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कोरोना संकट: महिला स्वास्थ्य कर्मियों के सामने दोहरी चुनौती

अस्पताल के कोरोना वार्ड में काम करने वाली एक डॉक्टर बताती हैं कि ये एक कठिन समय है। सभी अस्पतालकर्मी दिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन महिला स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ये दोहरी चुनौती की घड़ी है।
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Image courtesy: Business Today

‘जब N-95 मास्क और ग्लव्स आ जाएं तो उन्हें मेरी कब्र पर पहुंचा दिए जाए, वहां ताली और थाली भी बजा देना।’

ये ट्वीट एक सरकारी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहीं महिला डॉक्टर का है। इस ट्वीट में महिला डॉक्टर ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को भी टैग किया था। कुछ ही समय में ट्वीट भयंकर वायरल हो गया और कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई लोगों ने इसे री-ट्वीट कर दिया। हालांकि अगले ही दिन डॉक्टर ने मांफी मांगते हुए इसे डिलिट भी कर दिया। ये ट्वीट डीलिट जरूर हो गया लेकिन कई ज़रूरी सवाल अपने पीछे छोड़ गया।

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रविवार 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वाहन पर देश में जनता कर्फ्यू रहा। इसी दिन शाम 5 बजे पूरे देश ने कोरोना वायरस के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए इस लड़ाई में सबसे आगे खड़े स्वास्थ्य कर्मियों के लिए तालियां और थालियां बजाईं। लेकिन इन तालियों और थालियों के बाद कई डॉक्टर्स के ट्वीट, वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट सामने आने लगे जिसने हमारी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन स्वास्थ्य कर्मियों का हमने अभिवादन किया, जो इस महामारी की घड़ी में हमारा दिन-रात ख़्याल रख रहे हैं, क्या उनका और उनकी जरूरतों का भी ख़्याल रखा जा रहा है?

लखनऊ के राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट में काम करने वालीं शशि सिंह का वीडियो सोशल मीडिया पर हज़ारों लोगों ने शेयर किया। इस वीडियो में वो शिकायत कर रही हैं कि नर्सों को बेसिक ज़रूरी चीज़ें नहीं मिल रही हैं। "उनके पास एन95 मास्क नहीं हैं। एक प्लेन मास्क और ग्लव्स से ही मरीज़ों को देखा जा रहा है। उनका आरोप है कि पूरे उत्तर प्रदेश में यही हाल है और इस बारे में बोलने से रोका जा रहा है।"

कई महिला स्वास्थ्य कर्मियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस दौरन अपनी चुनौतियों को साझा किया है। न्यूज़क्लिक ने देश के कुछ बड़े अस्पतालों में संपर्क कर जानने की कोशिश की कि वहां डॉक्टर और महिला स्टाफ किन परिस्थितियों में काम कर रही हैं।

दिल्ली के एम्स अस्पताल के कोरोना वार्ड में काम कर रहीं एक महिला डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अस्पताल में महिला सवास्थ्यकर्मी इस वक्त कई परेशानियों का सामना कर रही हैं। उनके अनुसार कोरोना से निपटने की तैयारियां तो नाकाफ़ी हैं ही स्टाफ के लिए बेसिक चीज़े भी नहीं मुहैया करवाई जा रही है।

वो कहती हैं, "हमारी सभी छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं, हम कई-कई दिनों से घर नहीं गए हैं। महिला स्टाफ को इमरजेंसी छुट्टी तक नहीं दी जा रही। यहां अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में मास्क नहीं हैं, स्क्रीनिंग किट्स नहीं हैं। डॉक्टर्स की सुरक्षा के लिए उपकरण पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। हम अपने रिस्क पर काम करने में लगे हुए हैं। इमरजेंसी वार्ड में काम करने वाले डॉक्टर्स की हालत बहुत बुरी है। कुछ की तबीयत भी खराब है, कुछ ख़ुद आइसोलेशन में हैं, क्वारेंटीन वॉर्ड में पड़े हुए हैं।”

इस संबंध में हमने एम्स के डॉयरेक्टर और वेब सूचना अधिकारी से ईमेल के जरिए सवाल पूछा है, ख़बर लिखे जाने तक हमें कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।

