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कोविड-19
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वैश्विक एकजुटता के ज़रिये क्यूबा दिखा रहा है बिग फ़ार्मा आधिपत्य का विकल्प
दुनिया को बिग फ़ार्मा के एकाधिकारवादी चलन का एक विकल्प सुझाते हुए क्यूबा मुनाफ़े से कहीं ज़्यादा अहमियत लोगों को देता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, राज्य से वित्त पोषित अनुसंधान को बढ़ावा देता है और विकासशील देशों को तकनीकी हस्तांतरण और वैक्सीन वितरण के ज़रिये वैश्विक एकजुटता दिखाता है
ऋचा चिंतन
11 Jan 2022
Cuba

क्यूबा की कामयाबी की कहानियों में एक और कहानी जुड़ गयी है। क्यूबा ने अपनी 85% से ज़्यादा की आबादी को पूरी तरह से टीका लगा दिया है, और बाक़ी 7% लोगों को पहला डोज़ मिल गया है। इस लिहाज़ से संयुक्त राज्य अमेरिका सहित ज़्यादातर दूसरे विकसित देशों के मुक़ाबले क्यूबा कहीं ज़्यादा आगे है। और ऐसा छह दशक के लंबे समय से लगे उस व्यापार प्रतिबंध के बावजूद है, जिसे अमेरिका ने इस छोटे से विकासशील देशों पर लगाया हुआ है।

क्यूबा में पांच साल से कम उम्र के बच्चों को भी टीका लगा दिया गया है, जबकि दुनिया भर में बड़ी फ़ार्मा कंपनियां अब भी इस आयु वर्ग के लिए टीके विकसित ही कर रही हैं। क्यूबा में टीकाकरण अभियान में 2-18 आयु वर्ग के बच्चे शामिल हैं।

वहीं यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका जैसे बेहद विकसित देशों ने अपनी आबादी के लगभग 60-70% लोगों को पूरी तरह से टीकाकरण करने में कामयाबी हासिल कर ली है।

क्यूबा अपने स्वदेशी टीकों की मदद से अपने यहां के लोगों का टीकाकरण करने में कामयाब रहा है। इसने पांच स्वदेशी टीकों को सफलतापूर्वक विकसित किया है।इन टीकों में से अब्दाला, सोबराना 02 और सोबराना प्लस को मंज़ूरी दे दी गयी है और इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। बाक़ी दो टीके- सोबराना 01 और माम्बिसा अब भी नैदानिक परीक्षणों से गुज़र रहे हैं और अभी तक इन्हें मंज़ूरी नहीं मिल पायी है। इन टीकों का एक फ़ायदा यह है कि ये प्रोटीन के एक ऐसे विशेष घटक की पारंपरिक तकनीक पर आधारित हैं, जिससे इनका इस्तेमाल करना आसान हो जाता है। उन्हें फ़्रीज़ में या कमरे के तापमान पर भी रखा जा सकता है और बच्चों को दिया जा सकता है।

क्यूबा के वैज्ञानिक ओमिक्रॉन वैरिएंट के ख़िलाफ़ एक असरदार टीके के रूप में सोबराना प्लस के पहले प्रोटोटाइप पर भी काम कर रहे हैं।

टीके के साथ-साथ तकनीक का भी साझीकरण

क्यूबा न सिर्फ़ बच्चों सहित अपनी ज़्यादतर आबादी का टीकाकरण करने में कामयाब रहा है, बल्कि उसने इन टीकों को उन दूसरे देशों में भी भेजना शुरू कर दिया है, जिन्होंने उन्हें अपने यहां मंज़ूरी दे दी है। ऐसे देशों में वेनेजुएला, वियतनाम, ईरान, निकारागुआ, अर्जेंटीना और मैक्सिको शामिल हैं, जिन्होंने या तो क्यूबा के टीके को मंज़ूरी दे दी है या फिर मंज़दूरी दिये जाने में अपनी दिलचस्पी दिखायी है। हाल ही में मेक्सिको ने क्यूबा के अब्दाला टीके के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी है।

यह सब 1960 के दशक से अमेरिका की ओर से क्यूबा पर लगाये गये व्यापार प्रतिबंधों और सावधिक प्रतिबंधों के बावजूद है। इन प्रतिबंधों ने क्यूबा को वित्तीय और राजनीतिक लिहाज़ से कमज़ोर बना दिया है, जहां सिर्फ़ कुछ ही सहयोगी और समर्थक देश क्यूबा के साथ समझौते कर पाते हैं। हाल ही में अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ट्रम्प ने क्यूबा की अर्थव्यवस्था पर हमला करने वाले दो सौ से ज़्यादा हिदायतों पर दस्तख़त किये थे। 1992 से संयुक्त राष्ट्र महासभा क्यूबा पर अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंध को ख़त्म करने की मांग करते हुए हर साल एक प्रस्ताव पारित करती रही है। लेकिन,अमेरिका और इस्राइल लगातार इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान करते रहे हैं।

