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EXCLUSIVE: विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन का नाटकीय खेल! आरोपितों को माफ़ी, निर्दोषों पर एनसीआर

स्पर्श दर्शन पर तीखी प्रतिक्रिया सामने आने पर आरोप ऐसे लोगों के माथे मढ़ दिया गया, जो हाल-फिलहाल बनारस आए ही नहीं। समूचे मामले में अब लीपापोती की जा रही है। इस लीपापोती में मंदिर प्रबंधन भी जुटा है और प्रशासन भी।
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फ़ोटो साभार: PTI

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन के नाम पर बनारस की सरकार ने नायाब खेल खेला। ट्रायल के तौर पर पहले खुद पर्ची काटी, फीस वसूली और मामले ने तूल पकड़ा तो निर्दोष लोगों के खिलाफ एनसीआर दर्ज करा दिया। अब इस मामले को ठंडा करने की कोशिश की जा रही है।

दरअसल उज्जैन के महाकाल मंदिर में स्पर्श दर्शन के नाम पर श्रद्धालुओं से मोटी रकम वसूली जाती है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ न्यास बोर्ड की बैठक में उज्जैन की तर्ज पर स्पर्श दर्शन के नाम पर शुल्क लगाने की चर्चा हुई और ट्रायल के तौर पर इसे लागू किया गया। दैनिक जागरण अखबार के बनारस संस्करण में इस सिलसिले में रिपोर्ट छपी तो बनारस में तीखी प्रतिक्रिया हुई और इस स्पर्श दर्शन के विवाद ने तूल पकड़ लिया।

तीखी प्रतिक्रिया सामने आने पर आरोप ऐसे लोगों के माथे मढ़ दिया गया, जो हाल-फिलहाल बनारस आए ही नहीं। समूचे मामले में अब लीपापोती की जा रही है। इस लीपापोती में मंदिर प्रबंधन भी जुटा है और प्रशासन भी।

विवाद का नाटकीय पहलू

काशी विश्वनाथ मंदिर के स्पर्श दर्शन की रसीद

स्पर्श दर्शन विवाद का सबसे नाटकीय पहलू यह है कि मंदिर प्रशासन के दफ्तर से पहले फीस की रसीद काटी गई और बाद में अफवाह फैलाने के नाम पर विधिवत चौक थाने में तहरीर दे दी गई। इस मामले में पुलिस ने नौ लोगों के खिलाफ नामजद और कुछ अन्य अज्ञात के खिलाफ एनसीआर दर्ज किया है।

चौक थाने को दी गई तहरीर में कहा गया है कि रंगभरी एकादशी के दिन दो मार्च 2023 को दर्शनार्थी अजय शर्मा ने निःशुल्क दर्शन के बाद पांच सौ रुपये की डोनेशन रसीद कटवाई, जिसमें हेल्प डेस्क कर्मचारी सुधांशु पाल से अनुचित दबाव बनाकर पर्ची पर स्पर्श दर्शन लिखवा लिया। बाद में उस रसीद को अपने सहयोगी आशीष धर (डायरेक्टर अप स्ट्रीम मीडिया सल्युशन) और एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार के साथ साझा कर दो कालम की न्यूज लिखवाई गई। इस फेक न्यूज में यह वर्णित किया गया कि काशी विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन पर शुल्क लगना और इसका ट्रायल शुरू हो गया है।

13 मार्च 2023 को दैनिक समाचार पत्र में यह खबर छपते ही पूर्व योजित योजना के तहत न्यूज जारी की गई, जिसमें इसकी खुद की न्यूज कंपनी अप स्ट्रीम मीडिया सल्युशन, लाजपतनगर-दिल्ली, जिसमें अजय शर्मा और आशीष धर भी डायरेक्टर हैं, ने इस फेक न्यूज को फेसबुक और ट्विटर के जरिये वायरल किया। अजय शर्मा के अपवर्ड फाउंडेशन के सहयोगी शिवम मिश्रा, शिवकाशी, रंजन ठाकुर, भवतोष शर्मा, रति हेगड़े, आरती अग्रवाल ने ट्विटर के जरिये देश के जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों और मंदिर के विरुद्ध अपशब्द, अभद्र भाषा और गैर सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया।

