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दिल्ली : मस्जिदों को हटाने के रेलवे के नोटिस पर कोर्ट की रोक, अगली सुनवाई 3 अगस्त को

दिल्ली के बंगाली मार्केट और तिलक ब्रिज के क़रीब तकिया बब्बर शाह मस्जिद पर 19 जुलाई को रेलवे ने नोटिस लगा दिया था। इसमें उसने 15 दिन का अल्टीमेटम देकर ''अनाधिकृत अतिक्रमण'' हटाने का आदेश दिया था। मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने ही जवाब मांग लिया।
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दिल्ली की दो बड़ी मस्जिदों पर लगे नोटिस का मामला जब हाई कोर्ट पहुंचा तो बुधवार को कोर्ट ने रेलवे को मस्जिदों पर चिपकाए गए नोटिस के मुताबिक ''अनाधिकृत अतिक्रमण'' पर कार्रवाई न करने को कहा। साथ ही कोर्ट ने नोटिस पर किसी के हस्ताक्षर और तारीख न होने की भी बात कही।

क्या था नोटिस में ?

दिल्ली के तिलक मार्ग पर रेलवे ब्रिज के पास 'तकिया बब्बर शाह' मस्जिद और बाबर मार्ग रेलवे लाइन के क़रीब बंगाली मार्केट की मस्जिद पर 19 जुलाई को नोटिस लगा दिया गया जिस पर लिखा था कि '' रेलवे भूमि को अनाधिकृत रूप से अतिक्रमित किया हुआ है। आप लोग अनाधिकृत रूप से रेलवे की ज़मीन पर बने अनधिकृत भवन/ मंदिर/ मस्जिद/ मज़ार को सूचना के 15 दिनों के अंदर स्वेच्छा से हटा दें, अन्यथा रेलवे प्रशासन द्वारा रेलवे अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत अनाधिकृत रूप से अतिक्रमित भवन, मंदिर, मस्जिद, मज़ार को हटा दिया जाएगा और इस प्रक्रिया में होने वाले नुकसान के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।''

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लाइव लॉ पर छपी ख़बर के मुताबिक जस्टिस प्रतीक जालाना ने केंद्र सरकार के वकील को उनके अनुरोध पर दिल्ली वक्फ बोर्ड की याचिका पर निर्देश लेने के लिए समय दिया। इसमें दावा किया गया था कि नोटिस 'सामान्य' है और तिलक मार्ग पर रेलवे ब्रिज के पास 'तकिया बब्बर शाह' और बाबर मार्ग रेलवे लाइन के पास स्थित मस्जिद जिसे बंगाली मार्केट की मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है अनधिकृत नहीं है और ज़मीन रेलवे की नहीं है।

कोर्ट ने पाया कि नोटिस पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे, साथ ही उस प्राधिकरण (authority) का उल्लेख नहीं किया गया था जिसके तहत उन्हें जारी किया गया था।

वहीं द हिंदू में छपी ख़बर के मुताबिक याचिकाकर्ता (वक्फ बोर्ड) की ओर से पेश वकील वजीह शरीक ने रेलवे की ओर से कार्रवाई की आशंका जताते हुए अधिकारियों को इसे रोकने का आग्रह किया।

याचिका में ये भी कहा गया कि बंगाली मार्केट मस्जिद क़रीब 250 साल और तिलक मार्ग मस्जिद 400 साल पुरानी है, और उनकी दीवारों पर चस्पा नोटिस रद्द किए जाने योग्य हैं।

याचिका में कहा गया है कि ''दोनों मस्जिदें सदियों से अस्तित्व में हैं और उन मस्जिदों के प्रबंधन को हस्तांतरित करने वाली दोनों मस्जिदों के संबंध में गवर्नर जनरल इन काउंसिल (Governor General in council its agent) के जरिए से अपने प्रतिनिधि दिल्ली के मुख्य आयुक्त और सुन्नी मजलिस औकाफ के बीच 1945 के दो विधिवत पंजीकृत समझौते हैं। सुन्नी मजलिस औकाफ (याचिकाकर्ता के पूर्वअधिकारी) को प्रबंधन का हस्तानांतरण बिना किसी निर्धारित कार्यकाल की सीमा के किया गया। उक्त दस्तावेज से पता चलता है कि मस्जिदें अस्तित्व में थीं और 1945 में भी चालू थीं।"

इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि ''केवल 2023 में कम से कम सात वक्फ संपत्तियों को क्रूरता के साथ रातों रात ध्वस्त कर दिया गया। और वर्तमान मामले में आशंका यह है कि मस्जिदों/ वक्फ संपत्तियों को किसी भी तरह से ध्वस्त करने की योजना है''।

वहीं कोर्ट ने केंद्र के वकील को निर्देश के लिए समय दिया कि क्या रेलवे द्वारा मौजूदा स्वरूप में नोटिस जारी किए गए थे कि नहीं। इस मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी।

कोर्ट से मिली राहत पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह खान ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ''दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा दाखिल की गई अर्जी पर बंगाली मस्जिद और मस्जिद तकिया बब्बर शाह को रेलवे द्वारा शहीद करने पर रोक लगा दी है। इस अहम फैसले के लिए माननीय कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया।

इन दो मस्जिदों का मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट से राहत मिल गई लेकिन काश की ऐसी ही जल्दी वक्फ बोर्ड उन मज़ारों के लिए भी दिखाई होती जिन्हें रातों-रात गायब कर दी गई।

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