विशेष: डेरा सच्चा सौदा साध्वी रेप मामला और स्थानीय पत्रकारिता की गौरव गाथा
बलात्कार और कत्ल के मामले में सज़ा काट रहा डेरा सच्चा सौदा सिरसा का मुखी गुरमीत राम रहीम सिंह गत 15 अक्टूबर को 40 दिनों की पैरोल पर बाहर आया था। उसे एक साल के भीतर मिलने वाली यह तीसरी पैरोल है। बाहर आ कर उसने न सिर्फ ऑनलाइन सत्संग किये बल्कि दो गीत भी रिलीज़ किये। उसके ऑनलाइन सत्संगों में भाजपा के कुछ नेताओं ने भी हिस्सा लिया।
गुरमीत राम रहीम को मिली इस राहत और पैरोल पर कई राजनैतिक, सामाजिक कार्यकर्ता और डेरा मुखी के अपराध के विरुद्ध संघर्ष करने वाले सवाल खड़े कर रहे हैं और वहीं उस समय की स्थानीय पत्रकारिता द्वारा निभाए शानदार रोल की भी खुलकर तारीफ कर रहे हैं। इसमें सबसे ऊपर नाम आता है सिरसा के दैनिक सांध्य अख़बार ‘पूरा सच’ के सम्पादक रामचंद्र छत्रपति का, जिन्होंने साध्वी यौन शोषण मामले में गुमनाम चिट्ठी सामने आने पर उस चिट्ठी के आधार पर अपने अखबार में लगातार रिपोर्टस छापीं, उस समय किसी भी बड़े कॉर्पोरेट मीडिया ने इसे छापने या दिखाने की हिम्मत नहीं दिखाई।
गुरमीत राम रहीम के खिलाफ के केस में गवाह बने तर्कशील कार्यकर्ता मास्टर बलवंत सिंह कहते हैं, “उस समय एक हिन्दी अखबार ने छोटी सी खबर लगाई थी वह भी अखबार के अंदर वाले पन्ने में, और जिससे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता था कि कौन से डेरे की बात की जा रही थी। उस समय डेरा सच्चा सौदा के मुखिया का राजनीति और मीडिया पर पूरा दबदबा था। ऐसे हालत में दिलेरी से आवाज़ उठाने वाले सिरसा के ‘पूरा सच’ के सम्पादक रामचंद्र छत्रपति थे। उन्होंने सिर्फ साध्वी रेप मामले में ही नहीं बल्कि डेरे द्वारा की जाने वाली गुंडागर्दी को भी खुल कर छापा। इसी कारण डेरा मुखिया ने उन्हें कत्ल करवा दिया।”
पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के कत्ल मामले में गुरमीत राम रहीम को 2019 में उम्र कैद की सज़ा सुनाई जा चुकी है। रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति अपने दिवंगत पिता के बारे बताते हैं, “मेरे पिता रामचंद्र छत्रपति शुरू से एक साहसी और खबर की गहराई तक जाकर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार थे। मुझे याद है कि जब उन्हें डेरे के काले कारनामों का पर्दाफाश करने वाली पहली रिपोर्ट छापनी थी तो जब मैं उनके दफ़्तर पहुंचा तो वहां काम करने वाला एक लड़का बोला ‘प्रधान जी आज शाम को एक धमाका करने वाले हैं, पर यह मैं आपको बताऊंगा नहीं जब शाम को अखबार छप कर आ जायेगी तो देख लेना’। इस निडर रिपोर्टिंग के बाद डेरे वालों की तरफ से पापा को धमकियां मिलने लगीं पर वे धमकियों के आगे झुकने वाले नहीं थे। उनके मित्रों ने भी कहा कि डेरे वाले बहुत खतरनाक हैं, संभल कर लिखें। पर पापा ने किसी भी कीमत पर पत्रकारिता के मूल्यों से समझौता नहीं किया।”
अंशुल कहते हैं कि गुरमीत राम रहीम को साल में तीन बार पैरोल मिलना असल में हमारे सिस्टम और सरकारों की बेशर्मी है। यह वोट बैंक की राजनीति है। कुछ नेताओं का उसके सत्संग में शामिल होना और भी बेशर्मी भरी बात है।
डेरे मामले में सीपीआई (एम) से जुड़े चंडीगढ़ से छपने वाले दैनिक पंजाबी अखबार ‘देश सेवक’ की प्रशंसनीय भूमिका को भी भुलाया नहीं जा सकता।
‘देश सेवक’ ने सबसे पहले 25 सितंबर 2002 को राम रहीम द्वारा साध्वियों से किये बलात्कार की जानकारी देती पूरी चिट्ठी छापी थी। याद रहे कि रामचंद्र छत्रपति ने अपने अख़बार में इस गुमनाम चिट्ठी के आधार पर किस्तवार रिपोर्टस छापी थीं। ‘देश सेवक’ ने पहली बार पूरी की पूरी चिट्ठी छापी थी। जैसे ही अखबार में चिट्ठी छपी तो पूरे पंजाब में हाहाकार मच गया। उस दिन अखबार की एक-एक कॉपी 150 रुपये तक बिकी और जब अखबार की कॉपी खत्म हो गई तो फ़ोटोस्टेट कॉपी भी 200रुपये तक बिकी। उस समय के ‘देश सेवक’ के सम्पादक डा. तेजवंत सिंह गिल बताते हैं, “यह चिट्ठी हमारे पास तर्कशील सोसाईटी के नेता राजा राम हंडियाया लेकर आये थे जो खुद भी डेरे वालों के हमले का शिकार हो चुके थे। राजा राम चिट्ठी लेकर हमारे डिप्टी एडिटर शमील के पास पहुंचे। शमील ने राजा राम की पूरी बात सुनी और उनसे चिट्ठी लेकर कहा कि हमारी अपनी सीमायें हैं हम इस चिठ्टी को ऐसे नहीं छाप सकते लेकिन हम सही समय आने पर इसे ज़रूर छापेंगे। उसके बाद अखबार ने अपने पत्रकारों से इस मामले की जाँच भी करवाई। आखिर एक दिन वो समय आ गया। 