तहरीर में यह भी कहा गया है कि 22 फरवरी 2023 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की बैठक हुई थी, लेकिन स्पर्श दर्शन के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया था। तथ्यों को सत्यापित किए बगैर ही मंदिर की छवि धूमिल करने के मकसद से सनातन धर्म के लोगों को नीचा दिखाने के लिए मंदिर से संबंधित कर्मचारियों पर अनुचित दबाव बनाते हुए और चुनी हुई सरकार की छवि धूमिल करने के लिए अजय शर्मा, आशीष धर और उनके सहयोगियों के अलावा राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में समाचार छापने वाले अज्ञात पत्रकार पर सुसंगत धाराओं में एफआर्ईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाए। अफवाह फैलाने की रिपोर्ट विश्वनाथ मंदिर के पीआरओ अरविंद शुक्ला की ओर से दर्ज कराई गई है, जिसमें पुलिस ने आरोपित अजय शर्मा, आशीष धर, रति हेगड़े, विक्रम, भवतेश शर्मा, आरती अग्रवाल और हेमा आदि के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120(B) 153(A) 295 और 506 के अलावा आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है।

हैरान करने वाली बात यह है कि स्पर्श दर्शन की खबर सबसे पहले दैनिक जागरण के बनारस संस्करण में प्रकाशित हुई। प्रेस एक्ट के मुताबिक, किसी अनर्गल और झूठी खबर के प्रकाशन के लिए सिर्फ संवाददाता ही नहीं, संपादक, मुद्रक, प्रिंटर से लगायात प्रकाशक तक जिम्मेदार होते हैं। विश्वनाथ मंदिर प्रशासन की ओर से चौक थाने में जो तहरीर दी गई उसमें दैनिक जागरण अखबार के नाम तक का जिक्र नहीं है।

चौक थाना पुलिस ने भी नायाब खेल खेला। प्राथमिकी दर्ज करने के बजाय इस मामले को एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) के रूप में दर्ज किया। दरअसल, थानों में शिकायत करने की एक अलग प्रक्रिया एनसीआर है, जिसका अर्थ होता है 'गैर-संज्ञेय अपराध सूचना। आमतौर पर मामूली झगड़े, गाली-गलौच अथवा किसी दस्तावेज आदि के खो जाने की शिकायत एनसीआर के रूप में दर्ज कराई जाती है। कई बार शांति भंग के मामले भी इस गैर संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं।

एनसीआर में ये लगाई गई हैं धाराएं

दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन के शुल्क की रसीद की प्रति दो मार्च 2023 से ही सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही थी। वायरल रसीद में अजय शर्मा नामक एक शख्स के नाम के आगे स्पष्ट रूप से स्पर्श दर्शन लिखा था, जिसमें 500 रुपये का मूल्य अंकित है। टिकट कटवाने वाले व्यक्ति अजय शर्मा न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "हमने दो मार्च 2023 को स्पर्श दर्शन के लिए रसीद कटवाई थी। पैसा देते वक्त कहा कि वह इस पर स्पर्श दर्शन करना चाहते हैं तो काउंटर पर बैठे कर्मचारी ने उन्हें उनके नाम के आगे स्पर्श दर्शन लिखकर यह टिकट मुहैया कराया था। रसीद हासिल करने के बाद हमने मंदिर में स्पर्श दर्शन किया था।"

