मध्यप्रदेश: इंदौर में तेजी से बढ़ रहे हैं कोरोना पॉजिटिव मामले
मध्यप्रदेश का इंदौर शहर कोरोना को लेकर हाई अलर्ट पर है। यहां तेजी से पॉजिटिव केस बढ़ रहे हैं। पिछले 24 घंटे में यहां 7 नए मरीज मिले हैं। कल, रविवार को यहां 4 नए लोगों का सैंपल पॉजिटिव आया था। मध्यप्रदेश के कुल 47 केस में से 27 इंदौर के हैं। इंदौर में कोरोना की रोकथाम में हुई लापरवाही ने लोगों को चिंता में डाल दिया है। शनिवार-रविवार की रात एक बड़ी प्रशासनिक लापरवाही सामने आई थी, जब एम.आर. टी.बी. अस्पताल से एक कोरोना पॉजिटिव मरीज़ और दो कोरोना संदिग्ध मरीज भाग गए। इससे इंदौर में सामुदायिक स्तर पर कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। इस मरीज का 5 घंटे तक खुले में बाहर रहने के कारण प्रशासन से लेकर आम जन तक चिंतित हैं।
उसके संपर्क में आए लोगों की पहचान करना भी एक चुनौती है। यद्यपि वह जिन-जिन इलाकों से गुजरा है, उन इलाकों को इंदौर नगर निगम ने सैनेटाइज कर दिया और प्रशासन ने सख्त कदम उठाते हुए इंदौर को तीन दिन के लिए पूरी तरह लॉक डाउन कर दिया। इस दरम्यान जरूरी सेवाओं के लिए भी लोगों को घर से बाहर नहीं निकलना हैं। जरूरी सेवाएं घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई है।
मध्यप्रदेश में सबसे पहले जबलपुर में कोरोना के केस आए थे। उसके बाद भोपाल, ग्वालियर, शिवपुरी और फिर इंदौर व उज्जैन में पॉजिटिव केस सामने आए। अन्य जगहों पर पॉजिटिव केस बहुत ही कम हैं, लेकिन इंदौर में बहुत तेजी से मामले सामने आए और यहां के अस्पताल में तीन मरीजों की मौत भी हो गई है। अभी तक प्रदेश में सामने आए आधे से ज्यादा मामले इंदौर के हैं।
इंदौर में लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के लिए अधिकारियों की विशेष टीम का भी गठन किया था। ऐसे में अस्पताल से मरीज के भागने जैसी लापरवाही चौंकाने वाली है। प्रारंभिक पूछताछ में मरीज ने बताया कि वह अस्पताल की अव्यवस्था से नाराज था। उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। इस पॉजिटिव मरीज के अलावा दो अन्य संदिग्ध मरीज भी भाग गए थे, जिसमें से एक खुद अस्पताल वापस आ गया और दूसरे संदिग्ध को प्रशासन ने पकड़ कर अस्पताल पहुंचाया।
इस लापरवाही से पहले इंदौर में एक और बड़ी लापरवाही 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन भी देखने को मिली थी, जब दिन भर घरों में रहने के बाद शाम 5 बजे कई चौराहों पर लोग इकट्ठा होकर थाली, ताली और शंख बजाने लगे थे। सड़कों पर बढ़ती भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने डंडे की फटकार भी लगाई थी। 28 मार्च को मुख्यमंत्री ने इंदौर कलेक्टर और पुलिस उप महानिरीक्षक का तबादला भी कर दिया है। इसके लिए उस दिन की प्रशासनिक लापरवाही को भी कारण बताया जा रहा है। उस घटना पर वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्र का कहना है, ‘‘22 मार्च को इंदौर में 5 बजे के बाद ऐसा नजारा था, मानो कोरोना पर विजय मिल गया है।
मोदी भक्ति में भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं सहित आम लोगों ने भी शहर को जोखिम में डालने का काम किया था। लोग न तो इस वायरस की गंभीरता को समझ रहे हैं और न ही इसे वैज्ञानिक ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में लॉक डाउन के बावजूद अलग-अलग कारणों से इंदौर में जुटती भीड़ खतरे को बढ़ा रही है।’’
इंदौर में कई जगहों पर खरीददारी के लिए लोगों की भीड़ लगती रही है। प्रशासन लगातार सख्ती बढ़ाता जा रहा है, लेकिन मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इंदौर के कई ऐसे मरीज हैं, जिन्होंने न तो विदेश की यात्रा की थी और न ही विदेश यात्रा करने वालों के सीधे संपर्क में आए थे। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि यहां सामुदायिक स्तर पर कोरोना का फैलाव हो रहा है।
जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि का कहना है, ‘‘सरकारी अस्पतालों में रूटीन स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन करना ही मुश्किल रहा है। अस्पताल पहले से ही ओवर लोडेड हैं। आपातकालीन बीमारियों कैंसर, दिल, किडनी के मरीजों और प्रसव कराने वाली महिलाओं की संख्या कम नहीं हो सकती हैं। इनको अस्पताल ले जाने में दिक्कत हो रही है। हार्ट अटैक में कोई क्या करें। इनके सबके लिए सरकार ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है।
जब ऐसे मरीज अस्पताल पहुंचते हैं, तो उन्हें दुविधाओं का सामना करना पड़ता है कि वे पहले कोरोना का मरीज देखें या फिर इन इमर्जेंसी मामलों को देखें। ऐसे में किसी मरीज पर कम ध्यान दे पाना एक स्वाभाविक घटना हो सकती है। सरकार कोरोना को लेकर रोज हेल्थ बुलेटिन निकाल रही है, लेकिन उसमें यह जिक्र ही नहीं है कि कितने मैन पावर बढ़ाए गए, कितनी अधोसंरचना विकसित की गई और सेवाओं में किस तरह का सुधार किया गया है। रीवा एवं कटनी जिले से सूचना आ रही है कि वहां स्वास्थ्य कर्मियों के लिए मास्क तक नहीं हैं। ऐसे मौके पर सरकार द्वारा किए जा रहे तबादला और पदस्थापना भी सही नहीं है, क्योंकि इसका भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। सरकार को केरल का मॉडल अपनाना चाहिए और सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों स्तर पर समन्वय होना चाहिए।’’
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