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बिहार : रामचरितमानस पर दिए गए विवादित बयान से तेज़ हुआ सियासी घमासान!

"शिक्षा मंत्री की जीभ काटने वाले को 10 करोड़ का ईनाम देने की घोषणा, सीधे-सीधे संविधान और कानून के शासन की अवहेलना है जिसका व्यापक विरोध बहुत ज़रूरी है।"
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बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा पिछले दिनों रामचरितमानस पर दिए गए बयान को लेकर मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। मीडिया मैनेजमेंट के ज़रिए प्रदेश भाजपा व उसके आला नेताओं की तीखी बयानबाज़ी का बाज़ार पूरी तरह से गर्म है।

इसके तहत मामले को “हिंदू-मुसलमान मुद्दा” बनाने वाले बयानों को हर दिन सुर्खियों में प्रकाशित किया जाना बदस्तूर जारी है। खासकर मेनस्ट्रीम मीडिया की भूमिका देखकर तो ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो भाजपा संचालित 'हिंदू-मुस्लिम एजेंडा' को स्थापित करने के लिए उसे कारगर माध्यम बना दिया गया हो जिसके ज़रिए "महागठबंधन में दरार" साबित करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है।

भाकपा-माले ने कहा है कि, "कोई भी ग्रंथ आलोचना से परे नहीं, रामचरितमानस के कई उद्धरण महिलाओं-दलितों के खिलाफ हैं। मनुस्मृति को तो डॉ. अम्बेडकर ही खारिज कर चुके है, जो हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था को सैद्धांतिक रूप से सही ठहराता है। और “बंच ऑफ़ थॉट” तो आरएसएस के ब्राह्मणवादी मॉडल का ही दस्तावेज़ है।

माले के राज्य सचिव ने अपने बयान में भाजपा पर निशाना साधते हुए सवाल भी किया है कि, "भाजपा बताये कि महिलाओं-दलितों को समाज में दोयम दर्जे का स्थान देने वाली इन चौपाइयों से उसे प्रेम क्यों है? जीभ काटने वालों को इनाम देने वाले वक्तव्यों के ज़रिए वह उन्माद फैलाने का ही काम कर रही है।"

वहीं, शिक्षा मंत्री की जीभ काटने वाले को 10 करोड़ के ईनाम की घोषणा करने वाले हिंदू धर्माचार्य का, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला असोसियेशन समेत कई अन्य वाम और धर्मनिरपेक्ष संगठनों ने तीखा विरोध किया है।

16 जनवरी को पटना में ‘भारतीय बौद्ध महासभा’ ने उक्त धर्माचार्य के विरोध में आक्रोश-मार्च निकालकर उनकी गिरफ्तारी की मांग की है। महासभा ने अपने बयान में कहा है कि संत का वक्तव्य देश के संविधान के खिलाफ है।

वही, पटना के ही एक नागरिक ने मुख्य दंडाधिकारी की अदालत में धर्माचार्य के बयान को गैरज़िम्मेदाराना व आपराधिक बोल के साथ साथ राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिहाज़ से सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाला बताते हुए शिकायत दर्ज कराई है।

ऐपवा ने अपने बयान में तथाकथित उक्त धर्माचार्य के आय-व्यय की जांच करने की मांग करते हुए पूछा है कि, "एक संत के पास 10 करोड़ रुपये के ईनाम के लिए पैसे कहां से आए? आमजन जो अपनी आस्था के तहत मंदिरों-मठों में दान पुण्य करते हैं, क्या इसका यही सब उपयोग है?

