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बिहार में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने की मांग में भाकपा-माले विधायकों का प्रदर्शन

“2.75 लाख शिक्षक के पद नीचले स्तर पर खाली हैं और कॉलेज लेवल पर अभी भी करीब 70 प्रतिशत शिक्षक के पद खाली हैं। पढ़ने-लिखने वाले गरीब के बच्चे शिक्षा महंगी होने के चलते वे इससे दूर हो रहे हैं।"
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Image courtesy : Hindustan Times

बिहार की चरमराई शिक्षा व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है। यहां की खस्ताहाल स्कूल की इमारतें, शिक्षकों के खाली पद, क्लास में बच्चों की अनुपस्थितियां, बच्चों को किताबों की कमी बिहार में आम बात है। अक्सर इन सबको लेकर खबर पढ़ने और सुनने को मिल ही जाती है। पिछले दो वर्षों में कोरोना के चलते समय समय पर बंद किए गए स्कूलों के चलते बच्चों के भविष्य को चौपट कर दिया है।

बिहार की विपक्षी पार्टियों द्वारा राज्य की शिक्षा व्यवस्था का मुद्दा अक्सर उठाया जाता रहा है लेकिन स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। प्रदेश की विधानसभा में बजट सत्र चल रहा है। इस बीच गत सोमवार को बिहार विधानसभा परिसर में सीपीआइएमएल के विधायकों द्वारा शिक्षा व्यवस्था में सुधार और खाली पदों पर शिक्षकों की भर्ती करने समेत अन्य मुद्दों को लेकर प्रदर्शन किया गया। इस दौरान सीपीआइएमएल से पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि “2.75 लाख शिक्षक के पद नीचले स्तर पर खाली हैं और कॉलेज लेवल पर अभी भी करीब 70 प्रतिशत शिक्षक के पद खाली हैं। पढ़ने-लिखने वाले गरीब के बच्चे शिक्षा महंगी होने के चलते वे इससे दूर हो रहे हैं।"

उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि, "क्या बच्चे स्कूल में सिर्फ पोशाक पहनने के लिए जा रहे हैं या वे सिर्फ खिचड़ी खाने के लिए जा रहे हैं? सरकार का ही आंकड़ा कह रहा है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति केवल 27 प्रतिशत है। सरकार कुछ भी घोषणा कर दे रही है लेकिन ग्राउंड पर कोई सुधार नहीं हो रहा है। नई शिक्षा नीति के तहत बिहार में शिक्षा को निजीकरण की तरफ तेजी से बढ़ाया जा रहा है। हमने सरकार से ये भी कहा कि सरकार जिन सरकारी स्कूलों में किताब देने के बदले पैसा देने की योजना चला रही है जिसका कोई फायदा नहीं है। आज भी सरकारी स्कूलों में बच्चों के पास किताबें नहीं हैं। इसलिए सरकार को पैसा देने के बजाय किताब देनी चाहिए ताकि बच्चे उससे पढ़ाई कर सकें।"

बता दें कि कुछ दिनों पहले विधानमंडल पास हुए बजट में सरकार ने 2022-23 के लिए शिक्षा विभाग का बजट बढ़ा दिया लेकिन पुरानी व्यवस्था में सुधार को लेकर कोई योजना नहीं बनाई गई है। नीतीश सरकार ने कुल बजट का 16.5% खर्च शिक्षा पर करने का निर्णय लिया है लेकिन इसमें पुरानी व्यवस्था में संसाधनों और भवनों को लेकर कोई योजना नहीं बताई गई है। सरकार ने 39,191.87 करोड़ रुपए शिक्षा के मद में दिया है लेकिन विशेषज्ञ इसे महज खानापूर्ति बता रहे हैं।

वहीं शिक्षा के मद में बजट आवंटन को लेकर सीपीआइएमएल विधायक संदीप सौरभ कहते हैं कि, "शिक्षा पर सदन से बजट आवंटन और शिक्षा विभाग को आवंटित राशि का मिलने वाला हिस्सा, ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं।"

बिहार में शिक्षकों की भर्ती की बात करें तो सीटेट-बीटेट पास अभ्यर्थी बहाली को लेकर धरना प्रदर्शन करते रहे हैं। वर्ष 2019 में जारी विज्ञप्ति की परीक्षा में पास हुए इन अभ्यर्थियों ने सातवें चरण की बहाली को लेकर राजधानी पटना में 3 मार्च से आंदोलन किया।

उधर बिहार के स्कूलों की इमारतों और वहां शौचालयों की सुविधाओं की बात की जाए तो हाल ही में दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट में बेहद चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि राजधानी पटना के एजी कॉलोनी में एक ऐसा स्कूल है जहां बेटियां टॉयलेट के डर से पानी पीकर नहीं जाती हैं। गर्मी में प्यास से गला सूखता है, इसके बाद भी वह स्कूल में पानी नहीं पीती हैं। स्कूल में 6 से 7 घंटे वह कैसे बिताती हैं, यह वही जानती हैं। यह बिहार सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के दावों की पोल खोलती है। स्कूलों में इस तरह की बदहाल स्थिति बालिका शिक्षा में बड़ी बाधा है।

पटना के एजी कॉलोनी में 1988 से ये मध्य विद्यालय चल रहा है। अखबार को टीचर बताते हैं कि स्कूल के पास न तो अपना भवन है और न ही अपनी कोई व्यवस्था है। 1988 से ऐसे ही स्कूल चलाया जा रहा है। स्कूल में एक छोटा सा टूटा फूटा एक जर्जर कमरा है, पास में ही पुराना टूटा टॉयलेट है। टीचर नूतन बताती हैं कि स्कूल में 408 स्टूडेंट्स हैं जिसमें 80% छात्राएं हैं। दो कमरे होने के कारण स्टूडेंट्स को मैनेज करने में बड़ी समस्या होती है। इस कारण से दो शिफ्ट में बच्चों को पढ़ाना पड़ता है। इस कारण से बच्चों की पढ़ाई में भी बड़ी बाधा आती है।

वर्ष 2020 में भारत की राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट में बिहार कम साक्षरता दर वाले राज्यों में तीसरे स्थान पर रहा। इसमें 70.9 फीसदी समग्र साक्षरता दर के साथ बिहार राष्ट्रीय औसत (77.7 फीसदी) से 6.8 फीसदी कम दिखाय गया था।

इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं से अधिक थी। बिहार में जहां 79.7 फीसदी पुरुष साक्षर थें वहीं 60 फीसदी महिलाएं पढ़ी-लिखी थीं। राज्य के ग्रामीण इलाकों में महिला साक्षरता दर 58.7 फीसदी, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 75.9 फीसदी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष साक्षरता दर 78.6 फीसदी और शहरी इलाके में 89.3 फीसदी थी। बिहार में कुल ग्रामीण साक्षरता दर 69.5 फीसदी जबकि शहरी साक्षरता 83.1 फीसदी थी।

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