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कॉरपोरेट पूंजीवाद और जलवायु लक्ष्य

कार्बन नियंत्रण की चुनौती पूंजीवाद और कार्बन उत्सर्जन के सवाल को उठाती है, ख़ासकर बड़े कॉरपोरेट पूंजीवाद की भूमिका के बारे में।
air pollution
फ़ोटो साभार: Mint Lounge

जलवायु परिवर्तन संपूर्ण मानवता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। शुद्ध-शून्य (net-zero) उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में कार्बन उत्सर्जन कम करना हर देश की जिम्मेदारी बन गई है। कार्बन उत्सर्जन को कम करना ट्रांसपोर्ट मालिकों, फॉसिल ईंधन का उपयोग करने वाले कारखानों, या कोयला अथवा फर्नेस आदि का उपयोग करने वाले थर्मल पावर प्लांट्स जैसी सभी प्रमुख हस्तियों की जिम्मेदारी बनती है, जो कार्बन या अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करते हैं। वनों की कटाई, कुछ खास किस्म की कृषि संबंधित गतिविधियाँ, पशुपालन, और कचरे को जलाना आदि भी ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक होते हैं।

नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लिए जलवायु लक्ष्य

नेट-ज़ीरो का अर्थ है वर्ष 2050 तक कार्बन गैसों और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की उतनी ही मात्रा को कम करना या हटाना, जितना कि वर्ष 2050 तक उनमें जारी मात्रा के बराबर हो, ताकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सके। 2015 में 193 देशों और यूरोपीय संघ ने इस लक्ष्य को पेरिस में अपनाया था। अब तक, 198 देश कार्बन कम करने हेतु पेरिस लक्ष्यों को अपनाने पर सहमत हुए हैं।

अलग-अलग देश इन लक्ष्यों को तभी प्राप्त कर सकते हैं जब प्रत्येक देश में कार्बन उत्सर्जक इकाइयां शुद्ध-शून्य (net-zero) प्राप्त करने के लिए अपने संबंधित उप-लक्ष्यों को अपनाएं। परिवहन के प्रत्येक साधन और उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार प्रत्येक कंपनी को स्वयं के लक्ष्यों को अपनाने की आवश्यकता है। तभी समग्र देश-लक्ष्य और उसके द्वारा वैश्विक लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

कॉरपोरेट घराने कार्बन गैस के प्रमुख उत्सर्जक होते हैं। हर थर्मल पावर प्लांट के अलावा, जीवाश्म ईंधन कंपनियां- जैसे ब्रिटिश पेट्रोलियम, एक्सॉनमोबिल (ExxonMobil), शेवरॉन ऐण्ड शेल, बड़े सीमेंट समूह जैसे ACC, लाफार्ज-होल्सिम (Lafarge-Holcim) और हीडलबर्ग सीमेंट (Heidelberg Cement) चीन के प्रमुख इस्पात संयंत्र, जैसे बाओवू (Baowu), जापान का निप्पॉन स्टील (Nippon Steel) और आर्सेलर मित्तल (ArcelorMittal), बड़ी परिवहन कंपनियां जैसे टोयोटा, फोर्ड, जनरल मोटर्स और खाद्य समूह जैसे कारगिल, नेस्ले, कैडबरी और यूनिलीवर अपनी औद्योगिक प्रक्रियाओं में कार्बन गैसों के प्रमुख उत्सर्जक हैं। यह उत्सर्जन कई छोटे देशों द्वारा किये जा रहे उत्सर्जन के बराबर है।

इसलिए कार्बन नियंत्रण की चुनौती पूंजीवाद और कार्बन उत्सर्जन के सवाल को उठाती है, खासकर बड़े कॉरपोरेट पूंजीवाद की भूमिका के बारे में । विश्व स्तर पर, कुछ देशों ने अलग-अलग कंपनियों के लिए कार्बन नियंत्रण के कानून और कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य बनाए हैं। लेकिन ऐसे देश अभी गिने-चुने ही हैं।

उदाहरण के लिए, यूके पहला देश था जिसने 2021 में कंपनियों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्यों को अपनाया। फिर, यूरोपियन ग्रीन डील के तहत, यूरोप के अन्य देशों ने भी कंपनियों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य अपनाए। न्यूजीलैंड दूसरा महत्वपूर्ण देश है जिसने कंपनियों को एक निर्दिष्ट समयावधि के भीतर उनके एमिशन को शून्य तक कम करने के लिए कानून लागू किया। जापान ने कार्बन मूल्य निर्धारण (carbon pricing) प्रणाली लागू की है, जो कंपनियों द्वारा किये जा रहे उत्सर्जन के अनुपात में एक कार्बन कर (carbon tax) होता है, ताकि यह राशि कंपेंसेटरी कार्बन नियंत्रण के लिए उपयोग की जा सके।

