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छात्रवृत्ति के रोज़ बदलते नियम, छात्रों के भविष्य पर संकट के बादल 

जब से छात्रवृत्ति के आवेदन जमा होने की प्रक्रिया आरंभ हुई है, कई बार नये नियम बनाये और ख़त्म किए गए  हैं। विश्वविद्यालय के छात्रों का कहना है कि नए नियम ऐसे बनाये जा रहे हैं कि अधिकतर छात्र-छात्रवृत्ति के लिए अयोग्य हो जायें।
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छात्रवृत्ति के रोज़ नये नियम बनाये जाने को लेकर लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच लगातार गतिरोध बना हुआ है। छात्रों का कहना है कि छात्रवृत्ति के नियमों में रोज़ बदलाव कर के उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

जब से छात्रवृत्ति के आवेदन जमा होने की प्रक्रिया आरंभ हुई है, कई बार नये नियम बनाये और ख़त्म किये गये हैं। विश्वविद्यालय के छात्रों का कहना है कि नये नियम ऐसे बनाये जा रहे हैं कि अधिकतर छात्र-छात्रवृत्ति के लिए अयोग्य हो जायें।

नये नियमों को लेकर छात्र संगठन कई बार विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन भी कर चुके हैं। वह कहते हैं किपिछले सत्र में फंड की कमी बताकर अधिकतर छात्रों की छात्रवृत्ति को रोक दिया गया था। उनके अनुसार पहले किसी भी सरकार में छात्रवृत्ति को लेकर इतना संकट नहीं हुआ है।

आय प्रमाण पत्र

सबसे अधिक गतिरोध, छात्रों की कक्षाओं  में उपस्थिति कम से कम 75 प्रतिशत होने को लेकर है। जबकि विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति आवेदन जमा करने आ रहे छात्रों को पहली दिक्कत “आय प्रमाण पत्र” को लेकर 12 दिसम्बर को आई थी। जब केवल “पिता” की आय प्रमाण पत्र लाने वाले छात्रों के आवेदन ही जमा किए गए और अन्य के रोक दिया गया ।

विश्वविद्यालय प्रशासन के एक आदेश का हवाला देते हुए छात्रों से कहा गया है कि जिन छात्रों ने अपने “पिता” का आय प्रमाण पत्र बनवाया है, उन्हीं का आवेदन स्वीकार किया जाएगा। जबकि बड़ी संख्या में छात्र “परिवार की आय का प्रमाणपत्र” पहले ही बनवा चुके थे।

छात्रों के फॉर्म न जमा होने की ख़बर जब छात्र संगठनों को मिली तो वह सक्रिय हुए। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने इसकी इसकी सूचना विश्वविद्यालय “रजिस्ट्रार” और “डीन स्टूडेंट वेलफेयर” (डीएसडब्ल्यू) को दी।

प्रो० पूनम टंडन, डीएसडब्ल्यू, ने विश्विधालय प्रशासन के आला अधिकारियों से संपर्क किया और बताया कि “आय प्रमाण पत्र” का अर्थ “परिवार की आय” होता है, जिसके बाद छात्रों के आवेदन जमा कराए जा सके।

उपस्थिति स्वीकृत (अप्रूव) कराने में भी दिक्कत

छात्रों का कहना है कि उनको उपस्थिति स्वीकृत (अटेंडेंस अप्रूव) कराने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है । स्नातक के तीन विषयों के लिए उन्हें अलग-अलग शिक्षकों व फिर विभागाध्यक्ष से  स्वीकृति लेना पड़ती है।

कई विषयों की कक्षाएं कम चलने के कारण 75 फीसदी उपस्थिति होने में भी दिक्कत हो रही है। छात्रवास (हॉस्टल) देर से आवंटित होने और स्वास्थ्य कारणों, विशेषकर (डेंगू) से उपस्तिथि कम होने कारण भी छात्रों की 75 फीसदी उपस्थिति होना में मुश्किल हो रही है।

