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‘भांग कोई ख़तरनाक मादक पदार्थ नहीं’,संयुक्त राष्ट्र की इस नयी धारणा का क्या मायने ?

35 सालों बाद राष्ट्रों के वही समूह (जिसने पहले इस पर प्रतिबंध लगा दिया था) अलग-अलग कारणों से इस मुद्दे को उठा रहे हैं, और हमें इन नियमों का आंख मूंदकर अनुसरण नहीं करना चाहिए और उनके मुताबिक़ अपने क़ानूनों में बदलाव भी नहीं लाना चाहिए।
भांग

कुछ साल पहले सियोल में आयोजित मेयर कांग्रेस में वैंकूवर की एक पूर्व महापौर ने मुझे बताया था,"मैंने अपनी बेटी को उच्च अध्ययन के लिए कैलिफ़ोर्निया भेज दिया है।" मेरे लिए उनका यह बयान थोड़ा झटका देने वाला था। मैंने उनसे पूछा कि उसका क्या मतलब है। क्या उन्होंने सही में अपनी बेटी को 'मारिजुआना' का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया है ? उन्होंने इसका जवाब यह कहते हुए हां में दिया था कि वह किसी भी उन अन्य किसी भी नशीले पदार्थों की जगह भांग (मारिजुआना के कई नामों में से एक) का सेवन करे,जो उसे हिंसक बना सकते हैं। उन्होंने कहा,"कम से कम मारिजुआना उसे हिंसक नहीं बनायेगी,और इसके अलावा यह जैविक भी है।"

मेरा उनके इस कथन के गुण-दोष पर टिप्पणी करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन यह एक क्रूर सचाई है कि दुनिया भर में क़ानूनी और ग़ैर-क़ानूनी तौर पर मारिजुआना का व्यापक रूप से सेवन किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय गलियारों में हुए हाल के घटनाक्रमों ने इस मुद्दे पर दुनिया भर के ध्यान को खींचा है।

2 दिसंबर, 2020 को अपने 63 वें सत्र में संयुक्त राष्ट्र ने "दवा की औषधीय और चिकित्सीय क्षमता को मान्यता देने के सिलसिले में अपना दरवाज़ा खोल दिया है,हालांकि ग़ैर-चिकित्सा और ग़ैर-वैज्ञानिक मक़सदों के लिए इसका इस्तेमाल अवैध बना रहेगा।" यहां तक कि भारत ने भी इसके इस नये वर्गीकरण को लेकर अपना समर्थन दिया है। यह फ़ैसला संयुक्त राष्ट्र के कमिशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स (CND) की ओर से लिया गया था। अब माना जा रहा है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और भारत में भी भांग को विनियमित करने के तरीक़े में बदलाव आयेगा।

भांग को 1961 के मादक पदार्थ पर आयोजित सिंगल कन्वेंशन की अनुसूची IV से हटा दिया गया है। भांग और उसके राल को इस अनुसूची और इसके "सख़्त नियंत्रण की कार्यवाही उपायों" से हटा दिया गया था। इससे पहले, औषधीय मक़सदों के लिए भी भांग के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया गया था। हालांकि, 50 से ज़्यादा देशों ने औषधीय उपयोग को लेकर भांग के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है और तक़रीबन 15 ने मनोरंजक इस्तेमाल के लिए भी अनुमति दे दी है; ऐसे देशों में उरुग्वे, कनाडा (बाद में) और अमेरिका के कुछ राज्य शामिल हैं।

क्या यह पौधा ही आपराधिक है ? भारत के लिए इसका क्या मतलब ?

1961 में मादक पदार्थों पर हुए सिंगल कन्वेंशन के मुताबिक़ मारिजुआना को नियंत्रित किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश "इसकी खेती,उत्पादन,निर्माण,निष्कर्षण,इसे तैयार करने, रखने, किसी को इसकी पेशकश करने,इसकी बिक्री, वितरण, ख़रीद, इसे बेचने की पेशकश,किसी भी शर्तों पर इसकी आपूर्ति, दलाली,इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने,इसके प्रचार-प्रसार,परिवहन, इसके आयात-निर्यात को अपराधिक ठहरा दिया था। इनके आयात और निर्यात” को आपराधिक माना था।

राजीव गांधी सरकार ने एनडीपीएस (मादक दवा एवं नशीले पदार्श) अधिनियम, 1985 को दंडात्मक प्रावधानों के साथ पारित किया था, इसका इस्तेमाल उन लोगों के ख़िलाफ़ होना था,जिनके पास मादक और नशीले  पदार्थ पाये जाते हैं या जो उन्हें बेचते हैं या फिर जो इनका उत्पादन करते हैं।

देश में हर साल इस एनडीपीएस अधिनियम के तहत हज़ारों मामले दर्ज होते हैं। यह पता लगाना मुश्किल है कि उपरोक्त मामलों में से कितने सिर्फ़ भांग का सेवन, उत्पादन या बिक्री से जुड़े थे। हालांकि,यह कहना भी मुश्किल है कि दर्ज होने वाले मामलों की संख्या हर साल होने वाले इस तरह के मामलों का एक बड़ा हिस्सा हो।

एनडीपीएस अधिनियम के तहत,भांग पैदा करना भी एक ऐसा अपराध है, जो एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है,जहां इस पौधे का ख़ुद-ब-ख़ुद पैदा होना भी आपराधीक हो जाता है। हालांकि,अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में दाखिल हुए बिना भी शिमला में मादक पदार्थों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने वालें यह मान बैठे कि सीएनडी के 63 वें सत्र के इंतज़ार की भी ज़रूरत नहीं है। एनडीपीएस अधिनियम भांग के कुछ ख़ास तरह के इस्तेमाल की अनुमति देता है।

एनडीपीएस अधिनियम की धारा 14 के मुताबिक़:

14.भांग से सम्बन्धित विशेष प्रावधान: धारा 8 में निहित किसी भी चीज़ के बावजूद,सामान्य या विशेष आदेश और ऐसी शर्तों के अधीन,जो ऐसे आदेश में निर्दिष्ट किये जा सकते हैं, सरकार सिर्फ़ औद्योगिक उद्देश्यों के लिए फ़ाइबर या बीज हासिल करने या बाग़वानी उद्देश्यों के लिए किसी भी तरह के भांग के पौधे की खेती की अनुमति दे सकती है।

देश में एक के बाद एक आती सरकारें इस धारा के उस पहलू पर गौर नहीं करती रही हैं, जो चिकित्सा / औद्योगिक और यहां तक कि बाग़वानी के मक़सद के लिए भांग उगाने की अनुमति देती है। बल्कि, जितनी भी सरकारें आयी हैं,सबने भांग के हर पहलू को आपराधीक बना दिया है।

किसानों की ज़बरदस्त मांग

जब मैं अखिल भारतीय किसान सभा का हिमाचल प्रदेश इकाई का अध्यक्ष था, तो बहुत सारे किसान बाग़वानी और कृषि या कृषि से जुड़े उद्देश्यों के लिए भांग के उत्पादन को वैध करने की मांग किया करते थे। राज्य में और यहां तक कि राज्य की विधानसभा में भी चुने हुए विधायकों की ओर से कई बार यह मांग उठायी गयी थी, लेकिन संघीय क़ानून के चलते राज्य स्तर पर कुछ भी नहीं किया जा सका।

भांग को एनडीपीएस अधिनियम के दंडात्मक प्रावधानों के तहत लाये जाने के पहले तक किसान इसे घरेलू इस्तेमाल के लिए व्यापक रूप से उगाया करते थे। उनका कहना है कि इसकी जड़ों से लेकर बीज तक, इस पौधे का हर हिस्सा उपयोगी है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक़,पौधे की जड़ों का उच्च औषधीय महत्व है और इसका उपयोग ज़बरदस्त विकृति के शिकार हो चुके रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है। इस पौधे के तने का इस्तेमाल ऐसे जूते बनाने के लिए किया जाता है,जिसे सर्दियों के दौरान पहना जाता है और इससे रस्सी भी बनायी जाती है, जिसका गांवों में कई तरह से इस्तेमाल होता है; उच्च प्रोटीन मूल्य वाले इसके बीजों से चटनी बनाकर खायी जाती है या इसका इस्तेमाल सिद्दू (स्थानीय मोमोज) में भी  किया जाता है। इसलिए, इस पौधे को किसान अपने लिए ज़रूरी मानते हैं।

भांग के इस्तेमाल के सिलसिले में भारत सरकार का इरादा किस तरह के बदलाव लाने का है,इसे भी देखा जाना अभी बाक़ी है, लेकिन किसी भी तरह का फ़ैसला लेने से पहले इस पर व्यापक विचार-विमर्श की ज़रूरत है। एक अन्य क्षेत्र,जिस पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है वह इसका मनोरंजन के लिए इस्तेमाल होने वाला पहलू है। कुल्लू स्थित मलाणा गांव में सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले भांग का उत्पादन होता है, इस गांव को पूरे देश में मनोरंजन के लिए इस्तेमाल होने वाली इस भांग की अवैध आपूर्ति के लिए जाना जाता है।

सवाल है कि किस हद तक का मनोरंजन हितकारक  है ? इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है। हमें अमीर देशों के दावे का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। हम देख चुके हैं कि मादक पदार्थों पर रीगन की लड़ाई के दौरान हम (राजीव गांधी के तहत भारत सरकार) इसे एनडीपीएस अधिनियम के तहत किस तरह ले आये थे और फिर कृषि-बाग़वानी के उद्देश्यों को लेकर भी की जाने वाली भांग की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था।

35 वर्षों के बाद देशों का वही समूह अलग-अलग कारणों से इस मुद्दे को उठा रहा है,और हमें आंख बंद करके उन नियमों का पालन नहीं करना चाहिए और उनके मुताबिक़ हमें अपने क़ानूनों में बदलाव नहीं लाना चाहिए। हमारे उपभोग के सांस्कृतिक और पारंपरिक तरीक़े उनसे काफ़ी अलग हैं।

मसलन,मनोरंजन की ख़ातिर धूम्रपान में भांग का इस्तेमाल करना,यह इस्तेमाल उन पहाड़ों में वर्जित नहीं है, जहां परिवार में हर कोई एक साथ धूम्रपान करता है,इस प्रकार इसके इस्तेमाल और इसकी पहुंच को सीमित करता है। वे ऐसा ज़माने से करते आ रहे हैं। युगों पुराने ज्ञान में विष को दूर करने वाले ऐसे पारंपरिक औषधि हैं, जो कम से कम नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि,इसके व्यावसायिक इस्तेमाल से असीमित आपूर्ति की समस्या पैदा हो सकती है, जिससे कि युवा पीढ़ी ख़तरे में पड़ सकती है।

इस सचाई से तो नहीं मुकरा जा सकता है कि युवा पीढ़ी को इसके इस्तेमाल का मौक़ा दिया जाना चाहिए, लेकिन कुछ मापदंड भी ज़रूरी है, क्योंकि इसके बिना जो नुकसान होगा,उसकी भरपाई नहीं हो सकती है।

इस तरह,अंतर्राष्ट्रीय फलक पर इस बदलाव का भारत के लिए क्या मतलब है ? हम निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकते। हमें इसके लिए इंतज़ार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस सिलसिले में व्यापक विमर्श के ज़रिये ही किसी तरह का कोई बदलाव लाया जाये।

लेखक शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Cannabis ‘Not a Dangerous Narcotic’. What does the UN Reclassification Mean?

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