कुछ देशों ने कंपनियों पर वार्षिक उप-लक्ष्यों (sub-targets) को हासिल करते हुए शून्य एमिशन की ओर बढ़ने में असफलता के लिए जुर्माने की भी घोषणा की है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन, और दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक अमेरिका ने कंपनियों पर बाध्यकारी लक्ष्यों को लागू करने वाले कानून नहीं बनाए हैं।

भारत, तीसरे प्रमुख उत्सर्जक, ने कंपनियों पर नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कोई बाध्यकारी कानून पारित नहीं किया है। न ही राज्यों ने इस आशय के अपने कानून पारित किए हैं। भारत सरकार नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कंपनियों को आगे बढ़ाने हेतु पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं देती है। अधिक-से-अधिक उसने केवल एक कार्बन ट्रेडिंग तंत्र स्थापित कर दिया है।

वैश्विक रूप से, कई निगमों ने स्वेच्छापूर्वक अपने नेट-ज़ीरो लक्ष्य घोषित किए हैं। भारत में भी, कई कंपनियों ने स्वेच्छापूर्वक 2050 को नेट-ज़ीरो लक्ष्य प्राप्त करने का टार्गेट वर्ष घोषित किया है। इनमें वेदांता, आदित्य बिरला ग्रुप, जिंदल स्टील वर्क्स ग्रुप, अदानी ट्रांसमिशन, महिंद्रा एंड महिंद्रा और दलमिया सीमेंट्स जैसी कंपनियां शामिल हैं। रिलायंस ग्रुप ने घोषणा की है कि वे पहले ही, यानी 2035 तक लक्ष्य प्राप्त करेंगे। लेकिन ये केवल स्वेच्छापूर्वक घोषित लक्ष्य हैं। इन पर कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। इससे भी बुरी बात तो यह है कि कंपनियां न केवल अपने लक्ष्यों से मुकर सकती हैं, बल्कि वे मौजूदा उत्सर्जन आंकड़ों में हेरफेर भी कर सकती हैं, और अपने आंशिक उपायों से मिलने वाले संभावित लाभों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकती हैं।

इन कंपनियों के स्व-घोषित लक्ष्य कितने वास्तविक हैं? वे वास्तव में इन दीर्घकालिक लक्ष्यों को साल-दर-साल लागू करने में कितने ईमानदार हैं? कॉरपोरेट वित्त और इन कंपनियों के प्रदर्शन पर अन्य कॉरपोरेट रिपोर्टों के शोधकर्ताओं ने इन लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए अपनाई गई प्रथाओं में कई विवादास्पद पहलुओं और जोड़तोड़ की ओर इशारा किया है।

कंपनियों के इन स्व-घोषित लक्ष्यों की विश्वसनीयता का आकलन करने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं है, क्योंकि इस बात की हमेशा संभावना रहती है कि कंपनियां अपने लक्ष्यों में हेरफेर करें या उन्हें प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों को गलत तरीके से प्रस्तुत करें। ऐसे लक्ष्यों की विश्वसनीयता कंपनियों द्वारा रिपोर्टिंग की पारदर्शिता और सटीकता पर निर्भर करेगी।

शोधकर्ताओं ने बताया है कि कई कंपनियां अपने कार्बन उत्सर्जन की गणना करने के लिए विभिन्न तरीकों और धारणाओं का उपयोग करती हैं, जिससे उनके लक्ष्यों की तुलना करना या उनकी प्रगति का सही आकलन करना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, कुछ कंपनियां अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्बन ऑफ़सेट (carbon offset) का उपयोग करती हैं, जो विश्वसनीय नहीं होते हैं या जिनके नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं। इसलिए, कार्बन उत्सर्जन को कम करने में उनकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए इन लक्ष्यों की निगरानी और नियमन करना महत्वपूर्ण हो जाता है। (कार्बन ऑफ़सेट आपके उत्सर्जन की भरपाई करने का एक तरीका है, जो इसके बराबर कार्बन डाइऑक्साइड को कहीं और बचाने के लिए फंडिंग करता है।)