दिल्ली के ही राम मनोहर अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स बताती हैं, “मैं यहां पास ही एक कामकाजी महिला ह़ॉस्टल में रहती हूं। दिन-रात की शिफ्ट होने के कारण न वहां कुछ ठीक से खाने को मिल पाता है और न ही अस्पताल में। महावारी के कारण पिछले दो दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं है लेकिन बावजूद इसके अस्पताल आना मज़बूरी है। आजकल मरीजों में भी डर का माहौल है, कई बार उनकी स्थिति देखकर आप खुद को भी नहीं संभाल पाते।”

गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के कोरोना वार्ड में काम करने वाली एक डॉक्टर बताती हैं कि ये एक कठिन समय है। सभी अस्पतालकर्मी दिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन महिला स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ये दोहरी चुनौती की घड़ी है।

वे कहती हैं, "मैं लगभग 10 दिनों से सेल्फ-आइसोलेशन में हूं। मेरी एक 2 साल की बच्ची है, जिससे बीते कई दिनों से मेरी ठीक से बात तक नहीं हो पाई है। परिवार से दूर हूं ताकि मेरा परिवार संक्रमण से बचा रहे। किसी भी ख़तरनाक बीमारी के वक्त स्वास्थ्य कर्मी आम लोगों के मुक़ाबले दोगुना ज़्यादा ख़तरे का सामना कर रहे होते हैं। साथ ही एक डर उन्हें ये भी होता है कि घर जाते वक्त कोई वायरस लेकर न जाएं, नहीं तो इससे उनका परिवार भी संक्रमित हो सकता है।”

कई डॉक्टरों का मानना है कि आने वाले दिनों में मामले बढ़ेंगे तो चुनौतियां भी बढ़ेंगी। डब्लूएचओ की गाइडलाइन्स के मुताबिक पीपीई यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट जिसमें ग्लव्स, मेडिकल मास्क, गाउन और एन95, रेस्पिरेटर्स शामिल हैं इसकी देश में पहले से ही दिक्कतें देखने को मिल रही हैं। ऐसे में अगर मरीज़ों का इलाज करने वाले लोग ही बीमार पड़ जाएंगे, तो मरीज़ों को कौन देखेगा?

दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में काम करने वाले एक डॉक्टर देबाब्राता मोहापात्रा ने अपने फेसबुक के ज़रिए प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए एक खुला खत भी लिखा है। इस खत में वे लिखते हैं “अगर आप इस महामारी से निपटने में हेल्थ सिस्टम की मदद करना चाहते हैं तो 'बाल्कनी में खड़े होकर ताली बजाने' की जगह आपको उन्हें उपकरण देने चाहिए। मुझे 99% भरोसा है कि ये खुला ख़त आपतक नहीं पहुंचेगा, लेकिन फिर भी इस उम्मीद में ये ख़त लिख रहा हूं कि दूसरे डॉक्टर और आम नागरिक खड़े होकर ताली बजाने की जगह एक प्रभावी समाधान के लिए एकजुट होंगे। अगर आप स्वास्थ्य कर्मियों को वो चीज़ें नहीं दे सकते, जो उन्हें अपनी और देश की सुरक्षा के लिए चाहिए तो तालियां बजाकर उनका मज़ाक न उड़ाएं।”

गौरतलब है कि देश करोनो के चपेट में है, संक्रमित लोगों की संख्या का आंकड़ा 500 पार कर गया है। ऐसे में विपक्ष लगातार सरकार से तैयारियों को लेकर सवाल उठा रहा है। सोमवार, 23 मार्च को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी मोदी सरकार पर सवाल उठाया कि "WHO की सलाह - वेंटिलेटर, सर्जिकल मास्क का पर्याप्त स्टाक रखने के विपरीत भारत सरकार ने 19 मार्च तक इन सभी चीजों के निर्यात की अनुमति क्यों दीं?"

जाहिर है सरकार के अपने तर्क हैं। प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के लिए पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है। हैशटैग स्टे होम ट्रेंड कर रहा है। लेकिन अहम सवाल है कि क्या ये कदम काफ़ी हैं?

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