अफसरों ने लिया यू-टर्न

बनारस प्रशासन और विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन अब सफाई देता फिर रहा है कि स्पर्श दर्शन को लेकर किसी तरह का शुल्क नहीं लगाया गया है। इस मामले के तूल पकड़ने पर मंदिर कार्यसमिति के अध्यक्ष और मंडलायुक्त कौशलराज शर्मा सबसे पहले सामने आए और स्पर्श दर्शन के शुल्क के मुद्दे को ‘फेक न्यूज’ बताया। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि स्पर्श दर्शन के लिए शुल्क लगाए जाने को लेकर कार्यसमिति की बैठक में चर्चा हो चुकी है। इस बार भी 22 फरवरी की बैठक में देश के अन्य मंदिरों के तुलनात्मक अध्ययन के साथ इस तरह की चर्चा उठी थी, लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। मीडिया से बात करते हुए मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनील वर्मा कहते हैं, "किसी ने बदमाशी की है। इस मामले में मंदिर प्रशासन के कर्मचारी की भी संलिप्तता है। जल्द ही पता लगाकर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।" हालांकि मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने वायरल रसीद को गलत नहीं बताया। अलबत्ता उन्होंने यह जरूर कहा कि यह डोनेशन की रसीद है, जिसमें नाम के आगे कर्मचारी और संबंधित व्यक्ति ने स्पर्श दर्शन लिख दिया गया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर में सुगम दर्शन की व्यवस्था है। इसके एवज में भक्तों से 350 रुपये शुल्क वसूला जाता है। शुल्क अदा करने के बाद श्रद्धालु बिना लाइन के विश्वनाथ मंदिर का दर्शन और जलाभिषेक कर सकते हैं। मंदिर न्यास के ऑफिस के अलावा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के ऑफिसियल वेबसाइट www.shrikashivishwanath.org से ऑनलाइन टिकट भी मुहैया कराया जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन विवाद के चलते आम श्रद्धालुओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। स्पर्श दर्शन के लिए शुल्क लगेगा या नहीं लगेगा, इस मुद्दे पर अभी तक स्थिति साफ नहीं हुई है। उज्जैन की तर्ज पर स्पर्श दर्शन कराने का मामला तूल पकड़ने लगा तो काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेंद्र पांडे ने विवाद बढ़ता देख मीडिया से रुबरु हुए और कहा, "काशी विश्वनाथ धाम के बनने के बाद श्रद्धालुओं की भीड़ बेतहाशा बढ़ी है। मंदिर का खर्च भी बढ़ा है। मंदिर में भीड़ बढ़ गई है। मंदिर का गर्भगृह काफी छोटा है, ऐसे में सभी श्रद्धालुओं को स्पर्श दर्शन करा पाना अब संभव नहीं है। उज्जैन की तर्ज पर पांच सौ अथवा एक हजार रुपये शुल्क लगाकर स्पर्श दर्शन कराया जा सकता है। हालांकि इस पर अभी तक फैसला नहीं लिया गया है। शुल्क लगाए जाने के मामले में सबसे बड़ी समस्या गरीब श्रद्लुओं को लेकर आ रही है। गरीब भक्तों की तादाद हजारों में होती है। डर इस बात का है कि अगर शुल्क लगाया गया तो आर्थिक रूप से कमजोर लोग मंदिर में स्पर्श दर्शन नहीं कर सकेंगे। हमारी प्राथमिकता में गरीब श्रद्धालु भी हैं।"

सुलगते सवालों का कौन देगा जवाब

बड़ा सवाल यह है कि जब स्पर्श दर्शन के नाम पर जोर-जबर्दस्ती कर विश्वनाथ मंदिर की रसीद बनवाई गई, फिर उसे गैर-कानूनी ढंग से वायरल कराया गया तो इस गंभीर मामले को एनसीआर के रूप में दर्ज क्यों किया गया। तहरीर में दैनिक जागरण के संपादक, मुद्रक, प्रकाशक आदि के खिलाफ आखिर एक भी शब्द क्यों नहीं लिखा गया? अखबार का नाम लिखने में मंदिर प्रशासन के पसीने क्यों छूट गए? बनारस के जिन प्रशासनिक अफसरों ने स्पर्श दर्शन की खबर को तूल देने वालों के खिलाफ बढ़चढ़कर बयान दिया, उन्होंने स्पर्श दर्शन की खबर छापने वाले बनारस के ‘दैनिक जागरण’ अखबार के खिलाफ एक शब्द भी बोलने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाई? न्यूज कंपनी अप स्ट्रीम मीडिया सल्युशन, लाजपतनगर-दिल्ली के निदेशक अजय शर्मा आमतौर पर हिन्दुओं के तीर्थ स्थलों और हिन्दूवाद को बढ़ावा देने वाली खबरें प्रमुखता से छापते रहे हैं। ऐसे में इन्हें ही क्यों निशाना बनाया गया? एनसीआर में दिल्ली के अजय शर्मा को नामजद किया गया है, जबकि पर्ची बनारस के उस अजय शर्मा ने कटवाई थी जो इन दिनों काशी खंडोत्व के मंदिर ढुंढीराज गणेश को हटाए जाने के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। ऐसे में दिल्ली के अजय शर्मा और उनके साथियों पर निशाना क्यों साधा गया? रसीद काटने वाले विश्वनाथ मंदिर के कर्मचारी पर दबाव बनवाकर रसीद कटवाई गई तो तहरीर उसकी ओर से क्यों नहीं दी गई? अगर कर्मचारी भी दोषी था तो उसे नामजद क्यों नहीं किया गया? ऐसे ढेरों सवाल हैं, जिसका जवाब न तो बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा के पास है और न ही काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के लोगों के पास।

एनसीआर में दर्ज अभियुक्तों के नाम

काशी विश्वनाथ मंदिर के पास रहने वाले पत्रकार ऋषि झिंगरन कहते हैं, "प्रशासन और मंदिर प्रबंधन से जुड़े अफसरों की पहल पर ही स्पर्श दर्शन की रसीदें ट्रायल के तौर पर काटी जा रही थीं। काशी के लोगों ने जब इसका कड़ा विरोध शुरू किया तो अफसरों ने यू-टर्न ले लिया। अपनी गलतियों का ठीकरा फोड़ने के लिए निर्दोष लोगों पर जोर-जुल्म दिखाना शुरू कर दिया। सच यह है कि मंदिर प्रशासन ने बाबा को वसूली का जरिया बना दिया है। इस मंदिर को लेकर जिस तरह की आस्था पहले थी, वो अब नजर नहीं आती। काशी खंडोत्व के तमाम मंदिरों को तोड़कर बनाए गए कारिडोर को आस्था के केंद्र के रूप में कम, पर्यटक स्थल के रूप में ज्यादा प्रचारित किया जा रहा है। यह स्थिति ठीक नहीं है। किसी आस्था के केंद्र की आमदनी बढ़ाने के लिए जब किसी विदेशी कंपनी की मदद ली जाएगी तो ऐसे मामले उछलेंगे ही।"

पहले भी उछले थे ऐसे मामले

साल 2020 में काशी विश्वनाथ मंदिर में दक्षिण भारतीय मंदिरों की तर्ज़ पर स्पर्श दर्शन के लिए ड्रेस कोड लागू किए जाने का मामला उछला था। बनारस के लोगों ने जब इसका विरोध किया तो तत्कालीन धर्मार्थ कार्य राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने ट्वीट के जरिये सफाई देते हुए कहा कि मंदिर मे अभी कोई ड्रेस कोड नहीं लागू है और न लागू करने की योजना है। बाद में तत्कालीन मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने भी एक वीडियो बयान जारी करके इसका खंडन किया था। स्पर्श दर्शन की तरह ही उस समय मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर में ड्रेस कोड की बात को अनर्गल और अफ़वाह बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसा कोई विचार नहीं है। सोशल साइटों पर जो बातें चल रही हैं वो पूरी तरह असत्य हैं।

कोरोनाकाल के पहले मंदिर प्रशासन और विद्वत परिषद की ओर से यह प्रस्ताव आया था कि ज्योतिर्लिंग का स्पर्श करने के लिए बिना सिले हुए वस्त्र पहनकर ही लोग आएं। यह सुझाव सिर्फ़ गर्भ गृह के भीतर मूर्ति का स्पर्श करने वालों और पूजन करने वालों पर लागू होगा। गर्भगृह के बाहर से दर्शन करने वालों पर लागू नहीं होगा। 15 जनवरी 2020 के बाद नई व्यवस्था लागू की जानी थी। दावा किया गया था कि मंदिर प्रशासन ऐसे वस्त्रों की व्यवस्था ख़ुद ही करेगा। जिन लोगों के पास ऐसे वस्त्र होंगे, वो उन्हें पहनकर आ सकते हैं। ड्रेस कोड के मुताबिक़, पुरुष पारंपरिक परिधान यानी धोती और अंगवस्त्र (जो सिला हुआ न हो) और महिलाएं साड़ी पहनकर ही गर्भगृह में स्पर्श दर्शन कर सकेंगी। जींस, पैंट, शर्ट, सूट, कोट इत्यादि परिधानों में जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में सिर्फ़ दर्शन की व्यवस्था होगी, उन्हें गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।

दो साल पहले उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर की तर्ज पर विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन के लिए बिना सिले हुए वस्त्र धारण करने की बात कही गई थी। उज्जैन में जब स्पर्श दर्शन के लिए शुल्क लगाया गया तो मंदिर प्रशासन से जुड़े लोग काशी विश्वनाथ मंदिर में भी फीस वसूलने के लिए व्याकुल हो गए। दावा किया जाने लगा कि पूजा के लिए शुद्ध मन और मस्तिष्क के साथ शरीर का भी शुद्ध होना आवश्यक है। ड्रेस कोड इसीलिए बनाने का प्रस्ताव दिया गया कि यदि कोई व्यक्ति न जान रहा हो तो भी उसे पता चले। उत्तर भारतीय मंदिरों, ख़ासकर ज्योतिर्लिंगों में इसे इसलिए इतना कठोर नहीं बनाया गया है, क्योंकि वहां मौसम ठंडा रहता है।

हमलावर हुई कांग्रेस

काशी विश्नाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन की रसीद काटे जाने के बाद उठे विवाद में निर्दोष लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किए जाने पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय ने "न्यूज़क्लिक" से कहा, "स्पर्श दर्शन मामले में निर्दोषों लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराया जाना पर मुकदमा दर्ज होना पूर्ण रूप से अमानवीय कृत्य है। सीधा सच यह है कि मंदिर और प्रशासनिक अफसरों ने खुद ही यह खबर प्रचारित की थी कि बाबा के स्पर्श दर्शन पर शुल्क लगेगा। काशी के लोगों ने जब इस शुल्क के खिलाफ पुरजोर आवाज उठानी शुरू की तो सब के सब पलटी मार और बैकफुट पर आ गए। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में स्पर्श दर्शन के लिए शुल्क की बात उठना भी धार्मिक आस्थाओं पर आघात है।"

"काशीवासी और विश्व भर में बाबा विश्वनाथ के भक्त इस मुद्दे को लेकर आहत हैं। धर्म का व्यवसायीकरण करने वाली भाजपा सरकार को जनता कभी माफ नहीं करेगी। प्रशासनिक अफसरों के दबाव में जिन लोगों पर फर्जी मुक़दमा दर्ज किया गया है उसे वापस लिया जाना चाहिए। इस मामले में जो भी लोग सचमुच दोषी हैं और काशी की छवि को धूमिल करने पर लगे हैं उनके खिलाफ एक्शन होना चाहिए।"

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत पंडित राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "सरकार और नौकरशाही ने मिलकर बाबा के मंदिर को धार्मिक माल बना दिया है। गरीबों के लिए झांकी दर्शन और अमीरों के लिए स्पर्श दर्शन की काशी में नई कवायद शुरू करने की तैयारी है। मंदिर परिसर में खोले गए नए रेस्टोरेंट में श्रद्धालुओं को मनमाने दाम पर व्यंजन बेचे जा रहे हैं। मंदिर प्रशासन ने कमाई करने के लिए रेस्टोरेंट का ठेका करोड़ों में उठाया है। पूजा की थाली बेचने का अधिकार एक व्यक्ति के हवाले कर दिया गया है, जबकि पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। मंदिर में पूजन-दर्शन आस्था और श्रद्धा का विषय है। इसे लूट का अड्डा बनाया जाना ठीक नहीं है।"

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार को जनता को टेस्ट करने की पुरानी आदत है। स्पर्श दर्शन योजना भी एक तरह की टेस्टिंग थी, जिसकी पटकथा खुद बनारस के प्रशासनिक अफसरों ने रची थी। ये अफसर खुद स्वीकार कर रहे हैं कि न्यास की बैठक में स्पर्श दर्शन का सुझाव आया था। जाहिर है कि यह सुझाव इसीलिए आया था कि आने वाले दिनों में उसे अमल में लाया जा सके। इसका मतलब चीजें कहीं न कहीं अंडर प्रासेस थीं। स्पर्श दर्शन का जब काशी में बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हुआ तो सोशल मीडिया पर भी बाबा के भक्तों ने मोर्चा खोल दिया। न्यास की बैठक में सुझाव और प्रस्ताव रखने वालों की किरकरी होने तो वहां से उन्होंने यू-टर्न ले लिया। खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए सवाल उठाने वालों को ही विक्टिम बना दिया। कार्रवाई के मामले में भी अफसरों ने आसान चारा तय किया। बड़े मीडिया घराने के खिलाफ एक्शन लेने के बजाय ऐसे लोगों को चुना जिन्होंने स्पर्श दर्शन की रसींदें सिर्फ ट्विट की थी। बनारस के लोगों को तो अखबार के जरिये ही स्पर्श दर्शन की सूचना मिली थी।"