वैश्विक स्तर पर ऐसे अनैतिक अभ्यासों का विश्लेषण और विवेचना एक रिपोर्ट में की गई, है जिसका नाम है 'कॉरपोरेट क्लाइमेट रिस्पॉन्सिबिलिटी मॉनिटर 2022'(Corporate Climate Responsibility Monitor 2022)। यह रिपोर्ट न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट ( New Climate Institute) द्वारा लाई गई है, जो एक थिंक टैंक है, जिसे जर्मन वैज्ञानिक निक्लास होह्ने (Niklas Hohne) ने स्थापित किया है, और कार्बन मार्केट वॉच (Carbon Market Watch) नामक कुछ NGOs का एक समूहिक मंच है, जिसने 2009 में एक साथ आकर देशों की जलवायु लक्ष्यों में प्रगति को ट्रैक करना शुरू किया था। इस 128 पेज की रिपोर्ट के निष्कर्षों का संक्षिप्त सारांश निम्नलिखित हैं। यह रिपोर्ट 7 फरवरी 2023 को जारी की गई है। यह पश्चिम में पूंजीवाद-विरोधी एक्टिविस्टों और हरित एक्टिविस्टों दोनों द्वारा स्वागत की गई है।

कॉरपोरेट जलवायु जिम्मेदारी मॉनिटर रिपोर्ट 2022 की मुख्य बातें

कॉरपोरेट क्लाइमेट रेस्पांसिबिलिटी मॉनिटर कंपनियों की क्लाइमेट प्रतिबद्धता की पारदर्शिता और ईमानदारी का मूल्यांकन करता है। जब कंपनियां खोखले लक्ष्य अपनाती हैं और उन्हें लागू करने में निष्ठाहीन रहती हैं, तो ऐसे आचरण को सामान्य तौर पर ‘ग्रीनवाशिंग’ कहते हैं।

यह रिपोर्ट 25 विशाल वैश्विक कंपनियों के प्रदर्शन की जांच करती है, जिनमें Accenture, Apple, Amazon, ऑटो मेजर BMW, रिटेल जायंट Carrefour, Deutsche Telekom, फार्मा मेजर GlaxoSmithKline, टेक जायंट Google, Hitachi, Maersk, Nestle, Novartis, Unilever, Vodafone और Walmart शामिल हैं। यह कदाचारों के साथ-साथ अच्छी मॉडल प्रथाओं की भी पहचान करती है।

यह रिपोर्ट कॉरपोरेट क्लाइमेट दावों के चार मुख्य क्षेत्रों की जांच करती है।

1) यह जांच करती है कि कंपनी अपनी उत्सर्जन स्तर को सही ढंग से उजागर करती है या नहीं। 2) यह जांचती है कि कंपनी अपने उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य कैसे तय करती है। 3) यह कंपनियों के अपने स्वयं के उत्सर्जन में कमी के रिकॉर्ड का अध्ययन करती है; और 4) इसमें जांच की जाती है कि कंपनी अपने उत्सर्जन को कम करने के अलावा समस्त जलवायु प्रयासों में योगदान करती है या नहीं तथा इसके अतिरिक्त क्षतिपूर्ति के रूप में कार्बन घटाने के वैकल्पिक हरित उपायों का उपयोग करती है या नहीं।

इस रिपोर्ट में 25 प्रमुख बहुराष्ट्रीय निगमों का मूल्यांकन किया गया है। उन्होंने 2020 में 3.18 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के संयुक्त राजस्व की रिपोर्ट की, जो दुनिया की सबसे बड़ी 500 कंपनियों के कुल राजस्व का लगभग 10% है। उनके कुल स्व-रिपोर्ट किए गए GHG (greenhouse gases) उत्सर्जन पदचिह्न, जिसमें अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम उत्सर्जन शामिल हैं, 2019 में लगभग 2.7 GtCO2e है। (1 GtCO2e का अर्थ CO2 समतुल्य गीगा टन है। 1 GtCO2e का अर्थ है एक बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड। 2.7 GtCO2e वैश्विक GHG उत्सर्जन के लगभग 5% के बराबर है।)

कार्बन मार्केट वॉच (Carbon Market Watch) और न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट द्वारा जारी रिसर्च की प्रमुख जानकारियां निम्नलिखित हैं:

* “नेट ज़ीरो” यानी शुद्ध शून्य लक्ष्य विश्लेषित की गई कंपनियों के कुल उत्सर्जन को केवल औसतन 40% तक कम करने हेतु प्रतिबद्ध हैं, न कि 100% जैसा कि "नेट ज़ीरो” शब्द द्वारा सुझाया गया है।

* 2030 के लक्ष्य पेरिस समझौते के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत लक्ष्यों के साथ तालमेल करने हेतु आवश्यक महत्वाकांक्षा से काफी पीछे हैं।

* कंपनियों द्वारा निर्धारित लक्ष्य भ्रामक हैं और उनके दावों में विश्वसनीयता की कमी है।

* कंपनियों द्वारा अपनाए गए एमिशन घटाने की उपायों में तात्कालिकता की भावना ज़रा भी दिखाई नहीं देती।

* इनमें से कुछ ही कंपनियां अक्षय ऊर्जा की सोर्सिंग के लिए उच्च गुणवत्ता वाले अभिनव दृष्टिकोण प्रदर्शित करती हैं।

* अपने और अपने वैल्यू चेन के भीतर कार्बन तटस्थता के लक्ष्य के बिना, वे देश के कुल जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए योगदान देने की बात करते हैं।

* रिपोर्ट के अनुभाग बी में, इन 25 कंपनियों में से प्रत्येक कंपनी के जलवायु प्रयास दावों का विश्लेषण किया गया है और इसमें खोज किए गए दोषों को चिह्नित किया गया है। उदाहरण के लिए, रिपोर्ट में दिखाया गया है कि आईटी मेजर ऍक्सेंचर का एमिशन लक्ष्य 2019 के एमिशन स्तर से 2025 तक सिर्फ 5% की कमी दिखाता है। इसी तरह, रिपोर्ट में दिखाया गया है कि अमेज़न का घोषणा पत्र, 2040 तक नेट-शून्य लक्ष्य हासिल करने का है, जो कि पूरी तरह निराधार है और अमेज़न के खुद के एमिशन कम करने पर आधारित नहीं है।

* टेक जायंट कंपनी एप्पल (Apple) दावा करती है कि वह पहले से ही कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल कर चुकी है, लेकिन रिपोर्ट खुलासा करती है कि कंपनी के अब तक अपने उत्सर्जन कम करने / भरपाई के प्रयास इसके कुल GHG उत्सर्जन का केवल 1.5% है। रिपोर्ट ने यह भी पाया है कि जबकि ऑटो मेजर BMW ने कार्बन न्यूट्रैलिटी तक पहुंचने के लिए 2050 को लक्ष्य निर्धारित किया है, कंपनी ने उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वार्षिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किए हैं।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ग्लोबल रिटेलर कैरेफोर (Carrefour) का दावा है कि वह 2040 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करेगा, पर यह कंपनी के केवल 2% उत्सर्जन को कवर करेगा; जर्मन टेलीकॉम जायंट डॉयच टेलीकॉम (Deutsche Telekom) बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन उनके बारे में अपर्याप्त जानकारी देती है, ब्रिटिश फार्मा मेजर ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline) के उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य उसके कार्बन रीडक्शन पथ (pathway) से मेल नहीं खाते और गूगल के उत्सर्जन के लक्ष्य उसके वर्तमान उत्सर्जन के 60% को शामिल नहीं करते हैं।

ये कुछ उदाहरण हैं जो रिपोर्ट में दिये गए 25 सूक्ष्म अनुसंधान से प्राप्त हुए हैं। रिपोर्ट ने कॉरपोरेट झूठ को जड़ से मिटाने के लिए प्रभावी उपाय चिह्नित किये हैं और कॉरपोरेट जलवायु टाल-मटोल और फर्जी दावों को रोकने के लिए शक्तिशाली नियामक अधिकार की मांग की है।

फादर प्रेम मित्रा, एक इसाई पादरी, जो बैंगलोर में हरित आन्दोलन में जुड़े हैं और जो बन्नरघट्टा में हाथी संरक्षण परियोजना A Rocha India के अध्यक्ष हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस रिपोर्ट का प्रकाशन हरित आंदोलन के लिए एक स्वागत योग्य उपलब्धि है। उन्होंने वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से एक और मूर्खता की ओर इशारा किया। अपने स्वयं के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के बजाय वे भारत जैसे विकासशील देशों में स्थानीय रूप से अनुपयोगी पेड़ों को उगाने के लिए थोड़ा सा पैसा खर्च करते हैं ताकि वे अपने स्वयं के बेलगाम उत्सर्जन की भरपाई के लिए कार्बन क्रेडिट खरीद सकें। उन्होंने कहा कि यह उनके पापों को धोने के लिए कुछ कौड़ियां फेंकने जैसा है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के संरक्षण और सतत विकास की तनिक परवाह न करने वाले इन बड़े कॉरपोरेट्स को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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