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"दिल्ली 2041 के लिए डीडीए का मास्टर प्लान कामगार वर्ग की समस्याओं का समाधान करने में नाकाम"

गुरुवार को 'मैं भी दिल्ली' कैंपेन ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाकर दिल्ली-2041 के मसौदे पर चर्चा की। यह एक क़ानूनी दस्तावेज़ है, जिसके पास दिल्ली में शहरी विकास को बदलने की ताक़त है।
"दिल्ली 2041 के लिए डीडीए का मास्टर प्लान कामगार वर्ग की समस्याओं का समाधान करने में नाकाम"
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

दिल्ली विकास प्राधिकरण ने पिछले महीने दिल्ली-2041 मास्टर प्लान का मसौदा पेश किया है। लेकिन अकादमिक जगत से जुड़े लोगों, नागरिक समाज के सदस्यों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस मसौदे में राष्ट्रीय राजधानी के कर्मचारी वर्ग की मुख्य समस्याओं का हल नहीं किया गया है। 

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बातें निकलकर आईं, जहां मास्टर प्लान के मसौदे की मुख्य बातों पर विमर्श किया गया और सुझाव दिए गए। मास्टर प्लान का यह प्रस्तावित मसौदा एक कानूनी दस्तावेज़ है, जिसके पास दिल्ली में शहरी विकास को प्रशासित करने की ताकत है। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस 'मैं भी दिल्ली' कैंपेन ने बुलाई थी। मैं भी दिल्ली कैंपेन दिल्ली में योजना को ज़्यादा समावेशी और सहभागी बनाने की दिशा में काम करता है। 

DDA ने 6 जुलाई को मास्टर प्लान का मसौदा सार्वजनिक किया था। DDA केंद्र सरकार की एक संस्था है, जो शहरी और आवास मामलों के मंत्रालय के तहत आती है। दिल्ली के उपराज्यपाल DDA के अध्यक्ष होते हैं और इस प्राधिकरण में निहित कार्यकारी शक्तियों का प्रशासन करते हैं।

योजना के मसौदे पर 45 दिन तक, मतलब 23 जुलाई तक सार्वजनिक विचार और टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं। 1962 के बाद से अबतक का यह चौथा मास्टर प्लान है।

गुरुवार को की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि मसौदा अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले अनौपचारिक कामग़ारों को पुरानी योजनाओं की तुलना में ज़्यादा मान्यता देता है। बता दें यह अनौपचारिक कामग़ार शहर में बहुमत में हैं। लेकिन यह मसौदा इन अनौपचारिक कामग़ारों के मुद्दों पर योजना के नज़रिए से ध्यान केंद्रित करने में नाकामयाब रहा है।

उदाहरण के लिए इन कामग़ारों की आवास व्यवस्था को ही ले लीजिए। मसौदे में 2021 की जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाते हुए कहा गया है कि 2041 तक दिल्ली में करीब़ 34.5 लाख आवासों की जरूरत होगी, जिनमें हर घर में औसत तौर पर 4.5 लोगों का परिवार रहेगा।

थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के साथ काम करने वाली शहरी शोधार्थी मुक्ता नायक कहती हैं कि मसौदे में आवास के इस आंकड़े को अलग-अलग वर्गों- आर्थिक तौर पर कमजोर तबके (EWS), निम्न आय वर्ग (LIG) और मध्यम आय वर्ग (MIG) में वर्गीकृत नहीं किया गया। यह कानून के पालन और शहर में किराये पर किफ़ायती आवास को निश्चित करने के लिए जरूरी है।

वह आगे कहती हैं, "हम जेजे (झुग्गी-झोपड़ी) बस्तियों को नियमित करने की योजना के विस्तार और पुनर्वास कॉलोनियों के निवासियों को सुरक्षित आवास अधिकार दिए जाने की मांग करते हैं।"

इंडो-ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी NGO के साथ काम करने वाले अरविंद उन्नी कहते हैं कि अनौपचारिक रोज़गार के अलग-अलग क्षेत्रों की साफ़ पहचान होनी चाहिए और मास्टर प्लान में उनके काम की जगहों- जैसे घर, सड़कें, बाज़ार और कचरा निष्पादन स्थान को सुरक्षित करने के लिए प्रावधान होने चाहिए। उनके मुताबिक़ स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 और ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 इस मसौदे से "पूरी तरह नदारद" हैं। वह कहते हैं, "इस मसौदे का इन मौजूदा विधेयकों और नीतियों के साथ समन्वय होना चाहिए।"

दिल्ली के एक NGO जनपहल की शांति स्निग्धा कहती हैं, "मौजूदा विधेयक फिलहाल रेहड़ी से जुड़े कामों में लगी शहर की सिर्फ़ 2।5 फ़ीसदी आबादी को मान्यता देते हैं। मास्टर प्लान में प्राकृतिक बाज़ारों को मान्यता दिए जाने और समावेशी रेहड़ी स्थानों की जरूरत है।"

लैंगिक सवाल पर सेवा (SEWA- सेल्फ़ एंप्लॉयड वीमेन्स एसोसिएशन) की सुभद्रा पांडे कहती हैं कि राष्ट्रीय राजधानी में काम करने वाली महिलाओं का 60 से 70 फ़ीसदी हिस्सा अनौपचारिक अर्थव्यस्था से जुड़ा हुआ है। वह कहती हैं, "योजना में घरेलू कामग़ारों और घर पर रहकर काम करने वालों की जरूरतों को लेकर ज्यादा उल्लेख किए जाने की जरूरत है।"

मसौदा कहता है कि सामाजिक अवसंरचना की उपलब्धता को बेहतर करने के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सुविधा भूखंडों को "बहुउद्देशीय भूखंडों" के तौर पर उपयोग किया जाएगा, ताकि समुदाय के भीतर उनका कई चीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सके। पांडे ने इस कदम का स्वागत करते हुए, इसे लागू किए जाने के संबंध में स्पष्ट प्रावधानों को जारी करने की मांग की। वह कहती हैं, "समुदाय के लिए इस तरह के बहुउद्देशीय स्थानों, खासकर घरेलू महिलाओं और घरों से काम करने वाले कामग़रों के लिए, इन्हें मास्टर प्लान के तहत अनिवार्य कर देना चाहिए।"

ठोस कचरा प्रबंधन पर दिल्ली गोलमेज के शेख अकबर अली ने अनौपचारिक कचरा कामग़ारों के समावेश के लिए स्पष्ट नियमों और जरूरी शर्तों की मांग की। साथ ही एक सतत शहरी गतिशील योजना को बनाने पर सुझाव और सार्वजनिक स्थानों के सुरक्षित उपयोग के लिए स्पष्ट शर्तों के सुझावों को भी साझा किया गया। 

कॉन्फ्रेंस के दौरान सामाजिक कार्यकर्ताओं ने DDA से नागरिकों द्वारा टिप्पणी और सुझाव देने के लिए 45 दिनों की समयसीमा को कम से कम 6 महीने बढ़ाने की मांग की।

मैं भी दिल्ली द्वारा जारी किया गया प्रेस वक्तव्य कहता है, "एक महामारी के दौरान लोगों की रायशुमारी के लिए सिर्फ़ 45 दिनों का वक़्त देना जनता के अधिकारों और योजना में भागीदार बनने की इच्छा का उल्लंघन है। योजना की सफलता, लोगों में इसे अपनाने की इच्छा पर निर्भर करती है।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

DDA’s Master Plan for Delhi-2041 Fails to Address Working People’s Concerns, Says People’s Collective

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