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न्यायालय पीएमएलए पर दिए गए फैसले की समीक्षा करने के लिए दायर अर्जी को सूचीबद्ध करने को तैयार

उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 27 जुलाई को दिए फैसले में पीएमएलए के प्रावधानों की वैधानिकता को बरकरार रखते हुए टिप्पणी की थी कि दुनिया में यह आम अनुभव है कि धनशोधन वित्तीय प्रणाली के ठीक से काम करने के रास्ते में ‘‘खतरा’’ हो सकता है। शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया कि यह ‘‘साधारण अपराध’’नहीं है।
SC

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को गिरफ्तारी,धनशोधन के मामलों से जुड़ी संपत्ति को कुर्क करने, तलाशी और जब्ती के अधिकार के पक्ष में दिए गए फैसले की समीक्षा करने के लिए दायर अर्जी को सूचीबद्ध करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया। 
     
प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष जब इस मामले का उल्लेख किया गया तो पीठ ने कहा, ‘‘ठीक है, हम सूचीबद्ध करेंगे।’’ 
     
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 27 जुलाई को दिए फैसले में पीएमएलए के प्रावधानों की वैधानिकता को बरकरार रखते हुए टिप्पणी की थी कि दुनिया में यह आम अनुभव है कि धनशोधन वित्तीय प्रणाली के ठीक से काम करने के रास्ते में ‘‘खतरा’’ हो सकता है। शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया कि यह ‘‘साधारण अपराध’’नहीं है।
     
केंद्र जोर दे रहा है कि धनशोधन का अपराध न केवल अनैतिक कारोबारियों द्वारा किया जाता है बल्कि आतंकवादी संगठन भी इसे अंजाम देते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। 
     
न्यायमूर्ति ए.एम.खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि 2002 के अधिनियम के तहत प्राधिकारी ‘‘ पुलिस की तरह नहीं है’’ और प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की तुलना भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत दर्ज प्राथमिकी से नहीं की जा सकती। 
     
पीठ ने फैसले ने कहा कि हर मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर मुहैया करना अनिवार्य नहीं है और ईडी के लिए गिरफ्तारी के वक्त आधार का खुलासा करना ही पर्याप्त है। 
     
याचिकाकर्ताओं ने मामले में ईसीआईआर की सामग्री का खुलासा आरोपियों के समक्ष नहीं करने का मुद्दा उठाया था। 
     
शीर्ष अदालत ने यह फैसला व्यक्तियों और संगठनों की करीब 200 याचिकाओं पर दिया जिसमे पीएमएलए के प्रावधानों की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। अकसर विरोधी दावा करते हैं कि इन प्रावधानों को सरकार ने अपने राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित करने के लिये हथियार बनाया है। 

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