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छत्तीसगढ़ नान घोटाला: क्या कांग्रेस अपने ही बुने जाल में फंस गई है?

कभी विपक्ष में रहते हुए भूपेश बघेल ने इस घोटाले को एक बड़ा मुद्दा बनाया था। अब सत्ता में आने के बाद ये कथित घोटाला उन्हीं के गले की फांस बन गया है। इस मामले में सीएम बघेल पर ही मुख्य अभियुक्त आईएएस अफ़सरों को बचाने के गंभीर आरोप लग रहे हैं।
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बीते कई दिनों से छत्तीसगढ़ के छत्तीस हज़ार करोड़ का कथित नागरिक आपूर्ति निगम यानी नान घोटाला दोबारा सुर्खियों में है। कभी विपक्ष में रहते हुए भूपेश बघेल ने इस घोटाले को एक बड़ा मुद्दा बनाया था, अब सत्ता में आने के बाद ये कथित घोटाला उन्हीं के गले की फांस बन गया है। इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर ही मुख्य अभियुक्त आईएएस अफ़सरों को बचाने के गंभीर आरोप लग रहे हैं।

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में हुए राशन घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर चल रही जांच के बाद प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि इस घोटाले की जांच के लिए भूपेश बघेल के आदेश पर बनाई गई स्पेशल टास्क फ़ोर्स के सदस्यों, मुख्यमंत्री और एक बड़े क़ानून अधिकारी ने, इस घोटाले में नाम आने वाले दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कथित तौर पर मामले को कमज़ोर किया है। इस मामले के फिर से सामने आने के बाद एक ओर विपक्ष सरकार पर चौतरफ़ा हमला बोला रहा है तो वहीं राज्य सरकार कोई भी टिप्पणी करने से बच रही है।

क्या है पूरा मामला?

साल 2015 में नागरिक वितरण प्रणाली में भारी गड़बड़ी होने का पता चला था। नागरिक आपूर्ति निगम राज्य भर में लाखों परिवारों को राशन बांटने का काम करती है और इस स्कीम के तहत छत्तीसगढ़ सरकार ग़रीबों को एक रुपये किलो के हिसाब से चावल बांटती है। यह मामला तब सामने आया था जब छत्तीसगढ़ के एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा ने 12 फरवरी 2015 को नागरिक आपूर्ति निगम के कुछ बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की। इस छापेमारी में करोड़ों रुपये, डायरी, कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज, हार्ड डिस्क और डायरी भी जब्त की गई थी। इस मामले में नागरिक आपूर्ति निगम के कई अधिकारियों और कर्मचारियों को जेल भेज दिया गया था।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में आर्थिक अपराध शाखा ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में राइस मिलों से लाखों क्विंटल घटिया चावल लिया गया और इसके बदले करोड़ों रुपये की रिश्वतख़ोरी की गई। इसी तरह नागरिक आपूर्ति निगम के ट्रांसपोर्टेशन में भी भारी घोटाला किया गया। नमक की आपूर्ति में भी कथित भ्रष्टाचार किया गया।

आरंभिक तौर पर इस प्रकरण में कुल 27 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था। बाद में दो आईएएस अधिकारी, आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज किया गया। कथित घोटाले के दौरान दोनों अधिकारी क्रमश: नागरिक आपूर्ति निगम के प्रबंध निदेशक और चेयरमैन थे।

नागरिक आपूर्ति निगम में बड़ी धांधली

तब राज्य में विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने सत्ताधारी पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा था, "यह एक लाख करोड़ से अधिक का मामला है और इसमें सीधे सीधे मुख्यमंत्री रमन सिंह शामिल हैं… ये सिर्फ चावल वितरण के घोटाले की बात नहीं है। राज्य में बीस लाख फर्ज़ी राशन कार्ड बनाए गए हैं। चावल के साथ गेहूं, चना, शक्कर और केरोसिन आदि सारी चीज़ों में धांधली हो रही है। इस मामले की जांच होनी चाहिए।"

इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने विधानसभा का घेराव और पदयात्रा भी आयोजित की थी। कांग्रेस का आरोप कि इस मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा ने अभियुक्तों से एक डायरी भी बरामद की थी, जिसमें 'सीएम मैडम' समेत तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के कई परिजनों के नाम कथित रुप से रिश्वत पाने वालों के तौर पर दर्ज थे।

बघेल ने तब कहा था कि इस कथित डायरी के 107 पन्नों में विस्तार से सारा कथित लेन-देन दर्ज था, लेकिन एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा ने इस डायरी के केवल छह पन्नों का सुविधानुसार उपयोग किया। इसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो के तत्कालीन मुखिया मुकेश गुप्ता ने भी मीडिया में दिए गये अपने बयानों में माना था कि घोटाले के तार जहां तक पहुंचे हैं, वहां जांच कर पाना उनके लिये संभव नहीं है।

जांच चलती रही और नतीज़ा कुछ नहीं निकला...

इस मामले की जांच चलती रही, कई अधिकारी सालों जेल में रहे। लेकिन रमन सिंह की सरकार ने हाईकोर्ट में एक हलफ़नामा दे कर दावा किया कि नागरिक आपूर्ति निगम में कोई घोटाला हुआ ही नहीं। हालांकि निचली अदालत में तो यह मामला चलता ही रहा। इस घोटाले को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में हमर संगवारी ने 42/2015, सुदीप श्रीवास्तव ने 43/2015, वीरेंद्र पांडेय ने 44/2015 और वशिष्ठ नारायण मिश्रा ने 57/2015 जनहित याचिका भी दायर की। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और अदालत ने इसकी समयबद्ध सुनवाई के निर्देश भी दिए, लेकिन मामला अपनी रफ़्तार से चलता रहा।

इस दौरान ही कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के बतौर भूपेश बघेल ने दोनों आईएएस अधिकारियों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को पत्र लिखा। यह भी दिलचस्प है कि कथित घोटाले के अभियुक्त दोनों आईएएस अधिकारियों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला के ख़िलाफ़ 17 जुलाई 2015 को राज्य शासन द्वारा और चार जुलाई 2016 को केंद्र सरकार द्वारा अभियोजन स्वीकृति दी गई, लेकिन सालों तक दोनों के ख़िलाफ़ अभियोग पत्र पेश नहीं किया गया। ऐन विधानसभा चुनाव के बाद लेकिन चुनाव परिणाम से पहले, 29 नवंबर 2018 को दोनों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अभियोग पत्र पेश किया गया।

सरकार बदली तो जांच में नाटकीय बदलाव हो गए!

विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो सरकार बदल गई। 15 सालों से सत्ता में रही भारतीय जनता पार्टी की विदाई हो गई, जिसके बाद 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और कुछ दिनों बाद ही नान घोटाले की एसआईटी जांच की घोषणा की गई। हालांकि हाईकोर्ट ने ऐसी किसी जांच पर रोक लगा दी लेकिन इस दौरान कई हैरान कर देने वाले घटनाक्रम सामने आए।

  • पूरे नान घोटाले में छापामारी और जांच करने वाले आर्थिक अपराध शाखा के मुखिया रहे विशेष पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता और आर्थिक अपराध शाखा के ही दूसरे आईपीएस रजनेश सिंह को ही नौ फ़रवरी 2019 को निलंबित कर दिया गया।
  • आरोप लगे कि ये दोनों अफसर नान घोटाले की जांच के दौरान अवैध रूप से नेताओं-अफ़सरों के फ़ोन टैप करवा रहे थे और झूठे दस्तावेज़ तैयार कर षडयंत्र रच रहे थे।
  • इसके उलट नान घोटाले के अभियुक्त जिन दोनों आईएएस अधिकारियों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला के ख़िलाफ़ भूपेश बघेल और पूरी कांग्रेस पार्टी मोर्चा खोल कर बैठी थी, वही दोनों आईएएस अधिकारी भूपेश बघेल की सरकार में सबसे ताक़तवर बन कर उभरे।
  • उद्योग विभाग के संचालक के पद पर कार्यरत अनिल टुटेजा के बारे में तो कहा गया कि मुख्यमंत्री की उप-सचिव सौम्या चौरसिया के साथ मिल कर वे, सरकार के सारे फ़ैसलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • इस बीच प्रवर्तन निदेशालय द्वारा नान घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग का एक मामला जनवरी, 2019 को दर्ज किया गया और 27 फ़रवरी 2020 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप-सचिव सौम्या चौरसिया समेत बघेल के कई क़रीबी अधिकारियों और नेताओं के घर आयकर विभाग ने छापामारी की।

गौरतलब है कि वित्त मंत्रालय की दो मार्च, 2020 की एक प्रेस विज्ञप्ति कहती है कि आयकर विभाग ने रायपुर में 27.02.2020 को कुछ लोगों के समूह, हवाला डीलरों और उद्योगपतियों पर जांच बिठाई। जांच के दौरान अवैध कामों से जुड़े दस्तावेज़ और इलेक्ट्रॉनिक सामान ज़ब्त किये गये जिनसे पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों और अन्य लोगों को हर महीने बड़ी रक़म अदा की जाती थी।

इसके अलावा, बिना किसी अकाउंट धारक के ख़रीद-बेच, कर्मचारियों के नाम पर बनाये गए बैंक अकाउंट्स से करोड़ों के लेन-देन और बिना खाताधारक का एक अकाउंट मिला है। बेनामी गाड़ियों की डिटेल्स, हवाला लेन-देन, कोलकाता की कम्पनियों को भुगतान और बहुत बड़े लैंड बैंक (बहुत सारी ज़मीन खरीद कर रखना) समेत शेल कंपनियों की जानकारी मिली है।

इस जांच के दौरान भारी मात्रा में नक़दी बरामद की गयी है। अब तक 150 करोड़ रुपये का बेनामी लेन-देन सामने आया है और आगे जांच में मिले सबूत की पड़ताल के बाद इसके और बढ़ने की संभावनाएं हैं।

जिन अधिकारियों पर शक की सुई थी, उन्हें और मज़बूत कर दिया गया!

मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अगस्त 2020 को दोनों आईएएस अधिकारियों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को हाईकोर्ट से ज़मानत भी मिल गई। इस बीच आलोक शुक्ला 30 मई 2020 को सेवानिवृत्त हो गये लेकिन इस सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें तीन साल के लिए प्रमुख सचिव के पद पर संविदा नियुक्ति दे दी गई। आज की तारीख़ में वे स्कूल शिक्षा विभाग, संसदीय कार्य, तकनीकी शिक्षा, रोज़गार, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा जैसे राज्य के महत्वपूर्ण विभागों के प्रमुख सचिव की कमान संभाले हुए हैं। इसके अतिरिक्त उनके पास छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल के अध्यक्ष का भी उत्तरदायित्व है।

स्पेशल टास्क फ़ोर्स के सदस्यों, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और एक बड़े क़ानून अधिकारी का हवाला देते हुए कहा गया है कि इन सभी लोगों ने मिल कर नान घोटाले की जांच को कमज़ोर किया है। प्रवर्तन निदेशालय ने आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा की ज़मानत भी रद्द करने की मांग की है।

आरोप-प्रत्यारोप

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा कि भूपेश बघेल और कांग्रेस पार्टी, पत्र लिख कर जिस पीडीएस घोटाले की सीबीआई जांच और अभियुक्त अधिकारियों को गिरफ़्तार करने की मांग करते थे, आज वही भूपेश बघेल उन्हें बचाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।

रमन सिंह कहते हैं, "ऐसे अधिकारियों को संरक्षण देना प्रदेश की जनता और जनादेश का अपमान है। उन्हें तत्काल बर्ख़ास्त कर जांच एजेंसी को निष्पक्ष जांच करने हेतु स्वतंत्रता देनी चाहिए।"

हालांकि कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और संचार विभाग के प्रमुख शैलेष नितिन त्रिवेदी इन तमाम स्थितियों के लिए रमन सिंह को ही ज़िम्मेदार बता रहे हैं। उनका कहना है कि नान मामले की पूरी जांच रमन सिंह के कार्यकाल में हुई और अगर आज रमन सिंह, सरकार जाने के तीन साल बाद यह कह रहे हैं कि केस कमज़ोर हुआ है तो स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में उनको इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए।

वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव संजय पराते ने मीडिया को बताया कि राज्य में सत्ता परिवर्तन भले हो गया हो, लेकिन राज्य की नीतियां या प्रशासनिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं हुआ है और भ्रष्टाचार के वही अभियुक्त अफ़सर सरकार के खेवनहार बने हुए हैं। पराते का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी में केवल नूरा कुश्ती चल रही है।

संजय पराते के अनुसार, "भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों पर विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस हंगामा करती थी, सत्ता में आने के बाद उनमें से एक भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। सत्ता के संरक्षण के बिना कोई भी भ्रष्टाचार नहीं होता और कांग्रेस सरकार जानती है कि अगर अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई तो मामला नेताओं तक भी पहुंचेगा। ऐसे में कांग्रेस अफ़सरों को भी बचाना चाहती है और बीजेपी के नेताओं को भी।”

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