ऑक्सफ़ैम की ओर से तैयार की गयी रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका की ओर से लगाये गये इन प्रतिबंधों ने न सिर्फ़ क्यूबा की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है और लोगों को प्रभावित किया है, बल्कि टीकों और निदान के विकास के लिए ज़रूरी कच्चे माल पर भी असर डाला है।

क्यूबा ने इन देशों को न सिर्फ़ तत्काल लगाये जाने के लिए टीके दिए हैं, बल्कि इन टीकों के उत्पादन की तकनीक भी दिये हैं। इन टीकों का उत्पादन सरकार की ओर से स्थापित और संचालित अनुसंधान संस्थानों- सेंटर फ़ॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी या सीआईजीबी (अब्दाला) और फ़िनले इंस्टीट्यूट (सोबराना 02) की तरफ़ से किया जाता है। जहां वेनेजुएला और वियतनाम ने क्यूबा के टीकों का प्रबंधन शुरू कर दिया है, वहीं सीरिया ने भी स्वास्थ्य से जुड़े सहयोग को मज़बूत करने के लिए क्यूबा के अधिकारियों के साथ बातचीत की है। मार्च में क्यूबा ने अपने सोबराना 02 वैक्सीन की 100,000 खुराक ईरान को भेजी थी और ईरान और नाइजीरिया दोनों ने अपने घरेलू टीकों को विकसित करने के लिए इस देश के साथ साझेदारी करने पर सहमति जतायी है।

पूरी की पूरी टेक्नोलॉजी के ट्रांसफ़र का मतलब यह है कि यह तकनीक हासिल करने वाला देश घरेलू विनिर्माण संयंत्र स्थापित कर सकता है और वैक्सीन के उत्पादन प्रक्रिया शुरू से अंत तक दोहरा सकता है। यह तकनीक पाने वाले देशों की विनिर्माण क्षमता के निर्माण में भी मदद करता है।

यह विकसित देशों में स्थित उन बिग फ़ार्मा कंपनियों के ठीक उलट है, जिन्होंने तकनीकी जानकारी को साझा करने से इनकार कर दिया है। ज़्यादतर अमीर, विकसित देशों ने भी उस ट्रिप्स छूट प्रस्ताव का विरोध किया है, जो महामारी के दरम्यान अहम दवाओं, टीकों और चिकित्सा उत्पादों पर पेटेंट को लागू नहीं करने की मांग करता है। इस प्रस्ताव पर अब भी 15 महीनों बाद बातचीत जारी है, लेकिन,यूरोप के देशों और बिग फ़ार्मा लॉबी ने इस बातचीत को रोक दिया है।

महामारी के दौरान और दूसरे वक़्त में बाक़ी देशों की मदद  

क्यूबा का यह सफल टीकाकरण अभियान सरकारी स्वामित्व वाले एक अच्छी तरह से विकसित बायो-फ़र्माश्यूटिकल उद्योग पर आधारित है। यह अभियान पूरी क्षमता के साथ तमाम तबकों तक सुलभ और आसान बनाते हुए दवाओं और चिकित्सा उत्पादों की घरेलू ज़रूरतों को पूरा करता है। यह उस ठोस सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का समर्थन करता है, जिसे क्यूबा ने लोगों के लिए सालों से तैयार किया है।

क्यूबा दुनिया भर में बायो-फ़र्माश्यूटिकल उत्पादों के एक अनिवार्य निर्यातक के रूप में सामने आया है और यहां के डॉक्टरों ने कई देशों को अहम मदद पहुंचायी है।

