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दिल्ली : सीवर में सफाई कर्मियों की हो रही मौत को लेकर प्रदर्शन, सरकार पर अनदेखी का आरोप

बीते दिनों महाराष्ट्र और पुणे में हुई सफाई कर्मचारियों की मौत को लेकर राजधानी दिल्ली में सफाई कामगार यूनियन और छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया।
sewer death

देश भर में सेप्टिक टैंकों की सफाई आए दिन सफाईकर्मियों की मौत का कारण बन रही है। महज़ चंद रुपयों के लिए मजदूरों को बिना सुरक्षा उपकरण के उनकी जान जोखिम में डालने पर मजबूर किया जा रहा है। ऐसे में बीते दिनों महाराष्ट्र और पुणे में हुई कई सफाई कर्मचारियों की मौत को लेकर बुधवार, 17 मई को राजधानी दिल्ली के कश्मीरी गेट पर सफाई कामगार यूनियन और क्रांतिकारी युवा संगठन ने विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन में दिल्ली के अलग-अलग संस्थानों के सफाई कर्मचारियों के अलावा आम छात्रों ने भी शिरकत की। इस दौरान जातिवाद, ठेकाकरण और पूंजीवाद का प्रतीकात्मक पुतला भी फूंका गया।

प्रदर्शन में शामिल सफाई कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ रोष जताते हुए कहा कि आज़ादी के 75 साल बाद भी सफाई कर्मचारियों की अनदेखी की जा रही है, उनकी सुरक्षा अभी तक सुनिश्चित नहीं हो सकी है। सफाई के लिए अत्याधुनिक मशीनों व सुरक्षा उपकरणों की उपलब्धता के बावजूद कर्मचारियों को बिना किसी तैयारी सीवर, ड्रेनेज चैंबर और सेप्टिक टैंक में उतार दिया जाता है। जिसके कारण लगातार सफाई कर्मचारियों की मौत का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।

मैनुअली सीवर साफ़ करवाना जघन्य शोषण और भयानक संवेदनहीनता

क्रांतिकारी युवा संगठन के राज्य समिति सदस्य भीम कुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मैनुअली सीवर साफ़ करवाना जघन्य शोषण और भयानक संवेदनहीनता है। तमाम कानूनों और निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए मशीनों, उपकरणों और सावधानियों की जगह अभी भी गरीब मजदूरों को सीवरों और सेप्टिक टैंको में उतारा जा रहा है। सरकारें इनके लिए बिल्कुल गंभीर नहीं नज़र आती और न ही इनसे जुड़ी योजनाएं जमीन पर उतरती हैं। सीवर सफाई कर्मियों की काम करने की स्थिति जस की तस बनी हुई हैं। ये काम एक तरह से उनके लिए अभिशाप ही बन गया है। सामाजिक रूप से अलग थलग होकर रहे जाने वाले ये सफाईकर्मी जीवन को दांव पर लगाते हुए कई तरह की खतरनाक बीमारियों के खतरे से जूझते आ रहे हैं।

भीम के मुताबिक ये विडंबना ही है कि भारत सरकार एक ओर जहां चांद पर जाने के लिए अपनी पीठ थपथपाती है, वहीं दूसरी ओर देश में मशीनीकरण की कमी के चलते सफाई कर्मचारियों की रोज़ सीवरों में मौतें हो रही हैं। सरकार को ये याद रखना चाहिए कि ये लोग भी देश के नागरिक हैं और सहज गरिमापूर्ण जीवन इनका भी संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार और मानवाधिकार है, जो सरकार को हर हाल में सुनिश्चित करने ही चाहिए।

विरोध में हिस्सा ले रहे कई कर्मचारियों के अनुसार सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा की आपराधिक अनदेखी के पीछे समाज में व्याप्त जातिवादी मानसिकता और वर्गीय भेदभाव है। क्योंकि बहुसंख्यक सफाई कर्मी दलित समुदाय से आते हैं और बेहद खराब हालातों में काम करने और रहने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट आधारित नियुक्ति (ठेकाकरण) उनके लिए और भी मुश्किलें खड़ी करती है। यही नहीं, इन कामों में निजीकरण के चलते, मालिक और ठेकेदार बिना सुरक्षा नियमों का पालन किए सफाई कर्मचारियों को अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर करते हैं।

गैरक़ानूनी है मैनुअली सीवर साफ़ करना

विशेषज्ञों के अनुसार साल 2013 से मैनुअली सीवर साफ़ करना गैरक़ानूनी है, बावजूद इसके अभी भी देश में ये काम धड़ल्ले से जारी है। बीते साल केंद्र सरकार ने 13 दिसंबर को लोकसभा में बताया था कि पिछले तीन वर्षों (2019 से 2022) में देश में मैला ढोने से किसी की मौत नहीं हुई है। हालांकि, यह कहा गया कि इस अवधि में कुल 233 लोगों की मौत "सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई करते समय दुर्घटनाओं के कारण" हुई थी।

गौरतलब है कि 1993 में मैनुअल स्केवेंजिग पर देश में रोक लगा दी गई थी और 2013 में कानून में संशोधन कर सीवर और सेप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई पर रोक को भी इसमें जोड़ दिया गया था। लेकिन इस दलदल में धंसे लोग पीढ़ियों से यही काम करने को अभिशप्त हैं और उनके बारे में सोचने की फुर्सत तरक्की के लिए भागते लोगों के पास नहीं है। सरकारें भी उनकी स्थिति देख कर आंखें मूंद लेती हैं।

जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों का मानना है कि सीवर सफाई करने के लिए जो मजदूर भूमिगत नालों में उतरते हैं उन्हें बहुत कम पैसे दिए जाते हैं। कई बार सीवर सफाई के ठेकेदार अपने कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरण के ही काम करने को मजबूर करते हैं। सरकार इन लोगों पर इसलिए ध्यान नहीं देती क्योंकि उन्हें इससे कोई सरकारी फ़ायदा नहीं होता। जबकि उन्हें इसे बंद करवाने के लिए कड़े कदम उठाना चाहिए, उनके पुनर्वास के लिए काम करना चाहिए। ये कृत्य एक दंडनीय अपराध है लेकिन सब इसकी जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालने की कोशिश करते हैं और इस मुद्दे से पीछा छुड़ा लेते हैं। जबकि ग़रीबी और मजबूरी के कारण सीवर साफ़ करने के दौरान अपनी जान जोखिम में डालने वालों के पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकार की है।

ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री ने अपने पिछले कार्यकाल में एक भाषण के दौरान इन सफाई कर्मियों के कार्य को "आध्यात्मिक" करार दिया था। इससे पहले कुंभ यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार सफाई कर्मचारियों के पांव पखारते हुए देखे गए थे। हालांकि इन सब के बीच एक सवाल है कि क्या उनकी सरकार को वाकई सफाई कर्मियों की कोई चिंता है, क्योंकि लगातार सीवर में होती मौतें कुछ अलग ही वास्तविकता बयां कर रही हैं। और आर्थिक व सामाजिक मजबूरियों के चलते पहले से हाशिए पर खड़े लोग और ज्यादा सरकार की उदासीनता का शिकार हो रहे हैँ।

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