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ईसीओडब्ल्यूएएस ने सैन्य तख़्तापलट पर माली की सदस्यता निलंबित की

तख़्तापलट के नेता कर्नल असिमी गोइता ने पिछले हफ़्ते ट्रांज़िशनल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करने के बाद ख़ुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया है।
ईसीओडब्ल्यूएएस ने सैन्य तख़्तापलट पर माली की सदस्यता निलंबित की

घाना की राजधानी अकरा में रविवार 30 मई को आयोजित एक आपातकालीन शिखर सम्मेलन में इकोनॉमिक कमेटी ऑफ द वेस्टर्न स्टेट्स (ईसीओडब्ल्यूएएस) के सदस्यों ने पिछले सप्ताह किए गए सैन्य तख्तापलट को लेकर माली को इस समूह की सदस्यता से निलंबित करने का निर्णय लिया।

एक दिन पहले किए गए कैबिनेट फेरबदल पर असहमति और इस्तीफा देने के लिए मजबूर किए जाने के बाद राष्ट्रपति बाह नदाव, प्रधानमंत्री मोक्टार ओउने और माली के ट्रांजिशनल कार्यकारी के नव नियुक्त रक्षा मंत्री सौलेमेन डौकोर को 24 मई को राजधानी बमाको में सेना के काटी बेस में सेना द्वारा गिरफ्तार किया गया था।

ईसीओडब्ल्यूएएस, यूएन और अफ्रीकी संघ ने सेना से सरकारी नेताओं को तुरंत रिहा करने को कहा है। हालांकि, तख्तापलट नेता कर्नल असिमी गोइता ने इसे मानने से इनकार कर दिया और 28 मई को खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया। गोइता रविवार को ईसीओडब्ल्यूएएस की बैठक में मौजूद थे।

बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए घाना के विदेश मंत्री शर्ली अयोरकोर बोचवे ने कहा कि ये निलंबन फरवरी 2022 तक प्रभावी रहेगा जो कि पिछले साल ट्रांजिशनल अधिकारियों के लिए नागरिक सरकार को सत्ता सौंपने की समय सीमा निर्धारित की गई थी। ईसीओडब्ल्यूएएस ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के चुनाव की समय सीमा (27 फरवरी, 2022) का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए। ईसीओडब्ल्यूएएस ने यह भी मांग की कि सेना तुरंत एक समावेशी नागरिक सरकार को सत्ता सौंप दे।

ये समय सीमा तब निर्धारित की गई थी जब असीमी के नेतृत्व में सैन्य तख्तापलट के बाद अगस्त महीने में राष्ट्रपति बाउबकर कीटा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने के बाद अह नदाव के नेतृत्व वाली ट्रांजिशनल सरकार ने पिछले साल सितंबर में सत्ता संभाली थी।

बुधवार को इस्तीफा देने के बाद नदाव और ओउने को शुक्रवार को कीटा कैंप से हाउस अरेस्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।

यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी इस गिरफ्तारी की निंदा की और इन नेताओं की तत्काल रिहाई की मांग की।

इस बीच, फ्रांस ने सेना से गिरफ्तार नेताओं को रिहा करने के लिए कहा है अन्यथा देश से अपनी सेना वापस लेने की धमकी दी है।

फ्रांस के तथाकथित ऑपरेशन बरखाने के चलते देश में करीब 5,000 से अधिक सैनिक हैं। यह दावा किया जाता है कि अल-कायदा और आईएसआईएस जैसे चरमपंथी इस्लामी ताकतों के बढ़ते खतरों से लड़ने के लिए ये ऑपरेशन महत्वपूर्ण है। हालांकि, फ्रांसीसी सेना को नागरिकों की हत्या में शामिल पाया गया है और उनकी उपस्थिति को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध हुए हैं। सैनिकों की उपस्थिति को औपनिवेशिक हस्तक्षेप के एक रूप में बताया जाता है।

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