NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
सोशल मीडिया
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में भले अपनी दुकान बंद कर ली मगर दुनिया के सामने बहुत गहरे सवाल खोल दिए!
टेक्नोलॉजी की दुनिया में बढ़ता एकाधिकार दुनिया के सामने बहुत बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। अब देखने वाली बात यही होगी कि दुनिया इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है?
अजय कुमार
24 Feb 2021
FB

फेसबुक एक तरह का डिजिटल प्लेटफॉर्म है, यह बात आपने हमेशा सुनी होगी। लेकिन कभी आपने सोचा है कि इसे प्लेटफार्म क्यों कहा जाता है? अगर नहीं सोचा है तो अब सोच लीजिए। इसे प्लेटफार्म इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका चरित्र ठीक रेलगाड़ियों के प्लेटफार्म की तरह है। जहां पर रेलगाड़ियां आकर रुकती है, जहां से रेलगाड़ियां प्रस्थान करती हैं। लेकिन उस व्यवस्था को क्या कहेंगे जहां रेलगाड़ियों की आवाजाही से होने वाली सारी कमाई केवल प्लेटफार्म के खाते में चली जाए?

फेसबुक एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के तौर पर यही काम कर रहा है। बहुत सारी व्यवस्थाएं कर न्यूज़ कंपनियां न्यूज़ इकट्ठा करती हैं। अपने पत्रकारों को पैसा देती हैं। वह गली-गली घूमते हैं। आज के दौर में सरकार की प्रताड़ना भी सहते हैं। जान जोखिम में डालकर न्यूज़ इकट्ठा करते हैं। यह न्यूज़ फेसबुक प्लेटफार्म के जरिए लोगों के बीच फैलती है। लेकिन इससे होने वाली सारी कमाई फेसबुक के खाते में चली जाती है। 

इस अन्याय पूर्ण व्यवस्था को सुधारने के लिए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने अपनी संसद के निचले सदन में बिल प्रस्तावित किया। बिल यह है कि फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी टेक्नोलॉजी के प्लेटफार्म को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा न्यूज़ संगठनों के साथ भी शेयर करना होगा, जिनके कंटेंट को पढ़ने के लिए लोग फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर आते हैं।

फेसबुक को यह बात नागवार गुजरी। फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में न्यूज सर्विस और इमरजेंसी पोस्ट बंद कर दी हैं। यानी अब वहां के लोगों को फेसबुक के प्लेटफार्म पर न्यूज़ पोस्ट नहीं दिखेगी। और न ही न्यूज़ वेबसाइट फेसबुक पर न्यूज कंटेंट पोस्ट कर सकेंगी।

फेसबुक चूंकि पूरी दुनिया में फैला हुआ डिजिटल प्लेटफार्म है, इसलिए यह एक ऐसी ख़बर है जिसका जुड़ाव पूरी दुनिया से है। इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के प्रोफेसर आनंद प्रधान कहते हैं कि फेसबुक न्यूज़ कंपनियों के साथ भी अपनी कमाई का बंटवारा करें, इसकी चर्चा बहुत लंबे समय से चलती आ रही है।

यूरोप और फ्रांस में इसके लिए कानून भी बने हैं। फ्रांस में गूगल और न्यूज़ कंपनियों के साथ कुछ पार्टनरशिप भी हुई है। मौजूदा समय में पत्रकारिता की असली दिक्कत पत्रकारिता के बिजनेस मॉडल में है। परंपरागत मीडिया संगठन विज्ञापनों के जरिए कमाई करते थे। लेकिन पत्रकारों, संपादको के जरिए न्यूज़ वेबसाइट पर मौजूद खबरें जब फेसबुक पर ट्रैफिक लाती हैं तो अधिकतर विज्ञापन फेसबुक के पास चले जाते हैं। कंटेंट के लिए मेहनत न्यूज़ वेबसाइट से जुड़े लोग करते हैं और कमाई डिजिटल प्लेटफॉर्म को होती है। इसकी वजह से छोटे और मझोले आकार के स्वतंत्र मीडिया संगठनों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अगर सही तरह से कमाई में बंटवारे का मॉडल खड़ा नहीं हुआ तो स्वतंत्र तरीके से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने वाली छोटे और मझोले मीडिया घरानों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।

रॉयटर्स इंस्टीट्यूट के आंकड़े के मुताबिक मौजूदा समय में भारत के तकरीबन 35 साल से कम के 28% लोग न्यूज़ के लिए डिजिटल पोर्टल और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। महज 16 फ़ीसदी लोग प्रिंट के जरिए न्यूज़ तक अपनी पहुंच बनाते हैं। कहने का मतलब यह है कि मौजूदा समय में और आने वाले समय में न्यूज़ से जुड़ा कामकाज डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए ही बहुत बड़ी आबादी तक पहुंच रहा है और पहुंचेगा। शायद इसीलिए पिछले 1 साल में फेसबुक के रेवेन्यू में तकरीबन 22% का इजाफा हुआ है और मुनाफे में तकरीबन 57% का इजाफा हुआ है।

