दिल्ली दंगों के दो साल: इंसाफ़ के लिए भटकते पीड़ित, तारीख़ पर मिलती तारीख़
दिल्ली दंगे को दो साल हो गए हैं। लेकिन आज भी इसके पीड़ित अपने लिए न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं। देश की सबसे आधुनिक पुलिस में से एक दिल्ली की पुलिस जो सीधे केंद्र सरकार के अधीन आती है वो आजतक इन दंगों के आरोपियों का पता नहीं कर पाई है। इस दौरान उत्तर पूर्व दिल्ली में बड़ी संख्या में लोगों के जान माल का नुक़सान हुआ, लेकिन अब धीरे-धीरे जन-जीवन समान्य हो रहा है लोगो में तनाव कम हुआ है। परन्तु जिनके घर के कमाने वाले इस दंगे में मारे गए वो आज भी अपने लिए इंसाफ ढूंढ रहे हैं। इसी के लिए आज 26 फरवरी 2022 को दंगा पीड़ितों, नागरिक समाज के लोगों, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई(एम) की दिल्ली कमेटी के आह्वान पर बहुत से लोग जंतर मंतर पर एकत्र हुए और धरना दिया। इस दौरान पीड़ित परिवारों और बाक़ी प्रदर्शनकारियों ने सरकार से सवाल पूछा कि ‘दंगे के दो साल हो गए है, आखिर कब होगा इंसाफ'
इस दौरान दंगे के पीड़ितों और CPIM पार्टी की बृंदा करात सहित अन्य लोगों ने अपनी बात रखी। पीड़ित परिवारों ने कहा कि दो साल बीत जाने के बाद भी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार परिवारों को न्याय नहीं मिला।
इस धरने में आई दस साल की बच्ची इलमा ने सवाल किया कि "आखिर साम्प्रदायिक हिंसा से किसे फायदा होता है?" दो साल पहले उत्तर-पूर्व दिल्ली के साम्प्रदायिक हिंसा में इलमा के घर का एक मात्र कमाऊ बड़ा भाई अरशद भी इस हिंसा का शिकार हुआ था। धरना में पीड़ित परिवार के लोगों ने अपनी-अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि आज भी वे उस खौफ़ से उबर नहीं पाए हैं। घर में कमाने वाला नहीं रहा। जीवन-यापन का गंभीर संकट है। इसके साथ सभी ने इस दंगे की निष्पक्ष जाँच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की।
बिहार के बेगूसराय से आए प्रवासी मज़दूर रामसुगारत पासवान जो दिल्ली में कई दशकों से रिक्शा चलाते हैं। वो गोकलपुरी के बी-ब्लॉक में एक छोटे से मकान में किराये पर रहते हैं। उन्होंने इस दंगे के दौरान अपने 15 वर्षीय किशोर बच्चे नितिन जो नौवीं कक्षा में पढ़ता था उसको खो दिया। उनका कहना है कि उसकी मौत, सर पर पुलिस के आंसू गैस के गोले लगने से हुई, जबकि पुलिस ने कहा कि वो भीड़ को तितर-बितर करने के दौरान गिर गया जिस वजह से उसके सर में चोट आई। और इसके बाद इलाज के दौरान उसने अपना दम तोड़ दिया था।
नितिन के पिता रामसुगारत पासवान और माँ जिनका रो-रो कर बुरा हाल था, उन्होंने पुलिस के इस पूरे दावे को सिरे से खारिज़ किया और कहा- हमारा बेटा चाऊमीन लेने के लिए 26 फरवरी 2020 को गया था जब इलाके में सब कुछ ठीक हो गया था। पुलिस ने उसे मार दिया।
रामसुगारत ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, "हमारे इलाके में कुछ लोगों ने एक मीट की दुकान पर हमला किया और एक मस्ज़िद पर भी हमला किया था लेकिन ये सब 24-25 फरवरी को हुआ था। 26 को सब शांत था तभी हम भी कुछ देर के लिए बाहर निकले थे। और उसके कुछ देर बाद ही मेरा छोटा बेटा नितिन भी गया था।
रामसुगारत ने रोते हुए कहा, "वो(नितिन) शरीर से भी काफी लंबा था और वो पढ़ने में भी बहुत होशियार था। वो पुलिस वाला बनना चाहता था, वो रोजाना मुझे कहता था पापा मैं पुलिस वाला बनूंगा और आपको रिक्शा चलाना छुड़ा दूँगा। लेकिन पुलिस वालों ने मेरे बेटे को मार दिया।”
उन्होंने कहा हमें मुआवज़ा भी तोड़ मरोड़ कर दिया गया है और कोर्ट भी तारीख पर तारीख दे रहा है। हमे इंसाफ नहीं मिल रहा है।
आगाज़ ख़ान जिनकी उम्र लगभग 56 वर्ष थी उनके बेटे अशफ़ाक़ जिनकी उम्र 22 वर्ष थी और वो एक बिजली के कारीगर थे। उनकी हत्या भी इन दंगों के दौरान हुई थी, मौत से लगभग 10 दिन पहले ही उनका निकाह हुआ था और 25 फरवरी को ही वो दिल्ली आए थे जहाँ वो लंबे समय से परिवार के साथ रहते थे।
उनके पिता आगाज़ ख़ान ने बताया, "हमारे परिवार में बच्चे की शादी के बाद ख़ुशी का माहौल था लेकिन उस घटना के बाद हमारे परिवार में केवल ग़म ही ग़म है। उसके बाद से हमने कोई भी ख़ुशी नहीं मनाई है। आज भी हमारे घर में उसकी शादी के कपड़े रखे हुए हैं।”
अशफ़ाक़ को याद करते हुए उनके दोस्त मिर्ज़ा ने कहा कि वो बहुत ही अच्छा लड़का था उसने कभी हिन्दू-मुसलमान नहीं किया। वो(अशफ़ाक़) और उसका एक दोस्त अमित दोनों ही मंदिर, मस्जिद या किसी भी धर्म के पूजा स्थल पर काम करने के बदले में पैसा नहीं लेते थे।