छात्र नेता विशाल सिंह की माने तो छात्रवृत्ति के नियम कठोर होने के कारण बड़ी संख्या में छात्रों के आवेदन भी जमा नहीं हो पा रहे हैं। लेकिन विभागाध्यक्ष से लेकर डीन और विश्वविद्यालय का ग़ैर शिक्षण कर्मचारी (लिपिक) तक कोई भी छात्रों की सुन ने को तैयार नहीं है।

माना जा रहा है कि नियम कठिन होने से सबसे अधिक नकारात्मक असर समाज के वंचित वर्गों से आने वालों छात्रों पर पड़ेगा। छात्रों का कहना है कि छात्रवृत्ति का आधार उनकी उपस्थिति नहीं बल्कि उनका आर्थिक पिछड़ापन है।

विश्वविद्यालय परिसर में छात्रवृत्ति का आवेदन करने आये कुछ छात्र-छात्राओं से न्यूज़क्लिक ने बात करी और जाना उनको क्या समस्या आ रहीं है।

छात्रों की समस्याएं 

छात्रवृत्ति का आवेदन लेकर आये अर्पित जायसवाल कहते हैं कि, वह "एनसीसी" भी करते हैं, जिसकी वजह से कभी-कभी उनकी क्लास में उपस्थित कम हो जाती है। लेकिन उनकी इस "वास्तविक" समस्या को विश्वविद्यालय नहीं मान रहा था। 

वह कहते हैं कि बड़ी मुश्किल से दौड़-भाग करने के बाद फॉर्म जमा होने की अनुमति मिली है। लेकिन अभी-अभी एनसीसी करने वाले छात्रों कोई लेकर “जनरल सर्कुलर” जारी नहीं हुआ है। "एनसीसी" करने वाले छात्र अभी परेशान है। वह आगे बताते हैं कि पिछले सत्र में भी कम बजट के नाम पर बड़ी संख्या में छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिली थी।

बीकॉम की छात्रा अवंतिका श्रीवास्तव कहती हैं कि 75 प्रतिशत उपस्थिति कि शर्त लगाकर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। अवंतिका कहना है कि उनकी उपस्थिति कम होने के कारण उनका छात्रवृत्ति का फॉर्म जमा नहीं हुआ। जबकि उनकी उपस्थिति कम होने का कारण उनका “ऑपरेशन” था।

अवंतिका कहती हैं कि वे डीन और विभागाध्यक्ष से मिली और अपना मेडिकल सर्टिफिकेट भी दिखाया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ। उनको पिछले सत्र में भी छात्रवृत्ति नहीं मिली थी।

समर, बीएससी (भौतिकी और भूविज्ञान) तृतीय वर्ष  के छात्र हैं। उनके पिता निजी संस्थान में नौकरी करते हैं।आर्थिक कारणों से उनकी फीस देर से जमा हुई, जिसके कारण वह देर से क्लास शुरू कर पाये और उनकी उपस्थिति कम हो गई। अब उनको छात्रवृत्ति का आवेदन भरने में परेशानी हो रही है। समर कहते हैं “सरकार ने नियमों का ऐसा जाल बनाया है कि छात्र को न आर्थिक सहायता मिले और न वह पढ़ सके”।

उन्नाव से लखनऊ पढ़ाई करने आये अमन बीए द्वितीय के छात्र है। वह मानवशास्त्र, भूगोल और अर्थशास्त्र में स्नातक कर रहे हैं, उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिछली बार फीस मुश्किल से फीस  जमा कर सके थे , उम्मीद दी छात्रवृत्ति मिल जाएगी। मगर पिछले सत्र में छात्रवृत्ति नहीं मिलने के कारण अभी तक इस सत्र की फीस जमा नहीं हो सकी है। यही कारण है कि वह इस बार छात्रवृत्ति का आवेदन देने के भी योग्य नहीं हैं।

