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नई पार्टी बना कर कैप्टन खुद का और मनप्रीत बादल का इतिहास दोहराएंगे!

पंजाब का राजनीतिक मिज़ाज, वहां के मौजूदा राजनीतिक हालात और खुद अमरिंदर सिंह का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि अगर कांग्रेस ने अपनी अंदरुनी कलह पर जल्दी ही काबू पा लिया तो कैप्टन के इस दांव से कांग्रेस की सत्ता में वापसी की राह आसान हो जाएगी।
PANJAB

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से बाहर निकल कर 'पंजाब लोक कांग्रेस’ के नाम से अपनी अलग पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। यह ऐलान वे पहले ही कर चुके हैं कि उनकी नई पार्टी पंजाब विधानसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के साथ तालमेल करके लडेगी। 80 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह की इस नई पहलकदमी को कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका बताते हुए उसकी चुनावी संभावनाओं के लिए नुकसानदेह बता रहा है। अपने को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से आहत खुद कैप्टन का मुख्य लक्ष्य भी आने वाले चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करना ही है। लेकिन पंजाब का राजनीतिक मिजाज, वहां के मौजूदा राजनीतिक हालात और खुद अमरिंदर सिंह का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि अगर कांग्रेस ने अपनी अंदरुनी कलह पर जल्दी ही काबू पा लिया तो कैप्टन के इस दांव से कांग्रेस की सत्ता में वापसी की राह आसान हो जाएगी।

यह पहला मौका नहीं है जब अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी बना कर पंजाब में अपनी ताकत आजमाने जा रहे हैं। अपने करीब पांच दशक के राजनीतिक सफर वे पहले भी ऐसा प्रयोग कर चुके हैं और उसके असफल होने पर कांग्रेस में लौटे थे। अलग पार्टी बनाने का पहला प्रयोग उन्होंने 1992 में शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर किया था। गौरतलब है कि कैप्टन ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार यानी स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्रवाई से क्षुब्ध होकर कांग्रेस छोड़ दी थी और अकाली दल में शामिल हो गए थे। बाद में अकाली दल से अलग होकर ही उन्होंने अपनी नई पार्टी बना कर खुद को आजमाया था लेकिन बुरी तरह नाकामी हाथ लगने पर फिर से कांग्रेस में लौट आए थे।

इस बार भी जिन हालात में कैप्टन नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, उसमें ज्यादा संभावना इसी बात की है कि वे न सिर्फ अपना बल्कि दस साल पुराना मनप्रीत बादल का इतिहास भी दोहराएंगे। गौरतलब है कि मनप्रीत बादल ने 2012 में शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर और अपनी अलग पार्टी बना कर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और करीब साढ़े चार दशक बाद पहली बार किसी पार्टी के लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने का रास्ता साफ किया था। उससे पहले तक पंजाब में हर चुनाव में कांग्रेस और अकाली दल बारी-बारी से सत्ता में आते-जाते रहे थे।

मनप्रीत बादल पंजाब के सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले सरदार प्रकाश सिंह बादल के भतीजे हैं और 2007 में बनी बादल सरकार में वित्त मंत्री थे। इस तरह अपने चाचा की सरकार में उनकी हैसियत नंबर दो के मंत्री की थी। वे चाहते थे कि प्रकाश सिंह बादल के बाद पार्टी की कमान उनके हाथ में आए और वे मुख्यमंत्री बने लेकिन उनको पता था कि ऐसा होगा नहीं और अकाली दल की कमान सुखबीर बादल के हाथ में ही जाएगी। इसलिए उन्होंने अपने चाचा के खिलाफ बगावत करके पंजाब पीपुल्स पार्टी बनाई थी और 2012 का विधानसभा का चुनाव लड़ा।

मनप्रीत बादल के अलग पार्टी बना कर चुनाव लड़ने का अकाली दल को यह फायदा हुआ था कि सरकार विरोधी वोटों का उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच बंटवारा हो गया था, जिससे अकाली दल अपने वोट घटने के बावजूद लगातार दूसरी बार सत्ता में आ गया था। मनप्रीत बादल की पार्टी एक भी सीट नही जीत पाई थी।

तो जो काम 2012 में अकाली दल के लिए मनप्रीत बादल ने किया था, वही काम इस बार कांग्रेस के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह करेंगे। अगर अमरिंदर सिंह अकेल चुनाव लड़ने का फैसला करते तो शायद कांग्रेस को फायदा पहुंचने की संभावना नहीं रहती, क्योंकि आखिर साढ़े चार साल तक तो पंजाब में उन्होंने ही सरकार चलाई है, इसलिए सरकार से नाराज वोट उनको नहीं मिलते। लेकिन चूंकि वे भाजपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे, इसलिए सरकार विरोधी वोटों का एक हिस्सा उनके खाते में भी जाएगा। ऐसा होने पर सीधा फायदा कांग्रेस को होगा। गौरतलब है कि पंजाब में कांग्रेस का मुख्य मुकाबला अकाली दल और आम आदमी पार्टी से है। अगर इन दोनों पार्टियों में से किसी भी एक की तरफ सरकार विरोधी वोट का ध्रुवीकरण होता तो कांग्रेस को नुकसान होता, लेकिन अब अमरिंदर-भाजपा गठजोड के मैदान में होने से ऐसा नहीं हो सकेगा।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास जाट सिक्ख वोट के अलावा दूसरी पूंजी नहीं है और वही वोट अकाली दल की भी पूंजी है और उसी वोट का एक हिस्सा आम आदमी पार्टी के साथ भी रहा है। अगर कैप्टन और भाजपा का गठबंधन इस वोट में सेंध लगाता है और चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में दलित मुख्यमंत्री बनाए जाने से अगर 32 फीसदी दलित वोट एकमुश्त कांग्रेस को मिलता है और 31 फीसदी ओबीसी वोट का कुछ हिस्सा भी कांग्रेस के साथ जाता है तो वह दोबारा चुनाव जीत सकती है। सूबे में मुस्लिम और ईसाई आबादी तीन फीसदी से कुछ ज्यादा है। उसका वोट भी कांग्रेस के साथ ही जाएगा।

हालांकि अमरिंदर सिंह अपनी नई पार्टी की संभावनाओं को लेकर बहुत ज्यादा आशान्वित हैं। उन्हें लगता है कि उनकी नई पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस का एक बडा हिस्सा उनके साथ आ जाएगा। लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है, फिर भी कांग्रेस सतर्क है। पार्टी के नए प्रभारी और प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी उन नेताओं की सूची बना रहे हैं, जो कांग्रेस छोड कर कैप्टन की पार्टी में जा सकते हैं। जिस नेता के बारे में जरा भी यह संदेह है कि वह कैप्टन के साथ जा सकता है, उससे बात की जा रही है और शिकायतों और नाराजी को दूर करने की कोशिश की जा रही है। इस काम में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी प्रमुख रूप से जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने मंत्रियों और पार्टी विधायकों की आपात बैठक भी बुलाई है। इससे पहले पिछले दिनों राहुल गांधी ने भी मुख्यमंत्री चन्नी ओर उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को दिल्ली बुला कर उनसे पार्टी के मसलों पर बात की थी।

कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि कैप्टन के साथ जाने वाले संभावित नेताओं की सूची बहुत लंबी नहीं है। जो नेता विभिन्न कारणों से नाराज हैं, उनमें से भी बहुत कम कैप्टन के साथ जाना चाहते हैं। पार्टी के विधायकों में तो दो-तीन ही ऐसे हैं जो कैप्टन के साथ जा सकते हैं। इस सिलसिले में पंजाब के अखबार अजीत समाचार में छपी खबर के मुताबिक कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि अगर कैप्टन में हिम्मत होती तो वे पत्नी और पटियाला से कांग्रेस की सांसद परनीत कौर से ही इस्तीफा दिलवा कर उनको उपचुनाव लड़ाने और जिताने की चुनौती स्वीकार कर लेते।

अगर कैप्टन ऐसा करते तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता था और ज्यादा लोग पार्टी छोड कर उनके साथ जा सकते थे। लेकिन ऐसा करने के बजाय कैप्टन ने तो अपनी अलग पार्टी का ऐलान करने के साथ ही यह भी साफ कर दिया है कि उनकी पत्नी कांग्रेस की सांसद है और वे कांग्रेस नहीं छोड़ रही हैं। कैप्टन के इस बयान के बाद तो कांग्रेस के दूसरे नेताओं के उनके साथ जाने की संभावना और भी कम हो गई है।

कुल मिलाकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बनाने से कांग्रेस को नुकसान के बजाय फायदा ही होने वाला है, बशर्ते प्रदेश कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू की वजह से जारी अंदरुनी कलह थम जाए और पार्टी एकजुट होकर चुनाव में उतरे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

 

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