अशफ़ाक़ के पिता रोते हुए केवल एक ही बात कहते हैं, "मेरे बच्चे को इंसाफ़ मिलना चाहिए और इस पूरे दंगे के ज़िम्मेदार लोगों को कानून सजा दे, चाहे वो किसी भी धर्म के हों। लेकिन वे भी पुलिस की जाँच से खुश नहीं थे। वे भी कहते हैं कि दो साल हो गए अभी तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ है, हमें कब इंसाफ मिलेगा हमे मुआवज़ा नहीं इंसाफ चाहिए।
इसी तरह धरने में आई असगरी ने भी अपनी आपबीती बताई, उनके दो बेटे थे और दोनों को ही दंगाइयों ने मार दिया था। उनका बड़ा बेटा 30 वर्षीय आमिर और उनका छोटा भाई हाशिम जिसकी उम्र लगभग 19 साल थी। ये दोनों भाई इस हिंसा में मारे गए। आमिर के नाना की तबीयत खराब थी और आमिर व हाशिम अपने नाना को देखने ग़ाज़ियाबाद गए थे, लेकिन उस बीच जिले में हिंसा हो गई। परिजनों के कहने पर दोनों ग़ाज़ियाबाद में ही रुके रहे। इस बीच 26 फरवरी की रात को दोनों अपनी बाइक से भागीरथी विहार होते हुए घर लौट रहे थे। इस बीच दंगाइयों ने भागिरथी विहार नाले की पुलिया पर उनको रोक लिया। इसके बाद दोनों की बेरहमी से हत्या कर शव को जलाकर नाले में फेंक दिया गया। हत्या से पांच मिनट पहले ही हाशिम की परिवार से बात हुई थी, उसने कहा था कि वे घर के पास ही हैं और पांच मिनट में पहुंच जाएंगे।
आमिर जिनकी शादी हो चुकी थी और उनकी तीन बेटियाँ हैं। उनकी सबसे छोटी बेटी का जन्म, उनकी मौत के पांच महीने बाद जुलाई में हुआ, जिसकी देखभाल आमिर की माता असगरी, पिता बाबू खान और आमिर की बीवी सबीना कर रही हैं, जिनकी उम्र केवल 29 साल है। असगरी ने कहा "आमिर के जाने के बाद उनकी याद आती है।”
उन्होंने सरकार से एक अपील की और कहा कि सरकार उन्हें(आमिर की बीबी) कोई भी नौकरी दे दे जिससे वो अपने बच्चों का भविष्य बना सकें। क्योंकि अब उनका और बच्चों का सहारा कोई नहीं है। ।
आमिर के परिवार ने भी पुलिस जाँच पर अपना असंतोष जताया और कहा, "हमें बस न्याय मिले और गुनहगारों को सज़ा मिलनी चाहिए।"
आपको बता दें कि पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए जिसमें 53 लोगों की जान गई और करोड़ों की संपत्ति जलकर ख़ाक हुई थी। इस पूरे इलाके में कई दिनों तक हिंसा का तांडव होता रहा, लेकिन पुलिस प्रशासन मूक दर्शक बना रहा। इसके बाद आज एक दो साल हो गए, लेकिन पुलिस की जाँच किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची है। बल्कि लोग पुलिस की जाँच पर भी लगातार सवाल उठा रहे हैं।
धरना को संबोधित करते हुए CPIM पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने विस्तार से बताया कि कैसे दो साल के बाद भी जांच और चार्जसीट तक दाखिल नहीं की गई है। एक भी पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई है।
बृंदा ने अपने भाषण में कहा कि अभी तक 50% केसों में जाँच ही पूरी नहीं हुई है, जबकि 64% केसों में अभी और जाँच की जरूरत है। अभी एक भी केस का ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भी हमला बोलते हुए कहा कि यह सब उन्ही के इशारे पर हो रहा है,लगातार बीजेपी नेताओं को बचाया जा रहा है। पुलिस लगातार अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर पुलिस ने CAA विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमे बनाकर UAPA में जेल में बंद कर रखा है।
बृंदा करात ने दिल्ली की सरकार पर भी सवाल उठाए और कहा कि मुआवज़ा ही नहीं पुनर्वास और जीवन यापन भी जरूरी है। पीड़ित परिवारों के साथ एकजुटता जताते हुए उन्होंने कहा कि सड़क पर उतरकर संघर्ष ही इसका एकमात्र विकल्प है।
धरना में लोनी के वे पीड़ित परिवार भी शामिल हुए जिन्हें भाजपा विधायक के इशारे पर फर्जी मुठभेड़ में गोली मारी गई थी। उन्होंने बताया कि अपराधियों पर कार्यवाही के बजाए, बेगुनाह दिहाड़ी मजदूरों को झूठे केसों में फंसाया जा रहा है। उनमें से एक युवक अभी भी जेल में है।
आपको बता दें कि दिल्ली 23 फ़रवरी 2020 से 26 फ़रवरी 2020 के बीच हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी। दिल्ली पुलिस के मुताबिक, मारे गए लोगों में से 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। हालाँकि अभी तक पुलिस किसी भी मामले में दोषियों को सज़ा नहीं दिला पाई है।
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