24 सितंबर (2002) की शाम को हमारे डेस्क पर खबर आती है कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा राम रहीम के खिलाफ सीबीआई जाँच के आदेश आये हैं तो हमने 25सितंबर के अखबार में उस खबर के साथ पूरी चिट्ठी भी प्रकाशित की। हैरानी की बात यह है कि बाकी अख़बारों ने अदालती फैसले वाली खबर भी प्रकाशित नहीं की थी।
उसके बाद हमें जहां बधाई के फोन आये वहां धमकियां भरे फोन भी आए। हमारे अखबार की कापियां डेरे वालों ने जलाई। हमारे आफ़िस के सामने डेरा प्रेमियों ने प्रदर्शन किये।”
फतेहाबाद से प्रकाशित होने वाले दैनिक सांध्य अखबार ‘लेखा-जोखा’ को भी गुरमीत राम रहीम के ‘प्रेमियों’ की हिंसा का शिकार होना पड़ा। अख़बार ने जैसे ही डेरे के अंदर साध्वियों से हो रहे बलात्कारों की रिपोर्ट छापी तो डेरा ‘प्रेमियों’ ने अखबार के दफ्तर पर जून 2002 में हमला बोल कर दिया था। लाखों के कंप्यूटर तोड़ डाले और कीमती सामान को नुकसान पहुंचाया। डेरा प्रेमी अख़बार के सम्पादक को अपनी हिंसा का शिकार बनाना चाहते थे लेकिन कामयाब न हो सके। ‘लेखा-जोखा’ अखबार के पत्रकारों द्वारा डेरे प्रेमियों के इस हमले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई, लेकिन राम रहीम के हजारों समर्थकों ने इकट्ठे होकर प्रशासन को धमकी दी कि डेरे के खिलाफ अगर कोई कार्रवाई हुई तो सड़क जाम कर देंगे।
डेरा सिरसा के विरुद्ध सीबीआई जाँच को लेकर आंदोलन करने वाले संगठन जन संघर्ष मंच हरियाणा की महासचिव सुदेश कुमारी बताती है, “उस समय प्रशासन और सरकार भी डेरे के समर्थन में थी। फतेहाबाद के पत्रकारों ने हिम्मत तो की पर कोई भी डेरे के सामने टिक नहीं पाया। उन्हें (‘लेखा-जोखा’ अख़बार के पत्रकारों को) डेरे वालों ने इतना डराया-धमकाया कि उन्हें एफआईआर वापस लेनी पड़ी।”
स्थानीय दैनिक अखबार ‘हरियाणा जनादेश टाइम्स’ ने भी साध्वी रेप कांड और इससे लेकर हुए आंदोलनों की अच्छी कवरेज की थी। इस अख़बार ने 5 फरवरी 2003 की उस घटना, जिसमें सुदेश कुमारी के नेतृत्व में प्रदर्शन कर रहे जन संघर्ष मंच हरियाणा के कार्यकर्ताओं पर डेरे वालों द्वारा हमला किया गया था और महिला कार्यकर्ताओं के कपड़े तक फाड़े गए थे, को अपने पहले पन्ने की खबर बनाया था। हरियाणा से निकलने वाले ‘हरिभूमि’ ने भी डेरे के खिलाफ खुलकर लिखा था। इसके इलावा ‘दैनिक ट्रिब्यून’ ‘अमर उजाला’ ने भी लोकल पन्नों पर डेरे के ज़ुल्मों और गुन्डागर्दी के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को छापा था।
रामचंद्र छत्रपति की हत्या के बाद फरवरी 2003 में हरियाणा पत्रकार संघ ने एक बैठक आयोजित की थी। संघ के तत्कालीन अध्यक्ष के.बी. पंडित ने छत्रपति के परिजनों को संघ की ओर से बीमा योजना के तहत पांच लाख रुपये की सहायता राशि देने का ऐलान किया था। इसके अलावा छत्रपति के पुत्र अंशुल को एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार का सिरसा संवाददाता नियुक्त किया गया और छत्रपति के नाम पर राज्य स्तर का एक पत्रकारिता पुरस्कार भी शुरू किया गया था। यह खबर 10 फरवरी को ‘हरिभूमि’ के हिसार संस्करण में प्रकाशित हुई थी।
जब भी साध्वी रेप कांड, गुरमीत राम रहीम के काले अतीत और उसके विरुद्ध इंसाफ के लिए लड़े गये आंदोलनों को याद करेंगे तो स्थानीय पत्रकारिता का गौरवमयी अतीत भी याद किया जायेगा। आज के गोदी मीडिया के दौर में रामचंद्र छत्रपति जैसे पत्रकार युवा पत्रकारों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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