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केंद्र सरकार की सहमति से बरी हुए बिलक़ीस के अपराधी, पहले भी सालों तक रहे थे जेल से बाहर

गुजरात सरकार के मुताबिक बरी होने से पहले इन दोषियों ने जो समय जेल से बाहर बिताया है वो करीब तीन साल से ज़्यादा का है। वहीं 58 साल के रमेश चांदना ने करीब चार साल बाहर बिताए हैं।
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स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं के सम्मान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण और उसी दिन गुजरात दंगों की पीड़ित बिलकिस बानो को 11 दोषियों की रिहाई का मामला लगातार सुर्खियों में है। मंगलवार, 18 अक्तूबर को इस रिहाई के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं की सुनवाई में अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि सभी दोषियों को फिर से जेल भेजा जाए। ये याचिकाएं सेवानिवृत प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, पूर्व सांसद सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोहुआ मोइत्रा और स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। गुजरात सरकार की ओर से दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हलफनामा दिया है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने सोमवार, 17 अक्तूबर को कैदियों की रिहाई के समर्थन में हलफनामा दिया था। गुजरात सरकार ने हलफनामे में कहा था कि कैदियों की रिहाई में पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है। साथ ही ये फ़ैसला केंद्र सरकार की सहमति के बाद लिया गया था। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अब तक इस मामले में चुप्पी साध रखी है।

बरी होने से पहले सालों थे जेल से बाहर

इस हलफ़नामे में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है कि उम्र कैद की सजा काट रहे 11 में से 10 दोषी पेरोल, छुट्टी और अस्थायी जमानत पर एक हज़ार दिनों से ज़्यादा बाहर रहे थे। वहीं मामले में 11वां दोषी 998 दिनों तक जेल से बाहर रहा था। अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने गुजरात सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे के हवाले से बताया है कि 11 दोषियों में से एक रमेश चांदना 1576 दिनों के लिए पेरोल और छुट्टी पर जेल से बाहर थे।

ध्यान रहे कि छोटी अवधि की सज़ा के लिए आमतौर पर अधिकतम एक महीने की पेरोल दी जाती है। वहीं, लंबी अवधि की सजा में एक तय समय जेल में बिताने के बाद अधिकतम 14 दिनों की छुट्टी मिलती है। ऐसे में इन दोषियों ने जो समय जेल से बाहर बिताया है वो करीब तीन साल से ज़्यादा का है। 58 साल के रमेश चांदना ने करीब चार साल बाहर बिताए हैं। वहीं, जनवरी और जून 2015 के बीच 14 दिनों की छुट्टी 136 दिनों में बदल गई थी। उसे जेल वापस लौटने में 122 दिनों की देरी हो गई थी।

सभी 11 दोषियों को हलफ़नामे के मुताबिक औसत 1176 दिनों तक बाहर रहने की इजाजत मिली थी। 58 साल का राजूभाई सोनी 1348 दिनों तक छुट्टियों पर था। सितंबर 2013 से जुलाई 2014 के बीच 197 दिनों की देरी के बाद आत्मसमर्पण किया था। नासिक जेल से उसकी 90 दिनों की पेरोल 287 दिनों की हो गई थी। सभी दोषियों में सबसे उम्रदराज 65 साल के जसवंत नाई 1169 दिनों के लिए बाहर था। साल 2015 में उसने नासिक जेल में 75 दिन देरी से आत्मसमर्पण किया था।

यहां एक और बात गौर करने वाली है कि पुलिस अधीक्षक, सीबीआई स्पेशल ब्रांच मुंबई और स्पेशल सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे' ने भी बीते साल मार्च में कैदियों की रिहाई का विरोध किया था। गोधरा जेल के सुपरिंटेंडेट को लिखे पत्र में सीबीआई ने कहा था कि जो अपराध इन लोगों ने किया है वो ''जघन्य और गंभीर'' है। इसके बावजूद इन सभी दोषियों को आज़ादी के अमृतमहोत्सव के तहत 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया।

गुजरात सरकार ने अदालत से क्या कहा?

गुजरात सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि याचिकाकर्ता सुभाषिनी अली, जो वास्तव में एक राजनीतिक पदाधिकारी हैं, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि स्पेशल जज ग्रेटर मुंबई से सज़ा सुनाए गए 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले के खिलाफ अपील करने का उनके पास क्या आधार है। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने यह भी नहीं बताया कि राज्य सरकार के फै़सले से वो कैसे असंतुष्ट हैं। साथ ही इस याचिका में अनिवार्य दलीलें और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का ज़िक्र ग़ायब है। यानी याचिकाकर्ताओं का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में उनके पास इसका अधिकार नहीं है। 29 नवंबर को जब सुनवाई होगी तब तक याचिकाकर्ताओं को भी हलफनामे पर अपना जवाब दाखिल करना होगा।

गुजरात सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा कि इस मामले में राज्य सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्ताव पर विचार किया है जैसा कि इस न्यायालय द्वारा निर्देश दिया गया है और इन कैदियों की रिहाई 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' के उत्सव से जुड़ी नहीं है। ऐसे में यह राज्य सरकार का विश्वास है कि वर्तमान याचिका इस अदालत के जनहित याचिका (पीआईएल) के अधिकार के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है। इसलिए सरकार की अपील है कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज किया जाए।

अदालत ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इशारों-इशारों में गुजरात सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए।जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रवि की बेंच ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार की दलीलें तो बहुत भारी-भरकम हैं, लेकिन इनमें फैक्ट्स की कमी है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि गुजरात सरकार की तरफ से दाखिल हलफनामे में कई पुराने फैसलों की नजीर पेश की गई है, लेकिन इनमें फैक्ट्स साबित करने वाली बातें नहीं हैं।

जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने गुजरात सरकार के वकील से कहा, "मैं नहीं चाहता कि आप इस एफिडेविट के बदले एक और एफिडेविट पेश करें और उसमें भी पुराने फैसलों की मिसाल दें। आपको तो फैक्ट्स स्टेटमेंट देना चाहिए। ये कहां है और आपके दिमाग में क्या चल रहा है। बेंच ने गुजरात सरकार का जवाब सभी पक्षों को मुहैया कराने का भी आदेश दिया।"

विपक्ष के सवाल

वहीं जिस जिस अच्छे बर्ताव तो आधार बनाकर दोषियों की रिहाई हुई है, उसकी पोल भी अब धीरे-धीरे खुल रही है। मीडिया खबरों के मुताबिक बिलकिल बानो के मामले में एक दोषी मितेश भट्ट पर जून, 2020 में पैरोल पर आने के बाद महिला से छेड़छाड़ करने का आरोप लगा था। इस मामले में आरोपी के खिलाफ पुलिस ने केस भी दर्ज किया था। ऐसे में दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाकर्ताओं में से एक टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्रियों अमित शाह और प्रल्हाद जोशी से 'अच्छे व्यवहार' को परिभाषित करने के लिए कहा है।

महुआ ने ट्वीट कर कहा, "बिलकिस के दोषी मितेश भट्ट ने 2020 में पैरोल पर महिला से छेड़छाड़ की। ये मामला आईपीसी की धारा 354 के तहत लंबित है। ऐसे में इस आदमी को भी सरकार ने रिहा कर दिया। अच्छे दिन। अच्छे लोग। बेटी को मोलेस्ट करना भी आपके लिए "अच्छा व्यवहार।"

केंद्र के फैसले पर कटाक्ष करते हुए शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी एक ट्वीट में कहा कि जितना अधिक आप एक महिला के साथ बुरा व्यवहार करते हैं, आप उतने ही बेहतर इंसान बनते हैं। यह भारत सरकार की नई रणनीति लगती है। उन्होंने आगे लिखा, "यह गृह मंत्रालय का गुड बिहेवियर सर्टिफिकेट धारक व्यक्ति है।

उधरदोषियों की रिहाई में केंद्र सरकार की सहमति का ज़िक्र आने के बाद इस मामले पर एक बार फिर राजनीति गरमा गई है कांग्रेस नेता राहुल गांधी मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए और कहा कि सरकार बलात्कारियों का साथ दे रही है। हालांकि उन्होंने अपने ट्वीट में बिलकिस बानो का नाम नहीं लिया।

राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ''लाल किले से महिला सम्मान की बात लेकिन असलियत में 'बलात्कारियों' का साथ। प्रधानमंत्री के वादे और इरादे में अंतर साफ है, पीएम ने महिलाओं के साथ सिर्फ छल किया है।''

गौरतलब है कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान पांच महीने की गर्भवती बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप किया गया। उनकी तीन साल की बेटी की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस दंगे में बिलक़ीस बानो की माँ, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार समेत 14 लोग मारे गए थे। मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने 11 लोगों को हत्या और गैंगरेप का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। इस मामले में पुलिस और डॉक्टर सहित सात लोगों को छोड़ दिया गया था। सीबीआई ने बॉम्बे हाई कोर्ट में दोषियों के लिए और कड़ी सज़ा की मांग की थी। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने मई, 2017 में बरी हुए सात लोगों को अपना दायित्व न निभाने और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर दोषी ठहराया था।

इस साल स्वतंत्रता दिवस पर अचानक से बिलकिस बानो मामले के 11 दोषी गोधरा की एक जेल से दिन दहाड़े रिहा कर दिए गए। जेल के बाहर उनका स्वागत किया गया। टीका लगाकर सम्मान दिया गया और फिर फूल माला पहनाई गई। और ये सब तमाम विरोधो के बाद भी जारी रहा। जिसे लेकर देशभर में खूब आलोचना हुई और सरकार की मंशा पर सवाल भी उठे। अब इस मामले की अगली सुनवाई उन्नतीस नवंबर को होगी।

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