उक्त विवाद को लेकर महागठबंधन के घटक दलों के भी अलग-अलग विचार हैं। वाम दलों में भाकपा-माले, सीपीएम, ऐपवा व जलेस समेत कई वाम-धर्मनिरपेक्ष संगठनों ने शिक्षा मंत्री के स्टैंड का समर्थन किया है। साथ ही मामले को सांप्रदायिक राजनैतिक रंग देने के लिए भाजपा की कड़ी आलोचना की है

माले विधायक दल के उपनेता सत्यदेव राम व चर्चित छात्र नेता और युवा विधायक संदीप सौरभ ने भी सोशल मीडिया के मंच से शिक्षा मंत्री के स्टैंड का खुला समर्थन करते हुए भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति का विरोध किया है।

जनवादी लेखक संघ ने राष्ट्रीय स्तर पर बयान जारी कर कहा है, "बिहार के शिक्षा मंत्री के रामचरितमानस को लेकर दिए गए बयान पर जिस तरह से चौतरफा हमला हो रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है। उन्होंने रामचरितमानस के वर्णाश्रम समर्थक और स्त्री विरोधी जिन अंशों को उधृत किया है उसमें कोई तथ्यात्मक गलती नहीं है।

जिस तरह से मनुस्मृति और गोलवरकर के “बंच ऑफ थॉटस” ने विभिन्न दौरों में सामाजिक विभेद को बढ़ाने का काम किया है, उसकी चर्चा भी गलत नहीं है लेकिन भाजपा ने जिस प्रकार से इसे हिंदू समाज की धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाकर सुनियोजित मुहीम चलाई है, उससे साफ हो गया है कि भाजपा दलित उत्थान और नारी सशक्तिकरण के जितने भी नारे लगाए, वह वर्ण आधारित समाज के पुनर्गठन में ही विश्वास रखती हैं। शिक्षा मंत्री की जीभ काटने वाले को 10 करोड़ का ईनाम देने की घोषणा, सीधे-सीधे संविधान और कानून के शासन की अवहेलना है जिसका व्यापक विरोध बहुत ज़रूरी है।"

सरकार के मुख्य घटक दल जदयू ने शिक्षा मंत्री के बयान से खुद को अलग करते हुआ कहा है कि उनकी पार्टी का मानना है कि कोई ऐसा बयान नहीं दिया जाना चाहिए जिससे किसी की धार्मिक भावना आहत हो।

हालांकि मीडिया सूत्रों के अनुसार इसी 17 जनवरी को जहानाबाद ज़ोन के ‘समाधान यात्रा’ में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने शिक्षा मंत्री से उक्त विवादित बयान को वापस लेने का सुझाव देकर एक तरीके से चालू विवाद का तत्काल पटाक्षेप कर दिया है। लेकिन वहीं, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तीखा कटाक्ष किया है कि-बयानवीरों के बयान से कुछ होने वाला नहीं है। भाजपा का नाम लिए बगैर कहा, "जिसे जो बयान देना है देते रहें, हमें पता है कि वे लोग क्या कर सकते हैं? हमेशा मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए इधर-उधर के मुद्दे उठाना इनकी स्थायी फितरत बनी हुई है।"

एक कयास यह भी है कि अभी चंद दिनों पहले ही बिहार, देश में जाति जनगणना शुरू कराने वाला पहला प्रदेश बना जिससे हो रही बेचैनी को लेकर उसके नेतागण अनाप-शनाप बोलकर खुन्नस तो प्रकट कर रहे थे, पर खुलकर विरोध नहीं हो पा रहा था लेकिन बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस को लेकर दिए गए विवादित बयान से उन्हें महागबंधन सरकार के खिलाफ़ थोड़ा भड़ास निकालने की संजीवनी मिल गई है।

बहरहाल, रामचरितमानस पर विवाद-प्रकरण को मीडिया के सहारे जिस तेज़ी और व्यापक ढंग से सांप्रदायिक उन्माद भरे विवाद का रंग देने की सियासत हुई, ऐसे में साधुवाद देना होगा बिहार की अमन पसंद जनता को क्योंकि सिर्फ भाजपा के पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं को छोड़, कहीं कोई हुजूम सड़कों पर नही उतरा।

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