खेल को समझने की जरूरत

"स्पर्श दर्शन के इस खेल को समझने की जरूरत है। यह खेल अनजाने में नहीं, सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। बनारस के जनता का नब्ज टटोलने के लिए समय-समय पर एक खास किस्म का टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट उस समाज के ताप को समझने के लिए किया जाता है जिसकी सोच अवैज्ञानिक और शिक्षा से परे है। इस जमात में बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो शिक्षित तो हैं, लेकिन उनकी सोच तार्किक नहीं है। इसका कहां तक प्रभाव है, इस तरह के चीजों और जुमलों को उछालकर टेस्ट किया जाता है। पिछले साल ज्ञानवापी का मुद्दा भी इसी तरह का टेस्ट लेने के लिए ही उछाला गया था, जिसका हाल टिमटमाती डिबरी की तरह हो गया है। ऐसे हथकंडों से लोगों को सतर्क रहने और समझने की जरूरत है।"

सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप मुताबिक हैं, "आजादी के बाद ऐसे समाज का निर्माण हुआ था जिसकी सोच वैज्ञानिक और आधुनिक थी। उसी समाज को एक सोची-समझी रणनीति के तहत अब बेवकूफ बनाया जा रहा है। धर्म का कारोबार और इसकी आड़ में सियासत करने वालों का यह एक बड़ा प्लान है। वो इसलिए टेस्ट करते रहते हैं कि हम उनके खास एजेंडे पर, उनकी उंगलियों पर और उनके इशारों पर कितना नाच सकते हैं? वो टेस्ट इसलिए भी करते रहते हैं कि हमारी पकड़ कमजोर तो नहीं पड़ गई है? समाज में कितना और भ्रम फैलाने और झूठ का प्रचार करने की जरूरत है? स्पर्श दर्शन भी उसी टेस्ट का एक हिस्सा है। काशी के लोगों ने जब इस योजना का मुखर विरोध शुरू तो वो बैकफुट पर आ गए। ठीकरा ऐसे लोगों पर फोड़ दिया, जिन्होंने सच को उजागर करने की कोशिश की। मंदिर की आमदनी बढ़ाने के लिए स्पर्श दर्शन का मुद्दा जब काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन के आधिकारिक एजेंडे में शामिल था तभी तो यह मुद्दा तेजी से उछला।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "दरअसल, धर्मभीरू जनता की नब्ज टटोलने की नई पद्धति है टेस्टिंग। धर्म की आड़ में सियासत करने वाले अक्सर इसका इस्तेमाल करते रहते हैं। इसके जरिये वो यह जानने की कोशिश करते हैं कि समाज उनके ऊल-जुलूल फैसलों को किस हद तक स्वीकार करता है और कहां तक उस पर आगे बढ़ा जा सकता है? इसी तरह के परीक्षण के लिए कई साल पहले देश भर में गणेश को दूध पिला दिया गया था। कुछ ही रोज पहले होली के समय बनारस में एक और नई टेस्टिंग की गई। काशी के तथाकथित विद्वत समाज की ओर से डुगडुगी पिटवाई गई कि यहां होली एक दिन पहले मनाई जाएगी। इस मुहिम में जाने-अनजाने में कुछ हद तक प्रशासनिक अफसर भी शामिल हो गए। काशी के लोगों ने एक दिन पहले होली मनाने की नई रवायत गढ़ने से मना करते हुए धर्म के ठेकेदारों को न सिर्फ करारा तमाचा मारा, बल्कि होली भी उसी दिन मनाई जिस रोज समूचे भारत में मनाई जानी थी। बनारस के लोगों को नए तरह से षड्यंत्र से सतर्क रहने के साथ ही जुमलों पर रीझने और बहकने की जरूरत नहीं है। जरूरत इस बात की भी है कि आडंबर फैलाने वाली मुहिम को कमजोर बनाया जाए, नहीं तो इसके घातक नतीजे ही सामने आएंगे।"

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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