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दिल्ली हिंसा में पुलिस द्वारा दर्ज मामलों की कहानी : एक जैसी पटकथा, अलग-अलग एफआईआर

एफआईआर में कई तरह के लूपहोल नज़र आ रहे हैं। इसमें एक तरह का पैटर्न दिख रहा है और एक जैसी कहानी कई एफआईआर में दर्ज की गई है। ख़ास पड़ताल
Delhi violence

दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले महीने हुई सांप्रदायिक हिंसा के सिलसिले में पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में कई तरह के लूपहोल नज़र आ रहे हैं। इसमें एक तरह का पैटर्न दिख रहा है और एक जैसी कहानी कई एफआईआर में दर्ज की गई है। सिर्फ शिकायत दर्ज करने वाले लोग और आरोपी का नाम, जगह और वक्त बदल गया है।

गौरतलब है कि सांप्रदायिक हिंसा के बाद भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की गंभीर धाराओं के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ बड़ी संख्या में एफआईआर दर्ज की गई हैं। ऐसे में आरोप है कि बड़ी संख्या में लोगों को "मनमाने ढंग से" गिरफ्तार किया जा रहा है और इन मामलों में फंसाया जा रहा है।

उदाहरण के लिए शस्त्र अधिनियम, 1959 के तहत पूर्वी दिल्ली के दयालपुर पुलिस स्टेशन में एफआईआर संख्या 0066/2020, 0067/2020, 0068/2020, 0069/2020 और 0070/2020 में केस प्लॉट एक ही है। एकमात्र अंतर शिकायतकर्ता के नाम और उस स्थान का है जहां पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने आरोपियों को देखा था।

एफआईआर संख्या 66 में शिकायतकर्ता कांस्टेबल पीयूष हैं। एफआईआर के अनुसार उन्होंने कहा, 'वह 27 फरवरी एक अन्य कांस्टेबल रोहित के साथ बृजपुरी में तैनात थे। इलाके में सीआरपीसी की धारा 144 लगी हुई थी। इसी के तहत “व्यवस्था ड्यूटी” में उन्हें लगाया गया था। लगभग 3 बजे उन्होंने एक "संदिग्ध" व्यक्ति को देखा जो नाला रोड पर एक वाहन के पीछे छिपा था। जैसे ही उसने पुलिस पार्टी को देखा वह आदमी पीछे मुड़ गया और तेजी से आगे भागना शुरू कर दिया। मैंने और कांस्टेबल रोहित ने उस आदमी को रोका और उससे पूछताछ की।

उसने खुद की पहचान 22 वर्षीय मोहम्मद सोहिब (जाफराबाद निवासी) के रूप में की। उसकी तलाशी लेने के बाद हमने उनके कब्जे से एक लोडेड देसी पिस्तौल जब्त की।'  कांस्टेबल पीयूष की शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ आर्म्स एक्ट की धारा 25/54/59 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

इसी कहानी में थोड़े बदलाव के साथ अगली एफआईआर दर्ज है। एफआईआर नंबर 67 में उल्लेखित अपनी शिकायत में कांस्टेबल सुभाष ने कहा कि वह कांस्टेबल सुनील के साथ 27 फरवरी को चांद बाग में "व्यवस्था ड्यूटी" पर तैनात थे। यहां भी सीआरपीसी की धारा 144 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश थे।

एफआईआर के तहत कांस्टेबल सुभाष ने बताया, 'जब हम शाम करीब 05:45 बजे चांद बाग नाला रोड पहुंचे तो मैंने एक संदिग्ध आदमी को देखा, जो एक बंद पान सुपारी के खोखे के किनारे छिपा था। पुलिस पार्टी को देखने के बाद वह पीछे मुड़ा और तेजी से आगे बढ़ने लगा। हमने उसे रोका और उससे पूछताछ की। उसने खुद की पहचान 22 वर्षीय शाहरुख (नेहरू विहार, दयालपुर के निवासी) के रूप में की। तलाशी के दौरान हमें उसके पास से एक लोडेड देसी पिस्तौल मिली।'

सुभाष की शिकायत के आधार पर शाहरुख पर आर्म्स एक्ट की धारा 25/54/59 के तहत एफआईआर दर्ज है।

कांस्टेबल अशोक के बयान के आधार पर आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत दर्ज एफआईआर नंबर 69 में भी यही कटेंट है। उन्होंने कहा कि वह कॉन्स्टेबल ज्ञान सिंह के साथ न्यू मुस्तफाबाद में "व्यवस्था ड्यूटी" का निर्वहन करने के लिए तैनात किए गए थे, जहां 27 फरवरी को सीआरपीसी की धारा 144 लगाई गई थी।

उनके वक्तव्य के मुताबिक, 'एक संदिग्ध व्यक्ति संजय चौक न्यू मुस्तफाबाद में रात लगभग 08:55 बजे खड़ा था। जैसे ही उसने पुलिस पार्टी को देखा वह पीछे मुड़ गया और आगे बढ़ने लगा। इससे संदेह पैदा हुआ और हमने उसे रोका और उसका नाम और पता पूछा। उन्होंने 23 वर्षीय अथर (भागीरथी विहार निवासी) के रूप में पहचान बताई। उनके कब्जे से एक देसी पिस्तौल बरामद की गई।'

इसी तरह एफआईआर नंबर 70 में जो कांस्टेबल चमन के बयान के आधार पर दायर की गई थी। अपनी शिकायत में कांस्टेबल ने कहा कि वह अपने सहयोगी के साथ दयालपुर पुलिस स्टेशन के तहत तुकमीरपुर में मौजूद था, क्योंकि इलाके में निषेधाज्ञा (धारा 144) लागू थी।

उन्होंने अपनी शिकायत में कहा, “रात के लगभग 09:25 बजे हम नेहरू विहार के पास तुखमीरपुर सरकारी स्कूल पहुंचे। हमने एक संदिग्ध व्यक्ति को वहां छिपा हुआ देखा। जैसे ही उसने पुलिस पार्टी को देखा वह मुड़ा और वहां से जाने लगे। हमने उसे रोका और पूछताछ की। उसने 30 वर्षीय फैज़ अहमद (राजीव गांधी नगर, न्यू मुस्तफाबाद के निवासी) के रूप में अपनी पहचान बताई। हमने उसके पास से हथियार जब्त कर लिया। उसने हमें बताया कि वह गोलियों से लोगों को डराने के लिए वहां आया था। ”

कुल मिलाकर, एफआईआर संख्या 57, 58, 66, 67, 68, 69 और 70 में कुल 21 आरोपी हैं। न्यूज़क्लिक ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी खास, भजनपुरा, दयालपुर, गोकलपुरी और सीमापुरी पुलिस स्टेशनों में दर्ज की गई 21 एफआईआर की जांच की है।

आईपीसी की विभिन्न धाराओं, शस्त्र अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम को नुकसान की रोकथाम के तहत दर्ज की गई सभी एफआईआर के अनुसार घटनाओं के अनुक्रम का वर्णन एक ही प्रतीत होता है। अधिकांश प्राथमिकी अज्ञात लोगों के खिलाफ दायर की गई हैं और आरोप हैं कि पुलिस पक्षपातपूर्ण जांच कर रही है और एक विशेष समुदाय से संबंधित निर्दोष लोगों को आरोपित कर रही है।

कड़कड़डूमा कोर्ट में आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट अब्दुल गफ्फार ने कहा, '  पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है। एक विशेष समुदाय के सदस्य, जो पीड़ित हैं, उन्हें टार्गेट किया जा रहा है। लोगों को इधर-उधर से उठाया जा रहा है और उनके परिवार के सदस्यों को तब सूचना मिल रही है जब वे गुम होने की शिकायत दर्ज कराते हैं, तब पुलिस गिरफ्तारी का खुलासा करती है। वकीलों को पुलिस थानों में अपने मुवक्किल तक पहुंचने से वंचित किया जा रहा है। थाने जाने वालों को हिरासत में लेकर फंसाया जा रहा है। सैकड़ों अनाम एफआईआर हैं, जिससे पुलिस को मनमानी करने में आसानी हो रही है।'

एफआईआर की सामग्री के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ये मनगढ़ंत कहानियां हैं लेकिन समस्या यह भी है कि अदालत भी जवाबदेही तय करने के बजाय अभियोजन की थ्योरी को सच्चाई मान रही है।

उन्होंने आरोप लगाया कि, 'दयालपुर पुलिस स्टेशन के पास दो चौराहों पर पथराव चल रहा था। ऐसे में दंगाई भीड़ से बचने के लिए जो किसी तरह शरण लेने के लिए पुलिस स्टेशन में घुस गए। पुलिस ने उन्हें ही बचाने के बजाय हिरासत में ले लिया, यातना दी और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।'
  
हालांकि, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इसे "आधारहीन" और "कोई मायने नहीं" करार देते हुए आरोपों को रफा-दफा कर दिया। पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'हम अपने पास मौजूद वीडियो फुटेज के आधार पर लोगों की पहचान कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई कर रहे हैं। केवल उन लोगों के खिलाफ जिनके खिलाफ हमारे पास पुख्ता सबूत हैं, उन्हें गिरफ्तार किया गया है।'

गौरतलब है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर शुरू हुई हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई। 23 फरवरी से शुरू हुई और 26 फरवरी तक चली लक्षित हिंसा में 500 से अधिक लोगों को चोटें आईं, हालांकि छिटपुट घटना 27 और 28 फरवरी को भी दर्ज की गई। शहर की पुलिस को हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहने और कथित रूप से कुछ स्थानों पर भेदभावपूर्ण होने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।

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