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दिल्ली अनाज मंडी अग्निकांड : मुनाफे की हवस और प्रशासन के गठजोड़ से मरते मजदूर

2017-18 में बवाना में आगजनी की 465 घटनाएं हो चुकी हैं। इसी तरह नरेला में 2017-18 में 600 से अधिक आगजनी की घटनाएं हुई। इतने बड़े पैमाने पर इंडस्ट्रीएल एरिया के अन्दर की आगजनी की घटनाएं होने के बावजूद न तो दिल्ली सरकार और ना ही एमसीडी के कान पर जू रेंग रहा है। एक घटना के बाद दूसरी घटना का इंतजार किया जाता है, जिसमें मजदूरों को अपने जान से हाथ धोना पड़ता है।
delhi fire
Image Courtesy: NDTV

8 दिसम्बर, 2019 की तारीख एक बड़े अग्निकांड के रूप में दर्ज हो गई, जिसमें अभी तक 43 मजदूरों के मरने और 21  मजदूरों के घायल होने की खबर है। ऐसा नहीं है कि यह दिल्ली में इस तरह का पहला अग्निकांड हुआ है; इससे पहले मुनाफे की हवस और शासन-प्रशासन के गठजोड़ से बवाना, नरेला, भोरगढ़, पीरागढ़ी, झिलमिल, ओखला, सुल्तानपुरी इत्यादि जगहों में दर्जनों, सैकड़ों नहीं हजारों घटनाएं एक साल मे होती हैं।

 20 जनवरी, 2018 को बवाना अग्निकांड में 18 मजदूरों की जानें चली गईं; पीरागढ़ी की एक फैक्ट्री में दर्जन भर मजदूर मर गये। इस तरह की घटनायें आये दिन दिल्ली में होती रही हैं। 2 दिसम्बर, 2019 की रात में तुगलकाबाद के गोदाम में आग लगने से एक व्यक्ति की मौत हुई और एक व्यक्ति घायल हो गया। आग लगने के बाद हमेशा बात आती है कि फैक्ट्री के पास फायर का एनओसी नहीं था; लाइसेंस नहीं था; मजदूरों को बंद करके काम कराया जाता था; बच्चे भी काम करते थे; श्रम कानूनों का पालन नहीं होता था, इत्यादि, इत्यादि।

 केन्द्र और राज्य सरकार एक दूसरे पर दोषारोपण करते हैं कि लाइसेंस दिलाने का काम एमसीडी का है तो एमसीडी बोलती है कि श्रम विभाग दिल्ली सरकार के पास है। इसी तू-तू मैं-मैं में कुछ दिन बाद मामला शांत हो जाता है और लोग भी घटना को भूल जाते हैं। इसी तरह सदर बाजार, अनाज मंडी अग्निकांड में एक दूसरे पर दोषारोपण का दौर शुरू हो चुका है। दिल्ली चुनाव नजदीक होने के कारण केजरीवाल सरकार ने मृतक परिजनों को 10-10 लाख रू. मुआवजे देने की घोषणा कर दी, जबकि झिलमिल में मरने वाले मृतकों को 5-5 लाख रू. दिये गये थे। प्रधानमंत्री भी मृतक को दो-दो लाख रू. और दिल्ली बीजेपी मृतक परिवार वालों को 5-5 लाख रू. देने की घोषणा कर चुके हैं। इसके पहले किसी तरह का कोई मुआवजा दिल्ली बीजेपी या केन्द्र सरकार ने नहीं दी थी।

घटना स्थल के पास कटरा गौरी शंकर मोहल्ला है, जहां पर राजस्थान के बरवा समुदाय के करीब 600 घर हैं। कटरा गौरी शंकर के निवासियों ने बताया कि इस इलाके में दो माह पहले सिलेंडर फटने से दो व्यक्तियों की मौत हो चुकी है, लेकिन वह मामला दब गया।  वे यह भी कहते हैं कि इन फैक्ट्रियों से हम परेशान हैं क्योंकि फैक्ट्री से सटे घरों में दरारें आ गई हैं। ओम प्रकाश, जो कि पीडब्ल्यूडी में सरकारी कर्मचारी हैं, ने मशीन के कम्पन से दीवारों  में हुए दरारों को दिखलाया।

मोहल्ला के लोगों का कहना है कि 1999 के बाद से इन इलाकों में फैक्ट्रियां आने लगीं और अभी हर घर में गैर कानूनी रूप से फैक्ट्रियां चल रही हैं। एक घर के अन्दर अलग-अलग मंजिल पर अलग-अलग फैक्ट्री चल रही हैं। इन फैक्ट्रियों में कम उम्र के बच्चे भी काम कर रहे हैं। बस्ती के पास ही ब्रेड-आमलेट की दुकान लगाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि आज आगजनी के कारण इलाके की फैक्ट्रियां बंद होने से काफी संख्या में पार्क में बच्चे दिखाई दे रहे हैं। मोहल्ले वालों ने बताया कि फैक्ट्रियों के कारण सड़क पर चलना भी मुश्किल होता है क्योंकि रास्ते में उनके सामान पड़े होते हैं। इस तरह का सड़क जाम पुलिस-प्रशासन के मिलीभगत से होता है।

सदरबाजार की अनाज मंडी की जिस फैक्ट्री में आग लगी है, उस फैक्ट्री का नाम कोई नहीं जानता है। चार मंजिला इमारत में तीन-चार फैक्ट्रियां चलती थीं। प्लास्टिक के खिलौने बनाने का काम होता था, किसी में गरम जैकेट की सिलाई का काम होता था तो किसी में बैग बनती थी। कहा जा रहा है कि जो मजदूर मरे हैं उसमें ज्यादातर गरम जैकेट की सिलाई के मजदूर थे। इसमें 5-6 ठेकेदार थे जो कि उत्तरी बिहार के विभिन्न जिलों से मजदूरों को काम के लिए लाते थे। जाड़े के सीजन का समय था तो अभी मजदूरों की संख्या ज्यादा थी। अगले दिन छुट्टी का दिन (रविवार) होने के कारण मजदूर देर रात तक काम किये। 5 बजे सुबह के समय गहरी नींद में सो रहे मजदूरों की जब नींद खुली तो वे अपने आप को आग से घिरा पाया। आग से घिरे मजदूर अपने-अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन करने लगे और बताने लगे कि वे आग से घिर गये हैं और भागने का कोई रास्ता नहीं है। मजदूरों के फोन पर बात करते-करते उनमे दम घुटने लगे।

आस-पास के लोग बताते हैं कि जब वे अवाज सुन कर छत पर गये तो मजदूर छोटी छोटी खिड़की से हाथ बाहर करके मदद की गुहार लगा रहे थे। लेकिन आग इतनी तेज थी कि लोग बाहर से मदद  करने में असमर्थ थे। लोगों ने कहा कि वे छत पर आ जायें, लेकिन कोई मजदूर छत पर नहीं आया। आग लगने पर परिवारजनों को फोन करना और छत पर नहीं आने का मतलब है कि छत के दरवाजे बंद थे। अगर छत के दरवाजे खुले होते तो कई मजदूरों की जानें बच सकती थी। वे छत पर आकर दूसरी छत पर या नीचे कूद सकते थे।
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एलएनजेपी (लोकनारायण जयप्रकाश नारायण हॉस्पिटल)  में वार्ड और मोरचरी ( पोस्ट मार्टम हॉउस ) के बाहर मजदूरों के परिजन और दोस्त काफी संख्या में खड़े मिले। चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। कोई फोन पर बात कर रहा था, तो कोई रो रहा था और कोई इधर से उधर भाग रहा था। सब अपनों की हालत जानने के लिए बेचैन थे, लेकिन उनका सुध लेने वाला कोई नहीं था। हरियाणा के पानीपत से आये दो लड़के जिनकी उम्र 20-22 साल की होगी, फोन पर बात करते हुए भाग रहे थे। वे बस यही कह पा रहे थे कि हमारा चचेरा भाई काम करता था नहीं मिल रहा है। वे यह भी कह रहे थे कि हम बिहार के रहने वाले हैं।

 मायापुरी में काम करने वाले साजिद और आठ-दस लोग वार्ड के बाहर इस आशा से खड़े थे कि उन्हें वार्ड के अन्दर दाखिला मिल जाये, ताकि वे अपने लोगों को पहचान पायें। साजिद बताते हैं कि वह बिहार के समस्तीपुर जिले के हरीपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके गांव के 27 लोग यहां पर काम करते थे, जिसमें से 9 लोग नहीं मिल पा रहे हैं। साजिद ने बताया कि पुलिस उन्हें मोरचरी में लाश देखने भी नहीं दे रही है। वह कहते हैं कि उनके गांव के आस-पास के गांव बेलाही, गुरियारी के लोग भी यहां काम करते थे।

वार्ड के बाहर तुगलकाबाद से आये शफीक अली मिले। उन्होंने बताया कि उनके रिश्तेदार मो. जाहिद और मो. सैजू की मौत हो गई है, वे दोनों भाई थे और उनके भांजे अंसार मिल नहीं रहा है। ये लोग जिला अररिया के गांव हिंगुआ के रहने वाले थे। शफीक बताते हैं कि हालत यह है कि मोरचरी में देखने जाने पर पुलिस वालों का व्यवहार ऐसा है कि जैसे किसी ने देखने आकर गुनाह कर दिया है। वह कहते हैं कि डॉक्टर तो अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन अस्पताल के अन्य स्टाफों का व्यवहार अच्छा नहीं है। मोरचरी के बाहर हमें मुमताज और उनके दोस्त मिले, जो कि दिल्ली के तुगलकाबाद से आये हैं। वे बताते हैं कि उनके गांव का रिश्तेदार राजू (22) की मौत हो गई है, वह जिला मुजफ्फरपुर के गांव उपरवली के रहने वाले हैं। मोरचरी के बाहर ही एक और नौजवान ने बताया कि पुलिस कह रही है कि रात नौ बजे के बाद आना या कल आना तो लाश दिखाएंगे।

