Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

आर्थिक मंदी और माइक्रो उद्योग संकट से बढ़ेगा महिला रोज़गार संकट

आधी आबादी को अर्थव्यवस्था के प्रमुख हिस्से में आधा हिस्सा भी मयस्सर नहीं है, बल्कि उन्हें इसमें 1/5 से लेकर 1/10 की भागीदारी से संतोष करना पड़ रहा है।
Economic slowdown in India
फोटो साभार : Abraxas NU

देश की अर्थव्यवस्था और रोज़गार के क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी पर एक बेहतरीन शोध रिपोर्ट बंग्लुरु स्थित अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेन्टर फाॅर सस्टेनेब्ल एम्प्लायमेंट ने जारी की है। 16 अक्टूबर, 2019 को जारी इस रिपोर्ट से एक बड़ा खुलासा हुआ- अति लघु उद्योग यानी माइक्रो एन्टरप्राइसेस के विशाल क्षेत्र में केवल 20 प्रतिशत ऐसे उद्योग हैं जो महिलाओं द्वारा संचालित हैं, और इसमें कार्यरत महिलाओं की संख्या निराशाजनक है-समस्त श्रमिकों का केवल 16 प्रतिशत!

एनएसएसओ के आंकड़े बताते हैं कि इनमें 2015 में, गैर-कृषि माइक्रो एन्टरप्रइसेस में मात्र 9 प्रतिशत मूल्य संवर्धन देखा गया। तो लगता है आधी आबादी को अर्थव्यवस्था के प्रमुख हिस्से में आधा हिस्सा भी मयस्सर नहीं है, बल्कि उन्हें इसमें 1/5 से लेकर 1/10 की भागीदारी से संतोष करना पड़ रहा है।

पीछे चले जाइये तो 2006-07 में अति लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों (MSME: एमएसएमई) की जो चौथी अखिल भारतीय जनगणना हुई, उसके अनुुसार एमएसएमई क्षेत्र में कुल रोज़गार 93.09 लाख था, जिसमें अति लघु उद्योगों का हिस्सा करीब 70.19 प्रतिशत था, यानी करीब 64.34 लाख। पर आश्चर्य की बात है कि महिला श्रमिकों की संख्या थी केवल 19.04 लाख, यानी 20.45 प्रतिशत। एक दशक बीतने के बाद भी इसमें कोई विकास नहीं दिखता।
Capture_23.PNG
सीएसई की उक्त रिपोर्ट ग्लोबल अलायन्स फाॅर मास एन्टरप्रेन्योरशिप की साझेदारी से निकाली गई, और इसके शोधकर्ता श्री अमित बसोले और विद्या चंदी हैं। रिपोर्ट का शीर्षक है-माइक्रोएन्टरप्रइसेस इन इण्डियाः ए मल्टीडायमेंशनल अनैलिसिस।

यद्यपि एमएसएमई क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख उत्प्रेरक माना गया है, हम देखते हैं कि एनएसएसओ आंकड़ों को आधार मानकर शोध बता रहा है कि 2010 और 2015 के बीच, निर्माण क्षेत्र को छोड़ दिया जाए, तो गैर-कृषि अति लघु अद्योग में राज़गार कम बढ़े-10.8 करोड़ से बढ़कर 11.13 करोड़-यानी 0.6 प्रतिशत कम्पाउंड ऐनुअल ग्रोथ रेट, जो कि काफी दयनीय है।

मोदी जी ने 2014 में घोषण की थी कि वे प्रति वर्ष 1 करोड़ रोज़गार पैदा करेंगे, तो आखिर इस विशाल क्षेत्र में 2010-2015 के अंतराल में क्यों केवल 6 लाख रोज़गार पैदा हुए? आज भी एमएसएमई क्षेत्र सुस्त पड़ा है और रोज़गार पैदा करने की उसकी क्षमता को बढ़ाया नहीं जा सका है।

आइये हम ज़रा इस क्षेत्र पर नज़र डालें। देश में करीब 6 करोड़ 30 लाख एमएसएमई इकाइयां हैं। इनका जीडीपी में 8 प्रतिशत का येगदान है और मैनुफैक्चरिंग आउटपुट में 45 प्रतिशत हिस्सा; साथ ही निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा इसी क्षेत्र से होता है। और, अति लघु उद्योग (निर्माण क्षेत्र को छोड़कर) कुल एमएसएमई क्षेत्र का 95 प्रतिशत हिस्से का निर्माण करते हैं। तब क्या यह चौंकाने वाली बात नहीं कि देश के कुल रोज़गार में इनका योगदान मात्र 11 प्रतिशत ही है? हम जानते हैं कि इसी क्षेत्र में महिलाओं को सबसे अधिक रोज़गार मिलने की संभावना हो सकती है, क्योंकि माइक्रो उद्योग इकाइयां अधिकतर गृह-आधारित होती हैं और इसमें मैन्युफैक्चरिंग के अलावा छोटी दुकानें, सब्ज़ी-फल की रेहड़ी, टिफिन सप्लाई, ढाबे, डेरी, मुर्गी-पालन, दर्ज़ी की दुकानें आदि हैं।