अब थोड़ा इसे गहरे नजरिए से सोचते हैं। सूचनाओं की पूरी दुनिया डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मौजूद है। डिजिटल प्लेटफार्म की पकड़ इंटरनेट की वजह से दुनिया में उन सभी लोगों तक है, जिनके हाथ में मोबाइल है। इनके पास पैसा इतना अधिक है कि ये डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ी कंपनियां सूचनाओं के लिहाज से चाहे कुछ भी कर सकती हैं। अपना खुद का मीडिया संस्थान खोल सकती हैं। चूंकि डिजिटल प्लेटफार्म की तकनीक की मिल्कियत उनकी है इसलिए वह चाहे तो किसी कंटेंट की रीच कम कर सकती हैं और चाहे तो किसी कंटेंट की रीच बढ़ा सकती हैं। चाहे तो किसी बिजनेस को आबाद कर सकती हैं और चाहे तो किसी बिजनेस को बर्बाद कर सकती हैं।

अब यह इस पर निर्भर करता है कि टेक्नोलॉजी कंपनियां किस माहौल में काम कर रही हैं। एक सिंपल उदाहरण से समझिए। आम शिकायत है कि भाजपा के नेता कपिल मिश्रा सोशल मीडिया की दुनिया में नफ़रत बेचने का कारोबार करते रहते हैं लेकिन आज तक उन्हें कभी ब्लॉक नहीं किया गया। लेकिन वहीं पर कई ऐसे सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ता हैं जो जायज सवाल उठाने की वजह से ब्लॉक कर दिए गए। इस उदाहरण के जरिए कई तरह के उदाहरण पर विचार किया जा सकता है कि सूचनाओं के लिहाज से डिजिटल की दुनिया किस तरह का कहर बरपा सकती है।

हमारे दौर की राजनीति को पैसा और टेक्नोलॉजी की शक्ति मिलकर बहुत ज्यादा प्रभावित कर रही हैं। कभी-कभार ध्यान से सोचने पर ऐसा भी लगता है कि जिसके पास पैसा और तकनीक की मिल्कियत है, वही संप्रभुता को नियंत्रित कर रहा है।

बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को रेगुलेट करने के लिए नियम कानून बनाना जरूरी है लेकिन यह ध्यान में रखना भी जरूरी है कि ऐसा नियम कानून ना बनाया जाए जिससे रेगुलेशन के नाम पर जीवंत लोकतंत्र का ही रेगुलेशन होने लगे। अभी यह घटना ऑस्ट्रेलिया में घटी तो भारत कि मौजूदा सरकार नैतिकता के कटघरे में खड़ी होकर दुहाई दे सकती है लेकिन जैसे ही कुछ घटनाएं भारत की मौजूदा सरकार के खिलाफ जाएंगी तो इस पूरे मुद्दे को देखने का नजरिया बदल जाएगा। वह सब कुछ नियंत्रण के नाम पर जायज दिखने लगेगा जो बिल्कुल नाजायज है। अभी जब फेसबुक पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है तब जब पत्रकारों और मीडिया हाउस को डराने धमकाने का खेल सरकार की तरफ से चलता है तो जरा सोचिए कि जब फेसबुक को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सरकार के पास होगी तब क्या हाल होगा? 

इसका मतलब यह नहीं है कि बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को नियंत्रित और विनियमित करने के कानून न बने। लेकिन इसका मतलब यह जरूर है कि जब कानून बने तो उन कानूनों के मूल में स्वतंत्रता न्याय और सभी मीडिया हाउस को मिलने वाली समानता की भावना जरूर हो। ऐसा ना हो कि बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी की कंपनियां बड़े बड़े कॉरपोरेट घराने और नेताओं के साथ सांठगांठ करने वाले पूंजीपति लोगों को फायदा पहुंचाने वाली प्लेटफार्म बनकर रह जाए।

टेक्नोलॉजी की दुनिया में बढ़ता एकाधिकार दुनिया के सामने बहुत बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। अब देखने वाली बात यही होगी कि दुनिया इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है? कहीं ऐसा ना हो कि बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को नियंत्रित करने के नाम पर लोकतंत्र को और अधिक काबू में करने वाला सिस्टम बन जाए? कहीं ऐसा ना हो कि बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को पूरी तरह से छूट देकर लोकतंत्र की बर्बादी वाले रास्ते पर कोई रोक ना लगे?

