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पहाड़ों पर कोरोना का शोर, बिना हथियार ग्राम प्रधान लड़ेंगे जंग!

नोवल कोविड-19 वायरस पहाड़ों पर भी चढ़ चुका है। सरकार ये आंकलन कर चुकी थी कि प्रवासियों की वापसी के साथ ही कोरोना मामले बढ़ेंगे। लेकिन क्या ऐसी स्थिति को संभालने की व्यवस्था की जा सकी?
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हरिद्वार स्टेशन पर ट्रेन से लौटे प्रवासी

महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, गुरुग्राम, दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों से बसों-ट्रेनों और अपने वाहनों से निकले प्रवासी सीधा उत्तराखंड के पहाड़ों के बीच बसे अपने गांव में होम क्वारंटीन होते हैं। इस सफ़र के बीच कुछ पड़ावों पर उनके शरीर के तापमान की थर्मल जांच होती है। वे सही पाए जाते हैं। 14 दिन का क्वारंटीन काल पूरा कर वे अपने घर-गांव में सामान्य जीवन के लिए तैयार हो जाते हैं। यदि किसी की तबीयत बिगड़ी तो उनका कोरोना टेस्ट किया जाता है। आपके ख़्याल से क्या ये व्यवस्था काफ़ी है? ठीक है?

मई के पहले हफ्ते तक कोरोना वायरस से दूर रहे उत्तराखंड के पर्वतीय जिले अब इसकी जद में आ चुके हैं। प्रवासियों के साथ नोवल कोविड-19 वायरस पहाड़ों पर भी चढ़ चुका है। सरकार ये आंकलन कर चुकी थी कि प्रवासियों की वापसी के साथ ही कोरोना मामले बढ़ेंगे। लेकिन क्या ऐसी स्थिति को संभालने की व्यवस्था की जा सकी? नैनीताल हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को इसके लिए जरूरी निर्देश दिए। अब भी प्रवासियों को लिए की गई व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।

पहाड़ों पर कोरोना का प्रवेश

6 मई तक उत्तराखंड में 61 पॉजीटिव केस थे। कोरोना वायरस देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंहनगर और नैनीताल तक सिमटा था। अल्मोड़ा-पौड़ी में एक-एक पॉजीटिव मरीज स्वस्थ हो चुके थे। इस समय तक प्रवासियों का लौटना शुरू हो गया था। तब राज्य सरकार ने व्यवस्था ये बनायी कि प्रवासियों का मेडिकल परीक्षण उनके गृह जिलों में पहुंचने पर किया जाएगा। थर्मल स्क्रीनिंग पर ही भरोसा किया गया। कोरोना के लक्षण दिखने पर ही कोविड-19 टेस्ट किए जा रहे थे। उस समय तक सैंपलिंग की दर भी काफी कम थी।

10 मई को उत्तकराशी में पहला पॉजीटिव केस आया। ये गुजरात से लौटा युवक था। राज्य में कुल मरीजों की संख्या 68 हो गई। 22 मई को 151 पॉजीटिव केस हो गए। 23 मई को एक दिन में 72 कोरोना पॉजीटिव मरीज मिलने के साथ ही ये संख्या 244 हो गई। रुद्रप्रयाग, चंपावत, चमोली, टिहरी समेत सभी पर्वतीय जिलों में कोरोना संक्रमितों की मौजूदगी दर्ज हो गई।

लॉकडाउन के दो महीने बाद 25 मई की रात आठ बजे स्वास्थ्य विभाग के बुलेटिन के अनुसार राज्य में कुल 349 कोरोना केस हो गए। नैनीताल जिले में मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ज्यादातर संक्रमित मरीज महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, गुरुग्राम से लौटे हैं। प्रवासियों को सीधे उनके गृह जिलों में होम क्वारंटीन करने के फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं।

