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विश्व स्वास्थ्य सभा 2020 : क्या हम COVID-19 से दुनिया को बचाने के लिए पर्याप्त क़दम उठा रहे हैं?

इस महामारी के दौर में सभी देशों को दवाइयों और दूसरे स्वास्थ्य उपकरणों की बराबर ज़रूरत है। लेकिन फिर भी WHO के नेतृत्व में एक तेज़-तर्रार वैश्विक प्रशासनिक ढांचे को बनाने में यह देश नाकामयाब रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य सभा 2020
Image Courtesy: Pixabay

नीचे लिखा आलेख 'WHO वॉच कार्यक्रम' का हिस्सा है, जो 'पीपल्स हेल्थ मूवमेंट' द्वारा चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम स्वास्थ्य के वैश्विक प्रशासन का लोकतांत्रिकरण करता है। इसमें हर साल युवा एक्टिविस्ट्स को 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' की प्रशासकीय परिषद की बैठकों, जनवरी में होने वाली कार्यकारी बोर्ड की बैठक और मई में 'विश्व स्वास्थ्य सभा' पर नज़र रखने का मौक़ा दिया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) 18 मई से शुरू हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस वार्षिक कार्यक्रम में सदस्य देशों की सरकारें, नागरिक संगठन, वैक्सीन गठबंधन, फॉर्मा लॉबी समूह और छात्र संगठन हिस्सा लेते हैं। सामान्य स्थिति में एक हफ़्ते चलने वाले इस कार्यक्रम में राज्य और गैर-राज्य तत्वों को एक साथ आकर स्वास्थ्य नीतियों पर चर्चा करने का मंच और मौका मिलता है। विश्व स्वास्थ्य सभा से गरीब़ देशों को ऐसे वैश्विक प्रशासन के लिए दबाव बनाने का ज़रिया मिलता है, जिससे उनके हितों को भी साधा जा सके।

इस साल सभा की बैठक एक अभूतपूर्व समय में हो रही है। दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में है। हर गुज़रते दिन के साथ संक्रमण के मामले और जान गंवाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहले इस कार्यक्रम को चार दिनों के लिए तय किया गया था, लेकिन अब इसे घटाकर दो दिन कर दिया गया है। कार्यक्रम से COVID-19 को छोड़कर सभी मुद्दों को हटाया जा चुका है। इस दौरान डायरेक्टर जनरल और कुछ राष्ट्र प्रमुखों के भाषण भी होंगे, जो पहले से नियमित होते आए हैं।

लेकिन इस महामारी के दौर में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में दुनिया के देश एक वैश्विक प्रशासनिक ढांचा बनाने में नाकाम रहे हैं, जिससे ज़रूरी दवाइयों और दूसरे स्वास्थ्य उत्पादों की सभी को आपूर्ति हो सकती। वक़्त के साथ WHO कमजोर हो रहा है। संगठन ने जितने पैसे अनुमान लगाया था, उसमें कमी आ रही है, इससे संगठन की स्वतंत्र निर्णय लेने की ताकत कम हो रही है। देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों के बढ़ने से भी WHO का प्रभाव घटा है। हाल में अमेरिका ने WHO पर चीन के पक्ष में जाकर गलत जानकारी को फैलाने का आरोप लगाया। इससे भी संगठन कमजोर हुआ है।

आज स्वास्थ्य पर एक वैश्विक नेतृत्व की सबसे ज़्यादा जरूरत है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य सभा अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। इस सभा के अहम फ़ैसले यूरोपियन यूनियन द्वारा लाए गये एक प्रस्ताव के मसौदे के आधार पर लिए जाएंगे, जिसे 35 देशों ने समर्थन दिया था। यह प्रस्ताव का यह मसौदा कमजोर है, क्योंकि इसमें कोरोना पर तकनीकी ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए स्वैच्छिक इच्छा की बात है, जबकि सभी देशों में स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य प्रावधान किए जाने थे। 

स्वैच्छिक पूल एक गैर-जवाबदेही वाला तंत्र है। इसमें उत्पादक कंपनी उत्पाद को अपने हिसाब से पूल में ज़मा करती है। अपने पेटेंट को इस पूल में डालने या न डालने का फ़ैसला भी कंपनी की मनमर्जी पर निर्भर करता है। कुलमिलाकर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को उनके हिसाब से पहले की तरह ही व्यापार करने दिया जा रहा है। अमेरिकी फॉर्मास्यूटिकल कंपनी जाइलीड (Gilead) ने 127 देशों में बेचने के लिए पांच जेनरिक कंपनियों को अपने दवा उत्पाद 'रेमडेसिविर' को स्वैच्छिक लाइसेंस दिया है। लेकिन इन 127 नाम में ऐसे देशों को छोड़ दिया गया, जहां कोरोना ने सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया। इससे जाइलीड का इन देशों में एकाधिकार हो जाएगा। वह मनमुताबिक़ इस दवा की कीमत वसूल सकेगी। इस तरह की बुरी मंशा से बनाए गए ढांचे को बदलने के लिए हमें ज़्यादा तेज-तर्रार वैश्विक प्रशासन की जरूरत है।

