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कोविशील्ड की कीमतों का रहस्य 

केंद्र-राज्य सरकारों  एवं निजी अस्पतालों के लिए कोविशिल्ड वैक्सीन के अलग-अलग और बढ़े हुए दामों की सीरम इंस्टीट्यूट की  घोषणा ने अशांत कर देने वाले कुछ सवाल खड़े कर दिये हैं। 
कोविशिल्ड की कीमतों का रहस्य 

केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और अंत में, निजी अस्पतालों से कोविशिल्ड के लिए क्या दाम लिये जाएंगे, इसको लेकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ) की तरफ से एक घोषणा की गई है। इससे बेचैन कर देने वाले कई प्रश्न उत्पन्न हो गये हैं। 

एसआइआइ द्वारा जारी स्पष्टीकरण के मुताबिक, वह केंद्र सरकार से वैक्सीन की प्रति खुराक 150 रुपये चार्ज कर रही थी। 1 मई से जब इसके दामों के निर्धारण को फ्री कर दिया गया है और केंद्र सरकार ने  राज्यों और निजी अस्पतालों को इसे खरीदने की छूट दे दी है, ऐसे में यह कंपनी केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों से वैक्सीन की प्रति खुराक 400 रुपये और निजी अस्पतालों से 600 रुपये की दर से कीमत वसूल करेगी।  यह उसके उत्पादन की क्षमता को बढ़ाएगी,  जिसका 50 फ़ीसदी उत्पादन केंद्र सरकार के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। शेष राज्य सरकारों तथा निजी अस्पतालों को बेच दिया जाएगा। 

केंद्र सरकार संभवत: सरकारी अस्पतालों को वैक्सीन की आपूर्ति करेगी और उसका कुछ हिस्सा राज्यों को भी देगी,  जैसा कि वह अब तक करती आ रही है।  इससे ज्यादा मात्रा में वैक्सीन की मांग करने वाले राज्य सरकारों को अपनी बजट राशि से सीधे सीरम से खरीद करनी होगी। हालांकि देखा जाना है कि यह व्यवस्था किस तरीके से काम करेगी। (लेख लिखे जाने तक इस विषय से संबंधित विस्तृत विवरण सार्वजनिक नहीं हैं।) 

अब सवाल यहां  उत्पन्न होता है :  जब उत्पादन में वास्तविक  वृद्धि की जा रही है तो ऐसे में वैक्सीन के दाम बढ़ाने की क्या जरूरत पड़ी है?  पैमाने के अर्थशास्त्र का सिद्धांत कहता है कि जब बड़े परिमाण में किसी वस्तु का उत्पादन होता है,  तो  प्रति इकाई उसके दाम घट जाते हैं।  इसी तरह, अगर उत्पादन कम मात्रा में होता है, तो उस वस्तु के दाम, उसकी लागत राशि को देखते हुए, बढ़ जाते हैं। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि उत्पादन के बढ़ने के बावजूद खुद सरकार अपने लिए भी 150 के बजाय प्रति वैक्सीन 400 रुपये दाम क्यों बढ़ाएगी?

इससे भी महत्वपूर्ण यह कि इस नये दाम का आधार क्या है?  ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका  वैक्सीन अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन में दो से चार अमेरिकी डॉलर के बीच बिकती है। कोविशिल्ड भी वही वैक्सीन है, जिसके लाइसेंस पर सीरम द्वारा उत्पादन किया जाता है।  एस्ट्राजेनेका ने एक करार किया हुआ है कि वह 400 से लेकर 500 मिलियन खुराकों की पहली खेप तक इस वैक्सीन से मुनाफा नहीं कमाएगा। तो कोई भी आराम से यह अनुमान कर सकता है कि विश्व के विभिन्न भूभागों में स्थापित उसकी इकाइयों में एस्ट्राजेनेका की कीमत 2 और 4 अमेरिकी डॉलर्स भी कम है। 

एसआइआइ को दिए गए एस्ट्राजेनेका के लाइसेंस में कहा गया है कि एस्ट्राजेनेका  विश्व के 91 गरीब देशों में भी वैक्सीन की सप्लाई करेगा।  इसका एक कारण यह हो सकता है कि विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक एसआइआइ,  विकसित देशों में लगी अपनी ही उत्पादन इकाइयों की तुलना में, बहुत सस्ते में वैक्सीन का उत्पादन कर सकता है। ऐसे में किसी भी तरह,  यह अनुमान करना कठिन है कि एसआइआइ के कोविशिल्ड के उत्पादन की लागत से एस्ट्राजेनेका के उत्पादन-लागत की तुलना में अधिक होगी।

एक इंटरव्यू में अदार पूनावाला (एसआइआइ के सीईओ) को  यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि वह नुकसान सह कर भारत सरकार को  वैक्सिंग नहीं बेच रहे थे लेकिन लाभ का  कम प्रतिशत उन्हें उत्पादन की अपनी क्षमता बढ़ाने में अधिक निवेश की इजाजत नहीं दे रहा था।  वह सरकार से 3,000 करोड़ रुपये का अनुदान चाहते थे, जो नहीं मिला। हालांकि सरकार ने उनकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भविष्य में खरीद किये जाने वाले वैक्सीन की कीमत का अग्रिम भुगतान करने का आश्वासन दिया था। इसलिए, कोविशिल्ड की सरकारी खरीद के लिए पहले के उसके 150 रुपये दाम के बजाय एकदम से 400 रुपये की बढोतरी हैरत में डालती है। 

एक दूसरा मामला वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग के प्राधिकरण का भी है, जो  ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से अब जा कर मिला है। यह इजाजत केवल सरकारी बिक्री की दवाओं के लिए दी जाती है। वैक्सीन को निजी अस्पतालों को बेचे जाने की स्थिति में एक सामान्य विपणन की मंजूरी की दरकार होगी-ऐसा वादा किया गया है या नहीं, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है।

सभी व्यवसायी फायदा कमाने के लिए कारोबार करते हैं और कोई भी पूनावाला के कड़ी मेहनत से धन कमाने को लेकर उनके प्रति वैरभाव नहीं रखता। किंतु यह समझना फिर भी कठिन है कि वैक्सीन के दाम तब दूने से भी ज्यादा किये जा रहे हैं जबकि उत्पादन क्षमता वास्तविक रूप से बढ़ाई जा रही है और पैमाने के अर्थशास्त्र के मुताबिक उत्पादन की लागत घटनी चाहिए। इस हिसाब से उस उत्पादित वस्तु की कीमत और सस्ती होनी चाहिए। 

यह भी समझना बहुत कठिन है कि केंद्र सरकार वैक्सीन के दामों के मामले पर विचार कर रही है।  पूरे विश्व के अधिकतर देशों में सरकार सीधे कंपनियों से वैक्सीन खरीद रही है और उसे अपने नागरिकों को निशुल्क दे रही है। हालांकि भारत कोई धनी देश नहीं है और अन्य देशों के मुकाबले उसकी आबादी बहुत बड़ी है।  लेकिन यह अंकगणित भी इसमें कोई सहायता नहीं करता है। 

देश में 18 वर्ष से अधिक की आयु वाले 91 करोड़ युवाओं को वैक्सीन देने की जरूरत है। प्रत्येक व्यक्ति को दो खुराक की जरूरत होगी-इसका मतलब हुआ 182 करोड़ खुराक की दरकार होगी।  अगर सरकार को 200 रुपये प्रति खुराक भुगतान करने की जरूरत होती है,  तो इस पर कुल खर्चा 36,400 करोड़ रुपये आएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में वैक्सीनेशन के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया हुआ है। उन्होंने कहा था कि, जरूरत के मुताबिक इस मद में और धन का आवंटन किया जा सकता है।  अतः अगर सरकार पूरे देश का वैक्सीनेशन करती है, उसे देखते हुए एसआइआइ को 200 प्रति खुराक की दर से भुगतान किया जाता है तो वैक्सीनेशन पर आने वाले कुल खर्च की तुलना में केंद्रीय बजट में आवंटन बहुत कम है। इसकी बजाय 150 रुपये प्रति वैक्सीन की दर से ही भुगतान किया जाए, जैसा अभी तक किया जा रहा है और पूनावाला को  पहले की तुलना में थोड़ा लाभ कमाने दिया जाए। 

ऐसा इसलिए कि इकोनॉमिक्स और कोविशिल्ड वैक्सीन के दामों और सरकार के वैक्सीन के दाम दुगुने से भी ज्यादा देने के फैसले कुछ के बजाय ज्यादा सवाल पैदा करते हैं। 

(प्रोसेनजीत दत्ता बिजनेस वर्ल्ड और बिजनेस टुडे पत्रिकाओं के पूर्व संपादक हैं। यह लेख उनकी वेबसाइट prosaicview.com से उनकी पूर्व अनुमति से पुनर्प्रकाशित किया गया है। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं) 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

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