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कोविड-19: विस्फ़ोटक वृद्धि के कगार पर भारत, अब भी बहुत ही कम परीक्षण

भारत में हर चार दिन में कोविड-19 से संक्रमित होने वाली संख्या दोगुनी हो रही है। यही दर जारी रही, तो अगले दो हफ़्तों में कोविड-19 से संक्रमितों की तादाद लगभग 50,000 होगी।
कोविड-19

2 अप्रैल को जिस दिन मैं यह कॉलम लिख रहा था, दुनिया में कोविड-19 से संक्रमितों की संख्या दस लाख को पार कर रही थी और लगभग 50,000 लोग दम तोड़ चुके थे। भारत में इससे मरने वालों की संख्या 51 है और कुल संक्रमित मामले 2,000 से अधिक हैं। इतना तो साफ़ है कि इससे दुनिया के सभी देश प्रभावित हैं। यह तो तब है, जब समूहों या हॉट स्पॉट के रूप में यह अभी तक नहीं फैला है। यह अभी उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ रहा है। एक बार जब यह तेज़ी से बढ़ने लगेगा, हमारे लिए एक डरावनी स्थिति पैदा हो जायेगी। लेकिन बहुत जल्द ही हम इस मामले में उस दोगुनी दर के साथ तेज़ी से आगे बढ़ने लगेंगे, जो बहुत जल्द ही इस संख्या को डरावना बना देती है। ये वही हालात हैं, जो 6 सप्ताह पहले वुहान के थे। यह हालत इटली में लगभग 3-4 सप्ताह पहले आ गयी थी और अब संयुक्त राज्य अमेरिका इसी हालत से जूझ रहा है।

अगर हम मान लें कि भारत के आंकड़े वास्तविकता को दर्शाते हैं और यहां टेस्टिंग में किसी तरह की कमी नहीं है, तो हमारी गणना के मुताबिक़ भारत अमेरिका से लगभग 3 सप्ताह ही पीछे है। भले ही कुछ सप्ताह कमी-बेशी हो, मगर हम सभी एक ही हालात में हैं !

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यदि हम सिर्फ़ मौजूदा आंकड़ों पर ही नज़र नहीं डालें, जिसमें एक बड़ा हेर-फेर दिखता है, बल्कि इसके बजाय यह देखें कि किसी देश में संक्रमित सौ लोगों के आंकड़े तक पहुंचने के बाद यह बीमारी किस तरह बढ़ती है। यह एक ऐसा चार्ट है, जो इस समय काफी चलन में है। यह चार्ट दिखाता है कि सभी देशों में 3-5 दिनों के भीतर संक्रमितों की संख्या दोगुनी हो रही है। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही का है कि इस महामारी ने कुछ देशों में दूसरों से आगे पहुंची है। उष्णकटिबंधीय देशों (गर्म और उच्च पूर्ण नमी वाले देशों) में मुमकिन है कि संक्रमण की यह दर थोड़ी कम हो। लेकिन, इससे संक्रमण के आख़िरी नतीजे पर असर नहीं पड़ेगा।

हर 3-5 दिनों में बढ़ जाने की दर के दोगुने होने का मतलब, इस महामारी का एक घातांकीय दर (exponential growth) से बढ़ना है। जैसा कि मैंने अपने पहले के आलेख में बताया था कि ज़्यादातर लोग बढ़ने की इस गति को नहीं समझ पाते हैं। यह वह गति है,जिसके साथ कोई महामारी एक निश्चित संख्या तक पहुंचने के बाद विस्फ़ोटक हो सकती है। इस समय शायद हम 4 दिनों में दोगुने हो जाने की दर की हालात में आ गये हैं। इस समय संक्रमितों की तादाद 2,000 है। इस तादाद को हम अगले सप्ताह तक 10,000 तक के आंकड़े को छू चुके होंगे, और अब से दो सप्ताह के भीतर यह संख्या बढ़कर लगभग 50,000 हो चुकी होगी।

