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कोरोना संकट के बीच बेरोज़गारी दर में वृद्धि और सरकार की घातक उदासीनता

सीएमआईई की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान देश में बेरोज़गारी दर में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है तो वहीं दूसरी तरफ नौकरी गवांकर पलायन को मजबूर श्रमिकों की सरकारों द्वारा उपेक्षा-अनदेखी तस्वीर को भयावह बना रही है।
बेरोज़गारी

दिल्ली: माथे पर तनाव की लकीरें, आंखों में मायूसी के आंसू और एक जोड़ी चप्पल तक मयस्सर नहीं, लेकिन अनवरत घर की ओर चले जाना है। कुछ ऐसी तस्वीरें इन दिनों मीडिया में मज़दूरों की हालात को बयां कर रही हैं।

साथ ही हमें एक दूसरी तस्वीर भी नजर आ रही है जो हमारे देश के सरकारों की हैं जो इस राष्ट्रीय शर्म के मसले पर भी न सिर्फ घातक तरीके की उदासीनता दिखा रही हैं बल्कि विपक्षी पार्टियों से हद दर्जे की बेबुनियाद बयानबाजी पर भी उतर रही हैं। लेकिन ये सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं कर रही है कि हताश-निराश मज़दूर सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से अपने घर लौटें।

आपको बता दें कि देशभर के प्रवासी मजूदर औद्योगिक शहरों से निकलकर अपने दूर-दराज के गांवों तक वापस पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। और इन मज़दूरों के वापस लौटने के पीछे कोई रॉकेट साइंस नहीं है। सिर्फ़ इतना कारण है कि जिन चंद बड़े शहरों को कुछ साल पहले तक अर्थव्यवस्था का केंद्र और विकास का मंदिर बताया गया था वहां पर इन मज़दूरों के लिए कोई काम नहीं है, पेट भरने के लिए भोजन नहीं है और सिर छिपाने के लिए जगह नहीं है।

और यह लगातार आ रहे आंकड़ों के जरिए साबित भी हो रहा है। कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान देश में बेरोज़गारी दर में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार तीन मई को समाप्त सप्ताह के दौरान यह बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण बेरोज़गारी दर वाले राज्यों में तमिलनाडु (49.8%), झारखंड (47.6%), बिहार (46.6%), हरियाणा (43.4%) और कर्नाटक (29.8%) शामिल हैं जबकि कम बेरोज़गारी दर वाले राज्यों में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्य हैं।

गौरतलब है कि लॉकडाउन के दौरान पिछले दो महीने में शहरों में काम करने वाले प्रवासी मज़दूरों की स्थिति और भी खराब हुई है। एक तरफ उनकी बचत खत्म हो गई है तो दूसरी ओर भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए वे घरों को वापस लौटने को मजबूर है।

सीएमआईई की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, वेतनभोगी रोज़गार पर लगे लोगों की संख्या में भी अप्रत्याशित कमी आई है। 2019-20 में जहां उनकी संख्या 8.6 करोड़ थी तो अप्रैल 2020 में वह घट कर 6.8 करोड़ रह गई। इस वर्ग के रोज़गार में 21 फ़ीसदी गिरावट दर्ज की गई।

रिपोर्ट कहती है कि वेतनभोगी रोज़गार वाले लोगों की संख्या भारत में पिछले तीन सालों से 8 से 9 करोड़ के बीच रही है। ये गिरावट इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस वर्ग में नये अवसर पैदा होने के आसार कम हैं।

रिपोर्ट में कहा गया कि शहरी इलाकों में बेरोज़गारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन से दिहाड़ी मज़दूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। इनमें फेरीवाले, सड़क किनारे दुकानें लगाने वाले विक्रेता, निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिक और रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले लोग शामिल हैं।

सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ़ खेती बाड़ी का काम कर रहे लोग इस पूरी गिरावट का अपवाद हैं। कृषि क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने मार्च-अप्रैल 2020 में 5 फ़ीसदी (60 लाख लोग) की बढ़ोतरी दर्ज की है और ऐसा इसलिए हो रहा है कि शहरों में रोज़गार छूटने के बाद लोग गाँव लौट रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट और गहरायेगा जब अगले दो महीने में खेती से जुड़े काम खत्म हो जायेंगे।

ऐसे में एक साथ बड़े पैमाने पर प्रवासी मज़दूरों का अपने घरों को लौटने के असाधारण फैसले के जवाब में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के पास कोई ठोस कार्रवाई या राहत प्लान अब तक नहीं दिख रहा है। केंद्र सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज राहत देने वाला कम, भ्रमित करने वाला और आंकड़ों का मायाजाल ज्यादा लगता है। तो वहीं दूसरी ओर प्रवासी मज़दूरों के बीच जान बचाने और अपने घरों को लौट जाने की देशव्यापी दहशत के बीच सरकारों की मशीनरी पूरी तरह से असहाय और असंवेदनशील ही नजर आई है। ऐसे में उससे ज्यादा उम्मीद रखना भी बेमानी है। साथ ही इस पूरे मसले ने आर्थिक समानता, समावेशी विकास, सामाजिक कल्याण जैसी सरकारी जुमलों की भी पोल खोलकर रख दी है।

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