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दिल्ली : बोस की जयंती पर हुआ "सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फ़ौज" पुस्तक का लोकार्पण

दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा, आलोचक गोपाल प्रधान, बीपी पांडेय और लेखक अशोक तिवारी मौजूद रहे। साहित्य प्रेमियों, शोधकर्ताओं और दिल्ली के कई अध्यापकों के जमावड़े के बीच आलोक मिश्र ने लोकार्पण समारोह का संचालन किया।
Subhash Chandra Bose

दिल्ली : 23 जनवरी की शाम आईटीओ स्थित सुरजीत भवन सभागार में, सुभाषचंद्र बोस की 126वीं जयंती के अवसर पर लेखक और नाटककार अशोक तिवारी की किताब  "सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फ़ौज" के लोकार्पण का सफल आयोजन हुआ।

इस कार्यक्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा, आलोचक गोपाल प्रधान, बीपी पांडेय और लेखक अशोक तिवारी मौजूद रहे। साहित्य प्रेमियों, शोधकर्ताओं और दिल्ली के कई अध्यापकों के जमावड़े के बीच आलोक मिश्र ने लोकार्पण समारोह का संचालन किया।

बता दें कि अशोक तिवारी ने यह किताब 12 साल के गहन शोध के बाद लिखी है।

कार्यक्रम की शुरुआत में अशोक तिवारी ने अपने लेखकीय वक्तव्य में कहा, "मुझे याद है 1997 की एक वो शाम जब डॉ ललित शुक्ल ने इस किताब पर काम करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी जिसके बाद फ्रीडम मूवमेंट को पढ़ने और लिखने का सिलसिला शुरू हुआ तो होता ही चला गया। और आज वह अध्ययन एक किताब के रूप में आप सभी के सामने है। मैं किताब की संपादक मोनिका मिश्रा, अंशु चौधरी और प्रकाशन का शुक्रिया अदा करता हूँ।"

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक नसिरा शर्मा ने कहा कि इस किताब ने बहुत भ्रम तोड़े हैं। उन्होंने कहा, "हमारी तारीख़ ऐसी नहीं थी कि हम लड़ सकें क्योंकि तब लोग सिर्फ हड्डी के ढांचे के समान थे। सुभाष तब एक हिम्मत बन के आए। आज के बच्चे इस किताब को पढ़कर सुभाष को क़रीब से जानेंगे, जितना मुझे पता है कि आज के बच्चे सुभाष को इतना ज्यादा नहीं जानते होंगे जिनके बीच यह किताब एक पुल का काम करेगी।"

शिक्षाविद बी.पी. पांडेय ने किताब पर टिप्पणी करते हुए कहा, "इसे एक बार में पढ़ा जाना और एक ही बार में ही समझ पाना मुश्किल है जब तक आप इसका विश्लेषण नहीं करेंगे, आप समझ नहीं पाएंगे। बराबरी से देखो, सुभाष से सीखो। मैं व्यवस्था से पूछना चाहता हूं कि क्या हम सुभाष के मूल्यों को आम जीवन में शामिल कर पा रहे हैं।" उन्होंने लेखक (अशोक तिवारी) से कहा कि आप जब सुभाष को लिख रहे थे, तब आप सिर्फ़ लिख नहीं रहे थे तब आप उनको जी रहे थे।

इस अवसर पर वरिष्ठ आलोचक गोपाल प्रधान ने कहा, वाल्टर बेंजामिन ने लिखा "फ़ासीवादियों से वर्तमान को जितना ख़तरा है उससे ज्यादा मृतकों को है। इतिहास के पन्नों को सही रूप से सामने लाया जाना चाहिए जिसके लिए यह किताब बहुत महत्वपूर्ण है।"

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