बीकॉम की छात्रा हर्षिता मानती हैं  कि छात्रवृत्ति का आधार उपस्थिति बना कर छात्रों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। हर्षिता कहती हैं उनको छात्रावास दीपावली के बाद आवंटित हुआ और क्लास पहले शुरू हो गई थीं। लेकिन रहने की जगह न होने के कारण वह क्लास नहीं कर सकी और इससे  उनकी उपस्थिति कम हो गई और अब छात्रवृत्ति का आवेदन स्वीकार नहीं हो रहा है।

विश्वविद्यालय के छात्र बताते हैं कि पिछले सत्र में भी बहुत दिक्कतों के का सामना करना पड़ा था। छात्रों का कहना है कि, पहले आवेदन करने में तकनीकी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। कई बार दस्तावेजों सही न होने की बात कहकर बैंक ने उनका आवेदन अस्वीकार कर दिया। जब दौड़ भाग कर तकनीकी दिक्कत दूर हुई तो आवेदन जमा होने में भी समस्या आई। लेकिन किसी तरह आवेदन जमा हुए तो "विधानसभा" चुनाव के लिए लगी आचार संहिता का हवाला अधिकारियों ने इसे टाल दिया।

बाद में फंड का अभाव आवेदन के स्टेटस पर लिखकर भेज दिया गया। उल्लेखनीय है कि प्रत्येक सत्र में हजारों की संख्या में छात्रों द्वारा छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जाता है।

आवेदन करने वाले बड़ी संख्या बीबीए, एमबीए, बीएलएड आदि प्रोफेशनल कोर्सों के विद्यार्थियों की है, जिनकी फीस काफी होती है। हालाँकि बाद में कुछ  छात्रों की छात्रवृत्ति आ भी गई है। लेकिन छात्रों की माने तो अधिकतर की छात्रवृत्ति रह गई।

क्या कहते हैं छात्र संगठन 

छात्र संगठन आइसा ने छात्रवृत्ति को लेकर हो रही दिक्कत और केंद्र सरकार पर विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति को समाप्त करने की साजिश का आरोप लगाते हुए विश्वविद्यालय परिसर स्थित सरस्वती प्रतिमा के पास विरोध-प्रदर्शन किया गया। छात्र नेता निखिल ने कहा पहले अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाली मौलाना आज़ाद छात्रवृत्ति को  ख़त्म किया गया और उत्तर प्रदेश में छात्रवृत्ति ख़त्म करने की साज़िश हो रही है। 

छात्रा नेता अंजलि कहती हैं कि  फीस लगातार बढ़ती जा रही है और छात्रवृत्ति ख़त्म होती जा रही हैं। उनका कहना है ऐसा लगता है कि भविष्य में आर्थिक तौर पर कमज़ोर परिवार के छात्रों के लिए शिक्षा हासिल करना असंभव हो जाएगा।

छात्र नेता विशाल सिंह ने छात्रवृत्ति में आ रही परेशानियों पर बात करते हुए कहा कि छात्रों का तो भविष्य दांव पर लग गया है, क्योंकि बहुत से छात्र केवल छात्रवृत्ति की वजह से ही पढ़ाई जरी रख पा रहे रहे हैं। उन्होंने सवाल किया ऐसे में अगर उन्हें छात्रवृत्ति के पैसे नहीं मिले तो वे पढ़ाई का खर्चा कैसे उठाएंगे? विशाल कहते केवल लखनऊ विश्वविद्यालय नहीं प्रदेश के अधिकतर उच्य शिक्षण संस्थानों का यही हाल है।

विश्वविद्यालय का तर्क 

वहीं  विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि उपस्थिति को लेकर फ़ैसला उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लिया गया है। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार संजय मेघावी से जब न्यूज़क्लिक ने संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि अगर छात्रों को कोई समस्या है तो वे लिखित में दे सकते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन उसको समाज कल्याण विभाग भेज देगा।

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