Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बिजली (संशोधन) विधेयक, 2022—बिजली के निजीकरण के नुक़सान

विद्युत मंत्रालय ने ग़लत तरीक़े से दावा किया है कि ये विधेयक हितधारकों की टिप्पणियों और परामर्श पर आधारित है।
power
Image courtesy : The Financial Express

बिजली (संशोधन) विधेयक, 2022 का उद्देश्य बिना कोई निवेश किए सरकारी वितरण कंपनियों के बुनियादी ढांचे का उपयोग करके निजी कंपनियों को लूटपाट में मदद करना है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। सभी राज्यों और मुख्य हितधारकों जैसे उपभोक्ताओं, बिजली कर्मचारी और श्रमिकों को साथ लिए बिना इसे संसद में नहीं रखा जाना चाहिए।

राज्यों द्वारा कड़ी आपत्तियों के बावजूद बिजली मंत्रालय ने गलत तरीके से दावा किया है कि ये विधेयक हितधारकों की टिप्पणियों और परामर्श पर आधारित है। इस तरह बिना सोच विचार के उठाए गए कदम खतरनाक हैं और नुकसान पहुंचा सकते हैं। मंत्रालय ने न तो विधेयक को अपनी वेबसाइट पर डाला है और न ही हितधारकों से टिप्पणी मांगी है।

बिजली अधिनियम, 2003 में संशोधन का प्रस्ताव करने और उन्हें संसद में रखने से पहले राज्यों और हितधारकों के विचार जानने के लिए एक 'व्यापक श्वेत पत्र' की आवश्यकता होती है। इसके बाद, इस विधेयक को ऊर्जा पर संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए।

न केवल बड़े व्यापारिक घरानों को, बल्कि हितधारकों को विश्वास में लेकर पारदर्शी तरीके से कदम दर कदम आगे बढ़ने की जरूरत है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस विधेयक के कई प्रावधान कॉरपोरेट घरानों को लाभान्वित कर सकते हैं और 75 साल पुरानी व्यवस्था को ध्वस्त कर सकते हैं।

बिजली समवर्ती सूची का विषय है और केंद्र व राज्य दोनों सरकारों के पास इस पर कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन प्रस्तावित संशोधन संघवाद की भावना के खिलाफ राज्यों की शक्तियों को छीन लेते हैं। राज्य सरकारें इस विधेयक के दूरगामी प्रभावों को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं और इस वितरण के निजीकरण का विरोध करना चाहिए।

इसे भी पढ़ें : बिजली क्षेत्र में ख़र्चा सरकार का और मुनाफ़ा प्राइवेट कंपनियों का 

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ये विधेयक राज्य वितरण कंपनियोंके वित्त को कमजोर करेगा और उपभोक्ता के सब्सिडी और कर्मचारी के उपयोगिता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इस विधेयक में ये प्रस्ताव किया गया है कि एक ही क्षेत्र की कई बिजली कंपनियों को डिस्कॉम के वितरण नेटवर्क के माध्यम से बिजली आपूर्ति करने का लाइसेंस दिया जाएगा। जनता के लाखों करोड़ रुपये खर्च कर वितरण कंपनियों ने बिजली का बुनियादी ढांचा तैयार किया है।

प्रस्तावित मसौदा क्षेत्रीय और स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर को बिजली देने से रोकता है यदि वितरण लाइसेंसधारी द्वारा पर्याप्त भुगतान तंत्र प्रदान नहीं किया गया है। लोड डिस्पैच सेंटर द्वारा स्टेट यूटिलिटिज को बिजली के प्रवाह पर "भुगतान सुरक्षा तंत्र" लागू करने का तात्पर्य है कि सेवा लेने वालों को बिजली तब तक निर्धारित नहीं की जाएगी और आपूर्ति नहीं की जाएगी जब तक कि पूरी तरह से भुगतान नहीं किया जाता है और इस तरह राज्यों व उपभोक्ताओं के लिए खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।

लोड डिस्पैच सेंटर का कार्य राष्ट्रीय आधार पर मुख्य रूप से ग्रिड संचालन और ग्रिड की सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित है। भुगतान सुरक्षा तंत्र का कार्य ग्रिड संचालन से संबंधित नहीं है। यह एक वाणिज्यिक मुद्दा है जिसे निपटाने की जरूरत है और इसे लोड डिस्पैच सेंटर को नहीं दिया जाना चाहिए।

ये विधेयक केंद्र द्वारा तय किए गए नवीकरणीय बिजली खरीद दायित्वों का अनुपालन न करने के लिए कठोर और भारी दंड का प्रस्ताव करता है। यह स्पष्ट रूप से कॉर्पोरेट व्यावसायिक घरानों के स्वामित्व वाले बड़े केंद्रीकृत सौर संयंत्रों के पक्ष में किया जा रहा है।

बहु-राज्य वितरण कंपनियों को पंजीकरण जारी करने वाले सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीईआरसी) के साथ राज्य विद्युत नियामक आयोगों (एसईआरसी) की भूमिका काफी कम हो जाएगी, जबकि वितरण नेटवर्क के संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी राज्य के पास रहेगी।

अंत में, बिजली वितरण कंपनियां केवल बिजली का बिल वसूल करेगी और सब्सिडी वाले उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करेगी। मुंबई के उपनगरीय क्षेत्रों में एक ही क्षेत्र में दो लाइसेंसधारी कंपनियां टाटा और अडानी काम कर रहे हैं और उपभोक्ताओं के पास इनके चयन के साथ-साथ आपूर्ति प्रदाता का चयन करने के विकल्प का प्रावधान है। ये प्रयोग विफल हो गया है क्योंकि इस प्रतिस्पर्धा ने निम्नतर टैरिफ भी नहीं दिए हैं और इसे देश में सबसे बढ़िया माना जाता है।

लो टेंशन कंज्यूमर को सार्वजनिक पहुंच का प्रचार करने की योजना के साथ निजी कंपनियों का पक्ष लेने के लिए चयन करने की प्रक्रिया होगी, उनके वितरण खंडों के भीतर लाभकारी भार चुनने का प्रावधान होगा और राज्य उपयोगिताओं के बिजली बुनियादी ढांचे का उपयोग करके उन्हें बिजली आपूर्ति करना शामिल है।

सरकार को देश के ऊर्जा हितों को देखना चाहिए और उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचा कर निजी कंपनियों की वकालत नहीं करनी चाहिए। इस विधेयक के माध्यम से प्रस्तावित बिजली क्षेत्र का निजीकरण कुछ औद्योगिक घरानों के लिए वरदान होने के साथ-साथ जनता के लिए महंगा साबित होगा।

लेखक ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के प्रवक्ता हैं।

मूल रूप से अंग्रज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Electricity (Amendment) Bill, 2022—Pitfalls of Power Privatisation

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest