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दिल्ली हिंसा : नफ़रत के ज़हर के ख़िलाफ़ प्यार का भरोसा दिलातीं 'दस कहानियां'

पिछले दिनों दिल्ली में नफ़रती हिंसा ने ऐसा तांडव मचाया जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया, लेकिन इसी के बीच में कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने मानवता और प्रेम के मायने भी समझाएं। हिंदू-मुसलमान से इतर भारतीयता का मतलब समझाने वाली ऐसी दस कहानियां....
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Image courtesy: India Today

उत्तरी पूर्वी दिल्ली में पिछले दिनों लोगों ने मौत का तांडव देखा। इस दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 42 लोगों की मौत हो गई है जबकि 200 से ज्यादा घायल हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में घर और दुकानों में आग लगा दी गई। लोग एक दूसरे के खून के प्यासे थे। लेकिन इस बीच कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने धर्म को अपने ऊपर हावी न होते हुए इंसानियत दिखाई और लोगों की मदद की।

1. मुस्लिम पड़ोसियों को बचाने में झुलस गए प्रेमकांत

शिव विहार उत्तर-पूर्वी दिल्ली का सबसे अधिक हिंसा प्रभावित इलाका है। हालांकि यहां से एक दूसरे समुदाय के प्रति सम्मान और दोस्ती की अनूठी मिसाल भी सामने आई है। दूसरे समुदाय के एक व्यक्ति को बचाने के लिए प्रेमकांत खुद अपनी जान जोखिम में डाल दी। बचाव की इस कार्यवाही में प्रेमकांत पीड़ित व्यक्ति को बचाने में कामयाब रहे, लेकिन इस दौरान वह खुद 70 फीसदी तक जल गए। प्रेमकांत ने बताया कि भले वह जल गए, लेकिन उन्होंने अपने दोस्त की मां को बचाने में सफल रहे, इसकी खुशी है। प्रेमकांत की उम्र 25 साल है और वह उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले हैं। प्रेमकांत की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। डॉक्टर्स का कहना है कि जल्दी इनके शरीर में बंधे सभी बैंडेज खोल दिए जाएंगे।

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2. दंगाइयों को खदेड़ने के लिए एसपी ने किया बॉर्डर पार

यूपी पुलिस के एसपी नीरज जादौन नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के हिंसा के दौरान हीरो के तौर पर सामने आए हैं। उन्होंने दंगाइयों से कई परिवारों को बचा लिया। दंगे के वक्त 25 फरवरी को नीरज दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर पट्रोलिंग कर रहे थे। उसी वक्त उन्हें करीब 200 मीटर दूर गोली चलने की आवाज सुनाई दी। जिस जगह गोली चली, वह इलाका दिल्ली के करावल नगर में था। उन्होंने देखा कि 40 से 50 लोगों की भीड़ गाड़ियों में आग लगा रही है। उनमें से एक पेट्रोल बम लेकर एक घर में घुस गया। नीरज ने तुरंत बॉर्डर पार करते हुए दंगाइयों को रोकने का फैसला किया।

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3. मुस्लिम पड़ोसियों ने कराई हिंदू दुल्हन की शादी

उत्तर पूर्वी दिल्ली जल रही थी और हाथों में मेहंदी, और बदन पर हल्दी लगाए सावित्री प्रसाद मंगलवार को हिंसा भड़कने की वजह से रोने लगी थीं। चांद बाग इलाके में संकरी गली में सावित्री प्रसाद का छोटा सा घर है । सावित्री के घर से थोड़ी दूर आगे मुख्य सड़क है, जो युद्ध का मैदान नजर आ रही थी जहां दुकानों और कारों को आग हवाले कर दिया गया था। लेकिन इसी के बीच से उनके मुस्लिम पड़ोसी सामने आते हैं और शांति से सावित्री प्रसाद की शादी की रस्में पूरी होती हैं।

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4.मुसलमानों ने रात भर पहरा देकर मंदिर को बचाया

नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके के भागीरथी विहार में काफी पुराना मनकेश्वर शिव मंदिर है। जिस गली में यह मंदिर है, उस गली में हिंदू समुदाय से केवल मंदिर के पुजारी इंद्रदेव शास्त्री का ही मकान है। 24 फरवरी को इलाके में दंगा भड़का तो कॉलोनी के मुस्लिम समुदाय के लोग मंदिर के पुजारी के घर पहुंचे और उन्हें भरोसा दिलाया कि वे परेशान ना हों। वे ना तो उनके घर को कुछ होने देंगे और ना ही मंदिर को। जो भी लोग यहां गलत नीयत से आएंगे, उन्हें सबसे पहले उनकी लाश से होकर गुजरना पड़ेगा। इसके बाद इस मंदिर पर कुछ असामाजिक तत्वों ने कई बार हमला करने की कोशिश की, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग यहां पहरा देते रहे। इस वजह से भगवान शिव का मंदिर और पुजारी इंद्रदेश शास्त्री दोनों सुरक्षित हैं।

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5.मस्जिद बचाने के लिए दंगाइयों से भिड़े शर्मा जी

दिल्ली के अशोक नगर इलाके में एक मस्जिद को बचाने के लिए दंगाइयों के आगे एक हिंदू ने हाथ जोड़ लिए। मोहल्ले में रहने वाले अशोक शर्मा बताते हैं कि मैंने भीड़ से कहाकि रुक जाइए। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं, मस्जिद को मत जलाओ। हमारे मोहल्ले का माहौल मत बिगाड़ो। मगर भीड़ इतनी उग्र थी कि नहीं रुकी। मेरे हाथ जोड़ने से भी नहीं, बल्कि मेरे मकान पर पत्थर मारे गए। मस्जिद के कैंपस में भी करीब सात दुकानें हैं, जिनमें एक राजू की थी। बस वही बची है। बाकी तोड़कर लूट ली गई हैं और आग लगा दी गई है। जब भीड़ यहां पहुंची तो उसने दुकानें तोड़ने शुरू कर दीं। जितेंद्र शर्मा ने उस भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन जितेंद्र शर्मा को धक्का मार दिया गया। धमकी दी गई जो रास्ते में आएगा, उसे भी नहीं छोड़ा जाएगा।

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6.'हम सब एक हैं' की कसम खाई, फिर मोर्चाबंदी कर हिंसा को रोका

समूची उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़की, लेकिन गौतमपुरी ने हिंसा में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। हिंसा की खबर मिलते ही यहां के हजारों हिंदू और मुसलमान एक जगह इकट्ठे हो गए और सभी ने अपनी गौतमपुरी की रक्षा करने की कसम खाई। बुजुर्ग मोहम्मद सलीम ने बताया कि जैसे ही हमें आस-पास के इलाकों में फैली हिंसा के बारे में पता चला, हम सभी एकत्र हुए। हमने दंगा करने वाले बदमाशों को इलाके में घुसने से रोकने के लिए बांस और कुर्सियों के साथ अपनी लेन की मोर्चाबंदी कर दी। हिंसा के दौरान गौतमपुरी के लोगों ने रात भर जागकर शांति मार्च निकाला। 'हम सब एक हैं', 'हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई' और 'इंसानियत की जीत हो' जैसे नारे लगाए।

गौतमपुरी में करीब 4500 हिंदू और मुस्लिम परिवार रहते हैं। इन सभी परिवारों की एकजुटता की वजह से इलाके में न हिंसा हुई, न आगजनी-तोड़फोड़ हुई।गौतमपुरी के लोग जैसे मिलजुल कर रहते हैं, वैसे ही उन्होंने मिलजुल कर दंगे से भी निपट लिया। यहां दंगाइयों को घुसने भी नहीं दिया गया। राजकुमार ने कहा है कि हम गौतमपुरी के लोग हिंदू-मुस्लिम में विश्वास नहीं करते हैं, हम दृढ़ता से मानते हैं कि हम सब भारतीय हैं। मैं एक पंडित हूं, साहू भाई मुस्लिम हैं, लेकिन हम भारतीय हैं, बस। कमरुद्दीन ने ऐलान किया है कि एक साथ हैं और अपने बच्चों को भी यही सिखा रहे हैं।

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7. मौजपुर का लंगर सबके लिए खुला

उत्तरी पूर्वी दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा जब हिंदू मुस्लिम दंगों के चपेट में था तब सबसे पहले और सबसे बड़ी मात्रा में राहत पहुंचाने का काम इलाके में रहने वाले सिख समुदाय के लोगों ने किया। गुरुद्वारा श्री नानक साहब के सेवादार जोगिंदर सिंह ने बताया, "हम सभी लोगों को चाय-नाश्ता करवाते हैं और इसके बाद दोपहर और रात को लंगर भी चलता है। जिन लोगों के घरों में हिंसा हुई है हम उनके रहने की व्यवस्था भी करवा रहे हैं। सभी धर्मों के लोगों के लिए गुरु का द्वार हमेशा खुला है, सिखों के साथ ही कई हिंदू परिवार भी हमारे इस सहायता मिशन से जुड़े हैं। मौजपुर के गुरुद्वारे के सेवादार गज़ब सिंह का कहना है कि दिल्ली के ख़राब हुए हालात के मद्देनज़र श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने सभी पीड़ितों की मदद के लिए सिख समुदाय से अपील की है साथ ही सभी गुरद्वारों को निर्देश भी दिए गए हैं कि जो भी पीड़ित आए उसकी मदद की जा

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8. जब भजनपुरा के सिद्धू ने बचाया जियाउद्दीन को

भजनपुरा की एक गली में जियाउद्दीन भाग रहे थे। दंगाइयों की पागल हो चुकी टोली उन्हें खदेड़े हुए थी। वे भागते भागते गिर पड़ते हैं और दंगाइयों के हाथ आ जाते हैं। दंगाई उन्हें पीटने लगते हैं। यह मंजर जिस गली में था, उसी गली में जिन्दर सिंह सिद्धू का घर है। यह सिद्धू जी के घर के सामने हो रहा था। सिद्धू घर से निकलते हैं और दंगाइयों को खदेड़ कर जियाउद्दीन को बचा कर घर में ले जाते हैं। सुनील, विकास और जैन साब ने सिद्धू का साथ दिया। उन्होंने कई लोगों को बचाया है लेकिन वे नहीं चाहते कि इसका प्रचार हो। सिद्धू जी ने जिया को 3 घण्टे अपने घर मे रखा, पानी पिलाया, भरोसा दिया फिर अपनी पगड़ी उतार कर जिया को पहना दी। जिया को मूंछें नहीं थीं सो सरदार जैसे नहीं लग रहे थे तो चेहरे पर भी पगड़ी लपेट दी और उनको हेलमेट पहनाया। फिर सुनील और सोनू ने जियाउद्दीन को बाइक के बीच बिठाया और रात के अंधेरे में उनके घर छोड़ आए।

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9. मंदिर मस्जिद मार्ग में नहीं होने दी हिंसा

इलाका नूर-ए-इलाही। गली का नाम मंदिर-मस्जिद मार्ग। नाम से ही जाहिर है कि एक ही गली में मंदिर भी है, मस्जिद भी। रहवासी हिंदू भी हैं, मुस्लिम भी। मौजपुर में हिंसा भड़की तो इस मोहल्ले के कुछ युवा भागकर अपने मोहल्ले पहुंचे और लोगों को खबर की। मिली जुली आबादी और मंदिर मस्जिद दंगाइयों का आसान निशाना होते हैं। तुरंत दोनों समुदायों के बड़े बुजुर्गों की एक मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में तय पाया गया कि कुछ भी हो, हम अपने मोहल्ले में यह सब नहीं होने देंगे। जब तक हिंसा की आग मंदिर-मस्जिद मार्ग पहुंची, मोहल्ले वाले इस निश्चय के साथ तैनात थे कि वलवाइयों को यहां नहीं घुसने देना है। किसी भी कीमत पर हम अपनी बस्ती के दामन पर दंगे का कलंक नहीं लगने देंगे। दोनों समुदायों के लोगों ने मिलकर पूरे मोहल्ले में मोर्चा संभाल लिया। माइक से ऐलान होता रहा कि न आपस में लड़ना है, न दंगाइयों को यहां घुसने देना है। ऐसा कुछ न करें जिससे कि हमें शर्मिंदा होना पड़े। मौजपुर हिंसा में जख्मी हुए कई लोग भाग कर नूर-ए-इलाही पहुंचे तो इन लोगों ने उनकी मदद भी की। इलाज कराया, अस्पताल पहुंचाया, जो सलामत थे उन्हें उनके घर पहुंचाया।

10. वजीराबाद के लोगों ने दंगा पीड़ितों को दी पनाह

नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में दंगे भड़कने के बाद कई परिवार आसपास के एरिया में शरण लिए हुए हैं। वजीराबाद पहुंचे दंगा पीड़ित परिवारों की स्थानीय लोग मदद कर रहे हैं। लोगों का कहना है यहां कई ऐसे परिवार आए हैं, जिनके पास ना तो खाने के लिए कुछ है और ना ही किराये पर मकान लेने के लिए पैसे। ऐसे में वे लोग हर तरह से उनकी मदद कर रहे हैं। मदद करने से पहले किसी का धर्म नहीं पूछा जा रहा है। लोग उन्हें रहने के लिए जगह मुहैया करा रहे हैं। खाने से लेकर उनके इलाज तक का ख्याल रखा जा रहा है। वजीराबाद के लोगों का कहना है कि इंसानियत के नाते हमारा फर्ज है कि हम मजबूर लोगों की मदद करें। वजीराबाद इलाके में अधिकतर परिवार 24 फरवरी के बाद पहुंचे हैं।

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अमन और शांति की ऐसी कहानियां और भी हैं। इसमें से कुछ कहानियां मीडिया में आएंगी, कुछ नहीं आएंगी लेकिन नफ़रत और हिंसा के बीच आपसी भरोसा और मानवता को बचाया गया तो यह विशेष उल्लेखनीय है। जब आपको बताया जा रहा है कि आपको हिंदू से या मुसलमान से खतरा है, तब आपको यह जरूर जानना चाहिए।

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