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए मुख्य रणनीति के तौर पर अपनाए जा रहे लॉकडॉउन के प्रभावों पर मसौदे में कुछ नहीं कहा गया। बड़े पैमाने पर लागू किए जा रहे लॉकडॉउन से गरीब़ और वंचित तबके के लोगों में भूख, बेरोज़गारी, घरेलू हिंसा और पुलिस मनमानियों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। क्यूबा, ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों से उन्हें स्वास्थ्य उपकरण खरीदने में परेशानी हो रही है। इससे इन देशों में स्वास्थ्य संकट पैदा हो गया है। फिलहाल जारी प्रक्रिया में अमेरिका के इस व्यवहार पर कुछ नहीं कहा गया है।

एक दूसरी चिंता की बात बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन (BMGF), CEPI, गावी, द वैक्सीन अलायंस, ग्लोबल फंड, UNITAID, वेलकम ट्रस्ट और WHO द्वारा शुरू किया गया ''एक्सेस टू COVID-19 टूल्स या ACT'' कार्यक्रम है। ईयू समेत कनाडा, जापान और ब्रिटेन जैसे कई अमीर देशों ने ACT में 8 बिलियन डॉलर देने का ऐलान किया है। लेकिन ACT में विकासशील देशों को छोड़ दिया गया है। विश्व स्वास्थ्य सभा के एक महीने पहले लॉन्च हुए ACT कार्यक्रम में WHO की भूमिका महज़ एक हिस्सेदार भर की है।

यहां कोस्टारिका और WHO द्वारा जारी किया गया एक प्रस्ताव ध्यान देने वाला है, जिसमें टेक्नोलॉजिकल पूल को शुरू करने के लिए कहा गया है। प्रस्ताव की भीतरी जानकारी और दूसरी बातें इस महीने के आखिर तक सामने आएंगी। 

यह सभी चीजें वैश्विक प्रशासनिक ढांचे के ढहने की घटना को दिखाती हैं। नए कार्यक्रमों में नागरिक समूहों को पूरी तरह हाशिए पर डाल दिया गया है, जिससे इनका झुकाव ताक़तवर लोगों की तरफ हो गया है। कई अहम हित वाले कार्यक्रमों में WHO को सिर्फ़ हिस्सेदार बनाकर छोड़ दिया गया है। एक कठिन समय में जब WHO सभी संसाधनों का समान बँटवारा कर सकता था, तब संगठन को इन कार्यक्रमों में कोई नेतृत्वकारी भूमिका नहीं दी गई। बहुपक्षीय समझौतों की जगह पर अब हम अलग-अलग हितधारकों के बीच समझौते देख रहे हैं, जिनमें ग़रीबों और वंचित तबक़ों की आवाज़ के लिए कोई जगह नहीं है।

WHO के पास कई ऐसे दस्तावेज़ हैं, जिनपर सदस्य देशों ने बहुत विचार-विमर्श कर सहमति दी है। इनमें से बहुत सारे पारदर्शिता लाने वाले समझौते हैं। साथ में ''सार्वजनिक स्वास्थ्य, नवोन्मेष और बौद्धिक संपदा पर वैश्विक रणनीति और योजना (GSPoA)'' का भी प्रस्ताव है। UN महासचिव द्वारा ''दवाइयों की पहुंच'' पर गठित उच्च स्तरीय पैनल भी इस मुद्दे पर गहराई से बात करता है। आज कोरोना वायरस की रोकथाम, इलाज़ और प्रबंधन को दिशा देने के लिए इन दस्तावेज़ों में बताए गए मूल्यों को केंद्र में होना चाहिए।  अब जरूरी है कि अनिवार्य समझौतों के तहत कार्रवाई करने के लिए WHO को नेतृत्व दिया जाना चाहिए।

यह लेख बेन एडर (ब्रिटेन), गार्गेया तेलाकपल्ली (भारत), माइक स्सेमाकुला (यूगांडा), ओसामा उमर (भारत), कृति शुक्ला (भारत), मैथ्यूज़ ज़ेड फ़ाल्काओ (ब्राजील), सोफ़ी गेप (जर्मनी) और नटाली रोह्ड्स (ब्रिटेन) के योगदान से लिखा गया है।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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