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अदालत ने फिर उठाए दिल्ली पुलिस की 2020 दंगों की जांच पर सवाल, लापरवाही के दोषी पुलिसकर्मी के वेतन में कटौती के आदेश

दिल्ली दंगों के एक मामले में दिल्ली पुलिस के बहुत ही लापरवाह तरीके से सुनवाई स्थगित करने के अनुरोध से नाराज एक अदालत ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को इसकी जांच करने और दोषी अधिकारी के वेतन से 5,000 रुपये काटने का निर्देश दिया है।
2020 riots

दिल्ली दंगों के एक मामले में दिल्ली पुलिस के बहुत ही लापरवाह तरीके से सुनवाई स्थगित करने के अनुरोध से नाराज एक अदालत ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को इसकी जांच करने और दोषी अधिकारी के वेतन से 5,000 रुपये काटने का निर्देश दिया है।

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने उसके पिछले आदेश का अनुपालन करने में पुलिस के विफल रहने के बाद जुर्माना लगाया। अदालत ने पिछले आदेश में जांच अधिकारी (आईओ) को एक आरोपी को ई-चालान की एक कॉपी प्रदान करने का निर्देश दिया था और पुलिस ने इसकी प्रति उपलब्ध कराने के लिए मामला स्थगित करने का अनुरोध किया था।

न्यायाधीश ने कहा कि इन परिस्थितियों में, 12 अप्रैल, 2021 के आदेश के अनुपालन के लिए स्थगन का अनुरोध स्वीकार किया जाता है, बशर्ते दिल्ली पुलिस द्वारा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में 5,000 रुपये जुर्माना जमा कराए जाएं।

अपने 25 सितंबर के आदेश में न्यायाधीश ने कहा, "यह अदालत इस बात से बेखबर नहीं है कि इस लागत का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा और इसलिए मैं दिल्ली पुलिस कमिश्नर को जांच करने और जिम्मेदार अधिकारी के वेतन से राशि की कटौती का आदेश देने के लिए निर्देश देना उचित समझता हूं।"

न्यायाधीश ने कहा कि विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) और आईओ निर्धारित तारीखों पर मामलों में पेश नहीं होते हैं और जब वे पेश होते हैं, तो फाइल का निरीक्षण किए बिना पेश हो जाते हैं और फिर “बहुत ही बेढंगे तरीके से” सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध करते हैं।

उन्होंने कहा कि पुलिस के साथ-साथ अभियोजक के आचरण को पहले ही पुलिस कमिश्नर सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के संज्ञान में लाया जा चुका है, हालांकि, वे यह सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

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अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें आईओ को निर्देश दिया गया था कि वह 12 अप्रैल, 2021 के आदेश के अनुपालन में कोमल मिश्रा नाम के आरोपी को ई-चालान की एक कॉपी प्रदान करें। हालांकि, आईओ ने अदालत को सूचित किया कि ई-चालान की कॉपी अभी तक आरोपी को नहीं दी गई है क्योंकि उसे अदालत के आदेश की जानकारी नहीं थी।

यह कोई पहला मौका नहीं जब दिल्ली दंगे के मामले में दिल्ली की पुलिस सवालों के घेरे में हो।  दंगे की शुरुआत से दिल्ली पुलिस पर सवाल उठ रहे थे अब कोर्ट भी उन सवालों को जायज ठहरा रहा है। पुलिस दंगे के डेढ़ साल बाद भी अपनी जांच से किसी दोषी को ढूंढकर सज़ा नहीं दिला पाई है। जबकि कई छात्र, नौजवान और सामजिक कार्यकर्ताओं को बिना सुबूत दंगे के आरोप में जेल में बंद कर रखा है।

दंगों की जांच को लेकर दिल्ली की अदालतों की हालिया टिप्पणियां

कड़कड़डूमा ज़िला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) विनोद यादव ने 28 अगस्त को अपने आदेश में अभियोजन पक्ष की तरफ़ से बरते जा रहे घटियेपन का ज़िक़्र किया था। जांच करने वाले पुलिस अधिकारी सुनवाई के दिनों में अदालत में या वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये उपस्थित नहीं हुए थे, ठीक से सुबूत भी नहीं जुटाये गये थे, मामलों को लेकर लोक अभियोजकों (PP) को पर्याप्त निर्देश भी नहीं दिये गये थे और पीपी को चार्जशीट का महज़ एक पीडीएफ़ संस्करण भेज दिया गया था, जिसके आधार पर उन्हें बहस करना था। यह मामला दंगों में आरोपी के रूप में दो लोगों पर मामला दर्ज किये जाने से सम्बन्धित है।

जहां उन्होंने दिल्ली पुलिस की जांच के मानक को "बहुत ख़राब" और चार्जशीट को "आधा-अधूरा" बताया था, वहीं एएसजे ने कहा था कि शुरुआती चरण में अदालत को क़ानूनी रूप से चार्जशीट की सख़्ती से जांच करने और इस मामले की कमी-वेशी को लेकर निर्णय लेने की अनुमति नहीं है, बल्कि सिर्फ़ यह जांच करने की ज़रूरत है कि क्या प्रथम दृष्टया यह मामला बनता है। उन्होंने बचाव पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया था कि आरोपियों को झूठे तरीक़े से फ़ंसाया गया था।

एएसजे यादव ने एक प्राथमिकी के तहत एक आरोपी का बयान लेने और दूसरी प्राथमिकी के तहत दर्ज मामले में इसका इस्तेमाल करने को लेकर एक बार फिर से पुलिस की खिंचाई की थी। एक दूसरे मामले में तीन लोगों-मोहम्मद शादाब, राशिद सैफ़ी और शाह आलम को एक अलग प्राथमिकी के तहत इसलिए आरोपित किया गया था क्योंकि अदालत ने पहले की एक प्राथमिकी के तहत इन सबको आरोपमुक्त कर दिया था। अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 300 और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत उस "दोहरे संदेह" के सिद्धांत का हवाला दिया, जिसके ज़रिये किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता है।

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने 6 सितंबर को दिल्ली पुलिस को अपनी जांच पूरी करने के लिए उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया ताकि दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई आगे बढ़ सके। उन्होंने कहा कि "डीसीपी और उससे ऊपर के रैंक तक के निगरानी अधिकारियों सहित जांच एजेंसी का ढुलमुल रवैया" अदालत को इस मामले पर फ़ैसला करने से रोक रहा है और आरोपी एक साल से ज़्यादा समय से जेल में बंद है।

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हालांकि, ये कुछ चंद उदाहरण हैं जो साफ़ तौर पर दिल्ली दंगों के मामलों में पुलिस जांच की कमी को सामने है जबकि ऐसे कई उदहारण हैं।  

गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था। हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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