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कोरोना संकट के बीच दुनियाभर में बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

इतिहास गवाह रहा है कि युद्ध और महामारियां सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करती हैं, औरतों के लिए अलग तरह की मुसीबते लेकर आती हैं। कोरोना के कहर के बीच भी दुनिया भर में आधी आबादी संघर्ष कर रही है।
 घरेलू हिंसा

“कई लोगों के लिए उनका घर ही पहले से सुरक्षित नहीं है।”

ये टिप्पणी जर्मन फेडरल एसोसिएशन ऑफ वीमन्स काउंसलिंग सेंटर्स एंड हेल्प लाईन्स (बीएफई) ने कोरोना वायरस महामारी के बीच बढ़ते घरेलू हिंसा के मामलों पर की। बीएफई ने हाल में जारी अपनी एक रिपोर्ट में दुनिया के देशों को आगाह किया कि सोशल आइसोलेशन के चलते लोगों में तनाव पैदा हो रहा है और इससे “महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू और यौन हिंसा में बढ़ोत्तरी हो रही है।”

इतिहास गवाह रहा है कि युद्ध और महामारियां सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करती हैं, औरतों के लिए अलग तरह की मुसीबते लेकर आती हैं। कोरोना के कहर के बीच भी दुनिया भर में आधी आबादी संघर्ष कर रही है। जहां एक ओर इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दी जा रही है तो वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन के चलते करोड़ों लोग अपने घरों कैद हैं। जिसके चलते यूरोप में घरेलू हिंसा में काफी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। कोरोना महामारी के चलते चीन के बाद आज यूरोप इसका मुख्य केन्द्र बन चुका है। बर्लिन से लेकर पेरिस तक, मैड्रिड, रोम और ब्राटिस्लावा में घरेलू हिंसा पीड़ितों की मदद में लगी संस्थाओं ने खतरे को लेकर आगाह किया है।

रविवार, 29 मार्च को ऑस्ट्रेलिया सरकार ने कोरोनावायरस को लेकर बढ़ी घरेलू हिंसा के मामले सामने आने के बाद इससे निपटने के लिए वित्तपोषण में 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि की घोषणा की।

ऑस्ट्रेलिया के सबसे अधिक आबादी वाले न्यू साउथ वेल्स राज्य में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए बनाई गई संस्था महिला सुरक्षा ने बताया कि इस दौरान पीड़ितों की संख्या में 40 प्रतिशत से अधिक वृद्धि देखी गई है, जिसमें एक तिहाई से अधिक मामले सीधे वायरस को लेकर हुई हिंसा से जुड़े हैं।

विक्टोरिया क्षेत्र में महिलाओं की सहायता सेवा ‘वाएज’ ने कहा कि पिछले सप्ताह से ऐसे पुलिस मामले लगभग दुगना हो गए हैं। सहायता के लिए पुलिस अनुरोध पिछले सप्ताह में लगभग दोगुना हो गए थे। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मॉरिसन ने कहा कि 110 करोड़ आस्ट्रेलियाई डॉलर के स्वास्थ्य बजट में जोड़ा गया 15 करोड़ आस्ट्रेलियाई डॉलर की राशि घरेलू हिंसा से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

इससे पहले सोमवार, 23 मार्च को श्रीलंका से खबर आई कि कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लगाए गए कर्फ्यू के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिली है। राजधानी कोलंबो स्थित नेशनल हॉस्पिटल के आपातकाल विभाग में आने वाले ऐसे मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। विभाग की हेड नर्स पुष्पा डे सोयसा ने बताया कि बीते शुक्रवार को देशव्यापी कर्फ्यू लगने के बाद अस्पताल में आने वाली कई महिलाओं ने घरेलू हिंसा की शिकायत की। इस महिलाओं का कहना था कि घर में बंद रहने के दौरान वे अपने पति के दु‌र्व्यवहार और मारपीट का शिकार हुईं।

हमेशा से ही आपदाएं और महामारी महिलाओं के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर देती हैं। एक ओर उन्हें कठिन परिस्थिति का सामना करना होता है तो वहीं दूसरी ओर खुद को शोषण से बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। और ऐसा एक बार नहीं बार-बार देखा गया है। 2015 में इबोला के दौरान सियरा लिओन में स्कूल बंद कर दिए गए तब लड़कियों पर केयरटेकिंग का सबसे ज्यादा दबाव पड़ा था। उनके यौन उत्पीड़ित और गर्भवती होने की आशंका भी बढ़ी थी।

इसी तरह जीका वायरस के समय ब्राजील में अबॉर्शन पिल्स और कॉन्ट्रासेप्टिव्स की भयंकर कमी हुई थी। नतीजा यह हुआ था कि ब्राजील में निम्न सामाजिक आर्थिक वर्ग की औरतों ने जीका संक्रमण से ग्रस्त विकलांग शिशुओं को जन्म दिया था। कुल मिलाकर, औरतों पर हर मुसीबत डबल वैमी लेकर आती है।

घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ अभियान से जुड़े लोगों का कहना है कि जागरूकता बढ़ने की वजह से अधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। इन लोगों के मुताबिक जिन इलाकों में महिलाएं शिक्षित हैं, मुखर हैं वहां ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं। उन इलाकों में भी ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं जहां पुलिस और महिला संगठन ज़्यादा सक्रिय हैं।

गैर सरकारी संगठन 'मैत्री' के साथ काम करने वाली वकील मनीषा जोशी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब दुनियाभर में संकट का दौर चल रहा है तब महिलाएं एक और संकट का सामना कर रही हैं। इस वक्त  लोग घरों में बंद हैं तो जाहिर है ज्यादा चिड़चिड़ापन हो जाता है और इसकी सारी कसर फिर घर की औरतों पर ही निकलती है। अब भी ऐसे मामलों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है जो दर्ज नहीं हो पाते। घरेलू हिंसा की जड़ पितृसत्तात्मक सोच में है- जिसमें महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझा जाता है। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार को माफ़ कर दिया जाता है और महिलाओं के साथ मार पीट को सही ठहराया जाता है। महिलाएं स्वीकार नहीं करना चाहती हैं कि वे घरेलू हिंसा का शिकार हैं। अपने घर में क्या चल रहा है, ये बताना नहीं चाहती।"

महिला अधिकारों के लिए कार्यरत शबनब बताती हैं, महिलाओं का शोषण हमेशा से ही होता आया है और आज के दौर में भी ये निरंतर जारी है। इसके पीछे सिर्फ एक कारण है पुरुष महिलाओं को अपनी जागीर समझते हैं। कोई गुस्सा निकालना हो, प्यार जताना हो हर हाल में औरत को वो अपने हाथ की कठपुतली समझते हैं। आज जब सब एक होकर महामारी से लड़ रहे हैं तो कुछ लोग अपना सारा जोर घर बैठे घर की औरतों पर निकाल रहे हैं, और ये कोई नई बात नहीं है। लेकिन एक अच्छी बात है कि अब ज़्यादा महिलाएं मदद मांगने के लिए सामने आ रही हैं क्योंकि शिक्षा का स्तर बढ़ गया है, महिलाएं अब आर्थिक तौर पर ज़्यादा स्वतंत्र हैं और उनमें जागरूकता का स्तर भी बढ़ा है। वो अब किसी के दवाब में नहीं हैं।”

भारत में घरेलू हिंसा

भारत में अभी कोरोना संकट के बीच इस तरह की हिंसा का कोई आंकड़ा हमारे सामने नहीं आया है। दरअसल अभी इस ओर शायद कोई ध्यान भी नहीं दिया गया है, क्योंकि अभी तो हमारा सारा ज़ोर लोगों को घर में बंद रखने का है। वैसे आम दिनों में भी हमारे यहां आम तौर पर हर पांच मिनट में घरेलू हिंसा का एक मामला दर्ज होता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 15 से 49 साल के आयु वर्ग में 29 फीसदी महिलाओं ने पतियों द्वारा हिंसा की बात मानी थी।

तीन प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने गर्भवती होते हुए हिंसा झेली। ज्यादातर महिलाएं खुद भी घरेलू हिंसा को अपने जीवन का सहज, स्वाभाविक हिस्सा मानती हैं। इस कारण जब वे ऐसी हिंसा का सामना करती हैं तो अक्सर ही इस बारे में किसी से शिकायत नहीं करती। इसका प्रभाव यह पड़ता है कि पति की ऐसी हिंसक गतिविधियां बढ़ती ही जाती हैं, और बर्दाश्त से बाहर होने पर महिलाएं चुपचाप खुद को मौत के मुंह में धकेल देती हैं।

दिल्ली में महिला अपराध शाखा की पूर्व पुलिस अधिकारी वर्षा शर्मा के अनुसार "ऐसा नहीं है कि अब हिंसा ज़्यादा होती है। हिंसा पहले भी थी, लेकिन अब मामले दर्ज होने लगे हैं। मामलों की संख्या का बढ़ना अच्छी बात है क्योंकि इससे ज़ाहिर होता है कि महिलाएं अब चुप्पी तोड़ रही हैं।"

हालांकि जानकारों का कहना है कि भारत सरकार ने घरेलू हिंसा से बचाव के लिए 2005 में नया कानून लागू किया, जिसकी वजह से अब ज़्यादा महिलाएं मदद मांगने के लिए सामने आ रही हैं। हालांकि इसके बाद हिंसा की घटनाएँ नहीं रुकीं क्योंकि यह एक सिविल प्रावधान है, इस कानून के तहत दर्ज मुकदमे में आपराधिक अभियोग नहीं लगता।

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