यह स्थिति हमें लॉकडाउन में ले आती है और महामारी के फैलने पर इसका प्रभाव पड़ने की संभावना है। कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने लॉकडाउन को पूरी तरह ढीले ढाले तरीक़े से लागू किया है। इसकी कोई तैयारी नहीं थी, राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ इसे लेकर किसी तरह की कोई बातचीत नहीं की गयी थी, इस बात को लेकर किसी तरह की कोई योजना नहीं थी कि सबसे कमज़ोर तबके पर इसका क्या असर होगा, यह भी नहीं सोचा गया था कि भारत के शहरों और क़स्बों में बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूरों की बड़ी आबादी रहती है, उसका क्या होगा। अजीब बात है कि भीड़ भरे उन समूहों के बीच शारीरिक दूरी की बात की जाती है, जहां शहरी आबादी के एक बड़े हिस्से लिए बिल्कुल यह मुमकिन नहीं है। ऐसे लोगों के लिए विकल्प तो बचा था कि वे या तो वहीं रुकें और भूखे रहें, या ख़तरनाक सफ़र को तय करते हुए अपने-अपने गांवों वापस आ जायें।

सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर आने वाले प्रवासी परिवारों की त्रासदी अब सबके सामने है। वे लगातार यही कह रहे हैं, कोरोनोवायरस उन्हें मार सकता है, लेकिन अगर वे भोजन के बिना रहे, तो भूख उन्हें ज़रूर मार डालेगी। आख़िर सरकार को इस तरह की बातें पहले क्यों नहीं दिखायी पड़ीं? सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री सहित सरकार और उनके अफ़सर लॉकडाउन नीति की योजना बनाते समय ग़रीबों को पूरी तरह से भूल गये थे?

प्रधानमंत्री के पास प्रवासियों को देने के लिए अपनी माफ़ी मांगने के सिवा कुछ था भी नहीं। लोगों के लिए भारतीय खाद्य निगम के गोदाम खोलने की कोई बात नहीं की गयी, केंद्र द्वारा बिना किसी योजना के लगाये गये लॉकडाउन से पैदा होने वाले संकट को दूर करने के लिए राज्य सरकारों की कोई तत्काल मदद को लेकर भी कोई बात नहीं की गयी। इसके बजाय, प्रवासियों की सभी तरह की आवाजाही को रोकने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत ज़िला प्रशासन को निर्देश जारी कर दिये गये हैं, और मीडिया को चेताया गया है कि वह सरकार से सत्यापित किये बिना ख़बरों को रिपोर्ट करने पर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे।

कोई शक नहीं कि एक कामयाब लॉकडाउन से संक्रमण के फैलने की कड़ी को तोड़ने में मदद मिली होती और नोवल कोरोनावायरस या SARS-Cov-2 के फैलने में कमी आयी होती। इससे शायद हमें कुछ समय और भी मिल गया होता। सवाल उठता है कि ढीले ढाले तरीक़े से चल रहे इस लॉकडाउन के क्या परिणाम हो सकते हैं? इसका एक तात्कालिक परिणाम तो यही है कि बड़े पैमाने पर लोगों की आवाजाही ने लोगों को एक दूसरे के शारीरिक संपर्क में ला दिया है और शहरी क्षेत्रों को छोड़कर बड़ी संख्या में पलायन करने वाले के शारीरिक अलगाव को लगभग नामुमकिन बना दिया है। यदि उनमें से बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होते हैं, तो इससे देश भर में कई और हॉट स्पॉट बन जायेंगे।

यदि इस तरह के नये हॉट स्पॉट की संख्या बहुत नहीं बनी, और इस सप्ताह के बाद लॉकडाउन को आगे भी जारी रखा जा सके, तो हम आंशिक रूप से इस संक्रमण की कड़ी को तोड़ सकेंगे। शुरू में जितनी उम्मीद की गयी थी, उतनी धीमी गति से तो नहीं, लेकिन फिर भी इसकी गति कुछ धीमी ज़रूर होगी।

यदि हम संक्रमण की रफ़्तार के मॉडल पर बात करें कि इसकी संभावना किस तरह की है, तो हम अब भी संक्रमण की बढ़ती दर को देख रहे हैं, और शायद अगले दो-तीन महीनों के भीतर यह बढ़ोतरी अपने शिखर पर होने जा रही है। यदि हम इस वायरस के फैलाव को धीमा करना चाहते हैं और अस्पताल प्रणाली को उन लोगों के लिए सुविधाजनक बना लेते हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने और गहन देखभाल की ज़रूरत है, तो अगले 4-6 सप्ताह बेहद अहम होने जा रहे हैं।

अगले कुछ हफ़्तों में भारत की परीक्षण रणनीति में तत्काल और अहम बदलाव करना होगा। हमें महामारी से लड़ने के लिए ज़मीनी हक़ीक़त को जानने की ज़रूरत है। इस समय संक्रमितों की तादाद जो 2,000 है,ऐसा तो नहीं कि यह इसलिए है कि हमारे परीक्षण के आंकड़े ही बहुत कम हैं? या ये असली आंकड़े हैं? दोनों ही हालात में हमें डब्लूएचओ के महानिदेशक, टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस की उस बात का ख़्याल रखना होगा, जिसे उन्होंने 16 मार्च को अपने संवाददाता सम्मेलन में कहा था:

हमारे पास सभी देशों के लिए एक ही सरल संदेश है: परीक्षण, परीक्षण, परीक्षण।

परीक्षण करने के बजाय, हम अपनी आंखों को बंद करके आग से खेल रहे हैं। यह हालत तब है, जब हमें मालूम है कि यह महामारी अपने शबाब पर है। ICMR ने बहुत सीमित संख्या में किटों की ख़रीद की है और ऐसा लगता है कि अब भी हमारी परीक्षण क्षमता बहुत ही कम है। नवीनतम आंकड़े (1 अप्रैल को पीटीआई द्वारा बताया गया) दिखाते हैं कि अबतक 47, 951 परीक्षण ही किये गये हैं। यह प्रतिदिन लगभग 6,000 परीक्षणों वाली दैनिक परीक्षण दर को दिखाता है, जो हमारी परीक्षण क्षमता का लगभग 35-40% है। इन संख्याओं के साथ भारत की प्रति दस लाख जनसंख्या के परीक्षण के आंकड़े अब भी दुनिया में सबसे कम में से एक हैं। इसकी तुलना दक्षिण कोरिया से करें। उसने 21 फरवरी से 14 मार्च तक, तीन सप्ताह के भीतर 2,50,000 लोगों का परीक्षण किया था। यह एक बहुत बड़ी संख्या है और वह भी तब, जब इस देश की जनसंखाया, हमारी जनसंख्या के 5% से भी कम है।

साफ़ नज़र आने वाले इस ख़तरे के बावजूद, ICMR ने इसकी कोई तैयारी नहीं की। उसने किसी तरह की कोई योजना नहीं बनायी थी और इन दोनों का मिला जुला परिणाम इस ज़रूरी परीक्षण क्षमता की कमी के रूप में हमारे सामने है। अब हम भारतीय निर्माताओं को निर्माण की मंजूरी देते हुए लाखों किट ख़रीदने के बारे में सुन रहे हैं। ये सब अब ही क्यों?  परीक्षण की ज़मीनी हक़ीक़त हमारी ज़रूरतों से कहीं बहुत कम है। आने वाले दिनों में अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए परीक्षण किट का बड़ी संख्या में ऑर्डर देते हुए अपनी परीक्षण क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है।

यह एक अहम सवाल है कि हम कोविड-19 के फैलने के किस चरण में हैं? डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शुरू में तो यह बाहर से आये हुए मामले थे; फिर स्थानीय स्तर पर इसका संक्रमण होना शुरू हुआ, जिसका अर्थ है बाहर से आये हुए मामलों या पहले से संक्रमित रोगी के संपर्क में आना; और फिर सामुदायिक संक्रमण का होना। जब हम स्थानीय संक्रमण से सामुदायिक संक्रमण की ओर बढ़ते हैं, तो यह स्थिति गंभीर हो जाती है।

ICMR और स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन मंत्रालय ने 'सीमित सामुदायिक प्रसारण' नाम का एक शब्द को सामने रखा है। यह गढ़ा गया शब्द सही मायने में ‘आधा तीतर, आधा बटेर’ है! परीक्षण को लेकर इसका मतलब जो कुछ है, वह यही कि ICMR के नियम। और ICMR अब भी भारत में संपूर्ण परीक्षण के बुनियादी ढांचे को नियंत्रित करता है। सच्चाई तो यही है कि यह ढांचा इतना ख़राब है कि बड़े पैमाने पर परीक्षण नहीं हो पा रहे हैं। ICMR के दिशानिर्देशों के तहत सीमित संख्या में ही मामलों के परीक्षण किये जा सकते हैं। ये दिशानिर्देश ठेठ सरकारी तरह के हैं। वे परीक्षण के लिए अनुमति देने से कहीं अधिक भ्रमित करना चाहते हैं।

ज़मीनी सच्चाई साफ़ हैं: हम पहले से ही एक सामुदायिक संक्रमण वाले चरण में हैं, जहां लॉकडाउन का व्यापक परीक्षण होना बाक़ी है। जो गंभीर रूप से बीमार नहीं हैं, उनके लिए बनाये गये विशेष अस्थायी अस्पतालों में संक्रमितों को आइसोलेट करना है और गंभीर निगरानी की ज़रूरत वाले संक्रमितों के लिए मौजूदा अस्पतालों को आरक्षित करना है।

सवाल यह भी है कि अस्पताल के कर्मचारियों के लिए ज़रूरी N95 मास्क, दस्ताने, फुल-बॉडी प्रोटेक्टिव सूट और फेस मास्क को लेकर हमारी कितनी तैयारी हैं? वुहान में संक्रमण के पहले चरण में ही 3,000 चिकित्सा कर्मचारी पूरी तरह से संक्रमित हो गये थे। लेकिन, अगले चरण में, इस प्रांत के बाहर से आये 42,000 चिकित्सा कर्मियों सहित एक भी चिकित्सा कर्मी संक्रमित नहीं हुआ था। इसका कारण पूरी तरह सुरक्षात्मक उपकरण ही था। मगर, अस्पतालों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक हमारे पास अगले मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षात्मक उपकरण की भयानक कमी है ।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने राष्ट्रपति शी को फ़ोन कॉल किया था। इसके बाद, अमेरिका चीन से 22 उड़ानों के ज़रिये अहम चिकित्सा आपूर्ति की योजना बना रहा है। चीन इकलौता ऐसा देश है, जिसके पास पर्याप्त मात्रा में N95 मास्क (चिकित्सा स्टाफ को ऐसे संक्रामक रोगों से निपटने के लिए आवश्यक) और दूसरे सुरक्षात्मक उपकरण बनाने की ज़रूरी क्षमता है। क्या प्रधानमंत्री मोदी, ट्रंप की तरह फ़ोन उठायेंगे, क्या वे भी शी को फ़ोन करेंगे? क्या वे उन परीक्षण किट और सुरक्षात्मक उपकरणों की आपातकालीन आपूर्ति की मांग करेंगे, जिनकी आपूर्ति विश्व स्तर पर बहुत ही कम है? और जिनकी हमें इस समय सख़्त ज़रूरत है?

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Covid-19: On Brink of Exponential Growth in Infected, India Still Testing Too Few

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