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बिजली उपभोक्ताओं को लग सकता है झटका, बिजली दरों में 15.85 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव

बीपीएल श्रेणी (ग़रीबी रेखा के नीचे) में घरेलू लाइफ़ लाइन उपभोक्ताओं की दरों में 17 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव है जो एक किलो वाट बिजली लोड और 100 यूनिट प्रति माह बिजली उपभोग वाले उपभोक्ता पर लागू होगा। वहीं कॉमर्शियल उपभोक्ताओं की बिजली भी क़रीब 12 प्रतिशत महंगी करने का प्रस्ताव है।
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साभारः विकिपीडिया

उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को नए साल में तगड़ा झटका लग सकता है। वर्ष 2023-24 के लिए बिजली कंपनियों ने बिजली दरों में 15.85 प्रतिशत औसत वृद्धि का प्रस्ताव बिजली नियामक को आयोग दिया है। सबसे अधिक घरेलू बिजली उपभोक्ताओं की दरों में 18 से 23 प्रतिशत तक की वृद्धि का प्रस्ताव है। इसके अलावा किसानों की बिजली दरों में भी 10-12 प्रतिशत और उद्योगों के लिए 16 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव भेजा गया है।

बीपीएल श्रेणी (ग़रीबी रेखा के नीचे) में घरेलू लाइफ़ लाइन उपभोक्ताओं की दरों में 17 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव है जो एक किलो वाट बिजली लोड और 100 यूनिट प्रति माह बिजली उपभोग वाले उपभोक्ता पर लागू होगा। वहीं कॉमर्शियल उपभोक्ताओं की बिजली भी क़रीब 12 प्रतिशत महंगी करने का प्रस्ताव है।

बताया जा रहा है कि वर्ष 2023-24 के लिए बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) लगभग 92,547 करोड़ रुपये है। उत्तर प्रदेश राज्य बिजली उपभोक्ता परिषद का कहना है कि यदि आयोग बिजली कंपनियों के कुल प्रस्तावित बिजली दर को अनुमोदित कर देता है तो कंपनियों को कुल राजस्व 98,628 करोड़ रुपये प्राप्त होगा यानी वार्षिक एआरआर ज़्यादा प्राप्त होगा।

उपभोक्ता परिषद ने इसका अध्ययन किया तो पाया की बिजली कंपनियों ने वर्ष 2021-23 में बिजली दर की बढोतरी नहीं की थी। इस बार बिजली कंपनियों ने घाटे की दुहाई देते हुए दरों में वृद्धि प्रस्तावित की है। उस समय के नुक़सान की भरपाई के लिए भी इस बढोतरी में ट्रू-अप के मद में करोड़ों रुपये की राजस्व हानि को भी शामिल कर लिया है जिसका मतलब है कि बिजली कंपनियां 2 साल पीछे से बिजली दर की बढोतरी चाह रही हैं।

जबकि उपभोक्ता परिषद की माने तो उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर सरप्लस 25,133 करोड़ रुपये निकल रहा है। परिषद का कहना है कि ऐसे में एक वर्ष पीछे से बढोतरी की बात करना असंवैधनिक है, बल्कि अगले 5 वर्षों तक 7 प्रतिशत बिजली दरों में कमी होनी चाहिए।

पावर कॉरपोरेशन के सूत्र बताते हैं कि अनुमान है कि इस साल उसे क़रीब 1 लाख 34 हज़ार 751 मिलियन यूनिट बिजली की ज़रूरत पड़ेगी। वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 1 लाख 16 हज़ार 69 मिलियन यूनिट था।

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के अनुसार, बिजली कंपनियों के प्रस्ताव के विरोध में राज्य बिजली उपभोक्ता परिषद ने बिजली दरों में कमी करने के लिए नियामक आयोग में याचिका दाख़िल की है। उपभोक्ता परिषद ने मांग की है कि बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं के क़रीब 25,133 करोड़ रुपये बकाया हैं। ऐसे में बिजली कंपनियों को दर बढ़ाने के बजाय टैरिफ़ कम करने का प्रस्ताव देना चाहिए। अवधेश वर्मा कहते हैं कि उपभोक्ताओं की बकाया राशि का समायोजन किए बिना बिजली दर बढ़ाने के प्रस्ताव को स्वीकृत करना उपभोक्ताओं के साथ अन्याय होगा।

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा है कि “यह वही वर्ष है जब उत्तर प्रदेश सरकार ने ख़ूब ढिंढोरा पीट कर जनता को कहा था बिजली दर में कोई बढोतरी नहीं हुई है।” उन्होंने कहा, “जनता ने वोट देकर सरकार बनाई अब पिछले वर्ष का भी हिसाब बराबर करने के लिए लगे हैं।” उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने कहा इतनी भारी वृद्धि उत्तर प्रदेश में पहली बार प्रस्तावित की गई है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी बिजली दरों में बढ़ोतरी के प्रस्ताव को रोकने की मांग की है।

बिजली दरों की बढ़ोतरी का प्रस्ताव के ख़िलाफ़ अखिल भारतीय किसान सभा और अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन की उत्तर प्रदेश इकाई ने प्रदेशव्यापी आंदोलन की बात कही है। किसान नेता मुकुट सिंह ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने सिंचाई के लिए 300 यूनिट बिजली मुफ़्त देने का वादा किया था। मुकुट सिंह आगे कहते हैं कि सरकार बनने के बाद बीजेपी अपना ये वादा भूल गई और अब बिजली दर बढ़ाने की बात हो रही है जिससे प्रदेश में कृषि संकट और गहरा होगा।

समाजवादी पार्टी ने भी बिजली दरें बढ़ाने के प्रस्ताव का विरोध किया है। सपा के पूर्व विधायक सुनील सजन कहते हैं सरकार और बिजली कंपनियां मिलकर आम जनता और किसानों की जेब पर डांका डाल रहे हैं। पूर्व विधायक सुनील सजन कहते हैं बीजेपी ने चुनावों में वादा किया था कि आम उपभोक्ताओं का बिजली बिल कम करेंगे और किसान का बिल माफ़ करेंगे लेकिन सत्ता हासिल करने के बाद दोनों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालने की योजना है।

उधर कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को जनता पर अत्याचार की योजना बताया है। पार्टी के नेता अंशु अवस्थी ने कहा बीजेपी सरकार में जनता की आय घटी है और महंगाई अनियंत्रित हो गई है। ऐसे में बिजली की क़ीमतें बढती है तो आर्थिक संकट और बढेगा। अंशु अवस्थी कहते हैं कि पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें आसमान पर हैं ऐसे में बिजली की क़ीमतें बढ़ना जनता के साथ अत्याचार जैसा होगा।

उपभोक्ता परिषद ने सवाल किया है कि बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि लाइफलाइन घरेलू उपभोक्ता 100 यूनिट तक 3 रुपये यूनिट में चलेगा तो यह 3 रुपये 50 पैसे का प्रस्ताव क्यों भेजा गया? किसानों की बिजली दर कम होने की बात थी, लेकिन उसको भी बढ़ाने का प्रस्ताव है।

शहरी घरेलू उपभोक्ताओं के लिए 151 से 300 यूनिट तक जो 6 रुपये प्रति यूनिट था उसे 7 रुपये करने का प्रस्ताव है। 300 से ऊपर जो 6.50 रुपये प्रति यूनिट था उसे 8 रूपये करने का प्रस्ताव है। इसी तरह लाइफलाइन उपभोक्ता, उद्योगों, कृषि क्षेत्र में बिजली दर बढ़ाने का प्रस्ताव है। वहीं कृषि ग्रामीण मीटर 2.00 रुपये प्रति यूनिट था उसे 2 .20 यूनिट करने का प्रस्ताव है और शहरी 6 रुपये प्रति यूनिट था उसे 6 .20 करने का प्रस्ताव है।

अभी बिजली की क़ीमतों में उत्तर प्रदेश देश के टॉप 5 राज्यों में है, अगर ये प्रस्ताव मंज़ूर हुआ तो यह टॉप पर होगा। ऐसे में बिजली दर में वृद्धि हो जाने के बाद आम जनता की जेब पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ का ज़िम्मेदार कौन होगा?

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