जो राजनेता अपने आपको मजदूरों की हितैषी बता रहे हैं, न तो उनकी पार्टी के वालंटियर और न ही केन्द्र या दिल्ली सरकार का कोई कर्मचारी इन मजदूरों के रिश्तेदारों दोस्तों की सहायता के लिए अस्पताल के आस-पास दिखे। पुलिस अग्निकांड में घायल और मृत मजदूरों को एलएनजेपी, हिन्दू राव, लेडी हार्डिंग और राम मनोहर लोहिया जैसे अस्पतालों में लेकर गई है, लेकिन न तो उसके पास यह जानकारी नहीं है कि किस मजदूर का किस अस्पताल में इलाज चल रहा है या किस अस्पताल की मोरचरी में मृतक मजदूरों का शव रखा गया है। मजदूरों की मौत पर मुआवजे की घोषणा करने वाली दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार के अधिकारियों ने भी इस लिस्ट को नहीं लगाया है, ताकि पीड़ित मजदूरों के रिश्तेदारों, दोस्तों एवं परिवार वालों की मदद हो सके।

एलएनजेपी अस्पताल के बाहर 11 नाम लिखे हैं, जिनमें से दो नामों को काट दिया गया है। कटे हुए नामों के सामने यह भी नहीं लिखा है कि उनकी मृत्यु हो गई या अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। इन अग्नि कांड के केस में फैक्ट्री के मैनेजर फुरकान और मालिक रेहान को 304 का मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया है। इस कांड की छानबिन  करने की जिम्मेवारी क्राइम ब्रांच को सौप दी गई है। पुलिस ने इस मामले में दर्ज एफआईआर को भी ब्लॉक कर दिया है, ताकि आम आदमी को पता नहीं चल पाये कि पुलिस ने क्या मामला दर्ज किया है।

जलने-मरने के बाद राजनेतागण अस्पताल और फैक्ट्री का दौरा कर मजदूरों का हाल जानने आते हैं, लेकिन जिन्दा मजदूरों की हालत देखने कभी ये मंत्री, अधिकारी नहीं पहुंचते हैं। घटना के बाद मगरमच्छ के आंसू बहाने वाले जिम्मेवार राजनेता और अधिकारी कोई ऐसा उपया क्यों नहीं करते कि इस तरह की कोई घटना न हो? इसके लिए वे शासन-प्रशासन के काम-काज को दुरूस्त क्यों नहीं करते?

2017-18 में बवाना में आगजनी की 465 घटनाएं हो चुकी हैं। इसी तरह नरेला में 2017-18 में 600 से अधिक आगजनी की घटनाएं हुई। इतने बड़े पैमाने पर इंडस्ट्रीएल एरिया के अन्दर की आगजनी की घटनाएं होने के बावजूद न तो दिल्ली सरकार और ना ही एमसीडी के कान पर जू रेंग रहा है। एक घटना के बाद दूसरी घटना का इंतजार किया जाता है, जिसमें मजदूरों को अपने जान से हाथ धोना पड़ता है। सरकार मजदूरों के लिए आवास क्यों नहीं बनाती? उनको क्यों फैक्ट्री के अंदर रहना पड़ता है, जिससे मालिक चोरी के डर से बाहर से ताला बंद करके चला जाता है? ऐसी हालत में दुर्घटना होने पर मजदूरों को अपने जान से हाथ धोना पड़ता है। इस अग्निकांड में केवल मालिक और मैनेजर को गिरफ्तार कर सरकार का काम पूरा नहीं हो जाता।

आखिर इस तरह की मौतों के लिए उन अधिकारियों, मंत्रियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती, जिनकी जिम्मेवारी इस तरह के कांड को रोकने और कानून व्यवस्था लागू कराने की होती है? क्या इसमें श्रम विभाग, एमसीडी, फायर विभाग, पुलिस प्रशासन दोषी नहीं है, जो इस तरह की फैक्ट्रियों के मालिकों से उगाही करके चलाने की इजाज्जत देते हैं? सदर बाजार, अनाज मंडी के इलाके में फैक्ट्री किसके इशारे और किन अधिकारियों की मिलीभगत से चल रही थी? इस अग्निकांड की जबाबदेही तय होनी चाहिए, दोषियों का सख्त सजा मिलनी चाहिए, ताकि आगे ऐसे अग्निकांड की पुनरावृत्ति न हो सके।

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