2020 में जैसे ही कोविड-19 महामारी फैली, वैसे ही जहां दुनिया के देशों ने सिर्फ़ अपनी ही ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित किया था, वहीं क्यूबा ने डॉक्टरों की टीमों को दूसरे देशों में भेजा था। 2020 में महामारी के शुरुआती दिनों में डॉक्टरों की इन टीमों को लोम्बार्डी और पीडमोंट के इतालवी क्षेत्रों में भेजा गया था। मार्च 2020 में इन टीमों को फ़्रांस और स्पेन के बीच स्थित उस छोटे से देश अंडोरा में भी भेजा गया था, जो एक ढहती स्वास्थ्य प्रणाली से जूझ रहा था। चिकित्सा के लिहाज़ से अंतर्राष्ट्रीयता और अफ़्रीका के साथ एकजुटता की लंबी परंपरा पर निर्मित क्यूबा के चिकित्सा पेशेवरों की इन टीमों को टोगो, दक्षिण अफ़्रीका, केप वर्डे, सिएरा लियोन, साओ टोमे और प्रिंसिपे, इक्वेटोरियाई गिनी, गिनी कोनाक्री, गिनी बिसाऊ और केन्या जैसे कई देशों में तैनात किया गया था।

क्यूबा के हेनरी रीव इंटरनेशनल मेडिकल ब्रिगेड के इन प्रयासों की व्यापक रूप से सराहना की गयी और दुनिया भर में इन प्रयासों के लिए उसे नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने की मांग भी उठी।

इस एकजुटता का एक उत्कृष्ट उदाहरण मार्च 2020 में तब सामने आया था, जब इटली के लोम्बार्डी क्षेत्र के एक अपेक्षाकृत छोटे से शहर- क्रेमा में बढ़ते मामलों और भारी स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच यह शहर एक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा था। एक तफ़सीली रिपोर्ट के मुताबिक़, मेयर स्टेफ़ानिया बोनाल्डी ने मदद की गुहार करते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अधिकारियों को सचेत किया था। जल्द ही क्यूबा के 52 स्वास्थ्यकर्मी क्रेमा पहुंच गये थे।

बोनाल्डी ने बताया था कि "उनकी मानवता की भावना ने हमें अभिभूत कर दिया" और उन्होंने "एक ख़ास तरह की संवेदनशीलता और ख़्याल रखे जाने की तरफ़ दुनिया का ध्यान खींचा, जो दुनिया को देखने के उनके तरीक़े की ख़ासियत है।" क्रेमा ने देखभाल और स्वास्थ्य सेवा की एक ऐसी प्रणाली देखी, जो एक-एक घर में तैयार की जाती है, जहां "डॉक्टरों और उनके रोगियों के बीच का रिश्ता बहुत क़रीब का होता है।" रिपोर्ट बताती है कि किस तरह इतालवी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को क्षेत्रीय आधार पर नियंत्रित किया जाता है, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र फ़ैसला लेने की प्रक्रिया में समुचित रूप से स्वतंत्र होता है। पिछले एक दशक से हुए स्वास्थ्य सेवा के निजीकरण वाले इस लोम्बार्डी में अब कम ही सरकारी अस्पताल हैं।

ऐसा पहली बार नहीं है कि क्यूबा दुनिया भर में स्वास्थ्य और मानवीय संकटों के जवाब में सबसे आगे आया हो। चाहे इंडोनेशिया और पाकिस्तान में भूकंप हों, हैती में हैजा का प्रकोप हो, या पश्चिम अफ़्रीका में इबोला महामारी हो, क्यूबा लोगों और सरकारों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहा है। क्यूबा के चिकित्साकर्मियों ने ग्वाटेमाला, इथियोपिया, पूर्वी तिमोर, घाना, ब्राजील और तंजानिया सहित विभिन्न देशों में सेवा की है।

क्यूबा मॉडल स्पष्ट रूप से एक ठोस सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण और सार्वजनिक क्षेत्र के बायो-फ़र्माश्यूटिकल उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के विकास की अहमियत को दर्शाता है। क्यूबाई मॉडल एक ऐसा वैकल्पिक ढांचा प्रदान करता है,जो लोगों को मुनाफ़े से कहीं ज़्यादा अहमियत देता है। इसके उलट, डब्ल्यूएचओ और दूसरे वैश्विक संगठनों के आह्वान के बावजूद,अमीर देशों की सरकारों से समर्थित बिग फ़ार्मा ने पेटेंट एकाधिकार और मुनाफ़ाखोरी को प्राथमिकता दी है। क्रेमा की मेयर ने महामारी के दौरान क्यूबा के  लोगों के साथ काम करने के अपने अनुभव के बाद कहा था, "मेरा मानना है कि इससे हमें इस सचाई को लेकर सोचने के लिए प्रेरित होना चाहिए कि कम से कम ज़्यादातर हिस्से के लिए स्वास्थ्य सेवा सार्वजनिक तो होनी ही चाहिए।"

साभार: पीपल्स डिस्पैच

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