कई तरह के अंतर्विरोध हैं। इन अंतर्विरोध हो का हल बहुत जरूरी है।

मौजूदा समय की जरूरत यह है कि ऐसी संस्थाएं रूल्स और रेगुलेशन बनाई जाएं जिनके भीतर ऐसे लोग काम करें जो इन चुनौतियों का इस तरीके से समाधान करें कि सबको सबका हक भी मिले और लोकतंत्र भी धूमधाम से फले-फूले।

Facebook
australia
Mark Zuckerberg
Social Media
Narendra modi
News Websites
Anand Pradhan
Law on Revenue Sharing model with FB
google
Sundar Pichai

Trending

कोविड-19: पहुँच से बाहर रेमडेसिवीर और महाराष्ट्र में होती दुर्गति
लखनऊ: हर तस्वीर डराती है... हर मंज़र रुलाता है... अब तो सब्र ने भी साथ देना छोड़ दिया!
भारत की कोरोना वैक्सीन ज़रूरतों और आपूर्ति के बीच के अंतर को समझिये
बंगाल चुनाव: छठे चरण में हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच 79 फ़ीसदी मतदान
क्यों फ्री में वैक्सीन मुहैया न कराना लोगों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है?
देश के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है वैक्सीन वितरण फार्मूला

Related Stories

देश के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है वैक्सीन वितरण फार्मूला
सत्यम श्रीवास्तव
देश के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है वैक्सीन वितरण फार्मूला
23 April 2021
कोरोना एक स्वास्थ्य आपातकाल है इसे लेकर कभी मतभेद नहीं रहे लेकिन इसे हिंदुस्तान की संघीय सरकार ने जिस तरह से अपने लिए ‘अवसर’ में बदला और सदी का सबस
कार्टून क्लिक
आज का कार्टून
कार्टून क्लिक: ज़िम्मेदार कौन?
22 April 2021
कोरोना की दूसरी लहर में सरकार की तैयारियों की हक़ीक़त सामने आ गई है। लोगों को न दवा मिल रही है, न इलाज। लोग खुद ही बेड, इंजेक्शन और ऑक्सीजन के इंतज
बंगाल में भी कोरोना विस्फोट, क्या चुनाव आयोग लेगा ज़िम्मेदारी?
अनिल जैन
बंगाल में भी कोरोना विस्फोट, क्या चुनाव आयोग लेगा ज़िम्मेदारी?
22 April 2021
पश्चिम बंगाल में जारी विधानसभा चुनाव के बीच कोरोना संक्रमण के हालात कितने भयावह शक्ल ले चुके हैं, इसे कोलकाता हाईकोर्ट की बेहद तल्ख टिप्पणियों से स

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • लखनऊ
    सरोजिनी बिष्ट
    लखनऊ: हर तस्वीर डराती है... हर मंज़र रुलाता है... अब तो सब्र ने भी साथ देना छोड़ दिया!
    23 Apr 2021
    राजधानी लखनऊ तो पूरी तरह टूट चुकी है, मंज़र इस कदर भयावह हो चला है जिसकी कोई इंतहा नहीं। अस्पतालों से लेकर श्मशानघाटों तक की तस्वीरें सरकार की ‘सफलता’ की कहानी कहने के लिए काफ़ी हैं।
  • भारत की कोरोना वैक्सीन ज़रूरतों और आपूर्ति के बीच के अंतर को समझिये
    तेजल कानितकर
    भारत की कोरोना वैक्सीन ज़रूरतों और आपूर्ति के बीच के अंतर को समझिये
    23 Apr 2021
    हमारे यहाँ वैक्सीन की एकाधिकार वाली मूल्य नीति लागू हो चुकी है। इस मूल्य नीति से नागरिकों, राज्य और जल्द ही अर्थव्यवस्था की कीमत पर वैक्सीन के निर्माता को मुनाफ़ा हासिल होगा। 
  • क्यों फ्री में वैक्सीन मुहैया न कराना लोगों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है?
    अजय कुमार
    क्यों फ्री में वैक्सीन मुहैया न कराना लोगों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है?
    23 Apr 2021
    वैक्सीन वैश्विक संपदा होती है। इस पर दुनिया के हर व्यक्ति का अधिकार बनता है। इसलिए वैक्सीन निर्माण में दुनिया की सरकारों ने भी खूब पैसा लगाया है। संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधान के तहत स्वास्थ्य…
  • अफ़ग़ानिस्तान: चेतावनी भरी अमरीकी निकासी 
    एम. के. भद्रकुमार
    अफ़ग़ानिस्तान: चेतावनी भरी अमरीकी निकासी 
    23 Apr 2021
    लब्बोलुआब यही है कि सीआईए अफ़ग़ानिस्तान का इस्तेमाल रूस,  ईरान और चीन को अस्थिर करने के लिए अपने ब्लूप्रिंट के साथ आगे बढ़ रहा है।
  • देश के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है वैक्सीन वितरण फार्मूला
    सत्यम श्रीवास्तव
    देश के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है वैक्सीन वितरण फार्मूला
    23 Apr 2021
    क्या केंद्र की सत्ता में बैठी भाजपा की सरकार ‘वैक्सीन ब्लैकमेलिंग’ के लिए ज़मीन तैयार कर रही है? या भाजपा शासित राज्यों में अतिरिक्त वैक्सीन की सप्लाई करके डबल इंजन के संघवाद विरोधी अभियान को सफल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें