दिल्ली: अभी भी सड़क नहीं महिलाओं के लिए सुरक्षित, खोखला है महिला सुरक्षा का दावा
दिल्ली के सुल्तानपुरी में युवती की कार से घसीटे जाने के बाद दर्दनाक मौत की खबरें बीते कई दिनों से सुर्खियों में है। ये घटना नए साल के दरमियाानी रात की थी। इस घटना के साथ ही दिल्ली के कई और मामले भी अब सामने आने लगे है। उसी दिन पूर्वी दिल्ली के पांडव नगर में दिनदहाड़े एक लड़की को कार में खींचने और उस पर तेजाब फेंकने की कोशिश की गई तो वहीं आदर्श नगर में अगले दिन दोस्ती तोड़ने पर युवक ने युवती को चाकू से गोद डाला। इन सभी मामलों में फिलहाल जांच जारी है और कुछ गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। लेकिन इन सभी घटनाओं को बीच दिल्ली पुसिल के टाइट सक्योरिटी की पोल खुलती नज़र आ रही है, जो राजधानी में एक बार फिर महिला सुरक्षा का बड़ा सवाल खड़ा करती है।
बता दें कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और इसकी पुलिस सीधे मोदी सरकार के गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती है। बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 और फिर 2019 का लोकसभा चुनाव जिन मुद्दों पर लड़ा, उनमें महिला-सुरक्षा एक अहम मुद्दा था। पार्टी ने अपने मैनिफ़ेस्टो में और प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में कई वायदे किए। हालांकि अब सात साल से अधिक का समय बीतने के बाद भी वो वादे हक़ीकत नहीं बन सके।
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क्या है पूरा मामला?
प्रापत जानकारी के मुताबिक दिल्ली के पांडव नगर मामले में एक कार सवार युवक पर आरोप है कि उसने एक 19 वर्षीय लड़की को चलती कार से खींचने की कोशिश की। जब वो इसमें सफल नहीं हुआ तो युवक ने लड़की पर तेजाब फेंकने की धमकी दी। न्यूज़ 18 की खबर की मानें,तो इसके बाद लड़की जैसे-तैसे भागकर खुद को बचाने में सफल रही। लेकिन इन सब में लड़की को कुछ चोटें आईं हैं, जिसका प्राथमिक उपचार किया गया है। फिलहाल घटना की शिकायत दर्ज कर जांच की जा रही है।
दूसरा मामला आदर्श नगर का है जहां दोस्ती तोड़ने पर एक युवक ने लड़की को चाकू से गोद डाला। अमर उजाला में छपी रिपोर्ट के अनुसार ये वारदात दो जनवरी की है, जो सीसीटीवी में कैद हो गई है। पीड़िता के गले, पेट और हाथ पर जख्म हो गए हैं। पीड़िता को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां वरिष्ठ डॉक्टरों के नेतृत्व में उसका इलाज चल रहा है। इस मामले मेें पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है और जांच जारी है।
गौरतलब है कि जिस वक्त पूरा देश नए साल की खुशियां मना रहा था, ठीक उसी समय राजधानी दिल्ली की सड़कों पर पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था के बीचों-बीच,कई महिलाएं बर्बरता और हिंसा का शिकार हुईं। इसी दिल्ली में 10 साल पहले हुए निर्भया कांड ने सबको झकझोर कर रख दिया था। लेकिन हैरानी है कि दिल्ली को रेप कैपिटल कहने वाले तब के गुजरात के मुख्यमंत्री और अब देश के प्रधानमंत्री इस माहौल में कोई बदलाव नहीं ला सके।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी एक ट्वीट में दिल्ली पुलिस की भूमिका और सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि नए साल पर पुलिस की क्या सुरक्षा व्यवस्था थी, जो दिल्ली की सड़क पर एक लड़की को नशे में धुत लड़के अपनी गाड़ी से कई किलोमीटर तक नग्न अवस्था में घसीटते रहे। वो इससे पहले भी कई बार पुलिस की व्यवस्था पर सवाल उठा चुकी हैं। बीते दो-तीन दिनों में दिल्ली से जो मामले सामने आए, और जो मामले लगातार कई सालों से सामने आते रहे हैं, वो सभी को शासन-प्रशासन की व्यवस्था पर सोचने को मजबूर कर देते हैं।
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महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित महानगर
अपराध का लेख-जोखा रखने वाली संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक केंद्र शासित प्रदेशों में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की उच्चतम दर दिल्ली में दर्ज की गई थी। पिछले तीन सालों में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा के मामलों की संख्या साल 2019 में 13,395 से बढ़कर 2021 में 14,277 हो गई। इतना ही नहीं एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले सभी 19 महानगरों की श्रेणी में कुल अपराधों का 32.20 फीसदी हैं। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में हर दिन दिल्ली में औसतन दो लड़कियों से बलात्कार हुआ। ऐसे में साफ है कि महिला सुरक्षा के मामले में भारत की राजधानी दिल्ली की कोई अच्छी छवि नहीं है।
वैसे पूरे देश में ही महिला सुरक्षा का बेड़ा गर्क है। हमारे पास अभी तक महिलाओं की हत्या के आंकड़े तक सही नहीं हैं। श्रद्धा वालकर की हत्या हो या गाड़ी से कई किलोमीटर तक घसीटकर दर्दनाक मौत या ऐसे ही दूसरे मामले, भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि उसके अलग-अलग पहलुओं को समझने की सख्त जरूरत है। एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट में पुलिस द्वारा दर्ज हत्याओं के कारण तो जारी किए जाते हैं, लेकिन यह कहीं स्पष्ट नहीं किया जाता कि महिलाओं को खासतौर पर क्यों मारा गया। इसके अलावा कत्ल कर दी गईं महिलाओं की संख्या रिपोर्ट में दर्ज कुल हत्याओं के आंकड़ों से भी मेल नहीं खाती है। बलात्कार के बाद हत्या, दहेज के कारण हत्या और आत्महत्याओं की संख्या ही कुल हत्याओं से ज्यादा निकलती है। इसकी वजह वे श्रेणियां हैं, जिनमें एक से ज्यादा अपराधों के मामलों को दर्ज किया जाता है और आंकड़े जमा करने के लिए रिपोर्ट में श्रेणियां हर बार बदल दी जाती हैं। इसलिए इस साल के आंकड़ों की पिछले साल से तुलना ही नहीं कर सकते।
बहरहाल, अब वक्त आ गया है कि सरकार खोखले वादों से निकलकर जमीनी तौर पर महिलाओं के सशक्तिकरण की ओर ध्यान दे। सड़कों को महिलाओं के लिए बेखौफ बनाएं और पुलिस को ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए संवेदनशील बनाए। क्योंकि ज्यादातर मामलों में पुलिस के असंवेदनशील रवैए और लापरवाही की खबरें ही सुर्खियों में रहती हैं। इसके साथ ही इन मामलों को राजनीतिक हस्तक्षेप या प्रभाव से दूर रखें, इसकी वजह है कि बीते कई मामलों में सत्ता पक्ष के लोगों का कनेक्शन सुनने और देखने को मिला है, जो बहुत हद तक केस में अलग प्रभाव रखते हैं।
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