत्र के पर्यावरण पर किसी किस्म का गंभीर दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। वे परियोजना से सम्बन्धित सूचनायें बार-बार मांग कर मंज़ूरी के काम को लटकाती हैं या,  वे शर्तों की एक सूची के साथ जनाबूझकर अपनी मंजूरी दे देती हैं कि इन शर्तों की निगरानी नहीं की जायेगी या फिर, वे व्यावहारिक नहीं हो सकतीं।”

इस त्वरित औद्योगिकरण के बीच, भारत के ऊर्जा संयंत्र ने 2022 के बाद के नये मानकों के लिए अंतिम तिथि को बढ़ाने की पहले ही अपील कर रखी है। सीएसई की अध्ययन रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि देश के 70 फ़ीसदी ऊर्जा संयंत्र 2022 के बाद के मानकों को पूरा नहीं कर सकते। रिकवरी पैकेज ने निजी निवेश के लिए और कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक खनन को बढ़ाने के लिए कारोबार को आसान बनाने तथा उसके अंतिम उपयोग पर लगी बंदिशों को हटाने का आह्वान किया है। कोयले की अवशेष सामग्री के सिलसिले में ये नियम हटा लिये गये हैं। इससे बाजार में गंदे और सस्ते कोयले की भरमार हो जाएगी,  जिससे देश की आबादी और भी असुक्षित हो जायेगी और प्राकृतिक संसाधन भी खतरे में पड़ जायेगा। कार्यकर्ता और पत्रकार, पेट्रीसीया मुखीम ने मेघालय में खदान की दशा पर विचार करते हुए कहा, “इसे ऐसे पेश किया जा रहा है कि वहां कोई खनन नहीं हो रहा है, लेकिन धरातल पर कोयले का खनन बिना किसी क़ायदे-क़ानून के धड़ल्ले से हो रहा है। खनन गतिविधियों की वजह से अम्लीय बारिश हो रही है, जो नदी प्रणाली को प्रदूषित कर रही है।”

रिपोर्ट में भविष्य के उन उपायों पर भी विचार किया गया है,  जिनमें भूभाग के संरक्षण की नैतिकता,  खाद्यान्न उत्पादन की कृषि-पारिस्थितिकी पद्धति और उसके नियंत्रित अग्नि हस्तक्षेप आदि अन्य अनेक तरीक़े शामिल हैं। धरती के प्रति न्याय सुनिश्चित हो इसके लिए रिपोर्ट में देशज समुदायों को इस प्रक्रिया में ख़ास तौर पर शामिल करने पर ज़ोर दिया गया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

CSE’s State of Environment Report: Inching Closer to Ecological Disasters

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