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WHO की फ़ंडिंग पर रोक लगाना अनैतिक, क्रूर और विश्व के लिए ख़तरनाक है

CODEPINK के एरियल गोल्ड विश्व स्वास्थ्य संगठन से फ़ंडिंग वापस लेने के अमेरिकी फ़ैसले और दुनिया पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में बता रहे हैं।
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जिस समय हम सोच रहे हैं कि चीज़ें उस वैश्विक महामारी से बदतर भला क्या हो सकती हैं, जो कि पृथ्वी के हर कोने तक पहुंच गयी है, जिससे 2 मिलियन से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और अब तक 160,000 से अधिक में से 40,000 से अधिक लोग अमेरिका में मारे जा चुके हैं, ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमेरिका से मिलने वाली सभी फ़ंडिंग को रोक दिये जाने की घोषणा कर दी है।

ट्रंप की उस दलील को टॉम कॉटन और टॉड यंग जैसे रिपब्लिकन सीनेटरों का समर्थन भी हासिल है कि डब्ल्यूएचओ पर चीन का बहुत ज़्यादा असर है; COVID-19 संकट के शुरुआती चरणों में सरकारों को सटीक जानकारी देने में डब्ल्यूएचओ नाकाम रहा है; और यह भी कि वैश्विक सहयोग के बिना अपने दम पर संकट का समाधान करने में अमेरिका सबसे अच्छी हालत में है। यह न सिर्फ़ अमेरिका के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए ग़लत और ख़तरनाक है। उन देशों के लिए तो ख़ास तौर पर अकल्पनीय रूप से क्रूर है,जिनकी COVID-19 को लेकर की जाने वाली कोशिश पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों और अमेरिका समर्थन से चलने वाले युद्धों के चलते ठीक से संचालित नहीं हो पा रही है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट के संपादक,रिचर्ड होर्टन के मुताबिक़, यह "मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है", और स्वास्थ्य देखभाल करने वालों, वैज्ञानिकों और रोज़मर्रा के नागरिकों को इसके ख़िलाफ़ "विद्रोह" कर देना चाहिए।

राष्ट्रपति ट्रंप के हमलों के बावजूद, डब्ल्यूएचओ अपने 194 सदस्य देशों को दैनिक रूप से COVID-19 से जुड़ी ज़रूरी सामानों की आपूर्ति, मार्गदर्शन और सहायता मुहैया करा रहा है।

जैसा कि हमें मालूम है कि इटली के उत्तरी हिस्से में इस महामारी का कलस्टर बनते देख  24 फ़रवरी को डब्लूएचओ ने अपने संगठन और यूरोपीय सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (ईसीडीसी) के विशेषज्ञों की एक टीम को भेज दिया था ताकि देश की घातक हालत को समझा जा सके और मानव-से-मानव को होने वाले संचरण को और फैलने से रोका जा सके।

ट्रंप प्रशासन का डब्ल्यूएचओ से इतना नाख़ुश होने की वजह में से एक वजह तो यही हो सकती है कि डब्ल्यूएचओ सभी देशों के साथ काम करता है, जिनमें वे देश भी शामिल हैं,जो संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगी नहीं हैं।

COVID-19 के ईरान में प्रवेश करने से बहुत पहले अमेरिकी प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था, जिसमें इसकी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली भी शामिल थी। अक्टूबर 2019 में, ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) के मिडिल ईस्ट के पूर्व निदेशक, सारा लीह व्हिटसन ने अपने संगठन की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि किस तरह "दुनिया भर के बैंकों और कंपनियों ने ईरान के साथ मानवीय कारोबार से अपने हाथ खींच लिए, ईरान के उन लोगों को किस तरह बेसहारा छोड़ दिया गया, जो ग़ैर-मामूली या जटिल बीमारियों के शिकार थे,वे अपनी बीमारियों की दवा और इलाज करवाने में भी असमर्थ हैं,जिनकी उन्हें इस समय सख़्त ज़रूरत है।”  जिस समय ईरान के लोगों को मिर्गी और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए भी दवायें हासिल कर पाने में मुश्किल पेश आ रही थी, वैसे समय में डब्ल्यूएचओ ख़ास तौर पर अहम हो गया था, क्योंकि COVID-19 ईरान पहुंच चुका था।

5 मार्च, 2020 को जब ईरान दुनिया के सबसे संक्रमित देशों में से एक हो गया था, उस समय डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों की एक टीम ने परीक्षण प्रयोगशालाओं, संपर्क का पता लगाने, और देखभाल करने वाले केंद्रों की तादाद बढ़ाने को लेकर सलाह देने के लिए पांच दिनों की गहन बैठकें कीं और इलाक़ों के दौरे किये ताकि वायरस से उबरने वाले रोगियों को अस्पतालों से निकालकर अस्पतालों पर पड़ने वाले कुछ बोझ को हल्का किया जा सके। ईरान में चलने वाला यह मिशन कम से कम 110,000 लोगों के परीक्षण के लिए पर्याप्त किट हासिल करने के साथ-साथ सात टन व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और दूसरे चिकित्सा सामानों की आपूर्ति के साथ पूरा हुआ।

COVID-19 के वजूद में आने से पहले वेनेजुएला भी अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत पहले से ही पर्याप्त चिकित्सा उपकरणों और दवाओं के अभाव से जूझ रहा था। अमेरिका अपने नाकाम तख़्तापलट की कोशिश के बाद यह दावा करता रहा है कि निकोलस मादुरो वेनेजुएला के वैध राष्ट्रपति नहीं हैं, ऐसे में COVID-19 महामारी ने जब दस्तक देना शुरू कर दिया था और मादुरो ने जब वायरस से लड़ने में मदद के लिए ऋण मांगा, तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ऋण देने से ही इनकार कर दिया। शुक्र है कि ऐसे समय में डब्ल्यूएचओ (साथ ही चीन और रूस भी) सामने आये और उन्होंने इस संकटग्रस्त देश को चिकित्सा आपूर्ति और तकनीकी सहायता मुहैया करा दिया। वेनेजुएला के उपराष्ट्रपति डेल्सी रॉड्रिग्स ने कहा, “हम उस डब्ल्यूएचओ को धन्यवाद देते हैं, जिसने इस बात पर मुहर लगा दी है कि वह वेनेजुएला को मदद करेगा, क्योंकि इस वक्त हम एक विशेष स्थिति में हैं। हम एक ऐसा देश हैं, जिस पर अवैध रूप से प्रतिबंध लगाया गया है और आपराधिक रूप से हमारी नाकेबंदी कर दी गयी है”।

इससे पहले कि इस बात को लेकर बार-बार चेतावनी दी जा रही थी कि कोरोनावायरस यमन तक पहुंच जायेगा, उस वक्त डब्ल्यूएचओ हैजा के आधुनिक समय के सबसे ख़राब प्रकोप से निपटने में यमन की मदद करने में व्यस्त था।लेकिन, ऐसे समय में भी वहां अमेरिका समर्थित सऊदी बमबारी अभियान जारी था और यमन के मुख्य बंदरगाह पर सैन्य अभियान चलाया जा रहा था। 6 अप्रैल, 2020 को डब्ल्यूएचओ और वर्ल्ड बैंक के इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (IDA) ने घोषणा की थी कि वे यमन को आने वाले COVID-19 प्रकोप से निपटने के लिए तैयार करने में मदद करने के प्रयासों को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने को लेकर मिलकर काम कर रहे हैं।

यमन की तरह ही गाजा भी सैन्य नाकेबंदी के बावजूद COVID -19 से निपटने की कोशिश कर रहा है। लगभग 13 वर्षों की घेराबंदी और लगातार होते इजरायली सैन्य हमलों के बाद, इस अंदरूनी इलाक़ों में 97 प्रतिशत पानी अब लोगों के इस्तेमाल लायक नहीं रह गया है, और बिजली तो इतनी दुर्लभ है कि अस्पतालों को जनरेटर पर निर्भर रहना पड़ता है। इस क्षेत्र के 2 मिलियन लोगों की आबादी के लिए उपलब्ध अस्पतालों में सिर्फ़ 2,500 बेड और 87 वेंटिलेटर हैं।

6 अप्रैल, 2020 तक गाज़ा में COVID-19 के 13 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी, लेकिन वहां सिर्फ़ 1,495 लोगों का ही टेस्ट हो पाया है। इज़राइल के सैकड़ों परीक्षण किटों की आपूर्ति को लेकर डींगें हांकने के बावजूद, 8 अप्रैल को गाजा पट्टी ने ऐलान किया था कि उनके परीक्षण किट ख़त्म हो गये हैं। उस डब्ल्यूएचओ का शुक्र है, जिसकी बदौलत 13 अप्रैल से  परीक्षण फिर से शुरू हो पाया, क्योंकि इस इलाक़े को एक और 500 किटों की खेप मुहैया करायी गयी। डब्ल्यूएचओ, इंटर एजेंसी रिस्क कम्युनिकेशन एंड कम्युनिटी एंगेजमेंट (RCCE) की उस योजना का भी एक हिस्सा है, जिसके तहत गाज़ा के विभिन्न संचार चैनलों में COVID-19 संकट को लेकर जानकारी प्रसारित की जाती है।

जबकि इटली, ईरान, वेनेजुएला, यमन, गाज़ा, और कई अन्य ऐसे देशों को गिनाया जा सकता है,जिनके नेताओं ने डब्ल्यूएचओ की ओर से की जाने वाली COVID-19 मदद का स्वागत किया है, लेकिन ट्रंप ने ऐसा नहीं किया है,बल्कि  उलटा यह आरोप लगा दिया है कि इसने अमेरिकियों के लिए इतनी अच्छी तरह से काम नहीं किया है। फ़रवरी 2020 के आख़िर तक, जबकि डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर के लगभग 60 देशों में परीक्षण किट भेज दिये थे, अमेरिका ने उनके जर्मन निर्मित परीक्षणों से इनकार कर दिया था। शुरुआती यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के COVID-19 परीक्षणों के असंगत नतीजे आये और नये रासायनिक पदार्थों वाले नये परीक्षण पैकेजों को फिर से भेजना पड़ा। लेकिन,फिर भी अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ के इन परीक्षणों से इनकार कर दिया, यहां तक कि अमेरिका को एक तात्कालिक उपाय के रूप में भी इसका इस्तेमाल मंज़ूर नहीं था। जब अमेरिकी राज्यों ने सहयोग करने की कोशिश की, अपने स्वयं के परीक्षण विकसित किये, तो उन्हें खाद्य एवं औषधि प्रशासन से आपातकालीन मंज़ूरी के लिए इंतजार करना पड़ा, जिससे और देरी हुई और इससे वायरस और फैल गया। इस समय ट्रंप के इस झूठे दावों के बावजूद कि "जो कोई भी परीक्षण करवाना चाहता है, वह परीक्षण करवा सकता है," सचाई तो यही है कि अमेरिका में इन टेस्ट किटों की आपूर्ति शर्मनाक रूप से बेहद कम है।

16 अप्रैल, 2020 तक अमेरिका प्रति दिन क़रीब 100,000 लोगों का ही परीक्षण कर पा रहा था। लेकिन, स्टडी से पता चलता है कि अमेरिका को अपने COVID-19 संकट को नियंत्रित करने के लिए प्रति दिन 5-35 मिलियन लोगों के टेस्ट किये जाने की ज़रूरत होगी। उन परीक्षणों को ज़्यादातर लोगों के लिए हर दो सप्ताह में दोहराया जाना चाहिए और अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले 10 मिलियन लोगों का परीक्षण हर एक दिन किया जाना चाहिए। ऐसे में आख़िर ट्रंप कैसे सोच पा रहे हैं कि वह कोविड के बढ़ते मामलों और बढ़ते हुए मौतों के आंकड़ों पर बिना रोक लगाये 1 मई तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों को फिर से खोल पाने में सक्षम होंगे, और यह तो अचरज की ही बात होगी कि डब्ल्यूएचओ की मदद के बिना दुनिया सहित अमेरिका भी COVID-19 से निपट पाने  सक्षम हो पायेगा।

जबकि आइसलैंड, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे कई विकसित देशों ने अपने COVID-19 मामलों को नियंत्रित करने या उनकी आबादी के बड़े अनुपात के परीक्षण के ज़रिये होने वाली मौतों को कम करने में कामयाब रहे हैं, वहीं अमेरिका COVID-19 के पुष्ट मामलों और मौत के साथ-साथ भयानक बेरोज़गारी के लिहाज से दुनिया का अग्रणी देश बन गया है। बेशक,यह कम  से कम वह उपलब्धि तो नहीं है,जिसके आधार पर ट्रंप कह रहे हैं कि वह अमेरिका को फिर से नंबर एक बना देंगे।

इस बात को लेकर किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि COVID-19 परीक्षण विकसित करने को लेकर अमेरिका का यह एकला चलो वाला नज़रिया आपदा में बदल गया है। जहां अमेरिका सैन्य ख़र्च के लिए 750 बिलियन डॉलर से अधिक का आवंटन करता है, वहीं सीडीसी को महज 11 बिलियन डॉलर ही दिये जाते हैं। चीन के वुहान से COVID-19 की पहली रिपोर्ट आने के ठीक तीन महीने पहले, सितंबर 2019 में ट्रंप ने जानवरों से मनुष्यों पर फैलने वाले वायरस का समाप्त करने के लिए ज़िम्मेदार अमेरिकी कार्यक्रम को ख़त्म करने का फ़ैसला कर लिया था। 2017 में पदभार संभालने के बाद से ट्रंप ने सीडीसी के दो-तिहाई से अधिक और चीन के भीतर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मचारियों के राष्ट्रीय संस्थानों को समाप्त कर दिया था, चीन स्थित अमेरिका के नेशनल साइंस फ़ांउंडेशन के कार्यालय को बंद कर दिया था और सीडीसी के उन दो महामारी विशेषज्ञों को भी हटा दिया था, जो चीन में तैनात किये गये थे और एक पशु रोग निगरानी कार्यक्रम के कृषि प्रबंधक के विभाग को समाप्त कर दिया था।

COVID-19 परीक्षण की अपर्याप्त स्थिति और इसके पुष्ट मामलों और मौतों की भयावह संख्या को देखते हुए अमेरिका को इस वक्त डब्ल्यूएचओ की मदद की सख़्त ज़रूरत है। डब्ल्यूएचओ को दोषी ठहराना और ख़ुद को अलग-थलग कर लेना अमेरिका और वैश्विक सुरक्षा दोनों के लिए ठीक नहीं है।

डब्लूएचओ की फ़ंडिंग में कटौती करने का ट्रंप का फ़ैसला उनके अंतर्राष्ट्रीय संधियों  को तोड़ने, उनके तौर-तरीक़ों और वैश्विक संस्थानों से हट जाने की उस लम्बी सूची के बिल्कुल माकूल है,जिसमें शामिल हैं-ईरान परमाणु समझौते का तोड़ा जाना, संयुक्त राष्ट्र राहत और निर्माण एजेंसी (UNWAWA) को वित्त पोषण में कटौती, और पेरिस जलवायु समझौते, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और मध्यम दूरी का परमाणु सैन्य संधि से बाहर निकल जाना। सत्ता में आने के बाद इन भयावह फ़ैसलों के साथ-साथ जिन प्रतिबंधों, व्यापार निषेधों, और व्यापार बाधाओं को ट्रंप ने लागू किया है या बढ़ाया है, उसने अमेरिका को वैश्विक सहयोग से दूर कर दिया है।

COVID-19 ने दिखा दिया है कि दुनिया के लोग आपस में कितने गहराई से जुड़े हुए हैं। यह समय वैश्विक सहयोग को बढ़ाने का है, न कि डब्लूएचओ की फ़ंडिंग में कटौती करने का है। चूंकि यह उम्मीद करने की बहुत ही कम वजह है कि ट्रंप को अचानक वैश्विक एकजुटता की ज़रूरत का एहसास हो, हमारी उम्मीदें सिर्फ़ उस अंतर्राष्ट्रीय विकास और बहुपक्षीय संस्थानों पर सीनेट के विदेश सम्बन्ध उपसमिति पर टिकी हुई हैं,जो डब्ल्यूएचओ के साथ अमेरिकी सम्बन्धों पर नज़र रखती है। फ़िलहाल,हमारी मांग तो यही है कि पहले से ही जल रहे COVID-19 के वैश्विक प्रकोप की आग में घी डालने से रोकने के लिए वे ट्रंप को डब्ल्यूएचओ की फ़ंडिंग में कटौती करने से रोकेंगे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

Defunding the World Health Organization: Unethical, Cruel, and Dangerous for the World

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