इनमें अधिकतर वर्कर न रखकर स्वरोज़गार पर बल दिया जाता है। पर आर्थिक मंदी के इस दौर में ज़रूर इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, रोज़गार घटेंगे, और सबसे अधिक नुक्सान महिला रोज़गार का होगा। इसलिए देखा जा रहा है कि कई इकाइयां आर्थिक गतिविधि के दायरे से बाहर होती जा रही हैं। रोज़गार के लिहाज से देखें तो सबसे बड़े एमएसएमई की श्रेणी में (जहां 10-19 श्रमिक हैं) 5 प्रतिशत सालाना की दर से रोज़गार घट रहे हैं।  

देश की प्रथम वित्त मंत्री इंदिरा गांधी के समय से वर्तमान समय तक कभी महिला श्रमिकों के इस भयावह संकट के मद्देनज़र क्यों कोई विशेष पैकेज नहीं घोषित किया गया, जबकि महिला सशक्तिकरण की बात होती रही?
 
वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1,45,000 करोड़ रुपये काॅरपोरेट टैक्स में छूट का उपहार काॅरपोरेट्स को दिया, जिसका अधिक हिस्सा बड़े काॅरपोरेट्स ने हथिया लिया।

अति लघु उद्योग वे हैं जिनका निवेश 25 लाख रुपये से कम होता है, उनमें से अधिकतर को जीएसटी से मुक्ति मिली हुई है; इन्हें प्रथम पांच वर्ष तक टैक्स से छूट मिलती है। 96 प्रतिशत एमएसएमई काॅरपोरेट टैक्स से मुक्त हैं, और 5 लाख आमदनी तक, आयकर से भी मुक्त होते हैं। ॉ
और, मध्यम श्रेणी के एमएसएमई, जिनका 250 करोड़ रुपये तक का कारोबार है, उन्हें काॅरपोरेट टैक्स में 15 प्रतिशत की छूट से मात्र 7000 करोड़ रुपये का कुल लाभ होगा, जबकि उनकी संख्या 6 करोड़ 30 लाख में केवल 7000 है!

एक और सांकेतिक वित्तीय सहायता ब्याज में मात्र 2 प्रतिशत की छूट के रूप में दी गई है। क्या आर्थिक मंदी के मद्देनज़र एमएसएमई इकाइयों को पूर्ण कर्ज़ माफी देने से सरकार को भारी घाटा लगता जबकि उनको 3.59 लाख करोड़ के बकाये कर्ज़ का ब्याज तक चुका पाना मुश्किल हो रहा है? सरकार ज़रूर कह रही है कि उनके कर्ज़ को एनपीए नहीं माना जाएगा, पर उनके लगातार बढ़ते ब्याज का क्या होगा? यह भी घोषणा की गई कि बैंक इन्हें अधिक कर्ज़ दें, पर बैंकों पर भारी एनपीए बोझ के कारण वे अघोषित तौर पर इन्हें लोन देने पर रोक लगा चुके हैं।

ऐसे संकट को देखते हुए महिलाओं के लिए रोज़गार का परिदृष्य निराशाजनक लगता है। सीएसई के शोध के अनुसार बड़े-से-बड़े एमएसएमई में भी 2015 में औसत मासिक वेतन 10,000 रुपये से अधिक न था; अधिकतर में 6-8 हज़ार रुपये ही रहा। यह दिल्ली के न्यूनतम् वेतन का आधा ही है! जब जेंडर वेज गैप पट नहीं पा रहा, इसका नतीजा महिलाओं के लिए काफी घातक साबित होगा।

सीएसई रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि जो महिलाएं खुद इकाइयां चलाती हैं, उन्हें भी आय में घाटा हो रहा है। 78 प्रतिशत महिला संचालित अति लघु उद्योग तो गृह-आधरित हैं और इनमें से केवल 2.7 प्रतिशत 3 या अधिक कर्मियों को रोज़गार देते हैं। फिर हम देख रहे हैं कि महिलाओं की कार्यशक्ति में हिस्सेदारी 2005 में 36.7 से घटकर 2018 में 26 प्रतिशत रह गई है। ऐसी स्थिति में जब इस क्षेत्र में महिला रोज़गार घटेगा, तो औरतों को सबसे अधिक भुगतना होगा। यदि सरकार आपात स्थिति में भी विशेष पैकेज के जरिये इन उद्यमी महिलाओं को अधिक आर्थिक सहयोग देकर संकट से नहीं उबारती, तो यह मंदी महिला कार्यशक्ति को और भी गिरा देगी।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest