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डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने का अमेरिकी संकल्प

बिग डेयरी के अपने अतार्किक समर्थन में, अमेरिकी सरकार आम लोगों को गुमराह कर रही है और एक उद्योग की कीमत पर दूसरे उद्योग की जेबों को मालामाल करने में मशगूल है।

Dairy

जब लेखक और इतिहासकार जेम्स ट्रूस्लोव एडम्स ने अपनी 1931 की किताब द एपिक ऑफ़ अमेरिका में “द अमेरिकन ड्रीम” को आम बोलचाल में पेश किया था, तो वे इस बात का सुझाव नहीं दे रहे थे कि इसे पूरा करने के लिए लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गई अमेरिकी सरकार को इस बात को तय करने की आवश्यकत पड़ेगी कि अमेरिकियों को क्या खाना-पीना चाहिए या अपनी मेहनत से कमाए गए टैक्स के पैसे से इन उद्योगों को वित्त-पोषित करना चाहिए। लेकिन डेयरी उद्योग को लगातार सब्सिडी देकर ठीक यही काम अमेरिकी सरकार कई दशकों से करती आ रही है – एक ऐसा उद्योग जिसे लोकप्रिय अवधारणा पहले ही पीछे छोड़ चुकी है। 

वास्तविक अमेरिकी ड्रीम को लेकर आज मतभेद की स्थिति है जिसमें एक उद्योग को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरे उद्योग पर करदाताओं के डॉलर को धन में तब्दील किया जा रहा है। इसका एक उदाहरण सरकार द्वारा डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने में देखा जा सकता है। यही वजह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का कृषि विभाग (यूएसडीए) लोगों से लगातार इस बात को कह रहा है कि डेयरी के पास अपने स्वयं का खाद्य समूह होना चाहिए और उसने इस विचार को बढ़ावा दिया है कि अधिकांश वयस्कों और बच्चों को “प्रतिदिन करीब तीन कप दूध पीना” चाहिए, ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें स्वस्थ्य बने रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त हो रहे हैं। हालाँकि, यह तथ्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा प्रदान किये गए तथ्यों के विपरीत है। एजेंसी के मुताबिक, 3 से 5 करोड़ के बीच अमेरिकी दुग्ध-शर्करा (दूध में पाई जाने वाली चीनी) को पचा पाने की स्थिति में नहीं हैं, जिसमें उत्तरी यूरोप मूल के लोग जो कि “उच्च लैक्टोज के प्रति सहनशील” हैं की तुलना में “95% एशियाई अमेरिकी, 60-80 प्रतिशत अफ्रीकी अमेरिकी और एशकेनाज़ी यहूदी, 80-100 प्रतिशत अमेरिकी मूल और 50-80 प्रतिशत हिस्पैनिक मूल के लोग शामिल” हैं।

वास्तव में देखें तो कुछ अध्ययनों ने डेयरी उत्पादों की खपत को पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और मेनोपोज के बाद की अवस्था वाली महिलाओं में अंतर्गर्भाशयकला संबंधी कैंसर के भारी जोखिमों को जोड़ कर दर्शाया है। इसके अलावा, जिन देशों में दूध की खपत की दर सबसे अधिक है, वहां पर “अस्थिरोगों की दर सबसे अधिक” पाई गई है। वाशिंगटन पोस्ट में 2014 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार स्वीडन में उप्पसला विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक, दूध की खपत पुरुषों और महिलाओं दोनों में उच्च मृत्यु दर से भी जुड़ी हुई है। 

लेकिन इन तथ्यों ने यूएसडीए को डेयरी की मांग को लगातार बढ़ाए रखने की चाह को नहीं रोका है। पर्यावरणीय कार्य समूह एवं यूएसडीए के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिकियों ने 1995 से लेकर 2000 के बीच में डेयरी उद्योग को सब्सिडी मुहैया कराने में 6.4 अरब डॉलर खर्च किये हैं। इन सब्सिडी में मार्केटिंग फीस भी शामिल है जो दूध की खपत को बढ़ावा देने के साथ-साथ कई अन्य “यूएसडीए द्वारा डेयरी से संबंधित कार्यक्रमों को प्रशासित करती हैं,” जिन्हें “डेयरी किसानों और डेयरी उत्पाद के उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए” डिजाइन किया गया है।” बदले में, डेयरी उद्योग के द्वारा अमेरिकी लोगों की कमाई को दुहने का काम किया जा रहा है, और उनके खून पसीने की कमाई को तरल श्वेत स्याह डिब्बों में तब्दील किया जा रहा है। 

यहाँ तक कि अमेरिकी डेयरी उद्योग के लिए इतने भारी वित्तीय लाभ जुटाने के बावजूद, डेयरी-समृद्ध राज्यों के प्रतिनिधियों पीटर वेल्श (डी-वीटी), माइक सिम्पसन (आर-आईडी), और सीनेटर टैमी बाल्डविन (डी-डब्ल्यूआई) और जिम रिश (आर-आईडी) ने अप्रैल 2021 में कानून का एक टुकड़ा (विडंबना यह है कि पृथ्वी दिवस पर) पेश किया, जिसे डेयरी प्राइड एक्ट के तौर पर जाना जाता है। यह विधेयक, यदि पारित हो जाता है तो फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) को पौध-आधारित उत्पाद निर्माताओं को दूध, दही या पनीर जैसे शब्दों का उपयोग करने से रोकने के लिए उनके द्वारा इन शब्दों के प्रयोग पर रोक लगानी पड़ सकती है।

यह धक्का तब आया है जब जई, सोयाबीन, बादाम और यहाँ तक कि पिस्ते से निचोड़कर तैयार किया गया पौध-आधारित दूध की उपभोक्ता मांग आसमान छू रही है। सौभाग्यवश उन उपभोक्ताओं के लिए जो स्वतंत्र विकल्प की महत्ता को समझते हैं, और उन बाजारों को जो उचित व्यापार को महत्व देते हैं, के कारण इस कानून के पास अपने बने रहने के लिए आधार न के बराबर है, जिसे सिर्फ प्रतिस्पर्धात्मक भय से परे बने रहने के आधार पर निर्मित किया गया था। 

मई 2021 में, कुछ इसी प्रकार के कानून को यूरोपीय संघ में संशोधन 171 को यूरोपीय संसद के द्वारा वापस ले लिया गया था। डेयरी प्राइड एक्ट की तरह ही इसने पारंपरिक रूप से डेयरी उत्पादों को व्याख्यायित करने हेतु इस्तेमाल किये जाने वाले शब्दों जैसे कि “बटरी” और “क्रीमी” जैसे शब्दों को पौध-आधारित उत्पादों के द्वारा इस्तेमाल में लाने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

इसके अलावा 2021 में भी, केलिफोर्निया के उत्तरी जिले के लिए अमेरिकी जिला न्यायालय ने मियोको किचन के पक्ष में फैसला सुनाया था, एक ऐसा ब्रांड जो डेयरी-मुक्त उत्पादों में विशेषज्ञता रखता है, जब केलिफोर्निया खाद्य एवं कृषि विभाग ने कंपनी को ‘बटर’ और ‘डेयरी’ जैसे शब्दों को अपने उत्पाद की मार्केटिंग और लेबलिंग करने पर उपयोग को बंद करने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद कि इन्हें “शाकाहारी” और “पौध-आधारित” स्थानीय भाषा से जोड़ा गया था। अदालत ने पौध-आधारित ब्रांड से अपनी सहमति व्यक्त की, जिसने तर्क दिया था कि उत्पाद की लेबलिंग पर रोक लगाना जो कि “उपभोक्ताओं के बीच आम बोल-चाल में शामिल है” आज के संदर्भ में एक सटीक विवरण है, से रोकना अभिव्यक्ति की आजादी के पहले संशोधन का उल्लंघन है।

बिग डेयरी की ओर से अपने पक्ष के बचाव का प्रयास सिर्फ तभी किया जाता है जब कभी अमेरिकी सपने का एक प्रमाणिक संस्करण जड़ जमा रहा होता है। जेम्स ट्रस्लोव एडम्स ने इसे कुछ इस प्रकार से परिभाषित किया है, “एक ऐसी धरती का सपना जिसमें जीवन हर किसी के लिए पहले से बेहतर, समृद्ध और परिपूर्ण होगा, और साथ ही हर किसी को उसकी क्षमता या उपलब्धियों के आधार पर अवसर प्राप्त होंगे।” और उपभोक्ताओं के पास आज से पहले कभी भी चुनने के लिए इतने अवसर प्राप्त नहीं थे कि वे अपने जीवन को बेहतर स्वास्थ्यकर डेयरी विकल्पों के साथ चुन सकते थे, चाहे वे जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना “समृद्ध और परिपूर्ण” जीवन को परिभाषित कर सकते हैं, जो जलवायु संकट या जठरान्त्र संबंधी संकट को कम करने में अपना योगदान देते हैं। और पौध-आधारित दूध कंपनियों के दृष्टिकोण से देखें तो, वर्तमान में यह सपना अकेले अमेरिका में 2.5 अरब डॉलर मूल्य का हो चुका है। 2019 से 2020 तक पौध-आधारित दुग्ध क्षेत्र में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कि मार्केटिंग पर बिना किसी अमेरिकी डॉलर को खर्च किये बगैर ही कुल खुदरा दुग्ध बिक्री के डॉलर का 15 प्रतिशत पर काबिज हो चुका है। और मई 2021 में, पौध-आधारित दुग्ध बाजार ने एक नए मुकाम को तब हासिल कर लिया, जब जईट-दूध निर्माता ओटली ग्रुप ने करीब 10 अरब डॉलर के मुल्यांकन के साथ वाल स्ट्रीट पर अपना व्यापार करना शुरू कर दिया और इसके जलवायु-नियंत्रण वाले लाभों की वजह से इसके स्टॉक को ईएसजी (पर्यावरणीय, सामाजिक एवं कॉर्पोरेट गवर्नेंस) के तौर खरीद करने के लिए चुना गया।

जई दूध (अन्य पौध-आधारित दूध की तरह) में गाय से प्राप्त होने वाले दूध की तुलना में काफी हल्का पर्यावरणीय पदचिन्ह डालता है- जिसमें 70 प्रतिशत कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है, जबकि बीज से लेकर परिपूर्ण होने में 93 प्रतिशत कम पानी का उपयोग किया जाता है।

इस बीच, जलवायु परिवर्तन पर कार्यकारी समूह द्वितीय के अंतरसरकारी पैनल की सह-अध्यक्षा डेब्रा रॉबर्टस ने अगस्त 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था, “कुछ खानपान के विकल्पों में अधिक भूमि और पानी की जरूरत पड़ती है, और अन्य की तुलना में कहीं अधिक ऊष्मा-प्रपाशन गैस उत्सर्जन का कारण बनती हैं। पौध-आधारित खाद्य पदार्थों की विशेषता वाले संतुलित आहार की खासियत है कि इनमें... कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्रणालियों में स्थायी रूप से उत्पादित, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और सीमित करने के लिए प्रमुख मौके प्रस्तुत करता है।” एक एनपीआर लेख के अनुसार, यदि अमेरिका को अपने मूल पेरिस समझौते की प्रतिज्ञा को पूरा करना है तो उसे “वर्ष 2025 तक अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 25 प्रतिशत नीचे ले जाना होगा, एक ऐसा लक्ष्य जिसे  हासिल करने के लिए देश उस राह पर नहीं है।” बिग डेयरी जैसे औद्योगिक कृषि का समर्थन करना जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीर प्रतिबद्धताओं के विपरीत काम करने को बढ़ावा देना होगा।

यदि अमेरिकी सपने को वास्तविकता में साकार बनाना है तो इसके लिए इसके नागरिकों को अपने वास्तविक विकल्पों को चुनने के लिए पात्रता देनी होगी, जो उन्हें अपने डॉलर के साथ मतदान करने और सोच विचारकर यह चुनाव करने की अनुमति देता है कि वे क्या खाना-पीना चाहते हैं। स्वतंत्रता कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे अमेरिकियों को तब प्रदान किया गया है जहाँ पर उन्हें यह भरोसा दिलाया जाता है कि दूध वह चीज है जो उनके शरीर और देश को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है, वह भी सिर्फ इसलिए कि एक उद्योग की कीमत पर दूसरे की जेब भरी जाये। आजादी का अर्थ है स्वयं के लिए और इस ग्रह के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प को निर्मित करने की क्षमता रखना। 

जेनिफर बार्कले द ह्यूमन लीग में संचार की उपाध्यक्षा हैं। 

इस लेख को इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट की एक परियोजना अर्थ/ फ़ूड/ लाइफ के द्वारा तैयार किया गया है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/The-Dairy-Industry-Determined-Pour-Itself-Down-Our-Throats

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