सोसाइटी फॉर कम्यूनिटी डेवलपमेंट के अनूप नौटियाल कहते हैं कि अभी हम प्रति एक लाख की आबादी पर 160 टेस्ट कर रहे हैं जबकि हिमाचल प्रति लाख आबादी पर 371 टेस्ट कर रहा है। यदि हमने हिमाचल की रफ्तार से टेस्टिंग की होती तो शायद आज की तारीख तक उत्तराखंड में साढ़े पांच सौ से अधिक कोरोना पॉजिटिव केस होते। उत्तराखंड की आबादी करीब सवा करोड़ है।

गांवों में पहुंचा कोरोना तब क्या करेंगे- नैनीताल हाईकोर्ट

अभी तक थर्मल स्क्रीनिंग और आरोग्य सेतु एप के भरोसे आगे बढ़ रही सरकार को 15 मई को नैनीताल हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोरोना वायरस गांवों तक पहुंच गया तो हालात बदतर हो जाएंगे। अदालत ने राज्य और केंद्र की सरकार से राज्य की सीमा पर ही रैपिड टेस्ट करने के बारे में पूछा। इसके बाद राज्य सरकार ने रैंडम सैंपलिंग का फ़ैसला लिया। कोविड-19 टेस्ट की संख्या भी बढ़ायी गई। 20 मई को कोरोना मामलों से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने रेड ज़ोन से लौट रहे प्रवासियों को सीमा पर ही एक हफ्ते के लिए क्वारंटीन करने और कोरोना जांच के निर्देश दिए।

रुद्रप्रयाग का क्वारनटीन सेंटर.jpeg

जिसके बाद प्रवासियों को उनके गृह जिले की सीमा पर एक हफ्ते के लिए क्वारंटीन करने की व्यवस्था बनाई गई है।

क्वारंटीन नियम तोड़ा तो होगी कार्रवाई

संक्रमण के बढ़ते दायरे पर राज्य सरकार भी चिंतित है। 23 मई को मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने आदेश जारी किया कि जिन लोगों को घरों में क्वारंटीन किया गया है, यदि वे क्वारंटीन के नियमों का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें कार्य में व्यवधान डालने का दोषी माना जाएगा और उन पर आपदा प्रबंध अधिनियम 2005 के साथ ऐपिडेमिक डिजिजेस एक्ट, 1897 और उत्तराखंड ऐपिडेमिक डिजिजेस कोविड-19 रेगुलेशन, 2020 के तहत कार्रवाई की जाएगी। ये आदेश 30 जून तक प्रभावी रहेगा। जो लोग घर में क्वारंटीन नहीं हो सकते, उन्हें क्वारंटीन केंद्र लाया जाएगा।

क्वारंटीन प्रवासियों की ज़िम्मेदारी ग्राम प्रधान पर

उत्तराखंड में अभी तक तकरीबन डेढ़ लाख लोग लौट चुके हैं। बसों-ट्रेनों से ये आवाजाही जारी है। प्रवासियों की संख्या तीन लाख से अधिक होने का अनुमान है। इन सभी को संस्थागत क्वारंटीन करने और इनके देखरेख की बड़ी जिम्मेदारी ग्राम प्रधान को दी गई। इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए प्रधानों को बजट देने का आदेश भी आया लेकिन वो बजट अभी अधिकारियों के फाइलों तक पहुंच सका है, प्रधानों के अकाउंट में नहीं। ग्राम प्रधान की मदद के लिए बाद में इसमें शिक्षकों को भी शामिल किया गया। इसके साथ ही ग्राम पंचायत अधिकारी, आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी इसमें ग्राम प्रधान की मदद कर रहे हैं।

पौड़ी के दुगड्डा ब्लॉक का क्वारनटीन सेंटर2.jpeg

ग्राम प्रधानों को बजट भेजा तो पहुंचा क्यों नहीं

राज्य के शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने बयान दिया कि प्रवासियों की देखरेख के लिए ग्राम प्रधानों तक बजट पहुंचा दिया गया है, सभी जिलाधिकारियों को पहली किस्त के रूप में 4 करोड़ रुपये दिए गए हैं। प्रवासियों के ठहरने और भोजन की व्यवस्था सरकारी पैसे पर हो रही है। उनके इस बयान के बाद ग्राम प्रधान नाराज हो गए। अल्मोड़ा में ग्राम प्रधानों ने जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया। पिथौरागढ़ में भी बजट न मिलने से नाराज ग्राम प्रधानों ने प्रदर्शन किया।

अल्मोड़ा में जागेश्वर से विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने ग्राम प्रधानों का मुद्दा उठाया। वह कहते हैं कि शासनादेश तो जारी कर दिया गया है लेकिन प्रधानों के खाते में ये पैसे नहीं पहुंचे हैं। कुंजवाल बताते हैं कि जिलाधिकारी इसलिए पैसा नहीं जारी कर रहे कि होम क्वारंटीन में रह रहे प्रवासी तो अपने परिवार में भोजन कर रहे। उन्हें लगता है कि प्रधानों का कोई पैसा खर्च नहीं हो रहा। जबकि स्थिति ये है कि पंचायत भवन, स्कूलों में प्रधान अपने खर्च और साथियों के साथ मिलकर प्रवासियों का इंतज़ाम कर रहे हैं।

होम क्वारंटीन का आदेश बड़ी भूल- गोविंद कुंजवाल

गोविंद कुंजवाल कहते हैं कि होम क्वारंटीन का आदेश कर सरकार ने बड़ी भूल की है। बाहर से आ रहे लोगों को संस्थागत क्वारंटीन करना चाहिए। वहां की व्यवस्था सरकार करती। यदि वित्तीय संकट था तो सामाजिक संगठनों और लोगों से आह्वान करती। ऐसे में बहुत सारे लोग मदद को आगे आते। लेकिन संस्थागत क्वारंटीन का आदेश नहीं किया गया, सीधे होम क्वारंटीन किया।

क्वारंटीन सेंटर पर एक होम गार्ड की ही ड्यूटी लगाते

वह बताते हैं कि उनके क्षेत्र में कहीं-कहीं गांववालों ने संगठन बनाकर होम क्वारंटीन का विरोध किया और पंचायत घर-स्कूल खुलवाए। पहले सिर्फ पंचायत घरों में ही रहने की व्यवस्था की गई। गांववालों ने जब दबाव डाला तो स्कूल भी खुलवाए गए। जहां गांववालों ने ही भोजन की व्यवस्था की। वह बताते हैं कि ऐसा भी हुआ है गांववालों ने स्कूल खुलवाया तो जिला प्रशासन ने तहसीलदार को भेजकर स्कूल पर ताला लगा दिया और प्रवासियों को उनके घर भेज दिया। जबकि बहुत से घरों में प्रवासियों के अलग से रहने का इंतज़ाम नहीं है। कहने को ग्राम प्रधान के साथ शिक्षक, आशा-आंगनबाड़ी की ड्यूटी भी लगाई गई है। लेकिन क्वारंटीन केंद्र पर प्रधान के अलावा कोई नहीं जा रहा। कई जगह तो प्रवासियों ने प्रधानों को ही पीट दिया। प्रधान या शिक्षक गांव के ही लोग हैं जिनका प्रवासियों में कोई भय नहीं। कुंजवाल कहते हैं कि कम से कम एक होमगार्ड की ड्यूटी तो क्वारंटीन सेंटर पर लगा देते।

क्वारंटीन सेंटर बने स्कूलों में पानी नहीं, प्रधानों की कोई सुनता नहीं

पौड़ी के दुगड्डा ब्लॉक की प्रमुख रुचि कुमारी बताती हैं यहां के गांव के प्राइमरी स्कूलों में एक या दो कमरे हैं। वहां लाइट, वॉशरूम की व्यवस्था अच्छी नहीं है। पानी बहुत दूर से लाना पड़ता है। ऐसे स्कूल बहुत कम हैं, जहां स्कूल में ही पानी हो। रुचि कहती हैं कि गांव के प्रधानों की बात लोग मान नहीं रहे। जिन प्रवासियों के परिजन हैं, उन्हें भी लग रहा है कि प्रधानों को पैसे मिले हैं लेकिन वे खर्च नहीं कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि प्रधान ही सबकुछ करे। जबकि प्रधानों के खाते में पैसे पहुंचे ही नहीं।

दुगड्डा ब्लॉक में 30 अप्रैल तक 886 प्रवासी लौटे थे। अब ये संख्या 1856 हो गई है।

‘प्रवासियों को सीधा गांव नहीं लाते तो बेहतर होता’

रुचि बताती हैं कि होम क्वारंटीन में रह रहे लोगों की कोई मॉनीटरिंग नहीं हो रही है। अगर क्वारंटीन में मौजूद व्यक्ति प्रशासन या डॉक्टर को बुलाता है तो जवाब मिलता है कि जब क्वारंटीन के 14 दिन पूरे हो जाएंगे, हम तभी चेक करने आएंगे। प्रधान ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि होम क्वारंटीन नियमों का पालन हो। ब्लॉक प्रमुख रुचि कहती हैं कि मैंने मेडिकल चेकअप के लिए डॉक्टरों से बात की तो वे कहते हैं कि हम जांच के लिए तभी आएंगे जब किसी की तबीयत बिगड़ेगी। रुचि बताती हैं कि यहां डॉक्टरों के पास भी चेकअप के लिए जरूरी सामान नहीं है। वह कहती हैं कि यदि प्रवासियों को नजदीकी बड़ी जगहों जैसे कोटद्वार या ऋषिकेश में क्वारंटीन किया जाता और सीधा गांवों में आने से रोका जाता तो बेहतर होता।

“क्वारंटीन लोगों का मेडिकल परीक्षण ज़रूरी है”

रुद्रप्रयाग के उखीमठ ब्लॉक के कविल्ठा गांव के प्रधान अरविंद राणा कहते हैं कि सरकार के दावे के विपरीत हमें कोई पैसा नहीं मिला है। न ही मेरी जानकारी में किसी भी प्रधान को पैसा मिला है। वह कहते हैं कि फिलहाल पैसों की बात छोड़ भी दें तो जो जरूरी है कि 14 दिन का लॉकडाउन पूरा होने के बाद संस्थागत लोगों का मेडिकल चेकअप हो जाता। अरविंद कहते हैं कि जब ये सुनने में आ रहा है कि कोरोना वायरस के लक्षण 14 दिन बाद भी सामने आ रहे हैं तो यदि संस्थागत क्वारंटीन किए गए लोगों का एक बार मेडिकल चेकअप हो जाता तो हमें संतुष्टि होती। गांव के लोगों का डर भी दूर होता। वह बताते हैं कि इसके लिए आपदा कंट्रोल रूम में भी बात की। वहां से जवाब मिला कि हमारे पास इतनी व्यवस्था नहीं है। यदि किसी में कोरोना के लक्षण आते हैं, हम तभी आ सकेंगे।

अरविंद जी बताते हैं कि उनके गांव में अलग राज्य से आए लोगों को अलग जगह क्वारंटीन किया गया है। जिनके घरों में व्यवस्था नहीं है, उन्हें भी क्वारंटीन किया है। पर्यटन भवन के निर्माणाधीन भवन में, खाली दुकान में, आंगनबाड़ी केंद्र में, स्कूल में लोगों को शिफ्ट किया गया है। परिवारवाले, प्रधान मिलकर भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं।

पहाड़ के लोग निराशा में डूबकर कह रहे हैं कि पहाड़ जो कोरोना से अछूता था, अब वहां ख़तरा ज्यादा हो गया है। मुश्किल ये है कि पहाड़ में स्वास्थ व्यवस्था न के बराबर है। 

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